बादामी के चालुक्य वंश का इतिहास | Badami ke chalukya vansh ka itihas | #पुलकेशिनद्वितीयकाइतिहास

 

वातापी के चालुक्य वंश का परिचय

वातापी जिसे वर्तमान समय में बादामी के नाम से जाना जाता है जो कर्नाटक के बीजापुर या बागलकोट जिले में है और वहां पर 500 – 753 ई. के मध्य में जिन राजाओं ने शासन किया था उन्हीं राजाओं को वातापी के चालुक्य राजा कहा जाता है | वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना 6शताब्दी में जयसिंह के द्वारा की गई थी और इस वंश के राजा सनातन तथा जैन धर्म दोनों के अनुयायी थे | वातापी के चालुक्य वंश का राजकीय चिन्ह वराह (सूअर) था जिसे भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है |

ऐतिहासिक स्त्रोत

1.अभिलेख

*महाकूट स्तम्भ लेख – राजा मंगलेश का यह स्तम्भ लेख कर्नाटक के बागलकोट जिले से प्राप्त हुआ था |

*बादामी शिलालेख – यह शिलालेख पुलकेशिन प्रथम का है |

*ऐहोल अभिलेख – पुलकेशिन द्वितीय का यह अभिलेख बीजापुर जिले में है |

2.साहित्य

*विक्रमांक अभ्युदयै ग्रन्थ – इसकी रचना सोमेश्वर के द्वारा की गई थी |

*गदायुद्ध ग्रन्थ – इसकी रचना कन्नड़ कवि रन्ना के द्वारा की गई थी |

जयसिंह

*जयसिंह को वातापी के चालुक्य वंश का संस्थापक माना जाता है |

*जयसिंह का शासनकाल संभवता 500 - 520 ई. के मध्य में था |

*जयसिंह का उल्लेख 602 ई. में राजा मंगलेश के द्वारा उत्कीर्ण करबाए गए महाकूट स्तंभ लेख में किया गया है |

*जयसिंह के पिता का नाम सत्याश्रय था और इसकी जानकारी सोमेश्वर के विक्रमांक अभ्युदयै नामक ग्रन्थ में मिलती है |

*जयसिंह ने वल्लभ, श्रीवल्लभ और वल्लभेन्द्र की उपाधियाँ धारण की थी |

रणराग सिंह

*रणराग सिंह, जयसिंह के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*रणराग सिंह का शासनकाल संभवता 520 – 543 ई. के मध्य में था |

*रणराग सिंह का उल्लेख ऐहोल अभिलेख और येबुर अभिलेख में किया गया है |

*रणराग सिंह साहसी और पराक्रमी राजा थे क्योंकि उनका गुणगान येबुर अभिलेख में किया गया है |

पुलकेशिन प्रथम

*पुलकेशिन जिसका अर्थ होता है महान शेर |

*पुलकेशिन प्रथम का शासनकाल संभवता 543 – 566 ई. के मध्य में था |

*पुलकेशिन प्रथम को वातापी के चालुक्य वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है क्योंकि जयसिंह और रणराग सिंह स्वतंत्र राजा नहीं बल्कि कदम्ब राजाओं के सामंत थे |

*पुलकेशिन प्रथम ने सत्याश्रय, वल्लभ, श्रीवल्लभ, श्रीपृथ्वीवल्लभ और रणविक्रम की उपाधियाँ धारण की थी |

*पुलकेशिन प्रथम का उल्लेख राजा मंगलेश के महाकूट अभिलेख में किया गया है |

*पुलकेशिन प्रथम ने बादामी के वल्लभेश्वर में एक शिलालेख का निर्माण करवाया था |

*पुलकेशिन प्रथम शास्त्रों अच्छे के ज्ञाता थे |

*पुलकेशिन प्रथम ने बादामी के किले का निर्माण करवाया था |

*पुलकेशिन प्रथम का विवाह बप्पुर वंशीय राजकुमारी दुर्लभा देवी के साथ हुआ था और इसकी जानकारी महाकूट स्तम्भ लेख में मिलती है |

*पुलकेशिन प्रथम के दो पुत्र कीर्तिवर्मन प्रथम और मंगलेश थे |

कीर्तिवर्मन प्रथम

*कीर्तिवर्मन प्रथम का शासनकाल संभवता 566 – 597 ई. के मध्य में था |

*कीर्तिवर्मन प्रथम को पुलकेशिन द्वितीय के चिपलुन अभिलेख में वातापी का वास्तविक निर्माता बताया गया है |

*वातापी को शहर के रूप में विकसित करने का श्रेय कीर्तिवर्मन प्रथम को ही दिया जाता है |

*मंगलेश के महाकूट स्तम्भ लेख और पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में कीर्तिवर्मन प्रथम की विजयों का उल्लेख किया गया है |

*कीर्तिवर्मन प्रथम ने वल्लभ, श्रीपृथ्वीवल्लभ, कीर्तिराज, सत्याश्रय, महाराज, पुर-रणपराक्रम की उपाधियाँ धारण की थी |

*कीर्तिवर्मन प्रथम ने बादामी में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था |

*कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु 597 ई. में हुई थी |

मंगलेश

*मंगलेश, कीर्तिवर्मन प्रथम के छोटे भाई तथा उत्तराधिकारी थे |

*मंगलेश का शासनकाल संभवता 597 – 610 ई. के मध्य में था |

*मंगलेश को अभिलेखों में मंगलापति, मंगलराज, रणविक्रांत और उरुरणविक्रांत कहा जाता है |

*मंगलेश ने पृथ्वीवल्लभ, श्रीपृथ्वीवल्लभ, महाराज और परमभागवत की उपाधियाँ धारण की थी |

*मंगलेश के द्वारा महाकूट स्तम्भ लेख, बादामी की गुफ़ा 3 का शिलालेख और नेरुर दानपत्र लेख को उत्कीर्ण करवाया गया था |

पुलकेशिन द्वितीय

*पुलकेशिन द्वितीय, कीर्तिवर्मन प्रथम के पुत्र और मंगलेश के उत्तराधिकारी थे |

*पुलकेशिन द्वितीय ने अपने चाचा मंगलेश की 610 ई. में हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया था |

*पुलकेशिन द्वितीय का शासनकाल संभवता 610 – 642 ई. के मध्य में था |

*पुलकेशिन द्वितीय ने सत्याश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ, महाराज, दक्षिणापथेश्वर, परमभट्टारक, महाराजाधिराज, वल्लभ और परमेश्वर की उपाधियाँ धारण की थी |

*पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में उनके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है और इस अभिलेख की रचना रविकीर्ति जैन के द्वारा की गई थी |

*पुलकेशिन द्वितीय और कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन के मध्य युद्ध हुआ था परन्तु इस युद्ध में किसकी जीत हुई थी यह निश्चिततौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन ऐहोल अभिलेख में पुलकेशिन द्वितीय की जीत बताई गई है जोकि पूर्णता सही नहीं है क्योंकि हर्षवर्धन के लेख, चीनी यात्री व्हेन सांग और तबरेज जो पुलकेशिन द्वितीय के दरवार में आया था, इन सभी के लेखों में किसी भी राजा की हार या जीत का उल्लेख नहीं किया गया है |

*पुलकेशिन द्वितीय के दरवार में इरानी शासक खुसरो परवेज़ ने अपने राजदूत तबरेज़ को भेजा था और पुलकेशिन द्वितीय को उसका स्वागत करते हुए बादामी के गुफ़ा चित्रों में दिखाया गया है |

*पुलकेशिन द्वितीय ने अपने साम्राज्य के पूर्वी क्षेत्रों को जीतकर वहां का राजा अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को बनाया था और विष्णुवर्धन ने वहां पर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना जिसे वेंगी का चालुक्य वंश के नाम से जाना जाता है और प्रारम्भ में इस वंश की राजधानी पिष्टपुर में बनाई थी |

*वातापी के चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली राजा पुलकेशिन द्वितीय को ही माना जाता है |

*642 ई. में पल्लव वंश के राजा नरसिंह वर्मन ने पुलकेशिन द्वितीय की राजधानी वातापी पर आक्रमण किया और अधिकार कर लिया संभवता इसी समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो गई थी |

विक्रमादित्य प्रथम

*पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु के बाद वातापी पर पल्लव राजाओं का अधिकार हो गया लेकिन विक्रमादित्य प्रथम ने गंग नरेश की सहायता से पल्लव राजाओं को वातापी से पराजित करके पुनः अपने साम्राज्य को खड़ा किया परन्तु 642 – 655 ई. के मध्य में वातापी पर पल्लवों का अधिकार रहा था |

*विक्रमादित्य प्रथम का शासनकाल संभवता 655 – 680 ई. के मध्य में था |

*विक्रमादित्य प्रथम ने सत्याश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ, भट्टारक, परमेश्वर, महाराजाधिराज और परमेश्वर की उपाधियाँ धारण की थीं |

विनयादित्य

*विनयादित्य, विक्रमादित्य प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*विनयादित्य का शासनकाल संभवता 680 – 696 ई. के मध्य में था |

*विनयादित्य ने सत्याश्रय, वल्लभ, श्रीवल्लभ, श्रीपृथ्वीवल्लभ, राजाश्रय, युद्धमल्ल, महाराजाधिराज, परमेश्वर और परमभट्टारक की उपाधियाँ धारण की थी |

*कन्नड़ कवि रन्ना के गदायुद्ध ग्रन्थ में विनयादित्य को दुर्धरमल्ल कहा गया है

विजयादित्य

*विजयादित्य, विनयादित्य के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*विजयादित्य का शासनकाल संभवता 696 – 733 ई. के मध्य में  था |

*विजयादित्य ने सत्याश्रय, समस्तभुवनाश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ, परमभट्टारक की उपाधियाँ धारण की थी |

*वातापी के सभी राजाओं में सबसे शांतिपूर्ण शासनकाल विजयादित्य का ही माना जाता है |

*विजयादित्य ने पट्टदकल में एक सुन्दर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था |

*विजयादित्य की बहिन महालक्ष्मी के द्वारा लक्ष्मीश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था |

*विजयादित्य एक सहिष्णु राजा थे उन्होंने सनातन तथा जैन धर्म दोनों को अपना आश्रय प्रदान किया था |

विक्रमादित्य द्वितीय

*विक्रमादित्य द्वितीय, विजयादित्य के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*विक्रमादित्य द्वितीय का शासनकाल संभवता 734 – 745 ई. के मध्य में था |

*विक्रमादित्य द्वितीय का विवाह कलचूरि राजकुमारी लोकमहा देवी और त्रैलोक्य देवी दोनों बहिनों के साथ हुआ था |

*विक्रमादित्य द्वितीय की रानी लोकमहा देवी ने पट्टदकल में लोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे आज विरूपाक्ष मंदिर के नाम से जाना जाता है |

*विक्रमादित्य द्वितीय की दूसरी रानी त्रैलोक्य देवी ने त्रैलोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था |

कीर्तिवर्मन द्वितीय

*कीर्तिवर्मन द्वितीय का शासनकाल संभवता 745 – 753 ई. के मध्य में था |

*कीर्तिवर्मन द्वितीय के पिता का नाम विक्रमादित्य द्वितीय तथा माता का नाम त्रैलोक्य देवी था |

*कीर्तिवर्मन द्वितीय ने महाराजाधिराज, परमेश्वर, राजाधिराज, भट्टारक, सार्वभौम, पृथ्वी का प्रिय, राजाओं का राजा, नृपसिंह और अनिवारित की उपाधियाँ धारण की थी |

*कीर्तिवर्मन द्वितीय का एक अभिलेख कर्नाटक के वक्कलेरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ था |

*कीर्तिवर्मन द्वितीय का पट्टदकल अभिलेख सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उसमें रानी लोकमहा देवी और त्रैलोक्य देवी का नाम मिलता है |

*753 ई. में राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित कर, उसके अधिकतर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था लेकिन कुछ वर्ष बाद राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित करके सम्पूर्ण वातापी के चालुक्य वंश को समाप्त कर दिया था और इसकी सम्पूर्ण जानकारी दन्तिदुर्ग के एलोरा अभिलेख में मिलती है |            

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