भारत में सामाजिक सुधार | Social Reforms in India |

 

भारत में सामाजिक सुधार

1.सती प्रथा      

*सती प्रथा, गवर्नर जनरल लार्ड बिलियम बेंटिंक के कार्यकाल 1829 में, नियम 17 के द्वारा अवैध घोषित कर दी गई थी |

*प्रारम्भ में सती प्रथा केवल बंगाल में अवैध घोषित की गई थी लेकिन 1830 में यह बम्बई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सियों में भी अवैध घोषित कर दी गई थी |

*इसे अवैध घोषित करवाने में राजा राममोहन राय का भी महत्वपूर्ण योगदान था । राजा राधाकान्त देव ने 1830 में धर्म सभा की स्थापना करके सती प्रथा का समर्थन किया ।

2.ठगी प्रथा

*लार्ड बिलियम बेंटिक के समय में ठगों का दमन भी किया गया । इसके लिए उसने एक अधिकारी कार्ल स्लीमैन की नियुक्ति की थी । 1830 तक ठगों का दमन कर दिया गया ।

3.शिशु वध

*गवर्नर जनरल जानशोर के कार्यकाल में 1795 के बंगाल नियम 21 तथा वेल्जली के समय में 1802 की धारा 6 के द्वारा शिशु हत्या को साधारण हत्या के रूप में मान लिया गया ।

*इस प्रकार शिशु वध प्रथा भी धीरे-धीरे समाप्त हो गई । शिशु वध प्रथा मूलतः राजपूतों में प्रचलित थी जो कन्याओं के जन्म लेते ही उन्हें मार डालते थे ।

4.नर-बलि प्रथा                    

*भारतीय समाज में नरबलि की प्रथा भी प्रचलित थी । इसे समाप्त करने का श्रेय हार्डिंग प्रथम को जाता है । इसके लिए उसने एक अधिकारी कैम्पबेल की नियुक्ति की थी । 1844 - 45 तक यह प्रथा समाप्त कर दी गई थी |

5.दास प्रथा

*गवर्नर जनरल एलनबरो ने 1843 के नियम 5 के द्वारा दास प्रथा को समाप्त कर दिया था ।

*मध्यकाल में फिरोजशाह तुगलक ने और मुग़ल कल में अकबर ने दास प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया था ।

*आधुनिक काल में लार्ड कार्नवालिस ने 1789 में दासों के व्यापार को बन्द करवा दिया था ।

6.विधवा पुनर्विवाह

 *1856 का विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (Widow Remarriage Act) - यह अधिनियम कैनिंग के समय में 26 जुलाई, 1856 को पारित हुआ । इसे पारित करवाने में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की प्रमुख भूमिका रही । इस अधिनियम के नियम 15 के द्वारा विधवाओं के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दी गई थी |

*1872 का ब्रह्म मैरेज ऐक्ट, यह लार्ड नार्थबुक के समय में पारित हुआ था । यह अधिनियम अन्तर्जातीय विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह से सम्बन्धित था ।

7.बाल विवाह

*भारत में बाल विवाह की समस्या प्रारम्भ से ही रही है । आधुनिक काल में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने उसे रोकने के लिए काफी प्रयास किया । विद्यासागर व उनके समर्थकों के दबाव के कारण 1860 में लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 10 वर्ष कर दी गई और इससे कम आयु में विवाह अपराध घोषित कर दिया गया । अंग्रेजी सरकार ने बाल विवाह को रोकने के लिए तीन अधिनियम पारित किए |

(i) सिविल मैरेज ऐक्ट या नेटिव मैरेज ऐक्ट (1872) इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की निम्नतम आयु 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई । इस अधिनियम के द्वारा बहुपत्नी प्रथा को भी समाप्त कर दिया गया |

(ii) सम्पति आयु अधिनियम (1892) यह अधिनियम प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक एवं बम्बई के पारसी बहराम जी मालाबारी के प्रयत्नों से पारित हुआ । इसके लिए उन्होंने एक लघु पुस्तिका 15 अगस्त, 1884 को प्रकाशित की तथा उसे अंग्रेजों एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों को दिया ।

*1891 में इनका प्रस्ताव वायसराय के विधान परिषद् में विचारार्थ रखा गया और 19 मार्च, 1891 को यह सम्मति आयु अधिनियम कौंसिल द्वारा पारित कर दिया गया । इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष कर दी गई । बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया था ।

(iii) शारदा अधिनियम (1929) - 1929 में अजमेर निवासी एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ० हरविलास शारदा के प्रयत्नों से यह बाल विवाह निषेध कानून बन पाया । उन्हीं के नाम पर ही इसे शारदा अधिनियम कहा गया । इस अधिनियम के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 14 वर्ष तथा लड़कों की 18 वर्ष निर्धारित की गई ।

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