गुप्त वंश का सम्पूर्ण इतिहास | Complete history of Gupta dynasty |

गुप्त वंश का परिचय

गुप्त वंश, मौर्य वंश के बाद भारत का सबसे शक्तिशाली प्राचीन राजवंश माना जाता है क्योंकि समुद्र गुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय जैसे महान राजाओं को इसका श्रेय दिया जाता है और उनके ही शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने श्रेष्ठ स्तर पर था परन्तु इसके प्रारम्भिक इतिहास पर भारतीय इतिहासकार एक मत नहीं हैं और प्रत्येक इतिहासकार एक दूसरे पर प्रश्न खड़े करता है जोकि गुप्त वंश के इतिहास पर एक कलंक के समान है |

भारतीय इतिहासकारों के मत

1.डॉ. रमा शंकर त्रिपाठी के अनुसार गुप्त राजा वैश्य थे |

2.डॉ. जायसवाल और कौमुदी महोत्सव ग्रन्थ के अनुसार गुप्त राजा शुद्र थे |

3.डॉ. राखालदास बनर्जी और आर्य मंजुश्री मूलकल्प ग्रन्थ के अनुसार गुप्त राजा क्षत्रिय थे |

4.राय चौधरी के अनुसार गुप्त राजा ब्राह्मण थे |

प्रारम्भिक गुप्त राजा कुषाण राजाओं के अधीन अपना शासन प्रयाग और कौशाम्बी (उ. प्र. में) के आस - पास करते थे परन्तु कुषाण राजाओं के पतन होने पर गुप्त राजाओं ने स्वयं स्वतंत्र घोषित कर दिया था और अपनी राजधानी पाटिलपुत्र (आधुनिक पटना, विहार) में बनाई थी | गुप्त राजाओं की राजकीय भाषाएँ प्राकृत और संस्कृत थीं तथा गुप्त राजा सभी धर्मों बौद्ध, जैन और सनातन के अनुयायी थे | गुप्त राजाओं ने 240 से 550 ई. के मध्य में भारत के मध्य भाग पर स्वतंत्र रूप से शासन किया था |

गुप्त वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

गुप्त राजाओं के इतिहास को जानने के लिए वैसे तो बहुत सारे स्त्रोत हैं परन्तु में यहाँ पर में प्रमाणित और विश्वसनीय स्त्रोतों की बात करूँगा | गुप्त राजाओं के सिक्के और अभिलेख इतिहासकारों के लिए बहुत अच्छी जानकारी प्रदान करते हैं तथा साहित्य की दृष्टि से गुप्त काल बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि अधिकतर भारतीय ग्रंथों की रचना गुप्त काल में ही हुई है | गुप्त काल की जानकारी कुछ अन्य ग्रंथों आर्य मंजुश्री मूलकल्प, हर्षचरित्र, राजतरंगिणी और फाहियान तथा ह्वेन सान्ग के लेखों में भी मिलती है |

श्री गुप्त का इतिहास

*इतिहासकार ने श्री गुप्त को गुप्त वंश का पहला राजा माना है |

*श्री गुप्त के द्वारा 240 ई. में गुप्त वंश की स्थापना की गई थी परन्तु पुराणों के अनुसार देखों तो श्री गुप्त से पहले भी गुप्त वंश में राजा हुए |

*श्री गुप्त का शासनकाल 240 – 280 ई. के मध्य में था |

*श्री गुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी और उस समय महाराज की उपाधि सामंतों (अधीन राजा) को प्रदान की जाती थी इसीलिए यह कहा जा सकता है कि श्री गुप्त स्वतंत्र राजा नहीं थे |

*संभवता श्री गुप्त कुषाण राजाओं के अधीन अपना शासन चलाते थे |

*पुराणों के अनुसार श्री गुप्त का साम्राज्य मगध, साकेत (आधुनिक अयोध्या) और प्रयाग के आस पास फैला हुआ था |

*श्री गुप्त ने मगध में मृग शिखावन के पास एक सुन्दर बौद्ध विहार का निर्माण चीनी यात्रियों के लिए करवाया था और उसके खर्च के लिए 24 गांव भी दान में दिए थे |

*श्री गुप्त की दो मुहरें इतिहासकारों को प्राप्त हुईं थीं जिन पर गुप्तस्य और श्री-र-गुप्तस्य लिखा हुआ है |

घटोत्कच का इतिहास  

*घटोत्कच, श्री गुप्त के पुत्र तथा गुप्त वंश के दूसरे राजा थे |

*घटोत्कच का शासनकाल 280 – 320 ई. के मध्य में माना जाता है |

*घटोत्कच ने भी महाराज की उपाधि धारण की थी जिससे साबित होता है कि घटोत्कच भी गुप्त वंश के स्वतंत्र राजा नहीं थे |

*वाकाटक रानी प्रभावती गुप्त के पूना लेख में घटोत्कच को गुप्त वंश का पहला राजा बताया गया है और श्री गुप्त को आदिराज कहा गया है |

चन्द्रगुप्त प्रथम का इतिहास

*चन्द्रगुप्त प्रथम का शासनकाल 320 – 335 ई. के मध्य माना जाता है |

*चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार बंगाल तक हो गया था |

*चन्द्रगुप्त प्रथम ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के पहले स्वतंत्र राजा थे |

*चन्द्रगुप्त प्रथम का विवाह लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से हुआ था और कुमार देवी के गर्भ से ही समुद्र गुप्त जैसे महान राजा का जन्म हुआ था |

*चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल में ही गुप्त संवत् का प्रचलन किया गया था |  

समुद्र गुप्त का इतिहास

*समुद्र गुप्त के पिता का नाम चन्द्रगुप्त प्रथम और माता का नाम कुमार देवी था |

*समुद्र गुप्त का शासनकाल 335 – 375 ई. के मध्य माना जाता है |

*समुद्र गुप्त ने अपनी राजधानी पाटिलपुत्र (आधुनिक पटना, विहार) में बनाई थी |

*दत्ता देवी, समुद्र गुप्त की प्रिय रानी थी जिनके गर्भ से चन्द्रगुप्त द्वितीय और राम गुप्त का जन्म हुआ था |

*इतिहासकार विसेंट स्मिथ ने समुद्र गुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था |

*समुद्र गुप्त ने परांक्रमांक तथा श्री विक्रम की उपाधि धारण की थी |

*समुद्र गुप्त ने अपनी दिग्विजय की शुरुआत पाटिलपुत्र से की थी |

*समुद्र गुप्त के प्रसिद्ध दरवारी कवि हरिषेण थे जिन्हें समुद्र गुप्त ने कविराज की उपाधि प्रदान की थी और हरिषेण के द्वारा ही सम्राट अशोक के प्रयाग स्तम्भ लेख के पीछे समुद्र गुप्त की रक्त रंजित विजयों का उल्लेख किया गया था |

*सिंहल (आधुनिक श्रीलंका) के राजा मेघवर्मा के अनुरोध पर समुद्र गुप्त ने बोधगया (आधुनिक विहार में) में एक महाबोधि संघाराम नामक सुन्दर विहार का निर्माण करवाया था जिसका उल्लेख चीनी यात्री फाहियान तथा व्हेन सान्ग ने अपने लेखों में किया है |

*समुद्र गुप्त के प्रयाग स्तम्भ लेख के अनुसार समुद्र गुप्त ने उत्तर भारत के सभी राजाओं रुद्रदेव, मतिल, नाग दत्त, चन्द्र वर्मा, गणपति नाग, नागसेन, अच्युत, नन्दि और बलवर्मा को पराजित करके उनका सम्पूर्ण साम्राज्य अपने अधीन कर लिया था |

*समुद्र गुप्त के द्वारा सभी राजाओं को पराजित करने बाद भारत का महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी

*समुद्र गुप्त को सौ युद्धों का विजेता भी माना जाता है |

*समुद्र गुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन भी करवाया था |

*समुद्र गुप्त के दरवार में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबन्धु रहते थे |

*समुद्र गुप्त वीणा बजाने के बहुत शौक़ीन थे क्योंकि उनके सिक्कों पर उन्हें वीणा बजाते हुए दिखाया गया है |

*समुद्र गुप्त के शासनकाल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य हुए जिन्होंने सम्पूर्ण गुप्त साम्राज्य को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है |

रामगुप्त का इतिहास  

*रामगुप्त, समुद्र गुप्त के पुत्र थे और उनका शासनकाल 375 – 380 ई. के मध्य में माना जाता है |

*रामगुप्त की प्रिय रानी का नाम ध्रुवस्वामिनी था जिन्हें ध्रुव देवी के नाम से भी जाना जाता है |

*रामगुप्त के शासनकाल में शक राजा ने पाटिलपुत्र पर आक्रमण किया परन्तु रामगुप्त डर गया उसने संधि करने का प्रस्ताव शक राजा के पास भेजा | शक राजा ने संधि की शर्त में रानी ध्रुव देवी को माँगा, रामगुप्त तैयार हो गया परन्तु रामगुप्त के भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय को यह बर्दाश्त नहीं हुआ उसने शक राजा की धोखे से हत्या कर दी और ध्रुव देवी से दोवारा विवाह करके सिंहासन पर बैठ गया, कुछ समय बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने भाई रामगुप्त की हत्या करवा दी |

*रामगुप्त का इतिहास विशाखादत्त की पुस्तक देवीचंद्रगुप्तम और बाणभट्ट की पुस्तक हर्षचरित्र में मिलता है |

चन्द्रगुप्त द्वितीय का इतिहास  

*चन्द्रगुप्त द्वितीय के पिता का नाम समुद्र गुप्त तथा माता का नाम दत्ता देवी था |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल 380 – 414 ई. के मध्य माना जाता है |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय की पहली रानी का नाम ध्रुव देवी था और ध्रुव देवी के ही गर्भ से कुमार गुप्त तथा गोविन्द गुप्त का जन्म हुआ था | कुमार गुप्त ने ही विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई थी |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय की दूसरी रानी कुबेर नाग थी जिनके गर्भ से प्रभावती का जन्म हुआ था और प्रभावती का विवाह वाकाटक राजा रूद्रसेन द्वितीय से हुआ था |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय को देवराज, चन्द्र, धाव, सिंह विक्रम तथा देवगुप्त के नाम भी जाना जाता है |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय की पहली राजधानी पाटिलपुत्र तथा दूसरी राजधानी उज्जैन (आधुनिक म.प्र. में) में थी |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उज्जैन, मालवा, गुजरात, काठियाबाड़ और राजपूताना से शक राजाओं पराजित करके, उनके साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया था और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा शकों को पराजित करने के कारण शकारि भी कहा जाता है |

*उदयगिरि (म.प्र. में) के अभिलेख में चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा शक राजाओं को पराजित करने का उल्लेख किया गया है |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन किया था |

*दिल्ली के महरौली लौह-स्तम्भ के अनुसार चन्द्रगुप्त द्वितीय ने असम के राजा को पराजित करके अपने साम्राज्य की सीमाओं को असम तक बढ़ा दिया था |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरवार में नौ रत्न – क्षेपक, धनवंतरी, वराहमिहिर, कालिदास, अमर सिंह, वररुचि, शंकु, वेतालभट्ट और हरिषेण रहते थे |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल को गुप्तकाल का स्वर्णयुग कहा जाता है क्योंकि उनके शासनकाल में अनेक ग्रंथों की रचना हुई |

*चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाहियान ने भारत की यात्रा की थी और फाहियान का वास्तविक नाम कुंग था और फाहियान का अर्थ धर्म गुरु होता है |      

कुमार गुप्त का इतिहास

*कुमार गुप्त का शासनकाल 415 – 455 ई. के मध्य माना जाता है |

*कुमार गुप्त के पिता का नाम चन्द्रगुप्त द्वितीय और माता का नाम ध्रुव देवी था |

*कुमार गुप्त ने श्री महेंद्र और महेन्द्रादित्य की उपाधि धारण की थी |

*कुमार गुप्त को उनके स्वर्ण सिक्कों पर गुप्त कुलामल और गुप्त कुल व्योमशशि कहा गया है |

*सम्पूर्ण गुप्तकाल की अपेक्षा कुमार गुप्त के शासनकाल में सबसे अधिक अभिलेखों को उत्कीर्ण करवाया गया था |

*राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित बयाना नामक स्थान से उत्खननकर्ताओं को गुप्तकालीन मुद्राओं का ढेर मिला था जिसमें मयूर शैली की मुद्राएँ सबसे अधिक थीं |

*कुमार गुप्त के द्वारा जारी की गई कुछ मुद्राओं पर अश्वमेघमहेंद्र: लिखा हुआ है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कुमार गुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन भी करवाया था |

*कुमार गुप्त के द्वारा ही विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया गया था जो एक बौद्ध विश्वविद्यालय था जिसमें बौद्ध धम्म के अलावा जैन और सनातन धर्म की शिक्षा भी प्रदान की जाती थी |

*नालंदा विश्वविद्यालय को एक मुस्लिम आक्रामणकारी बख्तियार खिलज़ी ने नष्ट करवा दिया था और सभी ब्राह्मण शिक्षकों तथा बौद्ध, जैन आचार्यों की हत्या कर दी गई थी जिसका उल्लेख मिन्हाज़ उस सिराज़ के द्वारा लिखी गई पुस्तक तबकात ए नासिरी में किया गया है |

*मिन्हाज़ उस सिराज़ की पुस्तक तबकात ए नासिरी के अनुसार बख्तियार खिलज़ी ने बौद्ध, जैन और सनातन धर्म के सभी प्राचीन ग्रंथों को जलवा दिया था |

*कुमार गुप्त के शासनकाल 450 ई. के आस – पास में मगध पर पुष्यमित्र जाति के लोगों ने आक्रमण कर दिया था जिसका मुकाबला करने के लिए कुमार गुप्त ने अपने पुत्र स्कन्द गुप्त को भेजा था |

*455 ई. में कुमार गुप्त की मृत्यु हो गई थी |

स्कन्द गुप्त का इतिहास

*स्कन्द गुप्त का शासनकाल 455 – 467 ई. के मध्य माना जाता है |

*स्कन्द गुप्त, कुमार गुप्त के पुत्र और उत्तराधिकारी थे |

*उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित केहोम अभिलेख के अनुसार स्कन्द गुप्त ने शक्रादित्य की उपाधि धारण की थी |

*गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण स्कन्द गुप्त के शासनकाल में ही करवाया गया था |

*स्कन्द गुप्त के शासनकाल में मध्य एशिया के हूणों ने भारत पर आक्रमण किया था और गुप्त साम्राज्य के कुछ भागों पर अधिकार भी कर लिया था परन्तु स्कन्द गुप्त ने कुछ हूण राजाओं को पराजित कर दिया |

*हूणों को पराजित करने के बाद स्कन्द गुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी |

*उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित भीतरी स्तम्भ लेख और गुजरात के जूनागढ़ में स्थित अभिलेख के अनुसार स्कन्द गुप्त ने हूण राजाओं को पराजित किया था |

*स्कन्द गुप्त ने चीन के सान्ग वंशीय राजा के दरवार में अपना एक राजदूत भेजा था |

*467 ई. में स्कन्द गुप्त की मृत्यु हो गई थी |

*स्कन्द गुप्त के बाद गुप्त वंश में जितने भी राजा हुए उनका इतिहास क्रम से नहीं लिखा गया है क्योंकि कुछ इतिहासकारों ने सारनाथ लेख में जो वंशावली बताई गई है उसके अनुसार अंतिम गुप्त राजाओं का इतिहास लिखा है परन्तु कुछ इतिहासकारों ने नालंदा लेख में बताई गई वंशावली के अनुसार गुप्त वंश के अंतिम राजाओं का इतिहास लिखा हुआ है इसीलिए स्कन्द गुप्त के बाद कौन सा राजा पहले हुआ इसकी सही जानकारी किसी भी इतिहासकार के पास नहीं है |

पुरू गुप्त का इतिहास

*पुरू गुप्त का शासनकाल 467 – 472 ई. के मध्य माना जाता है |

*पुरू गुप्त, स्कन्द गुप्त के सौतेले भाई और उत्तराधिकारी थे |

*पुरू गुप्त की माता का नाम अनंत देवी था |

*पुरू गुप्त ने श्री विक्रम की उपाधि धारण की थी |

कुमार गुप्त द्वितीय

*कुमार गुप्त द्वितीय का शासनकाल 472 – 476 ई. के मध्य माना जाता है |

*उत्तर प्रदेश के सारनाथ से कुमार गुप्त द्वितीय का एक लेख प्राप्त हुआ था जो भगवान बुद्ध की प्रतिमा के नीचे लिखा हुआ था | 

बुद्ध गुप्त का इतिहास

*बुद्ध गुप्त का शासनकाल 477 – 495 ई. के मध्य माना जाता है |

*बुद्ध गुप्त, पुरू गुप्त के पुत्र और कुमारगुप्त द्वितीय के उत्तराधिकारी थे |

*बुद्ध गुप्त के द्वारा श्री विक्रम, परमभट्टारक और महाराजाधिराज की उपाधि धारण की गई थी |

*बुद्ध गुप्त की माता का नाम चन्द्र देवी था |

*बुद्ध गुप्त बौद्ध धम्म के अनुयायी थे |

*बुद्ध गुप्त को अंतिम गुप्त शक्तिशाली सम्राट माना जाता है |

*बुद्ध गुप्त ने नालंदा महाविहार के लिए अपार धन दान में दिया था |

नरसिंह गुप्त का इतिहास 

*नरसिंह गुप्त का शासनकाल 495 – 509 ई. के मध्य में माना जाता है |

*नरसिंह गुप्त, बुद्ध गुप्त के छोटे भाई और उत्तराधिकारी थे |

*नरसिंह गुप्त के शासनकाल में गुप्त वंश 3 राज्यों में विभाजित था | मगध का राजा नरसिंह गुप्त, बंगाल का राजा वैन्य गुप्त और मालवा का राजा भानु गुप्त था |

*नरसिंह गुप्त के शासनकाल में मध्य एशिया के बर्बर हूणों ने मिहिरकुल के नेतृत्व में भारत पर दोवारा से आक्रमण किया था लेकिन नरसिंह गुप्त ने उन्हें पराजित करके भारत से बाहर कर दिया था |

*नरसिंह गुप्त ने परम भागवत और बालादित्य की उपाधि धारण की थी |

भानुगुप्त का इतिहास

*भानुगुप्त का इतिहास ऐरण अभिलेख और आर्यमंजुश्रीमुलकल्प ग्रन्थ में मिलता है |

*ऐरण अभिलेख सती-प्रथा का प्रथम अभिलेखीय प्रमाण माना जाता है |

*मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित ऐरण अभिलेख जो 510 ई. का माना जाता है जिसमें भानुगुप्त के प्रिय मित्र और सेनापति गोपराज की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी ने चिता में जलकर आत्मा हत्या कर ली थी और उसी को कुछ इतिहासकारों पहला सती प्रथा का प्रमाण माना है |

वैन्यगुप्त का इतिहास

*आधुनिक बंगलादेश में स्थित गुनैधर ताम्रलेख में वैन्यगुप्त के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है जिसमें बौद्ध विहार बनवाने का उल्लेख किया गया है |

कुमारगुप्त तृतीय का इतिहास

*नालंदा लेख में कुमारगुप्त तृतीय का इतिहास मिलता है जिसमें उनकी माता का नाम महादेवी और मित्रदेवी लिखा हुआ है |

विष्णुगुप्त का इतिहास

*विष्णुगुप्त का इतिहास भी नालंदा लेख में मिलता है |

*550 ई. के बाद गुप्त वंश का इतिहास उपलब्ध नहीं है परन्तु इसके बाद भी गुप्त वंश कई राजा हुए जिनका इतिहास भारत के किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलता है |

गुप्त वंश का प्रशासन

*गुप्तकाल में शासन की सम्पूर्ण शक्ति राजा के हाथों में होती थी और राजा स्वेच्छाचारी होते थे जो सभी कार्य स्वयं की इच्छा से करते थे |

*गुप्तकाल में मंत्रियों के पद पैतृक होते थे और प्रधानमंत्री को मन्त्रिन कहा जाता था |

*गुप्तकाल में राजा के नीचे छोटे – छोटे सामंत होते थे और उनकी पदवी महाराज होती थी |

*गुप्त काल में राजा के पुत्र को कुमार कहा जाता था जिसे कुछ इतिहासकारों ने कुमारामात्य भी लिखा है |

*गुप्तकाल में सेना विभाग का प्रमुख महासेनापति होता था |

*गुप्तकाल में राजमहलों का रक्षक महाप्रतिहार होता था जिसकी उपाधि विनयमयूर होती थी |

*गुप्तकाल में पैदल तथा घुड़सवार सेना का अध्यक्ष भटाश्वपति नामक अधिकारी होता था |

*गुप्तकाल में कोषाध्यक्ष को भांडागाराधिकृत कहा जाता था और स्त्री विभाग के अध्यक्ष को स्थपति कहा जाता था |

*गुप्तकाल में धार्मिक कार्यों की देख-रेख करने वाले अधिकारी को विनयस्थितिस्थापक कहा जाता था |

*गुप्तकाल में भूमिकर लेने वाले अधिकारी को शाल्किक और ग्राम के मुखिया को महत्तर कहा जाता था |                                                                                          

*गुप्तकाल में ग्राम का प्रशासन पंचमण्डली नामक संस्था संभालती थी जिसमें महत्तर, अष्टकुलाधिकारी, ग्रामिक और कुटुम्बिन सदस्य होते थे |

*गुप्तकाल में आय का प्रमुख स्त्रोत भूमिकर होता था जिसे गुप्तकालीन अभिलेखों में उद्रंग तथा भागकर कहा गया है |

*गुप्तकाल का प्रमुख व्यवसाय कपड़ा बुनना था |

*गुप्तकाल में निर्यात की वस्तुएँ मोती, रत्न, नारियल, हाथी दांत होती थीं और आयात की वस्तुएँ स्वर्ण, चाँदी, तांबा, टिन, सीसा, रेशम, खजूर और अश्व थीं |

गुप्तकाल के प्रमुख विद्वान

*बुद्धघोष, बुद्ध दत्त, वसुबन्धु, आर्यदेव, असंग, कालिदास, विशाख दत्त, भारवि, शूद्रक, सुबंध, विष्णु शर्मा, अमर सिंह, आर्य भट्ट, वराहमिहिर आदि |

गुप्तकाल के प्रमुख ग्रन्थ

*कुमारसम्भवम, रघुवंशम, मेघदूतम, मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञानशाकुंतलम, देवी चंद्रगुप्तम, मुद्राराक्षस, किरातार्जुनीयम, मृच्छकटिका, वासवदत्ता, आर्यभट्टियम, पंचसिद्धान्तिका आदि | 

गुप्तकालीन स्थापत्य कला   

*दिल्ली के महरौली में स्थित लौह-स्तम्भ, सारनाथ का धमेख स्तूप, नालंदा का विहार, म.प्र. में स्थित उदयगिरि की गुफ़ा की कला कृतियाँ, भूमरा का शिव मंदिर, देवगढ का दशावतार मंदिर, भीतर गांव का मंदिर, ऐरण अभिलेख, बोधगया महाविहार, अजंता, एलोरा और बाघ की गुफाएँ गुप्तकाल की अमूल्य धरोहर हैं |

*गुप्तकाल में मथुरा, पाटिलपुत्र और सारनाथ मूर्तिकला के प्रसिद्ध केंद्र थे |          

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