कुषाण वंश का परिचय
कुषाण वंश का
इतिहास भारतीय ग्रंथों से नहीं बल्कि चीनी ग्रंथों के आधार पर लिखा गया है और चीनी
ग्रंथों में कुषाणों को यू-ची जाति की एक शाखा माना गया है जिसका निवास स्थान चीन
के कानसू प्रदेश में था | 100 ई. पू. के आस-पास यू-ची जाति 5 शाखाओं में विभाजित
हो गई और उन्हीं में कुषाण भी शामिल थे परन्तु 15 ई. के आस-पास कुषाण वंश के पहले
राजा कुजुल कडफिसेस ने बैक्ट्रिया (आधुनिक अफ़गानिस्तान, ताजीकिस्तान और
उज्बेकिस्तान) और काबुल, कंधार, पेशावर, सिन्ध पर अधिकार कर कुषाण वंश की स्थापना
की थी |
1.कुजुल कडफिसेस
*कुजुल कडफिसेस
का शासनकाल 15 – 60 ई. के मध्य में माना
जाता है |
*कुजुल कडफिसेस
ने 15 ई. में काबुल, कंधार, पेशावर और सिन्ध से यवन तथा शक राजाओं को पराजित करके
कुषाण वंश की स्थापना की थी |
*कुजुल कडफिसेस
ने ताँबे के सिक्के जारी किए थे जिन पर एक तरफ़ यूनानी राजा हरमियस और दूसरी तरफ
कुजुल कडफिसेस ने स्वयं की आकृति खुदवाई थी |
*कुजुल कडफिसेस
ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी |
*कुजुल कडफिसेस
की मृत्यु 60 ई. में हुई थी |
2.विम
कडफिसेस
*विम कडफिसेस का
शासनकाल 60 – 78 ई. के मध्य माना जाता है |
*विम कडफिसेस,
कुजुल कडफिसेस के पुत्र थे |
*विम कडफिसेस ने
अपने शासनकाल में कुषाण साम्राज्य को तक्षशिला, पंजाब, कश्मीर और मथुरा तक फैला
दिया था |
*विम कडफिसेस को
कुषाण वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है |
*विम कडफिसेस ने
सोने तथा ताँबे के सिक्के जारी किए थे जो यूनानी लिपि तथा खरोष्ठी लिपि में थे |
*विम कडफिसेस के
द्वारा शिव, बैल और त्रिशूल की आकृति वाले सिक्के जारी किए गए थे इससे यह अनुमान
लगाया जा सकता है कि विम कडफिसेस के शासनकाल में कुषाणों ने भारतीय संस्कृति को
अपनाना शुरू कर दिया था |
*विम कडफिसेस ने
महाराजा, राजाधिराज, महेश्वर और सर्वलोकेश्वर जैसी उपाधियाँ धारण की थीं |
*विम कडफिसेस की
मृत्यु 78 ई. में हुई थी और विम कडफिसेस के बाद कनिष्क महान कुषाण वंश के राजा बने
थे |
3.सम्राट
कनिष्क
*सम्राट कनिष्क
सम्भवता विम कडफिसेस के पुत्र थे |
*सम्राट कनिष्क
का शासनकाल सम्भवता 78 – 102 ई. के मध्य में था परन्तु कुछ भारतीय इतिहासकार इससे
सहमत नहीं हैं उनके अनुसार सम्राट कनिष्क का शासनकाल 127 – 151 ई. के मध्य था |
*सम्राट कनिष्क 78
ई. में राजसिंहासन पर आसीन हुए थे और उसी समय उन्होंने शक सम्वत का प्रचलन किया था
|
*सम्राट कनिष्क
ने अपनी पहली राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर, पाकिस्तान में) को बनाया था तथा
दूसरी राजधानी मथुरा (उ.प्र. में) को बनाया था
*सम्राट कनिष्क
ने अपने लेखों में स्वयं को देवपुत्र तथा राजाओं का राजा कहा है |
*सम्राट कनिष्क
को द्वितीय अशोक भी कहा जाता है क्योंकि सम्राट अशोक के बाद भारत में सम्राट
कनिष्क ही एक मात्र ऐसे राजा हुए जिनका साम्राज्य सबसे बड़ा था |
*राजतरंगिणी के
अनुसार सम्राट कनिष्क ने कश्मीर पर विजय प्राप्त करके वहां पर कनिष्कपुर नामक सुन्दर
नगर को बसाया और वहां अनेक विहार तथा स्तूपों का निर्माण भी करवाया था |
*सम्राट कनिष्क
ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए पाटिलपुत्र पर अधिकार कर लिया था और
वहां से भगवान बुद्ध का भिक्षापात्र और एक बौद्ध दार्शनिक अश्वघोष को प्राप्त किया
था |
*सम्राट कनिष्क
की सभी विजयों में से चीन विजय सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि चीन की
विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए सम्राट कनिष्क ने अपने राजदूत को चीन भेजा और वहां
की राजकुमारी से विवाह का प्रस्ताव रखा परन्तु चीन के हाँग वंशीय राजा ने इसे अपनी
तौहीन समझा और प्रस्ताव को ठुकरा दिया | सम्राट कनिष्क का चीन के विरुद्ध पहला
आक्रमण असफल रहा परन्तु द्वितीय आक्रमण में सम्राट कनिष्क ने चीन के सेनापति पान
यांग को पराजित किया और उसके पूरे हांग साम्राज्य को अपने अधीन किया |
*सारनाथ अभिलेख
के अनुसार सम्राट कनिष्क ने खरपल्लान को मथुरा का महाक्षत्रप, वनस्पर को मगध का
क्षत्रप, कौशाम्बी का क्षत्रप धनदेव और अयोध्या का क्षत्रप सत्यमित्र को नियुक्त किया था |
*सम्राट कनिष्क
ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में महाक्षत्रप तथा क्षत्रप नामक अधिकारियों को
नियुक्त किया था |
*सम्राट कनिष्क बौद्ध
धम्म के अनुयायी थे उन्होंने सम्राट अशोक की भांति अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में
बौद्ध धम्म को फैलाया और अनेक स्तूपों तथा विहारों का निर्माण भी करवाया था जिसमें
सबसे सुन्दर विहार पेशावर में बनवाया था जिसका उल्लेख चीनी यात्री फाहियान ने भी अपने
लेखों में किया है |
*सम्राट कनिष्क
के ही शासनकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुण्डलवन में किया गया
था जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने तथा उपाध्यक्षता अश्वघोष के द्वारा की गई थी |
चतुर्थ बौद्ध संगीति में सुत्तपिटक, विनयपिटक और अधिधम्म पिटक के टीकाओं की रचना
तथा महाविभाषा सूत्र की रचना संस्कृत भाषा में की गई थी जिसे बौद्ध धम्म का
विश्वकोष कहा जाता है |
*सम्राट कनिष्क
की राजकीय भाषा संस्कृत थी और बौद्ध धम्म के अधिकत्तर ग्रंथों को सम्राट कनिष्क के
ही शासनकाल में संस्कृत भाषा में दोवारा से लिखा गया था |
*सम्राट कनिष्क
के दरवार में पाशर्व, वसुमित्र, अश्वघोष, संघरक्ष, चरक और नागार्जुन प्रमुख थे |
चरक, सम्राट कनिष्क के राज चिकित्सक थे जिन्होंने चरक-संहिता नामक ग्रन्थ की रचना
की थी |
*सम्राट कनिष्क
के शासनकाल में बुद्ध चरित्र, प्रज्ञा परिमित्रासूत्र, सुहल्लेखा, चरक संहिता,
सौंदरानंद, सारिपुत्र प्रकरण, वज्रसूची, अनेक टीकाओं आदि की रचना संस्कृत भाषा में
की गई |
*सम्राट कनिष्क
के समय में विद्या के प्रसिद्ध केंद्र तक्षशिला, पेशावर और खोतान थे जिनमें सबसे
प्रमुख स्थान तक्षशिला का था और वहां पर देश/विदेश से छात्र पढ़ने आते थे |
*सम्राट कनिष्क
बौद्ध धम्म की महायान शाखा के अनुयायी थे जिसका प्रमुख केंद्र गांधार प्रान्त था
और दूसरा केंद्र मथुरा था और इस काल में सर्व प्रथम भगवान बुद्ध की मूर्ति बनाई गई
थी |
*सम्राट कनिष्क
की मृत्यु सम्भवता 144 या 151 ई. पेशावर में हुई थी |
*सम्राट कनिष्क
के बाद वासिष्क, हुविष्क, कनिष्क द्वितीय,
वासुदेव, कनिष्क तृतीय, वासुदेव द्वितीय आदि कुषाण वंश के राजा बने परन्तु इनका
इतिहास उपलब्ध न होने के कारण, इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है |
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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD