पुष्यभूति वंश का सम्पूर्ण इतिहास | history of Pushyabhuti Dynasty |

 पुष्यभूति वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

*हर्षवर्धन के दरवारी कवि बाणभट्ट के द्वारा लिखे गए हर्षचरित ग्रन्थ में पुष्यभूति वंश का इतिहास मिलता है |

*चीनी यात्री व्हेन सांग के लेखों में हर्षवर्धन के शासनकाल की जानकारी मिलती है |

*सम्राट हर्ष के द्वारा लिखे गए ग्रन्थ नागनन्दा, प्रियदर्शिका और रत्नावली में भी पुष्यभूति वंश का इतिहास मिलता है |

*बौद्ध धम्म के महायान सम्प्रदाय का प्रसिद्ध ग्रन्थ आर्यमंजुश्री मूलकल्प में भी पुष्यभूति वंश का इतिहास मिलता है |

पुष्यभूति वंश का परिचय  

पुष्यभूति वंश जिसे वर्धन वंश भी कहा जाता है और इसकी स्थापना छठी शताब्दी में पुष्यभूति के द्वारा की गई थी | पुष्यभूति वंश छठी शताब्दी का सबसे शक्तिशाली वंश माना जाता है और इसकी प्रारम्भिक राजधानी आधुनिक हरियाणा के स्थानेश्वर में थी | पुष्यभूति वंश के प्रारम्भिक राजा गुप्त राजाओं के सामंत थे और इस वंश में, राजा पुष्यभूति के बाद नरवर्धन, राज्यवर्धन, आदित्यवर्धन और प्रभाकर वर्धन राजा हुए |

प्रभाकर वर्धन

*प्रभाकर वर्धन के पिता का नाम आदित्य वर्धन और माता का नाम महासेन गुप्त था |

*प्रभाकर वर्धन ने परमभट्टारक और महाराजाधिराज की उपाधियाँ धारण की थी |   

*प्रभाकर वर्धन के दो पुत्र राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन थे और एक पुत्री राज्यश्री थी |

*प्रभाकर वर्धन की पुत्री राज्यश्री का विवाह मौखिरि वंश के अंतिम राजा गृहवर्मा के साथ हुआ था | 

राज्यवर्धन

*राज्यवर्धन, प्रभाकर वर्धन के बड़े पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*राज्यवर्धन के ही शासनकाल 605 ई. में मौखिरि वंश के अंतिम राजा गृह वर्मा की हत्या मालवा के राजा देवगुप्त तथा बंगाल के राजा शशांक के द्वारा कर दी गई थी और गृह वर्मा की रानी तथा राज्यवर्धन की बहिन राज्यश्री को बंदी बना लिया गया था जब यह समाचार राज्यवर्धन को मिला तो उन्होंने मालवा के राजा देवगुप्त की हत्या कर दी और कन्नौज के लिए प्रस्थान किया परन्तु रास्ते में ही बंगाल के राजा शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी |

सम्राट हर्षवर्धन

*सम्राट हर्ष, प्रभाकर के पुत्र और राज्यवर्धन के उत्तराधिकारी थे |

*सम्राट हर्ष की माता का नाम यशोमती था |

*सम्राट हर्ष का जन्म 590 ई. में पुष्यभूति वंश की प्रारम्भिक राजधानी थानेश्वर में हुआ था |

*सम्राट हर्ष ने 606 ई. में राज्यसिंहासन प्राप्त किया था |

*सम्राट हर्ष का शासनकाल 606 से 647 ई. के मध्य माना जाता है |

*सम्राट हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से स्थानान्तरित करके उत्तर प्रदेश के कन्नौज में बनाई थी |

*सम्राट हर्षवर्धन ने परमभट्टारक, परमेश्वर, परमदेवता, सकलोत्तरपथनाथ, शिलादित्य और महाराजाधिराज जैसी प्रख्यात उपाधियाँ धारण की थीं |  

*सम्राट हर्ष बौद्ध धम्म के अनुयायी थे |

*सम्राट हर्ष ने वल्लभी के राजा ध्रुवसेन द्वितीय को पराजित किया था परन्तु उसकी बहादुरी से प्रभावित होकर बाद में उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था |

*सम्राट हर्ष ने असम के राजा भास्कर वर्मा के साथ मिलकर बंगाल के गौड़ राजा शशांक के पूरे साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया था |

*कर्नाटक के एहोल मेगुती अभिलेख के अनुसार सम्राट हर्ष ने पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध किया था परन्तु पराजय का सामना करना पड़ा था |

*सम्राट हर्ष के शासनकाल में कन्नौज बौद्ध धम्म का प्रसिद्ध केन्द्र था इसीलिए उसे महोदय नगर के नाम से जाना जाता था |

*प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेन सांग सम्राट हर्ष के शासनकाल में ही भारत भ्रमण के लिए आए थे |

*643 ई. में सम्राट हर्ष के द्वारा कन्नौज में एक विशाल धार्मिक सभा का आयोजन किया गया था जिसमें 20 सामंत, 3000 बौद्ध साधु, 3000 जैन साधु, 1000 नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक और 500 ब्राह्मणों को बुलाया गया था और इस सभा की अध्यक्षता व्हेन सांग के द्वारा की गई थी |

*644 ई. में सम्राट हर्ष के द्वारा उत्तर प्रदेश के प्रयाग (पूर्ववर्ती नाम इलाहाबाद) में एक विशाल महामोक्ष परिषद् का आयोजन किया था और इस सभा का आयोजन प्रति 6 वर्ष में एक बार किया जाता था |

*सम्राट हर्ष के द्वारा लिखे गए ग्रंथों के अनुसार उनके शासनकाल में 3 प्रमुख धर्म थे - प्रथम बौद्ध धर्म, द्वितीय जैन धर्म और तृतीय ब्राह्मण धर्म |

*सम्राट हर्ष के शासनकाल में शिक्षा प्राप्ति के लिए बौद्ध विहार और गुरुकुल में जाना पड़ता था और उच्च शिक्षा के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में जाना पड़ता था |

*सम्राट हर्ष ने नालंदा विश्वविद्यालय के लिए 200 गांव दान में दिए थे जिससे सभी छात्र मुफ्त में शिक्षा प्राप्त कर सकें |

*सम्राट हर्ष के दरवार में बाणभट्ट, मयूर, हरिदत्त, जयसेन, मातंग और दिवाकर मित्र रहते थे |

*सम्राट हर्ष स्वयं एक विद्वान थे उन्होंने संस्कृत में रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागनन्दा नामक ग्रंथों की रचना की थी |

*सम्राट हर्ष की जीवनी हर्षचरित की रचना बाणभट्ट के द्वारा की गई थी |

*सम्राट हर्ष के शासनकाल में प्रदेश को भुक्ति कहा जाता था और उसके प्रमुख को उपरिक महाराज कहा जाता था |

*सम्राट हर्ष के शासनकाल में किसानों से उपज का 1/6 भाग लिया जाता था |  

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3 टिप्पणियाँ

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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye

मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu

आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3

सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD