क्या शूद्र असुरों के वंशज हैं ? और असुर और सुर कौन थे ? Sur Aur Asur Kuan The?

असुर कौन थे?

क्या भारत में रहने वाली सभी जातियां असुर और सुरों की वंशज हैं? उत्तर है बिल्कुल नहीं | तो फिर भारत में असुर और सुरों का वास्तविक वंशज कौन है ? क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सुरों के वंशज हैं ? OBC, SC और ST असुरों के वंशज हैं? इसके सम्बंध में विद्वानों से लेकर इतिहासकारों में भी बहुत मतभेद हैं | झारखण्ड, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा और असम में रहने वाली कुछ जनजातियां स्वयं को असुरों का वंशज मानती हैं |

महिसासुर को अपना पूर्वज भी बताती हैं, परन्तु वही महिसासुर को हिन्दू ग्रंथों में असुर राक्षस लिखा गया है जिसका वध देवी दुर्गा के द्वारा किया गया था | जनजातियों का मुख्य धर्म सरना था इसके अंतर्गत वो प्रकृति यानि भूमि, जल, पेड़, पहाड़ आदि की पूजा की किया करते थे, लेकिन वर्तमान समय में इनके कई नियम बदल चुके हैं |

हिन्दुओं के सबसे पुराने ग्रन्थ ऋग्वेद में असुरों की चर्चा की गई है जिसमें इन्द्र असुरों की हत्या करता है उनके नगरों को उजाड़कर ध्वस्त करता है | इसी कारण ऋग्वेद में इन्द्र को पुरन्दर यानि पुरों को नष्ट करने वाला कहा गया है | हिन्दू ग्रंथों में असुरों की उत्पत्ति दिति, दनु और सुरसा नामक देवियों से बताई गई है |  दक्ष प्रजापति को अपनी दूसरी पत्नी वारणी से 60 पुत्रियां उत्पन्न हुई थी जिसमें पहली 17 पुत्रियों का विवाह ऋषि कश्यप के साथ हुआ था | दक्ष प्रजापति की सबसे बड़ी पुत्री अदिति थी |

ऋषि कश्यप को पहली पत्नी अदिति से 12 पुत्र इन्द्र, सूर्य (विवस्वान), आर्यमन, त्वष्टा, अम्सा, भग, धाता, सविता, पूषन, मित्र, वरुण और वामन उत्पन्न हुए | यही 12 भाई आदित्य भी कहे जाते हैं | ऋषि कश्यप की दूसरी पत्नी दिति थी जिससे ऋषि कश्यप को 10 संताने वज्रांग, अरुण, हैयग्रीव, हिरण्यकश्यप, होलिका, रक्तबीज, धुम्रलोचन, दंभासुर और मुरासुर उत्पन्न हुए |     

ऋषि कश्यप और दिति की यही संतानें दैत्य कही जाती हैं जो 12 आदित्यों के विरोधी और सौतेले भाई बहिन थे | ऋषि कश्यप की तीसरी पत्नी दनु थी जिसके पुत्र दानव कहे जाते हैं जिसमें वृत्रासुर का नाम सबसे प्रसिद्ध है जिसकी ऋग्वेद में खूब चर्चा की गई है | ऋग्वेद के मुख्य पात्र इन्द्र ने अपने सौतेले भाई वृत्रासुर की हत्या थी | ऋषि कश्यप की तीसरी पत्नी सुरसा थी जिसके पुत्र राक्षस कहे जाते हैं | दिति के पुत्र दैत्य, दनु के पुत्र दानव और सुरसा के पुत्र राक्षस ही असुर या अनार्य कहे जाते हैं |

असुर प्रकृति यानि भूमि, जल, हवा, पहाड़, पेड़, सूरज, चांद आदि को प्रकृति का स्वरूप मानकर उनकी पूजा किया करते थे | यज्ञ, बलि प्रथा, मदिरा का प्रयोग नहीं करते थे | असुरों का पहला राजा वज्रांग को माना जाता है और अंतिम राजा वाणासुर को माना जाता है | वाणासुर, असुर राजा बलि और असना का पुत्र था | संभवतः वाणासुर को ही बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा में महाकाल कहा गया है |

वाणासुर की पुत्री उषा का विवाह श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ हुआ था | इसीलिए ऋग्वेद में श्री कृष्ण को कृष्णासुर कहा गया है | हिन्दू ग्रंथों में असुरों का गुरु शुक्राचार्य को बताया गया है | बौद्ध ग्रन्थ सद्धर्मस्मृति उपस्थान सूत्र और दशभूमिका सूत्र में असुरों का वर्णन किया गया है | बौद्ध ग्रन्थ लोटस सूत्र में कहा गया है कि 4 असुर राजाओं ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था | इसी कारण शाम शास्त्री जैसे इतिहासकारों ने बौद्ध धर्म को असुरों का धर्म कहा है |

साथ ही जैन और पारसियों को भी असुरों का धर्म बताया है | असुर शांति की नीति का पालन करने वाले लोग थे जैसे असुर राजा बलि | सुर लोग छल, कपट और फूट डालो तथा राज करो की नीति का पालन करने वाले लोग थे जैसे असुर राजा हिरण्य कश्यप और प्रह्लाद की कहानी |  असुर शब्द का अर्थ अलग – अलग भाषाओं में अलग – अलग देखने को मिलता है |

जर्मनिक संस्कृति में असुर को एसिर कहा गया है जो शक्तिशाली भगवान का एक नाम है | पारसियों में असुर को सर्वश्रेष्ठ भगवान माना गया है जबकि देवता को शैतान का प्रतीक माना गया है | हिन्दुओं में देव को भगवान के तुल्य माना गया है और असुर को शैतान के समान माना गया है | असुरों का मूल निवास स्थान ग्रेटर सीरिया जिसमें कुछ भाग ईरान, ईराक और तुर्की का आता था |

सुर कौन थे?

ऋषि कश्यप और अदिति के 12 पुत्र इन्द्र, सूर्य (विवस्वान), आर्यमन, त्वष्टा, अम्सा, भग, धाता, सविता, पूषन, मित्र, वरुण और वामन हुए | इन्हीं को आदित्य कहा गया है | प्रारम्भिक ग्रथों में वरुण, मित्र, सविता, त्वष्टा को असुर कहा है लेकिन बाद के ग्रंथों में इन्हें सुर अर्थात देव का दर्जा दिया गया | विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय जिन लोगों ने वारुणी/मदिरा/अमृत/सुरा को स्वीकार किया वही सुर कहलाए |

सुर उन लोगों को कहा गया है जो मदिरा का सेवन करते हों, यज्ञ में बलि का प्रयोग करते हों, मांस का सेवन करते हों वही देव कहे जाते हैं | ऋग्वेद में इन्द्र को देवों का राजा बताया गया है | इन्द्र, सोमरस का सेवन करते थे | देव लोग मांस का सेवन भी करते थे इसका उल्लेख ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के सूक्त 162 के श्लोक  9, 10, 11, 12 में किया गया है | 

क्रत्वा महाँ अनुष्वधं भीम आ वावृधे शवः। श्रिय ऋष्व उपाकयोर्नि शिप्री हरिवान्दधे हस्तयोर्वज्रमायसम्।।४।।

यज्ञ-द्वारा इन्द्रदेव विशाल और भयंकर हैं और सोमपान-द्वारा इन्द्रदेव ने अपना बल बढ़ाया। इन्द्रदेव दर्शनीय नासिका से युक्त तथा हरि नाम के अश्वों से युक्त हैं। इन्द्रदेव ने हमारी रक्षा के लिए अपने दाहिने हाथ में लौहमय वज्र को अलंकार के रूप में धारण किया।

                                                                                ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त 81 का श्लोक 4

यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधिती रिप्तमस्ति। यद्धस्तयोः शमितुर्यन्त्रखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु ।।९।।

अश्व का जो कच्चा मांस ही मक्खी खाती हैं, काटने या साफ करने के समय हथियार में जो लग जाता है और छेदक के हाथों और नाखूनों में जो लग जाता है, वह सब देवों के पास जावें।

यदूवध्यमुदरस्यापवाति य आमस्य क्रविषो गन्यो अस्ति। सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेधं शृतपाकं पचन्तु ।। १० ।।

उदर अर्थात् पेट का जो अजीर्ण अंश बाहर हो जाता है और अपक्व मांस का जो लेशमात्र बचा रहता है, उसे छेदक निदर्दोष अर्थात् पवित्र करके उस मांस को देवों के लिए पकावे।

यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति। मा तद्धूम्यामा श्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भयो रातमस्तु ।। ११ ।।

हे अश्व! आग में पकाते समय आपके शरीर से जो रस निकलता और जो अंग शूल से आबद्ध रहता है, वह मिट्टी में गिरकर तिनकों में न मिल जाय। यज्ञ भाग चाहने वाले देवों का वह आहार बनें।

ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्कं य ईमाहुः सुरभिर्निर्हरति। ये चार्वतो मांसभिक्षामुपासत उतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु ।। १२ ।।

जो लोग चारों ओर से अश्व का पकना देखते हैं, जो कहते हैं कि गन्ध मनोहर है, देवों को दें; और जो मांस-भिक्षा की आशा करते हैं, उनका संकल्प हमारा ही है।                                

                                                                 ऋग्वेद प्रथम मण्डल सूक्त 162 का श्लोक 9, 10, 11 और 12

हिन्दुओं के सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में 12 आदित्यों की कथाओं को श्लोकों के माध्यम से वर्णित किया गया है जिसमें ऋग्वेद का मुख्य पात्र इन्द्र को माना गया है | इन्द्र के बाद अग्नि को ऋग्वेद का मुख्य पात्र माना गया है | दक्ष प्रजापति और वीरणी की 60 पुत्रियां थी उनमें 17 का विवाह ऋषि कश्यप के साथ, 27 का विवाह राजा चन्द्र या सोम के साथ, 10 का विवाह यमराज के साथ हुआ था | बाकी अन्य का विवाह  अलग लोगों के साथ हुआ था |

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