कल्याणी के चालुक्य वंश का परिचय
हमारे देश में चालुक्य नाम से 4 राजवंश हुए - गुजरात के चालुक्य, वातापी के चालुक्य, वेंगी के चालुक्य और कल्याणी के चालुक्य | इनमें सबसे प्राचीन वातापी के चालुक्य वंश को माना जाता है | तैलप द्वितीय प्रारम्भ में राष्ट्रकूट राजा कर्क द्वितीय के सामंत थे और तैलप द्वितीय ने उन्हें पराजित करके कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना की थी | तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेत (आधुनिक नाम मालखेड़ा, कर्नाटक) में बनाई थी तथा कल्याणी के चालुक्य राजाओं को पश्चिमी चालुक्य के नाम से भी जाना जाता है |
ऐतिहासिक स्त्रोत
अभिलेख
- चिपलुन अभिलेख - यह अभिलेख सत्याश्रय का है जो महाराष्ट्र के रत्नागिरी से प्राप्त हुआ था और इसमें किसी साधु - सन्त को दान देने का उल्लेख किया गया है |
- निलगुन्ड अभिलेख - इस अभिलेख में कल्याणी के चालुक्य वंश का प्रारम्भिक इतिहास मिलता है |
- कौथेम अभिलेख - यह अभिलेख विक्रमादित्य पंचम का है और इसमें उनके शासनकाल की घटनाओं का उल्लेख किया गया है |
- तेर्दाल अभिलेख - यह अभिलेख विक्रमादित्य षष्ठ का है और इसमें चालुक्य वंश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है |
साहित्य
- विक्रमांकदेव चरित - इस ग्रन्थ की रचना विल्हण के द्वारा की गई थी |
- गदायुद्ध - यह कन्नड़ कवि रन्ना का ग्रन्थ है और इसमें सत्याश्रय के शासनकाल के बारे में जानकारी प्रदान की गई है |
- मिताक्षरा - इस ग्रन्थ की रचना विज्ञानेश्वर के द्वारा की गई थी |
- मानसोल्लास - इसकी रचना सोमेश्वर तृतीय के द्वारा की गई थी |
- प्रबन्धचिन्तामणि - इसकी रचना मेरुतुंग के द्वारा की गई थी |
तैलप द्वितीय
- तैलप द्वितीय को कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक माना जाता है |
- तैलप द्वितीय का शासनकाल संभवता 973 – 997 ई. के मध्य में था |
- तैलप द्वितीय के पिता का नाम विक्रमादित्य चतुर्थ और माता का नाम बोन्था देवी था |
- तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेत में बनाई थी |
- तैलप द्वितीय ने अश्वमल की उपाधि धारण की थी |
- तैलप द्वितीय के दरवार में प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ के रचनाकार मेरुतुंग रहते थे |
सत्याश्रय
- सत्याश्रय, तैलप द्वितीय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |
- सत्याश्रय का शासनकाल संभवता 997 – 1006 ई. के मध्य में था |
- सत्याश्रय ने प्रतिहार राजा चामुण्डराज को पराजित किया था |
- सत्याश्रय एक निर्बल राजा थे |
विक्रमादित्य पंचम
- विक्रमादित्य पंचम, सत्याश्रय के भतीजे तथा उत्तराधिकारी थे |
- विक्रमादित्य पंचम का शासनकाल संभवता 1006 – 1015 ई. के मध्य में था |
- विक्रमादित्य पंचम को उनके लेखों में दानशील राजा बताया गया है |
- विक्रमादित्य पंचम ने परमार राजा भोज प्रथम को पराजित किया था |
जयसिंह द्वितीय
- जयसिंह द्वितीय, विक्रमादित्य पंचम के भाई तथा उत्तराधिकारी थे |
- जयसिंह द्वितीय का शासनकाल संभवता 1015 – 1043 ई. के मध्य में था |
- जयसिंह द्वितीय को परमार राजा भोज ने पराजित करके कोंकण के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था |
सोमेश्वर प्रथम
- सोमेश्वर प्रथम, जयसिंह द्वितीय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |
- सोमेश्वर प्रथम का शासनकाल संभवता 1043 – 1068 ई. के मध्य में था |
- नादेड अभिलेख के अनुसार सोमेश्वर प्रथम ने मगध और कल्याणी के राजाओं को पराजित किया था |
- सोमेश्वर प्रथम ने अपनी राजधानी मान्यखेत से हटाकर कल्याणी में बनाई थी |
- सोमेश्वर प्रथम ने चोल राजा से पराजित होने पर नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी |
सोमेश्वर द्वितीय
- सोमेश्वर द्वितीय का शासनकाल संभवता 1068 – 1076 ई. के मध्य में था |
- सोमेश्वर द्वितीय को चोल राजा वीर राजेन्द्र ने पराजित कर दिया था परन्तु सोमेश्वर द्वितीय के भाई विक्रमादित्य षष्ठ के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर कल्याणी के दक्षिणी भाग का राजा बना दिया था |
- 1076 ई. में विक्रमादित्य षष्ठ ने सोमेश्वर द्वितीय को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं सम्पूर्ण कल्याणी के साम्राज्य का राजा बन गया था
विक्रमादित्य षष्ठ
- विक्रमादित्य षष्ठ का शासनकाल संभवता 1076 – 1126 ई. के मध्य में था |
- विक्रमादित्य षष्ठ को कल्याणी के चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |
- विक्रमादित्य षष्ठ ने विक्रमपुर नामक नगर को बसाकर वहां पर भगवान विष्णु का मंदिर और एक झील का निर्माण करवाया था |
- विक्रमादित्य षष्ठ ने विक्रमांक और त्रिभुवनमल की उपाधि धारण की थी |
- विक्रमादित्य षष्ठ के दरवार में मिताक्षरा ग्रन्थ के रचनाकार विज्ञानेश्वर रहते थे |
- विक्रमादित्य षष्ठ के बाद सोमेश्वर तृतीय (1126 – 1138 ई.), जगेदक मल्ल द्वितीय (1138 – 1155 ई.), तैलप तृतीय (1155 – 1163 ई.) और जगदेक मल्ल तृतीय (1163 – 1183 ई.) राजा हुए परन्तु इनमें से कोई भी राजा अपने साम्राज्य को नहीं सम्भाल सका और साम्राज्य कमजोर होने लगा था |
सोमेश्वर चतुर्थ
- सोमेश्वर चतुर्थ, तैलप तृतीय के पुत्र और जगदेक मल्ल तृतीय के उत्तराधिकारी थे |
- सोमेश्वर चतुर्थ का शासनकाल संभवता 1184 – 1200 ई. के मध्य में था |
- सोमेश्वर चतुर्थ को कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम राजा माना जाता था |
- सोमेश्वर चतुर्थ ने कलचूर्य कुल निर्मूलता की उपाधि धारण की थी |
- 1189 ई. में यादव वंशीय राजा ने सोमेश्वर चतुर्थ को बुरी तरह पराजित करके कल्याणी छोड़ने पर मजबूर कर दिया था और सोमेश्वर चतुर्थ ने अपना बाकि जीवन गोवा में एक सामंत के रूप में व्यतीत किया था |
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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD