भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान | Contribution of Buddhism to Indian culture |

भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म बहुत ही क्रान्तिकारी धर्म के रूप में माना जाता है। बौद्ध धर्म का भारतीय लोगों के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

राजनीतिक क्षेत्र में बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म बनने का श्रेय चक्रवर्ती सम्राट अशोक, सम्राट कनिष्क, सम्राट हर्ष वर्धन आदि ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया और उसी के सिद्धान्तों पर अपना शासन चलाया। राजनीतिक क्षेत्र में सबसे बड़ी देन अहिंसा की है जिसके कारण भारतीय राजाओं को रक्तपात से घृणा हो गई। बौद्ध धर्म के प्रभाव का ही परिणाम था कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने कभी भी युद्ध न करने का निश्चय किया और इस प्रकार से साम्राज्यवादी नीति का अंत हो गया |

सामाजिक क्षेत्र में - भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। भगवान बुद्ध ने खुलकर जाति - पाँति का खुलेआम विरोध किया और संघ के द्वार सभी जातियों के लिए खोल दिए थे। भगवान बुद्ध ने शिष्यों को आदेश दिया था कि सभी लोग, सभी स्थानों पर भ्रमण करते हुए यह सन्देश दो कि निर्धन और धनी, नीच और ऊँच सभी एक हैं क्योंकि जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में समा जाती हैं ठीक उसी प्रकार बौद्ध धर्म में सभी जातियाँ एक हो जाती हैं।

धार्मिक क्षेत्र में - वैदिक धर्म जनसाधारण का धर्म न रहकर ब्राह्मण धर्म हो गया था जिसमें यज्ञ, आडम्बर और कर्मकाण्ड आदि की प्रधानता बहुत ज्यादा हो गई थी। बौद्ध धर्म ने सरल, रोचक प्रचार शैली अपनाकर जन साधारण को अपनी ओर आकर्षित किया। आधुनिक हिन्दू धर्म की भक्ति मार्ग शाखा ने भी बौद्ध धर्म की तरह ही पवित्रता, सत्य, अहिंसा आदि पर विशेष जोर दिया |

कला क्षेत्र में बौद्ध धर्म के द्वारा कला के क्षेत्र में अत्यधिक विकास हुआ जिसमें गुहा कला का प्रारम्भ भी उसी काल से माना जाता है। बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने गान्धार शैली के कलाकारों को मूर्तिकला एवं चित्रकला के लिए विस्तृत क्षेत्र प्रदान किया | स्तूप तथा विहारों के निर्माण से कलाओं को विकास का पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ और अजन्ता की उच्चकोटि की चित्रकला भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं पर अच्छा प्रकाश डालती हैं |

संघ व्यवस्था बौद्ध साधुओं ने उपदेशों का प्रचार करने के लिए संघ व्यवस्था की शुरुआत की | बौद्ध धर्म के जन्म के पहले भारतीय सन्त महात्माओं का कोई संघ नहीं था और बौद्ध संघ के साधु भिक्कु (भिक्षु) कहलाते थे। सभी बौद्ध साधु विहारों में रहकर भगवान बुद्ध के उपदेशों का घूम - घूमकर प्रचार किया करते थे।

साहित्य में बौद्ध धर्म का बौद्ध साहित्य जन साधारण की भाषा पालि में उपलब्ध है। भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने धर्म के उपदेशों का प्रचार पालि भाषा के माध्यम से किया।भगवान बुद्ध के 84 हजार उपदेशों को त्रिपिटकों के रूप में पालि भाषा में संग्रह किया गया।

मूर्ति पूजा का प्रारम्भ - ऐसा विश्वास किया जाता है कि बौद्ध घर्म के महायान सम्प्रदाय से ही मूर्ति पूजा की शुरुआत हुई क्योंकि इससे पहले भारत में मूर्ति पूजा का कोई स्थान नहीं था। भगवान बुद्ध के अनुयायियों ने भगवान बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों का निर्माण कर उनकी पूजा करना शुरू किया था

मानव प्रेम का विकास भगवान बुद्ध ने अपने कार्यों द्वारा मानव प्रेम का विकास किया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने श्रावस्ती के तिस्स नामक भिक्षु जो दुर्गन्धपूर्ण त्वचा रोग से पीड़ित थे | भगवान बुद्ध ने स्वयं गर्म जल से उसे नहलाया और नये कपड़ों को पहनाकर भिक्षुओं से कहा था "तुम लोगों के माता पिता नहीं हैं अतएव तुम परस्पर एक दूसरे के माता पिता बनो"

भारतीय संस्कृति का प्रसार – भारत के अलावा विदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार करने का श्रेय बौद्ध धर्म को ही प्रदान किया जाता है | चीन, कोरिया, मंगोलया, म्यांमार, थाईलैंड, ताईवान, हांगकांग, वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान और श्रीलंका में भारतीय संस्कृति का प्रधान रूप बौद्ध प्रचारकों के द्वारा ही किया गया था | आज सम्पूर्ण विश्व में भारत को सिर्फ भगवान बुद्ध के नाम से जाना जाता है और जितने भी विदेशी प्रधानमंत्री भारत आते हैं तो भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ लेकर आते हैं |


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