
1.बौद्ध धम्म
सबसे पहले बात
करते हैं कि बौद्ध धर्म है या बौद्ध धम्म है, अगर आप भारतीय इतिहास को पढ़ेंगें तो
आपको वहां पर बौद्ध धर्म ही लिखा मिलेगा परन्तु यह सही नहीं है क्योंकि जब आप
बौद्ध साहित्य का अध्ययन करेंगे तो आपको वहां पर बौद्ध धम्म शब्द लिखा मिलता है |
बौद्ध साहित्य के अंतर्गत त्रिपिटक सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और अन्य ग्रन्थ
जैसे अंगुत्तर निकाय, मज्झिम निकाय, खुद्दक निकाय आदि में भी बौद्ध धम्म शब्द का प्रयोग किया गया है |
बौद्ध धम्म का अर्थ होता है विचार जो एक पालि भाषा का शब्द है, जिसमें किसी धर्म
की कल्पना नहीं होती है क्योंकि धर्म के अंतर्गत पूजापाठ, भगवान आदि शामिल होता है
परन्तु धम्म (विचार) के अंतर्गत पूजापाठ या किसी भी प्रकार का अंधविश्वास शामिल
नहीं होता है |
2.बौद्ध धम्म के बारे में जानकारी कहाँ से मिलती है..?
वैसे तो भारत
में कई धर्मों या धम्मों का जन्म हुआ परन्तु बौद्ध धम्म एक मात्र ऐसा धम्म है जिसे
भारत के बाहर भी लोगों ने खूब पसन्द किया | इसीलिए बौद्ध धम्म की जानकारी आपको
पुरातत्व साक्ष्यों, बौद्ध साहित्यों और विदेशी यात्रियों के विवरणों में मिलती है
| बौद्ध धम्म भारत का एक मात्र ऐसा धम्म है जिसके बड़े पैमाने पर भारत में पुरातत्व
साक्ष्य मिलते हैं और दूसरा जैन धम्म हैं |
विश्व
में बौद्ध धम्म को मानने वाले देश
1.चीन 2.श्रीलंका
3.म्यांमार 4.भूटान 5.नेपाल 6.कम्बोडिया
7.सिंगापुर 8.तिब्बत 9.वियतनाम 10.मंगोलिया 11.हांगकांग 12.ताइवान 13.थाईलैंड
14.जापान 15.लाओस 16.उत्तर कोरिया 17.दक्षिण कोरिया....आदि
3.बौद्ध
धम्म का प्रारम्भिक इतिहास
वैसे आपने
भारतीय इतिहास में पढा होगा कि बौद्ध धम्म की शुरुआत गौतम बुद्ध के द्वारा की गई
थी परन्तु यह सही नहीं | जब आप बौद्ध साहित्य का अध्ययन करेंगे तो आपको वहां पर
गौतम बुद्ध से पहले 27 बुद्ध व्यक्तियों के नाम मिलेंगे | 1.तणहंकर 2.मेघंकर
3.शरनंकर 4.दीपांकर 5.कौडिल्य
6.मंगल 7.सुमन 8.खेत
9.शोभित 10.अनोमदर्शी 11.पद्रम
12.नारद 13.पद्मोत्तर (पदमोत्तर)
14.सुमेध 15.सुजात 16.प्रियदर्शी
17.अर्थदर्शी 18.धम्म दर्शी
19.सिद्धार्थ 20.तिष्य 21.पुष्प
22.विपश्वी (विपशवी) 23.शिखी 24.विश्वभू 25.कुक्र छंद 26.कोणा गमन (कनक मुनि) 27.काश्यप और 28वे बुद्ध सिद्धार्थ गौतम हुए | गौतम बुद्ध
से पहले जितने भी बुद्ध हुए उनका इतिहास केवल बौद्ध साहित्य में ही मिलता है तथा
पुरातत्व साक्ष्य में नहीं मिलता है इसीलिए भारतीय इतिहास में इनको नहीं लिखा गया
है जैसे - जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए परन्तु इतिहास केवल महावीर स्वामी का ही
मिलता है | ठीक इसी तरह से बौद्ध धम्म के अन्दर 28 बुद्ध हुए परन्तु इतिहास केवल
सिद्धार्थ गौतम का ही मिलता है |
4.सिद्धार्थ
गौतम और उनका प्रारम्भिक जीवन
सिद्धार्थ गौतम
जिन्हें Light Of Asia भी कहा जाता
है इनका जन्म लगभग 567 या 563 ई.पू. में नेपाल के लुम्बिनी वन (आधुनिक
रुम्मिनदेई) में हुआ था | जन्म के 7वे दिन ही उनकी माता महामाया देवी की मृत्यु हो
गई थी और इसके बाद सिद्धार्थ गौतम का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया
| सिद्धार्थ गौतम के पिता शुद्धोधन शाक्य-वंश के राजा थे और उनका राज्य नेपाल की
सीमा के निकट था तथा राजधानी कपिलवस्तु में थी | 16 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ
गौतम का विवाह देवदह के राजा दण्डपाणी की पुत्री यशोधरा (अन्य नाम - गोपा, विम्बा
और भद्रकच्छा) से हुआ था तथा यशोधरा के गर्भ से ही एक राहुल नाम का पुत्र उत्पन्न
हुआ |
एक दिन
सिद्धार्थ गौतम अपने राज्य को घूमने के लिए निकले तो उन्हें रास्ते में एक वृद्ध
व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत व्यक्ति और एक सन्यासी व्यक्ति मिला जिसे देखकर
उनके मन में कई प्रश्न उत्पन्न होने लगे और इन सब प्रश्नों के जवाब उनके सारथि
चन्ना या छंदक ने दिए | इसके बाद सिद्धार्थ गौतम के मन में वैराग्य (सांसारिक जीवन
से मुक्ति) जागा और रात्रि में सभी सांसारिक वस्तुओं को छोड़कर सिद्धार्थ गौतम अपने
घोड़े कन्थक और सारथि चन्ना या छंदक के साथ नगर के बाहर चले गए यह घटना उनकी आयु के
29वे वर्ष में हुई |
अमोना नदी पार करके
सुबह सूर्योदय होने पर अनुवैनेय नगर में पहुंचे और वहीँ पर सिद्धार्थ गौतम ने अपने
बहुमूल्य-वस्त्र तथा घोड़े कन्थक को सारथि चन्ना या छंदक को सौंप दिए और केश (बाल)
को काटकर गेरुआ (भगवा) वस्त्र धारण कर लिए | गृहपरित्याग की इस घटना का उल्लेख
पालि ग्रन्थ मज्झिम निकाय में महाभिनिष्क्रमण के नाम से किया गया है |
5.सिद्धार्थ
गौतम और उनको ज्ञान की प्राप्ति
गृह-त्याग करने
के बाद सिद्धार्थ गौतम ने 7 दिन अनुपिय ग्राम के आम्र उद्यान (आम के बगीचे) में
बिताए इसके बाद सिद्धार्थ गौतम मगध की राजधानी राजगृह पहुंचे जहाँ से वह वैशाली गए
और वैशाली में ही आलारकलाम नाम के एक सन्यासी से सांख्य-दर्शन की शिक्षा ग्रहण की
और इस तरह से आलारकलाम सिद्धार्थ गौतम के प्रथम गुरु हुए | आलारकलाम से शिक्षा
ग्रहण करने के बाद सिद्धार्थ गौतम को राजगृह के समीप 5 सन्यासी कौडिन्य, ऑज,
अस्सीज, वप्प और भद्दीय मिले | सिद्धार्थ गौतम ने इन 5 सन्यासियों के साथ मिलकर
कठोर तप आरम्भ किया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ और उन्होंने अंत में भोजन ग्रहण कर
लिया जिससे वह पाँचों सन्यासी सिद्धार्थ गौतम का साथ छोड़कर चले गए |
इन सभी घटनाओं
के बाद सिद्धार्थ गौतम अंत में उरुवेला (आधुनिक बोधगया, विहार) पहुंचे और निरंजना
नदी के तट पर एक पीपल वृक्ष के नीचे तपस्या आरम्भ की | जातक कथाओं के अनुसार
उरुवेला के व्यापारी की पुत्री सुजाता प्रति दिन सिद्धार्थ गौतम के लिए भोजन लेकर
आती थी | 35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा की रात सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की
प्राप्ति हुई और जब सुबह हुई तो सुजाता भोजन लेकर आई और उसके साथ कुछ बच्चे भी थे |
इसी समय उन्हीं बच्चों ने पहली बार सिद्धार्थ गौतम को बुद्ध कहकर पुकारा था तथा उसी
समय से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाए |
ज्ञान प्राप्ति
के बाद महात्मा बुद्ध ने पहला प्रवचन सुजाता और उनके साथ आए उन बच्चों को ही दिया
था इसके बाद उरुवेला में ही महात्मा बुद्ध ने दो बंजारों तपस्यु और भल्लिक को अपना
शिष्य बनाया | उरुवेला से महात्मा बुद्ध ऋषिपत्तम (आधुनिक नाम सारनाथ, उत्तर
प्रदेश) पहुंचे और वहां पर वही 5 सन्यासी मिले जो उनका साथ छोड़कर चले गए थे |
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश उन्हीं पाँचों सन्यासियों को सारनाथ में दिया
जिसे बौद्ध ग्रंथों में धम्मचक्र-प्रवर्तन कहा गया है | सारनाथ के बाद
महात्मा बुद्ध वाराणसी गए जहाँ पर एक यस नाम के व्यापारी ने अपने माता-पिता तथा 50
अन्य साथियों के साथ महात्मा बुद्ध की शिष्यता ग्रहण की |
वाराणसी के बाद
महात्मा बुद्ध मगध की राजधानी राजगृह पहुंचे जहाँ पर मगध के सम्राट बिम्बिसार के
उनका स्वागत किया और वेणु वन विहार दान में दिया | राजगृह में ही सारिपुत्र,
मोदगलायन, उपालि, अभय आदि बुद्ध के शिष्य बने | श्रावस्ती के व्यापारी सुदात
(अनाथपिंडक) ने भी राजगृह में ही बुद्ध के संघ में प्रवेश किया और श्रावस्ती में
एक जेतवन विहार दान की थी | श्रावस्ती के एक व्यापारी की पुत्री विशाखा बुद्ध की
शिष्या बनी तथा उनके द्वारा ही पूर्वाराम नामक विहार बनबाई गई थी |
ज्ञान प्राप्ति
के 8वे वर्ष महात्मा बुद्ध को वैशाली के लिच्छवी राजाओं ने कूटाग्रशाला नामक विहार
दान में दी थी | वैशाली में ही महात्मा बुद्ध के पास उनकी माता प्रजापति गौतमी,
महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा और बहिन नन्दा मिलने आईं और संघ में प्रवेश की
अनुमति मांगी परन्तु सभी महिलाएँ स्वयं के परिवार से थीं इसीलिए महात्मा बुद्ध ने इंकार कर दिया क्योंकि उस समय
महात्मा बुद्ध के संघ में कोई महिला नहीं थी | उसी समय वैशाली की प्रसिद्ध नर्तकी
आम्रपाली और मगध के सम्राट बिम्बिसार की रानी क्षेमा ने भी महात्मा बुद्ध के संघ
में प्रवेश की अनुमति मांगी | इसके बाद महात्मा बुद्ध ने संघ में प्रवेश की अनुमति
प्रदान कर दी और उसी समय पिण्डोला भारद्वाज के प्रभाव से कौशाम्बी के राजा उदयन ने
भी बौद्ध धम्म ग्रहण कर लिया था |
ज्ञान प्राप्ति
के 20वे वर्ष महात्मा बुद्ध कोशल महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती जा रहे थे रास्ते
में एक खूंखार डाकू अंगुलिमाल मिल गया परन्तु अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध से इतना
प्रभावित हुआ कि उनका शिष्य बन गया | बौद्ध ग्रंथों के अनुसार महात्मा बुद्ध के
सबसे अधिक शिष्य कौशल महाजनपद में ही थे और महात्मा बुद्ध ने सबसे ज्यादा उपदेश
कौशल महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती में ही दिए |
6.महात्मा
बुद्ध और उनका महापरिनिर्वाण
महात्मा बुद्ध
अपने अंतिम समय में पावा पहुंचे जहाँ पर उन्होंने अपने शिष्य चुन्द (सुनार) के घर
पर सुकर मद्दव (आधुनिक नाम मशरूम) का भोजन खाया जिससे उन्हें अतिसार रोग (डायरिया)
हो गया | इसके बाद महात्मा बुद्ध पावा से कुशीनगर चले गए और यहीं पर सुभद्द को
अपना अंतिम उपदेश दिया जिसमें कहा था सभी सांसारिक वस्तुओं का विनाश होता है, अपनी
मुक्ति के लिए उत्साहपूर्वक प्रयास करो | 80 वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण
प्राप्त हुआ इसके बाद उनके शरीर धातु (राख) को 8 भागों में बाँट दिया गया था | बौद्ध
ग्रन्थ महापरिनिर्वाण सूत्र में उन राजाओं के नामों का उल्लेख किया गया है
इन्होंने महात्मा बुद्ध के स्तूप बनवाए |
1.मगध सम्राट
अजातशत्रु
2.कपिलवस्तु के
शाक्य
3.वैशाली के
लिच्छवी
4.वेठ्द्वीप के
ब्राह्मण
5.अलकप्प के
बुलि
6.पावा के मल्ल
7.पिप्पलिवन के
मोरिय
8.रामग्राम के
कोलिय
7.महात्मा
बुद्ध के प्रमुख शिष्य
1.सारिपुत्र -
यह राजगृह के रहने वाले तथा महात्मा बुद्ध के परम शिष्यों में से एक थे |
2.आनंद
- यह महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई तथा सबसे प्रिय शिष्य थे |
3.मोगदलायन - यह
भी राजगृह के रहने वाले थे |
4.अनाथपिंडक -
यह श्रावस्ती के बड़े व्यापारी थे और इन्होंने ही महात्मा बुद्ध को जेतवन विहार दान
में दी थी |
5.बिम्बिसार -
यह मगध के सम्राट थे |
6.अजातशत्रु -
यह भी मगध के सम्राट थे जो बिम्बिसार के पुत्र थे |
7.प्रसेनजित -
यह कोशल के राजा थे |
8.जीवक - यह
आम्रपाली के पुत्र और महात्मा बुद्ध के शिष्य तथा वैध थे |
9.महाकश्यप - यह
मगध के ब्राह्मण थे और महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद में राजगृह की सप्तपर्णी
गुफ़ा में होने वाली बौद्ध संगीति (सभा) के अध्यक्ष थे |
8.महात्मा
बुद्ध की प्रमुख शिष्या
1.प्रजापति
गौतमी - यह महात्मा बुद्ध की मौसी थीं और
प्रथम महिला जो संघ में शामिल हुईं |
2.यशोधरा - यह
महात्मा बुद्ध की पत्नी थीं |
3.नंदा - यह
प्रजापति गौतमी की पुत्री तथा महात्मा बुद्ध की मौसेरी बहिन थीं |
4.आम्रपाली - यह
वैशाली की प्रसिद्ध नर्तकी थीं |
5.क्षेमा - यह
मगध के सम्राट बिम्बिसार की रानी थीं |
6.मल्लिका - यह
कोशल के राजा प्रसेनजित की रानी थीं |
7.विशाखा - यह
अंग महाजनपद के ग्राम भद्दीय के व्यापारी की पुत्री थीं और इन्होंने ही श्रावस्ती
में महात्मा बुद्ध को पूर्वाराम विहार दान की थी |
9.बौद्ध
धम्म के सिद्धांत एवं शिक्षाएँ
बौद्ध धम्म के 4
सास्वत सत्य
1.दुःख -
महात्मा बुद्ध के अनुसार संसार दुःखमय है |
2.दुःख समुदाय -
इसका अर्थ है दुःख उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं और सभी का मूल आधार अज्ञानता है
|
3.दुःख निरोध -
दुःख निरोध (निवारण) के लिए इच्छा को समाप्त करना जरूरी है |
4.दुःख
निरोधगामिनी प्रतिपदा - एक ऐसा मार्ग जो सांसारिक दुखों का अंत करे और इसे ही
बौद्ध धम्म में अष्टांगिक मार्ग कहा गया है |
10.अष्टांगिक
मार्ग
1.सम्यक दृष्टि
- किसी भी वस्तु को वास्तविक स्वरुप में देखना ही सम्यक दृष्टि है |
2.सम्यक संकल्प
- द्वेष और हिंसा से मुक्त विचार रखना |
3.सम्यक वाक् -
सत्य बोलना और हिंसात्मक भाषा का प्रयोग न करना |
4.सम्यक
कर्मान्ति - अच्छे कर्म करना
5.सम्यक आजीव -
ईमानदारी से आजीविका चलाना |
6.सम्यक व्यायाम
- अपने शरीर को रोग मुक्त रखना |
7.सम्यक स्मृति
- अच्छे विचार रखना |
8.सम्यक समाधि -
मन अथवा चित की एक्रागता |
11.अष्टांगिक
मार्गों को 3 भागों में बांटा गया है |
1.प्रज्ञा
A.सम्यक दृष्टि
B.सम्यक संकल्प
C.सम्यक वाक्
2.शील
A.सम्यक
कर्मान्त
B.सम्यक आजीव
C.सम्यक व्यायाम
3.समाधि
A.सम्यक स्मृति
B.सम्यक समाधि
12.बौद्ध
धम्म के 10 शील या शिक्षापद
1.अहिंसा
2.सत्य
3.अस्तेय (चोरी
न करना)
4.व्यभिचार न
करना
5.मध् सेवन न
करना
यह पाँचों शील गृहस्थ
उपासकों के लिए हैं |
6.ब्रह्मचर्य
7.अपरिग्रह न
करना (धन संचय न करना)
8.दोपहर के बाद
भोजन न करना
9.आरामदायक
बिस्तर का त्याग
10.आभूषणों का
त्याग
बौद्ध धम्म के
साधु को दशों शीलों का पालन करना अनिवार्य था |
13.बौद्ध
धम्म की मुख्य विशेषताएँ
1.बौद्ध धम्म
में ईश्वर की मान्यता नहीं है |
2.बौद्ध धम्म
में आत्मा की भी मान्यता नहीं है |
3.बौद्ध धम्म
पुनर्जन्म में विश्वास करता है |
4.बौद्ध धम्म
कर्मवाद में विश्वास करता है |
5.बौद्ध धम्म
विज्ञानवाद का समर्थन करता है |
14.बौद्ध
संघ
महात्मा बुद्ध
के शिष्यों के संगठन को बौद्ध संघ कहा गया है जिसमें महिलासाधु और पुरुष साधु
दोनों होते थे और बौद्ध धम्म के त्रिरत्न
बुद्ध, धम्म एवं संघ हैं | महात्मा बुद्ध ने ऋषिपट्टनम (आधुनिक सारनाथ) में अपना
पहला उपदेश देने के बाद 5 ब्राह्मण शिष्यों के साथ बौद्ध संघ की स्थापना की थी |
बौद्ध संघ में प्रवेश पाने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग तथा कम से कम 15 वर्ष की
आयु होना आवश्यक है | माता-पिता की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति संघ में प्रवेश
नहीं कर सकता था और संघ के दरवाजे सभी व्यक्तियों के लिए खुले थे |
बौद्ध संघ में
सदस्यता ग्रहण करते समय प्रत्येक व्यक्ति को बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं
गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि (में बुद्ध, धम्म और संघ की शरण में जाता हूँ)
कहना पड़ता था | बौद्ध संघ का संगठन गणतान्त्रिक प्रणाली पर आधारित था और संघ की
सभा में प्रस्ताव को नत्ति या वृत्ति कहते थे जबकि प्रस्ताव को पढ़ने
की क्रिया को अनुसावन कहते थे |
बहुमत से पारित
प्रस्ताव को भूमस्कम कहा जाता था जबकि किसी भी प्रस्ताव पर मतभेद को अधिकरण
कहा जाता था परन्तु मतभेद पर मतदान होता था और मतदान गुल्हक (गुप्त) तथा विवतक
(प्रत्यक्ष) दोनों प्रकार से होता था | सभा में बैठने की व्यवस्था करने वाला
अधिकारी आसन प्रज्ञापक कहलाता था और सभा की बैठक में कम से कम 20 सदस्यों
का होना आवश्यक माना जाता था |
जब किसी विशेष
अवसर पर भिक्षु-भिक्षुणियों (साधु पुरुष-साधु महिला) धम्मवार्ता करते थे तो उसे उपोसथ
कहा जाता था | बौद्ध संघ में प्रवेश होने को उपसम्पदा कहा जाता था जबकि
गृहस्थ जीवन के त्याग को प्रवज्या कहा जाता था और प्रवज्या ग्रहण करने वाले
व्यक्ति को श्रामनेर कहा जाता था | श्रामनेर किसी आचार्य से शिक्षा प्राप्त कर
लेने के बाद उपसम्पदा या शिक्षापद का अधिकारी बन जाता था | शिक्षापद का अधिकारी
बनने के लिए 20 वर्ष की आयु होना आवश्यक होना जरूरी था |
15.बौद्ध
साहित्य
बौद्ध साहित्य
में सबसे पवित्र त्रिपिटक को माना जाता है और यह पालि भाषा में लिखे गए हैं |
त्रिपिटक में 3 ग्रंथों सुत्तपिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक को शामिल किया जाता
है |
1.सुत्तपिटक
- इस महाग्रंथ में बौद्ध धम्म के उपदेश लिखे हैं और सुत्त का अर्थ उपदेश तथा पिटक
का अर्थ पिटारा या टोकरी होता है |
सुत्तपिटक को 5 निकायों (भागों) में विभाजित किया गया है |
A.दीर्घ निकाय -
इस महाग्रंथ में महात्मा बुद्ध के लम्बे-लम्बे उपदेशों का वर्णन किया गया है |
B.मज्झिम निकाय
- इस महाग्रंथ में महात्मा बुद्ध के छोटे-छोटे उपदेशों का वर्णन है |
C.संयुक्त निकाय
- इस महाग्रंथ में महात्मा बुद्ध की घोषणाओं का वर्णन किया गया है और इसी महाग्रंथ
में अष्टांगिक मार्ग का उल्लेख भी किया गया है | धर्मचक्रप्रवर्तन सुत्त, संयुक्त
निकाय ग्रन्थ का ही भाग है |
D.अंगुत्तर
निकाय - इस महाग्रंथ में महात्मा बुद्ध के 2 हज़ार से अधिक संक्षिप्त कथनों का
उल्लेख किया गया है और इसी ग्रन्थ में 16 महाजनपदों की जानकारी भी प्रदान की गई है
|
E.खुद्दक निकाय
- इस महाग्रंथ के अंतर्गत कई ग्रन्थ आते हैं जैसे - खुद्दक पाठ, धम्मपद, उदान,
सुत्तनिपात, विमानवत्थु, पन्तवत्थु, थेरीगाथा आदि और जातक कथाएँ भी इसी महाग्रंथ
के अंतर्गत आती हैं
2.विनय
पिटक - इस महाग्रंथ में बौद्ध संघ के नियमों
का उल्लेख किया गया है और इस महाग्रंथ के भी कई भाग हैं |
A.पातिमोक्ख
(प्रतिमोक्ष) - इसमें अनुशासन सम्बन्धी विधि-निषेधों तथा उसके भंग होने पर किए
जाने वाले प्रायश्चितों का सम्पूर्ण वर्णन है |
B.सुत्तविभंग -
इसमें पातिमोक्ख ग्रन्थ के नियमों पर भाष्य प्रस्तुत किए गए हैं |
C.परिवार - इस
ग्रन्थ में विनय पिटक के दूसरे भाग का सारांश प्रश्न और उत्तर के रूप में प्रस्तुत
किया गया है |
3.अभिधम्म
पिटक - इस महाग्रंथ में बौद्ध धम्म के
दार्शनिक सिद्धांतों का वर्णन है |
16.अन्य
प्रमुख बौद्ध ग्रन्थ
1.जातक कथाएँ -
इनकी संख्या 549 है और इसमें महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ है |
भारतीय कथा साहित्य का यह सबसे प्राचीन संग्रह है और यह पालि भाषा में हैं |
2.अटठ कथाएँ -
ये त्रिपिटक के भाष्य के रूप में लिखी गई हैं | सुत्तपिटक की अटठ कथा महाअट्ठक है
| विनयपिटक की अटठ कथा कुरुन्दी है और अभिधम्म पिटक की अट्ठ कथा महापच्चरी है जो
सिंहली भाषा में है और बुद्धघोष ने इनका मागधी भाषा में अनुवाद किया था |
3.निदान कथाएँ -
महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र सर्वप्रथम निदान कथाओं में ही वर्णित किया गया है और
इसके 3 भाग हैं |
A.दूर निदान -
इसमें महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण है |
B.अविदूर निदान
- इसमें बोधिसत्व से पुनः पृथ्वी पर जन्म लेने का आग्रह किया गया है |
C.सान्तिक निदान
- इसमें बौद्ध धम्म में सर्वप्रथम दीक्षित होने वाले राजाओं तथा अन्य लोगों का
विवरण है |
4.दीपवंश और
महावंश - इसमें श्रीलंका का इतिहास है और यह पालि भाषा में है | मौर्य वंश की
जानकारी भी इसी ग्रन्थ में प्रदान की गई है |
5.मिलिन्दपन्हो
- इस ग्रन्थ में यूनान के राजा मिनांडर और बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य वार्तालाप
का वर्णन है | इसके रचयिता नागसेन थे और यह पालि भाषा में लिखा गया है |
17.संस्कृत
के बौद्ध ग्रन्थ
1.बुद्ध
चरित्र - इस महाकाव्य की रचना अश्वघोष ने की थी
इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन का सरल विवरण प्रदान किया गया है |
2.वज्रसूची
- यह एक उपनिषदीय ग्रन्थ है और इसकी रचना भी अश्वघोष ने ही की थी इसमें वर्ण
व्यवस्था का खण्डन किया गया है परन्तु इस ग्रन्थ में एक अन्य बौद्ध विद्वान एवं
दार्शनिक धर्मकीर्ति ने भी कुछ रचनाएँ की थी |
3.महावस्तु
- यह हीनयान सम्प्रदाय का ग्रन्थ है और इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन सम्बन्धी
बातों की चर्चा की गई है |
4.विशुद्धिमग्ग
- यह भी हीनयान सम्प्रदाय का ग्रन्थ है और इसकी रचना बुद्धघोष ने की थी |
5.ललित
विस्तार - यह महायान सम्प्रदाय का संस्कृत भाषा
में रचित ग्रन्थ है और इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन की सम्पूर्ण गाथा वर्णित है |
इसी ग्रन्थ का उपयोग एड्विन अर्नाल्ड ने महात्मा बुद्ध के जीवन पर एक महाकाव्य
Light Of Asia (एशिया का पूज्यनीय) लिखने में किया था |
18.प्रसिद्ध
बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक
1.अश्वघोष
- ये कवि, नाटककार, संगीतकार, विद्वान एवं तर्कशास्त्री थे इन्होंने महात्मा बुद्ध
के जीवन चरित्र का वर्णन करने वाले ग्रन्थ बुद्ध चरितम महाकाव्य की रचना की और ये
कुषाण वंश के राजा कनिष्क के समकालीन थे |
2.नागार्जुन
- ये आन्ध्र के सातवाहन राजा यज्ञ श्री गौतमी पुत्र के मित्र एवं समकालीन थे और
इन्होंने ही बौद्ध दर्शन के माध्यमिक विचारधारा का प्रतिपादन किया जिसे शून्यवाद
के नाम से जाना जाता है |
3.असंग
एवं वसुबन्धु - ये दोनों भाई थे और प्रथम शताब्दी में
पंजाब के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान थे और असंग के गुरु मैत्रेयनाथ विज्ञानवाद
सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य थे | वसुबन्धु के द्वारा लिखा गया महानतम ग्रन्थ
अधिधम्म कोष है जिसे बौद्ध धम्म का विश्व कोश माना जाता है |
4.दिग्डनाग
- यह 5वी शताब्दी ई. के बौद्ध धम्म के प्रसिद्ध तर्कशास्त्री थे और इन्होंने
तर्कशास्त्र पर लगभग 100 से भी अधिक ग्रन्थ लिखे तथा इन्हें ही मध्यकालीन न्याय का
जनक माना जाता है |
5.धर्मकीर्ति
- यह 7वी शताब्दी के महान बौद्ध दार्शनिक, चिन्तक तथा भाषा वैज्ञानिक थे और इनकी
अद्वितीय प्रतिभा से प्रभावित होकर डॉ.
स्ट्रेची वात्सकी ने इन्हें भारत का कान्त बताया था |
19.बौद्ध
धम्म के प्रसार के कारण
महात्मा बुद्ध
के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा आकर्षण था कि सभी लोग उनके उपदेश बड़ी लगन से सुनते थे और
महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के लिए सभी लोगों को मध्यम मार्ग (मध्य का मार्ग)
अपनाने को कहा | बौद्ध धम्म में बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को आने का
अधिकार प्रदान किया तथा महात्मा बुद्ध से प्रभावित होकर कई महान राजाओं बिम्बसार, प्रसेनजित,
अजातशत्रु, सम्राट अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन आदि ने बौद्ध धम्म को स्वीकार किया और
इसके प्रचार-प्रसार में खूब योगदान दिया |
20.बौद्ध
संगीतियाँ (सम्मेलन)
1.प्रथम
बौद्ध संगीति - महात्मा बुद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद
483 ई. पू. में तथा मगध के सम्राट अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णी
गुफ़ा में इसका आयोजन किया गया था और इसकी अध्यक्षता महाकश्यप के द्वारा की गई थी
तथा इसमें महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद और उपालि भी उपस्थित हुए थे | इस
संगीति की मुख्य विशेषता थी | इसमें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन हुआ तथा
उन्हें सुत्तपिटक और विनयपिटक का नाम प्रदान किया गया |
2.द्वितीय
बौद्ध संगीति - इस संगीति का आयोजन 283 ई.पू. में
कालाशोक के शासनकाल में वैशाली की कुसुमपुरी विहार में किया गया था और इसकी
अध्यक्षता सुबुकामी ने की थी |
3.तृतीय
बौद्ध संगीति - इस संगीति का आयोजन सम्राट अशोक के
शासनकाल 247 ई.पू. में पाटिलपुत्र की अशोकाराम विहार में हुआ था और इसकी अध्यक्षता
मोगलिपुत्ततिस्य ने की थी | इस संगीति में अधिधम्म की रचना की गई थी और अधिधम्म को
सरल रूप से समझने के लिए कथावस्तु नामक ग्रन्थ की भी रचना भी की गई थी |
4.चतुर्थ
बौद्ध संगीति - इस संगीति का आयोजन सम्राट कनिष्क के
शासनकाल में कश्मीर के कुण्डलवन किया गया था और इसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने तथा
उपाध्यक्षता अश्वघोष ने की थी | इस संगीति में महायान सम्प्रदाय का बोलबाला था और
इसी संगीति से बौद्ध ग्रंथों में संस्कृत का प्रारम्भ होना शुरू हो गया था | कुछ
इतिहासकारों का कहना है कि इसी संगीति से बौद्ध धम्म दो सम्प्रदायों में विभाजित
हो गया था परन्तु यह सत्य नहीं है |
21.महायान
सम्प्रदाय
1.महायान का
अर्थ - उत्कृष्ठ मार्ग होता है और इसे बोधिसत्वयान भी कहते हैं |
2.महायान
सम्प्रदाय का निर्माण संभवता महात्मा बुद्ध के ब्राह्मण और क्षत्रिय शिष्यों के
द्वारा किया गया था |
3.महायान
सम्प्रदाय के लोग महात्मा बुद्ध को भगवान मानते हैं |
4.महायान
सम्प्रदाय के लोग मूर्ति पूजा करते हैं और महायान सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा
ही सर्वप्रथम मथुरा कला के अंतर्गत पहली शताब्दी में महात्मा बुद्ध की मूर्ति बनाई
गई थी जो भारत की प्रथम मूर्ति मानी जाती है क्योंकि उससे पहले भारत में किसी भी
महापुरुष की मूर्ति नहीं बनाई गई थी |
5.महायान
सम्प्रदाय के अनुयायी मांस नहीं खाते हैं |
6.महायान
सम्प्रदाय के अनुयायी लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर आदि को अपना तीर्थ मानते
हैं |
7.महायान
सम्प्रदाय के अधिकतर ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं |
22.हीनयान
सम्प्रदाय
1.हीनयान का
अर्थ - निम्न मार्ग होता है |
2. इस सम्प्रदाय
का निर्माण संभवता महात्मा बुद्ध के वैश्य और शुद्र शिष्यों के द्वारा किया गया था
|
3.हीनयान
सम्प्रदाय के अनुयायी महात्मा बुद्ध के प्राचीन आदर्शों को बनाए रखना चाहते हैं |
4.हीनयान
सम्प्रदाय के अनुयायी महात्मा बुद्ध को एक महापुरुष मानते हैं |
5.हीनयान
सम्प्रदाय के अनुयायी मूर्तिपूजक नहीं हैं |
6.हीनयान
सम्प्रदाय के अधिकतर ग्रन्थ पालि भाषा में हैं |
23.वज्रयान
सम्प्रदाय
1.वज्रयान
संस्कृत का शब्द है और इस सम्प्रदाय की शुरुआत लगभग 5वी या 6वी शताब्दी से मानी
जाती है |
2.वज्रयान
सम्प्रदाय के अनुयायी महात्मा बुद्ध और उनके प्रमुख शिष्यों को भगवान मानते हैं |
3.वज्रयान
सम्प्रदाय के अनुयायी मांस का सेवन करते हैं |
4.वज्रयान
सम्प्रदाय के अनुयायी तंत्र-मंत्र आदि में विश्वास करते हैं |
5.वज्रयान
सम्प्रदाय के सभी ग्रन्थ संस्कृत में लिखे गए हैं |
6.वज्रयान शाखा
का विकास सबसे अधिक तिब्बत और भूटान में हुआ |
7.वज्रयान
सम्प्रदाय और आधुनिक हिन्दू धर्म में कोई ज्यादा फर्क नहीं है |
24.भारत में बौद्ध धम्म के पतन का प्रमुख कारण
वैसे तो
इतिहासकारों ने अनेक तर्क प्रदान किए हैं बौद्ध धम्म के पतन पर | मैंने स्वयं अंग्रेजी तथा हिंदी के इतिहासकारों
को पढ़ा है परन्तु सच लिखने की हिम्मत किसी ने भी नहीं दिखाई | पुष्यभूति वंश के
राजा हर्षवर्धन जो एक बौद्ध धम्म को मानने वाले राजा थे और उनके ही शासनकाल में
चीन के प्रसिद्ध यात्री व्हेनसांग ने भारत की यात्रा की थी | व्हेनसांग ने अपनी
पुस्तक सी यू की में लिखा है कि उस वक्त नालंदा विश्वविद्यालय में कई हज़ार छात्र
पढ़ते थे और 10 हज़ार से भी ज्यादा बौद्ध विहार बने हुए थे जिनमें हजारों की संख्या
में बौद्ध साधु रहते थे परन्तु राजा हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद जो राजा बौद्ध
धम्म की विचार धारा से सहमत नहीं थे उन्होंने बौद्ध विहारों में रहने वाले बौद्ध
साधुओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और बौद्ध विहारों को नष्ट करना शुरू कर दिया
था और इसी अत्याचार के कारण बौद्ध साधु आस-पास के देशों में चले गए परन्तु कुछ
जगहों पर भारी विद्रोह हुए |
आज भी भारत में
भारतीय पुरातत्व सर्वेषण के द्वारा उत्खनन का कार्य होता है तो उसमें महात्मा
बुद्ध की मूर्तियाँ टूटी-फूटी अवस्था में ही मिलती हैं जो ये साबित करती हैं कि उस
समय बौद्ध धम्म के विरोधी राजाओं ने बौद्ध धम्म पर आक्रामण कर-कर के उसे बहुत हानि
पहुंचाई परन्तु पूरी तरह नष्ट नहीं कर पाए | बौद्ध धम्म को पूर्ण रूप से समाप्त
करने के लिए उन्हीं राजाओं ने मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत आने का निमंत्रण दिया
और फिर एक के बाद एक मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर हमले किए जिससे न सिर्फ
भारत गुलाम हुआ बल्कि पूरी तरह बर्बाद हो गया |
अंत में एक मुस्लिम आक्रमणकारी
बख्तियार खिलज़ी के साथ मिलकर उन बौद्ध धम्म विरोधी राजाओं ने नालंदा विश्वविद्यालय
में प्रवेश किया और वहां उपस्थित बौद्ध साधुओं और ब्राह्मण शिक्षकों का कत्लेआम
किया गया और फिर विश्वविद्यालय को नष्ट करवाया और अंत में आग लगा दी गई जिसमें
लाखों की संख्या भारतीय ग्रन्थ जल गए | नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में सम्पूर्ण
जानकारी आपको मिन्हाज़ उस सिराज़ या मिन्हाजुद्दीन सिराज के द्वारा लिखी गई
पुस्तक तबकात ए नासिरी में प्रदान की गई है और तबकात ए नासिरी में नालंदा
विश्वविद्यालय तथा उन राजाओं के बारे में जानकारी प्रदान की गई है जिन्होंने
नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करवाया था |
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यह Post केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टी से लिखा गया है ....इस Post में दी गई जानकारी, भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त [CLASS 6 से M.A. तक की] पुस्तकों से ली गई है ..| कृपया Comment box में कोई भी Link न डालें.
प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD