सर जॉन शोर का इतिहास (1793_1798) John Shore history in Hindi |

 

सर जॉन शोर का इतिहास                    

*1793 में लार्ड कार्नवालिस इंग्लैण्ड वापस चले गए और उसके चले जाने के बाद सर जॉन शोर को गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया |

*सर जॉन शोर को अहस्तक्षेप की नीति का अनुयायी माना जाता था क्योंकि 1795 में मराठों ने निजाम के राज्य पर आक्रमण किया लेकिन सर जॉन शोर ने निजाम की कोई सहायता नहीं की, इसी कारण निजाम को अपने राज्य का आधा भाग मराठों को देना पड़ा था |

*केवल अवध के सम्बन्ध में सर जॉन शोर ने हस्तक्षेप की नीति अपनायी थी क्योंकि लार्ड कार्नवालिस ने अवध के नवाब आसफुद्दौला से यह सन्धि की थी कि उससे 50 लाख रुपये वार्षिक से अधिक धन न माँगा जायेगा और न अंग्रेजी सेना की संख्या में वृद्धि की जायेगी |

*सर जॉन शोर ने नवाब को साढे पाँच लाख रुपया वार्षिक और अधिक देने के लिये बाध्य किया तथा अंग्रेज सैनिकों की संख्या भी बढा दी गई ।

*इसका नवाब के हृदय पर बड़ा आधात लगा और 1797 में उसकी मृत्यु हो गई थी |           

*नवाब की मृत्यु के बाद सर जॉन शोर ने आसफुद्दौला के तथाकथित पुत्र वजीरअली को नवाब बनाया किन्तु जब उसे यह ज्ञात हुआ कि वजीरअली एक दासी का पुत्र है तब सर जॉन शोर ने नवाब के भाई सादत अली को अवध की गद्दी पर बैठा दिया |

*सर जॉन शोर ने नए नवाब के साथ एक सन्धि की और इस सन्धि के अनुसार कम्पनी को इलाहाबाद का किला और वार्षिक कर की धनराशि 50 लाख से बढ़ाकर 76 लाख कर दी गई |

*नवाब ने यह वचन भी दिया कि वह किसी विदेशी शक्ति से किसी भी प्रकार की सन्धि नहीं करेगा |

*सर जॉन शोर के शासनकाल की अन्तिम घटना बंगाल के यूरोपीय सैनिकों का विद्रोह था | सेना ने दोहरे भत्ते की माँग की जिससे भयभीत होकर सर जॉन शोर ने उनकी माँगों को स्वीकार कर लिया |

*सर जॉन शोर की अहस्तक्षेप नीति से ब्रिटिश सरकार अप्रसन्न हो गई थी और 1798 में उसे वापस बुला लिया गया था तथा उसके स्थान पर दोबारा से लार्ड वेलेजली को गवर्नर जनरल नियुक्त करके भेजा गया था |

*सर जॉन शोर का कार्यकाल 1793 – 1798 के मध्य में था | 

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