हूण राजा मिहिरकुल और उसकी सम्पूर्ण दास्तां | Mihirkul ka itihas |

 

अभिलेख

ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख

नोट :- प्रशस्ति का अर्थ किसी की प्रशंसा में लिखा गया होता है । शिलालेख उसे कहा जाता है, जो किसी पत्थर पर लिखा गया हो ।

1.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख, ग्वालियर किले के पास गोपा पर्वत पर स्थित था ।

2.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख उत्तरी प्राकृत भाषा (विशुद्ध संस्कृत) में लिखा गया है ।

3.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख को धम्म लिपि (ब्राह्मी लिपि) में लिखा गया है ।

4.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख में किसी तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है ।

5.मातृचेत नामक व्यक्ति ने ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख और सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था ।

6.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख को पत्थर पर श्लोकों के रूप में लिखा गया है ।

7.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख में प्रतिहार राजाओं की वंशावली तथा उनके द्वारा बनवाए गए विष्णु मंदिर का उल्लेख किया गया है ।

8.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख में हूण राजा तोरमान और मिहिरकुल का भी उल्लेख किया गया है ।

9.ग्वालियर प्रशस्ति शिलालेख का लेखक बालादित्य को माना जाता है, जो भट्ट धनिक का पुत्र था ।

साहित्य

*प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग के यात्रा विवरण सी यू की में भी, मिहिरकुल का उल्लेख किया गया है ।

*कश्मीर के इतिहास की जानकारी देने वाले कल्हण पंडित ने भी अपने राजतरंगिणी ग्रंथ में मिहिरकुल का उल्लेख किया है ।

मिहिरकुल का इतिहास

*नाम - मिहिरकुल या मिहिरगुल

*पिता का नाम - तोरमान

*राजधानी - साकल (आधुनिक सियालकोट, पाकिस्तान में)

*शासनकाल - 515 - 540 .        

*मंदसौर अभिलेख से पता चलता है कि राजा यशोवर्मन ने हूण राजा मिहिरकुल को पराजित किया था । विजय उपलक्ष्य में एक स्तंभ का निर्माण करवाया था, जो आज मंदसौर के सौंधनी में स्थित है ।

*520 . में चीनी यात्री सांग युन ने मिहिरकुल से गांधार में मुलाकात की थी और अपने विवरण में लिखा था कि मिहिरकुल किसी भी धर्म को नहीं मानता है ।

*629 . में भारत आए प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण सी-यू-की में सियालकोट के बारे में लिखा है । यहां पर कई संघाराम हैं, जिनमें 100 से भी ज्यादा बौद्ध भिक्खू रहते हैं जिनका संबंध हीनयान संप्रदाय से है । पूर्व काल में यहां का राजा मिहिरकुल था । एक दिन राजा ने एक परम ज्ञानी भिक्खू को दरबार में बुलाना चाहा, परंतु कोई भी भिक्खू उसके क्रूरताई स्वभाव के कारण, उसके दरबार में नहीं गया । मिहिरकुल बहुत क्रोधित हुआ, उसने सभी भिक्खूओं को देश से निकालने का आदेश दे दिया ।

*मगध के राजा बालादित्य की बौद्ध धर्म में बड़ी आस्था थी, जिस समय उन्हें मिहिरकुल के इस दुष्ट कार्य का चला, उन्होंने अपनी सेना की तैयारियां शुरू कर दी, क्योंकि उन्हें पता था मिहिरकुल राज्य पर आक्रमण करने वाला है । मिहिरकुल ने बालादित्य को पराजित करने के लिए मगध पर चढ़ाई कर दी ।

*बालादित्य ने इस समाचार को सुना और अपने सामंत से कहा "मैंने सुना है कि चोर लोग आ रहे हैं, मैं उनसे युद्ध नहीं कर सकता । यदि तुम कहो तो मैं किसी जंगल में चला जाता हूं" । ये कहकर बालादित्य जंगलों में चले गए । मिहिरकुल ने अपनी सेना अपने भाई को सौंप दी, और बालादित्य के पीछे जंगलों में चला गया परंतु मिहिरकुल जंगलों की भूल भुलैया को समझ नहीं पाया और बालादित्य की सेना के द्वारा पकड़ा गया ।

*जब मिहिरकुल को बालादित्य के सामने लाया गया तो उसने अपनी हार से लज्जित होकर अपने मुंह को वस्त्र से ढक लिया था । बालादित्य ने सिंहासन पर बैठ कर, अपने सामंत से कहा कि राजा से कहो, अपना मुंह खोल दें जिससे मैं उनसे बातचीत कर सकूं । मिहिरकुल ने उत्तर दिया कि प्रजा और राजा में अदल - बदल हो गया है, इस कारण दोनों परस्पर शत्रु भाव रखते हैं । शत्रु का शत्रु को देखना उचित नहीं, इसके अलावा बातचीत करने से कोई लाभ नहीं होगा ।

*बालादित्य ने तीन बार मुंह खोलने की आज्ञा दी, लेकिन मिहिरकुल की तरफ से कोई उत्तर नहीं आया । बालादित्य ने क्रोधित होकर कहा - धार्मिक ज्ञान का क्षेत्र, जिसका संबंध बौद्ध धम्म से है । संसार को सुखी करने के लिए है, लेकिन तुमने उसे जंगली जानवर की तरह तहस-नहस करने का प्रयास किया । तुम पापी हो गए हो, साथ ही तुम्हारे भाग्य ने भी तुम्हारा साथ छोड़ दिया है । अब तुम मेरे बंदी हो, तुम्हारा अपराध ऐसा नहीं है कि तुम्हें माफ कर सकूं । इसीलिए मैं तुम्हें प्राण दंड देने की आज्ञा देता हूं ।

*बालादित्य की माता ज्योतिष संबंधी ज्ञान के लिए बहुत प्रसिद्ध थी । जब उन्होंने सुना कि मिहिरकुल को प्राण दंड देने के लिए ले जाया जा रहा है । तब उन्होंने बालादित्य को बुलाया और कहा कि मैंने सुना है कि मिहिरकुल बड़ा ही ज्ञानी पुरुष है । मैं एक बार उसे देखना चाहती हूं, बालादित्य ने मिहिरकुल को राजमाता के पास भेज दिया । राजमाता ने कहा - मिहिरकुल तुम लज्जित मत हो, सांसारिक वस्तुएं स्थिर नहीं होती । हार जीत समय के अनुसार एक दूसरे के पीछे लगी रहती है । इस कारण तुम्हें चिंता नहीं करनी चाहिए ।

*मैं तुम्हें अपना पुत्र समझती हूं, मेरे सामने तुम, अपना मुंह खोल कर, मेरी बात का उत्तर दो । मिहिरकुल ने उत्तर दिया - कुछ समय पहले मैं राजा था, लेकिन अभी आपके सामने एक बंदी के रूप में खड़ा हूं तथा प्राण दंड से दंडित हूं । मैंने अपना राज्य को खो दिया है तथा मैं अपने धार्मिक कार्य से भी विमुख हो गया हूं । मैं अपने से बड़े और छोटों के सामने लज्जित हो रहा हूं । सच्चाई तो ये है कि मैं किसी के सामने मुंह दिखाने लायक नहीं रहा ।

*चाहे स्वर्ग हो या पृथ्वी मेरा कहीं भी कल्याण नहीं है । इस कारण मैंने अपने मुंह को, अपने कपड़ों से ढक लिया है । राजमाता ने उत्तर दिया - सुख-दुख समय के अनुसार मिलते हैं । मनुष्य को कभी लाभ होता है, तो कभी हानि होती है । यदि तुम आवश्यकतानुसार दुख से दुखी और सुख से सुखी हो जाओगे तो अवश्य ही तुम्हारा मन विचलित हो जाएगा । मेरा कहा मानो, समय के अनुसार ही कर्मों का फल मिलता है । तुम बेझिझक होकर मुझसे अपनी बात कह सकते हो ।

*मिहिरकुल ने राजमाता को धन्यवाद दिया और कहा - मैं पूरी तरह से अयोग्य था, लेकिन मेरे पिता ने मुझे अपना उत्तराधिकारी बनाया परंतु मैंने दंडित होकर उस राज्य सत्ता को कलंकित कर दिया । अपने राज्य को भी खो दिया है । मेरे हाथों में बेड़ियां पड़ी हैं, लेकिन मेरी अभी मरने की इच्छा नहीं है । आपने मुझे अभय दान दिया, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं । राजमाता ने बालादित्य से कहा - प्राचीन नियमों के अनुसार यही उचित है कि इसके अपराधों को माफ कर दिया जाए । इसकी हालत देखकर तो यही लगता है कि किसी छोटे राज्य का राजा होगा । इस कारण उसे उत्तर दिशा में किसी छोटे स्थान पर राज्य करने की आज्ञा दे दी जाए ।

*बालादित्य ने राजमाता की बात मानकर मिहिरकुल के साथ अपनी छोटी लड़की का विवाह कर दिया । बालादित्य ने मिहिरकुल को एक सेना की टुकड़ी के साथ उत्तर दिशा का राज्य दे दिया । मिहिरकुल ने कुछ समय तक तो ठीक-ठाक राज्य किया, और मौका पाते ही कश्मीर के राजा पर आक्रमण कर दिया । कश्मीर के राजा को मारकर स्वयं कश्मीर का राजा बन गया । फिर मिहिरकुल ने गांधार राज्य पर आक्रमण किया और वहां के राजा को मंत्रिमंडल सहित मार डाला । कई संघारामों को तहस-नहस करवा दिया । इसके अलावा मिहिरकुल की सेना ने जितने लोग मारे थे । उनको छोड़कर 9 लाख पुरुष ऐसे बचे थे, जिनको मारने की तैयारी हो रही थी ।

*बड़े-बड़े सामंतों ने मिहिरकुल से निवेदन किया । महाराज, आपकी युद्ध निपुणता ने बड़ी भारी विजय प्राप्त कर की है । हमारी सेना को विशेष लड़ना भी नहीं पड़ा, जब आप बड़े बड़े लोगों को परास्त ही कर चुके हैं, तो इन छोटे-छोटे पुरुषों को मार डालिए । इसका उत्तर देते हुए मिहिरकुल ने कहा - तुम लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हो और उसमें तुम्हारी बड़ी आस्था है । तुम्हारा मूल उद्देश्य अर्हत को प्राप्त करना होता है । जाओ तुम लोग, अपने राज्य को संभालो ।

*इसके बाद मिहिरकुल ने 3 लाख उच्च कुल के लोगों को सिंधु नदी के किनारे मरवा दिया, फिर लगभग 3 लाख मध्यम श्रेणी के पुरुषों को मार डाला । फिर लूटी हुई संपत्ति को इकट्ठा करके अपने देश लौट गया, लेकिन 1 वर्ष बाद ही उसकी दर्दनाक तरीके से मृत्यु हो गई थी । जैन ग्रंथ और बौद्ध ग्रंथों में मिहिरकुल को बड़ा ही क्रूर और निर्दयी शासक बताया गया है ।

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