वेंगी के चालुक्य वंश का सम्पूर्ण इतिहास ||| Vengi ke chalukya vansh ka itihas | Eastern Chalukyas | #01

वेंगी के चालुक्य वंश का परिचय

वेंगी वर्तमान समय में आन्ध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में स्थित एलुरु नामक शहर के पास स्थित थी | वेंगी में जिन राजाओं ने 7वी से 12वी शताब्दी के मध्य में शासन किया था उन्हीं राजाओं को वेंगी का चालुक्य या पूर्वी चालुक्य के नाम से जाना जाता है | बादामी के चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने आन्ध्र प्रदेश के कुछ भागों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था और वहां का शासन अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को सौंप दिया था | विष्णुवर्धन ने कुछ समय बाद स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था, वेंगी के चालुक्य वंश की प्रारम्भिक राजधानी पिष्टपुर (आधुनिक नाम पीथापुरम, आंध्र प्रदेश) में थी इसके बाद वेंगी में राजधानी बनाई और अंत में राजमहेंद्री (आन्ध्र प्रदेश) को राजधानी बनाया गया था | वेंगी के चालुक्य राजाओं ने सनातन और जैन, दोनों धर्मों को अपना आश्रय प्रदान किया, इनकी राजकीय भाषा तेलगु, कन्नड़ और संस्कृत थी |

वेंगी का चालुक्य वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

1.अभिलेख

*सतारा दानपत्र लेख – पुलकेशिन द्वितीय के द्वारा पिष्टपुर का युवराज बनाने का उल्लेख |

*पिष्टपुर लेख – आधुनिक नाम पीथापुरम, आंध्र प्रदेश में |

2.साहित्य

*अवन्तिसुन्दरी कथा – कुछ इतिहासकार कवि दण्डी को इसके रचयिता मानते हैं परन्तु निश्चिततौर पर कहा नहीं जा सकता |

*किरातार्जुनियम ग्रन्थ – इसके रचयिता भारवि कवि थे |

विष्णुवर्धन

*विष्णुवर्धन को वेंगी के चालुक्य वंश का संस्थापक माना जाता है |

*विष्णुवर्धन का शासनकाल संभवता 615 – 633 या  624 – 641 ई. के मध्य में था |

*विष्णुवर्धन को चालुक्य लेखों में कुब्ज विष्णुवर्धन कहा गया है |

*विष्णुवर्धन के दरवार में कवि भारवि रहते थे |

*विष्णुवर्धन के द्वारा पृथ्वी का युवराज, पृथ्वीवल्लभ, मकरध्वज, विषमसिद्धि की उपाधियाँ धारण की गई थी |

*विष्णुवर्धन की रानी एय्यणा महादेवी के द्वारा बेजवाडा (आधुनिक नाम विजयवाडा, आन्ध्रप्रदेश) के प्रसिद्ध जैन मंदिर को अपार दान किया गया था |

*विष्णुवर्धन के बाद जयसिंह प्रथम, इन्द्रवर्मन, विष्णुवर्धन द्वितीय, सर्वलोकाश्रय या विजय सिंह, जयसिंह द्वितीय, कोकुल विक्रमादित्य, विष्णुवर्धन तृतीय, विजयादित्य प्रथम और विष्णुवर्धन चतुर्थ राजा हुए |

*विष्णुवर्धन चतुर्थ के द्वारा 764-799 ई. के मध्य में शासन किया गया लेकिन 769 ई. में राष्ट्रकूट राजाओं ने विष्णुवर्धन चतुर्थ को पराजित कर अपने अधीन कर लिया और 769 ई. से 799 ई. तक विष्णुवर्धन चतुर्थ सिर्फ नाम मात्र के राजा रहे लेकिन असली सत्ता राष्ट्रकूट राजाओं के हाथों में रही |

*विष्णुवर्धन के बाद विजयादित्य द्वितीय और विष्णुवर्धन पंचम राजा हुए |

विजयादित्य तृतीय

*विजयादित्य तृतीय का शासनकाल संभवता 848-892 ई. के मध्य में था |

*विजयादित्य तृतीय को वेंगी के चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली और महान राजा माना जाता है |

*विजयादित्य तृतीय ने पल्लव, पांड्य, दक्षिणी कोसल, कलिंग, कलचुरी और राष्ट्रकूट राजाओं को पराजित कर अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को फिर से स्वतंत्र किया था |

*विजयादित्य तृतीय के बाद भीम प्रथम, विजयादित्य चतुर्थ, अम्मा प्रथम, विजयादित्य पंचम, ताल प्रथम, विक्रमादित्य द्वितीय, भीम द्वितीय और युद्धमल्ल द्वितीय राजा हुए |

*युद्धमल्ल द्वितीय के शासनकाल में राष्ट्रकूट राजा पूर्णरूप से शक्तिशाली बन चुके थे और युद्धमल्ल द्वितीय के बाद भीम तृतीय, अम्मा द्वितीय, बादप, ताल द्वितीय, फिर से अम्मा द्वितीय, दानारानव और चौड़ा भीम राजा हुए |

 *चोल राजा राजपाल कि सहायता लेकर शक्तिवर्मन प्रथम (दानारनव का पुत्र) ने वेंगी पर 999 ई. में अधिकार कर लिया और चोल राजाओं के अधीन होकर अपना शासन चलाने लगा | कुछ समय बाद आन्तरिक फूट के कारण 10वी सदी के अंत में वेंगी के चालुक्यों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया |


 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ