पल्लव वंश का इतिहास | Pallava Vansh Ka Itihas |

 

पल्लव वंश का परिचय

पल्लव वंश की उत्पत्ति के विषय में इतिहासकार एक मत नहीं हैं क्योंकि कुछ इतिहासकार उन्हें ब्राह्मण मानते हैं तो कुछ इतिहासकार क्षत्रिय मानते हैं परन्तु पल्लव वंश के राजा शिवस्कन्द वर्मन के गुन्टूर अभिलेख में उन्हें क्षत्रिय बताया गया है | 'पल्लव वंश के प्रारम्भिक राजा' गुप्त राजाओं के सामंत थे परन्तु गुप्त वंश के पतन होने पर पल्लव राजाओं ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था | पल्लव वंश के प्रारम्भिक राजाओं का इतिहास उपलब्ध न होने के कारण इतिहासकारों ने सिंहविष्णु के शासनकाल से इस वंश के इतिहास की शुरुआत की है और सिंहविष्णु को ही 'पल्लव वंश की स्थापना' का श्रेय भी प्रदान किया है | 'पल्लव वंश की राजधानी' कांची (कांचीपुरम, तमिलनाडु) में थी और इस वंश के राजाओं ने सनातन धर्म तथा बौद्ध धर्म, दोनों को अपना आश्रय प्रदान किया था | तमिल भाषा के टोण्डियर शब्द को संस्कृत में पल्लव कहा जाता है इसीलिए इस वंश को पल्लव वंश के नाम से जाना जाता है और 'पल्लव वंश की राजकीय भाषा' तमिल, तेलगु तथा संस्कृत थी |

पल्लव वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

अभिलेख

1.गुन्टूर अभिलेख - यह अभिलेख राजा शिवस्कन्द वर्मन का है, इसमें उन्हें क्षत्रिय राजा बताया गया है |

2.वैलूर अभिलेख - यह अभिलेख सिंहविष्णु का है और इसमें उनकी विजयों का उल्लेख किया गया है |

3.मण्डगुप्यल अभिलेख - यह अभिलेख महेंद्र वर्मन का है, इसमें मंदिर निर्माण का उल्लेख किया गया है |

4.तालगुण्ड अभिलेख - इस अभिलेख में पल्लव वंश का प्रारम्भिक इतिहास मिलता है |

साहित्य

1.मतविलास प्रहसन - इस ग्रन्थ की रचना महेंद्र वर्मन के द्वारा की गई थी | 

2.भगवदज्जुकियम - इस ग्रन्थ की रचना भी महेंद्र वर्मन के द्वारा की गई थी |

3.कुडमिमालय - इस ग्रन्थ की रचना भी महेंद्र वर्मन के द्वारा की गई थी | 

4.दशकुमारचरित - इस ग्रन्थ के रचनाकार कवि दण्डिन थे |

5.कत्यादर्श - इसकी रचना कवि दण्डिन ने ही की थी |

5.किरातार्जुनियम - इस ग्रन्थ की रचना कवि भारवि के की थी |

सिंहविष्णु

*सिंहविष्णु को 'पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक' माना जाता है |

*सिंहविष्णु का शासनकाल संभवता 575 - 600 ई. के मध्य में था |

*सिंहविष्णु को अवनि सिंह और विष्णुयोत्तर के नाम से भी जाना जाता था |

*सिंहविष्णु के दरवार में 'किरातार्जुनियम ग्रन्थ' के रचनाकार भारवि रहते थे |

*सिंहविष्णु के शासनकाल में कला का प्रसिद्ध केंद्र मामल्लपुरम (आधुनिक नाम महाबलीपुरम, तमिलनाडु) में था |

*सिंहविष्णु के द्वारा ही मामल्लपुरम में आदिवराह गुहा मंदिरों का निर्माण करवाया गया था |

महेन्द्रवर्मन प्रथम

*महेन्द्रवर्मन प्रथम, सिंहविष्णु के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम का शासनकाल संभवता 600 - 630 ई. के मध्य में था |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम ने मतविलास, गुणभर, शत्रुमल्ल और लिलतांकुर की उपाधियाँ धारण की थीं |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम कवि और गायक भी थे और उनके द्वारा ही 'मतविलास प्रहसन' 'भगवदज्जुकियम' तथा 'कुडमिमालय' नामक ग्रंथों की रचना की गई थी |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम ने तिरुचिरापल्ली, चिंगिलपुट और अर्काट में अनेक अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया गया था |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम को 'महेन्द्र शैली का जन्मदाता' माना जाता है |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम ने महेन्द्रवर्मन नामक नगर को बसाया था और वहीँ पर एक सुन्दर झील का निर्माण भी करवाया था |

*महेन्द्रवर्मन प्रथम और 'वातापी के चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय' के मध्य कांचीपुरम के पास भीषण युद्ध हुआ था जिसमें किसी भी राजा की स्पष्टता जीत नहीं हुई थी परन्तु पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव साम्राज्य के उत्तरी क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली थी और वहां का शासन अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को सौंप दिया लेकिन कुछ वर्षं बाद  विष्णुवर्धन ने वहां पर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसे 'वेंगी का चालुक्य वंश' के नाम से जाना जाता है |

नरसिंहवर्मन प्रथम

*नरसिंहवर्मन प्रथम, महेन्द्रवर्मन प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*नरसिंहवर्मन प्रथम का शासनकाल संभवता 630 - 668 ई. के मध्य में था |

*नरसिंहवर्मन प्रथम ने मामल्ल की उपाधि धारण की थी |

*नरसिंहवर्मन प्रथम के द्वारा ही मामल्लपुरम नामक नगर को बसाया गया था जिसे आज महाबलिपुरम के नाम से जाना जाता है |

*नरसिंहवर्मन प्रथम ने मामल्लपुरम में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था जिन्हें आज 'महाबलीपुरम के रथ मंदिर' के नाम से जाना जाता है |

*नरसिंहवर्मन प्रथम को 'मामल्ल शैली का जन्मदाता' माना जाता है |

*नरसिंहवर्मन प्रथम के शासनकाल में चीनी यात्री व्हेनसांग ने कांचीपुरम की यात्रा की थी |

*नरसिंहवर्मन प्रथम के द्वारा 642 ई. में चालुक्यों की राजधानी बादामी पर आक्रमण किया था और पुलकेशिन द्वितीय के साथ भीषण युद्ध हुआ जिसमें संभवता 'पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु' हो गई थी |

*नरसिंहवर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित करने के बाद 'वातापीकोण्ड की उपाधि' धारण की थी |

*नरसिंहवर्मन प्रथम चोल, चेर और पाण्ड्य राजाओं को भी पराजित किया था |

*नरसिंहवर्मन प्रथम को 'पल्लव वंश का सबसे शक्तिशाली राजा' माना जाता है |

महेन्द्रवर्मन द्वितीय

*महेन्द्रवर्मन द्वितीय, नरसिंहवर्मन प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |           

*महेन्द्रवर्मन द्वितीय का शासनकाल संभवता 668 - 670 ई. के मध्य में था |

*महेन्द्रवर्मन द्वितीय का सम्पूर्ण शासनकाल चालुक्य राजाओं के साथ युद्ध में बीता और अंत में चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम के साथ हुए युद्ध में महेन्द्रवर्मन द्वितीय की मृत्यु हो गई थी |

परमेश्वरवर्मन प्रथम

*परमेश्वरवर्मन प्रथम, महेन्द्रवर्मन द्वितीय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*परमेश्वरवर्मन प्रथम का शासनकाल संभवता 670 - 695 ई. के मध्य में था |

*परमेश्वरवर्मन प्रथम ने एक मल्ल और लोकदित्यु की उपाधियाँ धारण की थीं |

*परमेश्वरवर्मन प्रथम के शासनकाल की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध न होने के कारण इतिहासकारों ने ज्यादा कुछ लिखा नहीं है |

नरसिंहवर्मन द्वितीय

*नरसिंहवर्मन द्वितीय, परमेश्वरवर्मन प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय का शासनकाल संभवता 695 - 722 ई. के मध्य में था |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय ने राजासिंह, आगमप्रिय और शंकरभक्त की उपाधियाँ धारण की थीं |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय ने 'कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण' करवाया था जिसे आज 'राजसिद्धेश्वर मंदिर' के नाम से जाना जाता है और इसी से 'द्रविड़ स्थापत्यकला की शुरुआत' हुई थी |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय ने मामल्लपुरम में 'एरावतेश्वर मंदिर' और 'शोर मंदिर का निर्माण' भी करवाया था |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय को 'राजसिंह शैली का जन्मदाता' भी माना जाता है |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय के दरबार में दशकुमारचरित के रचनाकार दण्डिन रहते थे |

*नरसिंहवर्मन द्वितीय के बाद महेन्द्रवर्मन तृतीय (722 - 728 ई.), परमेश्वरवर्मन द्वितीय (728 - 30 ई.), नन्दिवर्मन द्वितीय (730 - 795 ई.), दन्तिवर्मन (795 - 847 ई.), नन्दिवर्मन तृतीय (847 - 872 ई.) और नृपतंग वर्मन (872 - 882 ई.) राजा हुए परन्तु इनमें से कोई राजा शक्तिशाली नहीं हुआ और पल्लव साम्राज्य अपने पतन की ओर जाने लगा था |

अपराजित वर्मन

*अपराजित वर्मन का शासनकाल संभवता 882 - 897 ई. के मध्य में था |

*अपराजित वर्मन को 'पल्लव वंश का अंतिम राजा' माना जाता है |

*अपराजित वर्मन को 'अपराजित शैली का जन्मदाता' माना जाता है |

*अपराजित वर्मन को चोल राजा आदित्य प्रथम ने पराजित कर 'पल्लव राजवंश का अन्त' कर दिया था | 

 

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