परमार वंश का सम्पूर्ण इतिहास तथा कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य | Parmar Vansh ka itihas |


1.परमार वंश का परिचय

परमार वंश की उत्पत्ति के बारे में अनेक मत हैं कुछ इतिहासकार उन्हें अग्निवंशीय मानते हैं और कुछ इतिहासकार उन्हें प्राचीन क्षत्रियों की संतान मानते हैं लेकिन अहमदाबाद में मिले परमार राजाओं के अभिलेख में उन्हें राष्ट्रकूट राजाओं का सामंत बताया गया है | परमार वंश को पवार या पंवार वंश की कहा जाता है और इस वंश की स्थापना उपेन्द्र कृष्णराज के द्वारा संभवता 800 ई. के आस-पास में की गई थी |  

2.परमार वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

1.अभिलेख

*अहमदाबाद अभिलेख

*उज्जैन अभिलेख

*उज्जैन दानपत्र लेख

*उदयपुर अभिलेख

2.साहित्य

*प्रबंधचिंतामणि ग्रन्थ

*नवसहसांकचरित ग्रन्थ

*भोज प्रबन्ध

*तिलकमंजरी

*अलबरूनी और फ़रिश्ता के लेख

3.उपेन्द्र कृष्णराज

*उपेन्द्र कृष्णराज को ही परमार वंश का संस्थापक माना जाता है |

*उपेन्द्र कृष्णराज का शासनकाल संभवता 800 – 818 ई. के मध्य में था |

*उपेन्द्र कृष्णराज स्वतंत्र राजा नहीं थे बल्कि राष्ट्रकूट राजा ध्रुव और गोविन्द तृतीय के सामंत थे |

*उपेन्द्र कृष्णराज ने अपनी राजधानी धार (आधुनिक म.प्र. में) में बनाई थी |

*उपेन्द्र कृष्णराज के बाद वैरिसिंह प्रथम [818 – 843 ई.], सियक प्रथम [843 – 893 ई.], वाकपति [893 – 918 ई.], वैरिसिंह द्वितीय [918 – 948 ई.], सियक द्वितीय या हर्षसिंह [948 – 974 ई.] राजा हुए परन्तु इनके शासनकाल के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है |

4.वाकपतिराज मुंज

*वाकपतिराज मुंज, सियक द्वितीय के दत्तक पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*वाकपतिराज मुंज का शासनकाल संभवता 974 – 995 ई. के मध्य में था |

*वाकपतिराज मुंज ने उत्पलराज, श्रीवल्लभ और अमोघवर्ष की उपाधियाँ धारण की थीं |

*वाकपतिराज मुंज के दरवार में पदम् गुप्त, धनांजय, हलायुध, अमितगति आदि विद्वान रहते थे |

*वाकपतिराज मुंज ने धार के पास एक मुंजसागर झील का निर्माण करवाया था | 

*उज्जैन लेख के अनुसार वाकपतिराज मुंज ने हूण राजाओं को पराजित किया था |

*उदयपुर लेख के अनुसार वाकपतिराज मुंज ने कलचुरि वंश की राजधानी त्रिपुरी (आधुनिक म.प्र. के जबलपुर के पास) पर अधिकार कर लिया था |

*प्रबंधचिंतामणि ग्रन्थ के अनुसार वाकपतिराज मुंज ने चालुक्य राजा तैलप को 6 बार पराजित किया था परन्तु 7वी बार में वाकपतिराज मुंज, तैलप से हार गए और उन्हें मार दिया गया था |   

*वाकपतिराज मुंज के बाद उनका भाई सिन्धुराज राजा बना जिसने संभवता 995 – 1010 ई. के मध्य में शासन किया था |

5.राजा भोज प्रथम

*राजा भोज का शासनकाल संभवता 1010 – 1055 ई. के मध्य में था |

*राजा भोज को परमार वंश का सबसे शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |

*राजा भोज को अभिलेखों में कविराज कहा गया है क्योंकि इनके शासनकाल में 23 ग्रंथों की रचना हुई थी जिसमें सरस्वती कंटाभरण, चम्पू रामायण, प्राकृत व्याकरण, पतंजलियोग सूत्रवृति जैसे ग्रंथों को प्रमुख माना जाता है |

*शाकम्भरी के चौहान राजा संभवता राजा भोज के अधीन अपना शासन चलाते थे |

*1042 ई. में चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम ने राजा भोज की राजधानी सहित धार, उज्जैन और मांडू में खूब लूट पाट मचाई थी |

*राजा भोज ने अपनी राजधानी धार में एक भोजशाला नाम का संस्कृत विद्यालय बनवाया था |

*राजा भोज शैव धर्म के अनुयायी थे परन्तु कुछ इतिहासकार उन्हें जैन धर्म से सम्बंधित मानते हैं |

*उदयपुर लेख के अनुसार राजा भोज ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया था |

*राजा भोज के द्वारा भोपाल के पास भोजपुर नामक नगर को बसाया गया था |

*कुछ इतिहासकारों के अनुसार राजा भोज ने कई ग्रंथों की रचना की थी जिसमें समरांगण सूत्रधार ग्रन्थ सबसे प्रसिद्ध था |

*राजा भोज के बाद परमार वंश में कई राजा हुए परन्तु उनका वास्तविक इतिहास नहीं मिलता है जैसे – जयसिंह प्रथम [1055 – 1060 ई.], उदयादित्य [1060 – 1087 ई.], लक्ष्मणदेव [1087 – 1097 ई.], नरवर्मन [1097 – 1134 ई.], यशोवर्मन [1134 – 1142 ई.], जयवर्मन प्रथम [1142  - 1160 ई.], विन्ध्यवर्मन [1160 – 1193 ई.], सुभातवर्मन [1193 – 1210 ई.], अर्जुनवर्मन प्रथम [1210 – 1218 ई.], देवपाल [1218 – 1239 ई.], जयतुगीदेव [1239 – 1256 ई.], जयवर्मन द्वितीय [1256 – 1269 ई.], जयसिंह द्वितीय [1269 – 1274 ई.], अर्जुनवर्मन द्वितीय [1274 – 1283 ई.], भोज द्वितीय [1283 – 1295 ई.], महलक देव 1295 – 1305 ई.] संजीव सिंह परमार [1305 – 1327 ई.] राजा हुए | संजीव सिंह परमार को अलाउद्दीन खिलज़ी के सेनापति आईन उल मुल्क ने पराजित करके सम्पूर्ण मालवा को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बना लिया था |  

6.परमार वंश के सम्पूर्ण राजा और उनका शासनकाल

1.उपेन्द्र कृष्णराज [800 – 818 ई.]

2.वैरिसिंह प्रथम [818 – 843 ई.]

3.सियक प्रथम [843 – 893 ई.]

4.वाकपति [893 – 918 ई.]

5.वैरिसिंह द्वितीय [918 – 948 ई.]

6.सियक द्वितीय या हर्षसिंह [948 – 974 ई.]

7.वाकपतिराज मुंज [974 – 995 ई.]

8.सिन्धुराज [995 – 1010 ई.]

9.राजा भोज [1010 – 1055 ई.]

10.जयसिंह प्रथम [1055 – 1060 ई.]

11.उदयादित्य [1060 – 1087 ई.]

12.लक्ष्मणदेव [1087 – 1097 ई.]

13.नरवर्मन [1097 – 1134 ई.]

14.यशोवर्मन [1134 – 1142 ई.]

15.जयवर्मन प्रथम [1142  - 1160 ई.]

16.विन्ध्यवर्मन [1160 – 1193 ई.]

17.सुभातवर्मन [1193 – 1210 ई.]

18.अर्जुनवर्मन प्रथम [1210 – 1218 ई.]

19.देवपाल [1218 – 1239 ई.]

20.जयतुगीदेव [1239 – 1256 ई.]

21.जयवर्मन द्वितीय [1256 – 1269 ई.]

22.जयसिंह द्वितीय [1269 – 1274 ई.]

23.अर्जुनवर्मन द्वितीय [1274 – 1283 ई.]

24.भोज द्वितीय [1283 – 1295 ई.]

25.महलक देव 1295 – 1305 ई.]

26.संजीव सिंह परमार [1305 – 1327 ई.]

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