महावंश का परिचय
महावंश
का अर्थ है - महान लोगों के
वंश का परिचय । महावंश की रचना तामपर्णी (लंका द्वीप)
के राजा दीवानां प्रिय तिस्य (247-207 ई.पू.) के शासनकाल में सर्वप्रथम अर्हत महानाम के
द्वारा की गई थी । बाद में कई राजाओं के इतिहास को इसमें शामिल किया गया । महावंश
में पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर चौथी शताब्दी ईस्वी तक का इतिहास है ।
सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा के लंका जाने का वर्णन और साथ
में बोधि वृक्ष की शाखा को ले जाने का वर्णन है ।
पहला परिच्छेद
महावंश
के पहले परिच्छेद में भगवान बुद्ध के लंका जाने का वर्णन है । पहली बार भगवान
बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद नौवें महीने में लंका गए थे । दूसरी बार भगवान बुद्ध
ज्ञान प्राप्ति के बाद 5वें
वर्ष लंका गए और तीसरी बार भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद 9वें लंका गए । महावंश में भगवान बुद्ध के तीन बार लंका जाने का वर्णन किया
गया है, परंतु महावंश के पहले परिच्छेद में सत्यता कम दिखाई
देती है, क्योंकि बौद्ध धम्म के पवित्र ग्रंथ त्रिपिटक में
एक भी बार भगवान बुद्ध के लंका जाने का वर्णन नहीं किया गया है । लंका के समंतकूट
पर्वत पर भगवान बुद्ध के चरण चिन्ह अंकित हैं । प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु वहां
पर पूजा करते हैं और चढावा भी चढाते हैं । भगवान बुद्ध के इन्हीं पद चिन्हों की
पूजा हिंदू भगवान विष्णु के रूप में करते हैं । ईसाई और मुसलमान आदम समझकर इस
स्थान को पवित्र मानते हैं । इसीलिए समंतकूट पर्वत को आजकल आदम की चोटी यानि आडम्स
पीक भी कहा जाता है ।
दूसरा परिच्छेद
महावंश
के दूसरे परिच्छेद में महासम्मत वंश की चर्चा की गई है । जयसेन कपिलवस्तु के राजा
हुए । जयसेन के पुत्र सिंहहनु हुए । सिंहहनु के पुत्र - शुद्धोधन, धौतोदन,
शुक्रोदन, शुक्लोदन, अमितोदन
तथा पुत्रियां - अमिता और प्रमिता थीं । शुद्धोधन के पुत्र
सुकिति थे, जिन्हें ज्ञान प्राप्ति के बाद तथागत बुद्ध कहा
गया ।
तीसरा परिच्छेद
महावंश
के तीसरे परिच्छेद में प्रथम बौद्ध संगीति की चर्चा की गई है । प्रथम बौद्ध संगीति
का आयोजन मगध के राजा अजातशत्रु ने राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में 483 ईसा पूर्व में करवाया था, जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप (वास्तविक नाम महाकस्सप)
के द्वारा की गई थी । इस संगीति में भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को
संकलित किया गया था, जिसे सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक का नाम दिया गया था ।
चौथा परिच्छेद
महावंश
की चौथे परिच्छेद में द्वितीय बौद्ध संगीति की चर्चा की गई है । द्वितीय बौद्ध
संगीति का आयोजन शिशुनाग वंशीय राजा कालाशोक (वास्तविक नाम कालसोक) ने अपने राज्याभिषेक के
9वे वर्ष यानि 383 ईसा पूर्व में वैशाली की
बालुकाराम विहार (कुसुमपुरी विहार) में
करवाया था । द्वितीय बौद्ध संगीति की अध्यक्षता सब्बकमीर या सुबुकामी ने की थी ।
द्वितीय बौद्ध संगीति के दौरान ही बुद्ध संघ दो भागों स्थाविर (ज्ञानी बौद्ध साधुओं का संघ) और महासंघिक (भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना करने वाले साधुओं का संघ) में विभाजित हो गया था ।
5वां परिच्छेद
महावंश
के 5वे परिच्छेद में लिखा
है कि 9वे नंद राजा घनानंद को मरवा कर महाक्रोधी चाणक्य ने
महाराज चंद्रगुप्त को सकल जंबू दीप का राजा बनाया था । इसी परिच्छेद में आगे लिखा
है कि बिंदुसार के 100 पुत्र थे । उन सभी पुत्रों में सबसे
अधिक पुण्य, तेज और बल वाले अशोक थे । उन्होंने अपने
99 भाइयों की हत्या कर सकल जंबू दीप पर एक छत्र राज किया था । आगे
लिखा है सम्राट अशोक ने राज्याभिषेक के बाद अपने छोटे भाई राजकुमार तिष्य (वास्तविक नाम तिस्स) को उपराजा बनाया था । सम्राट
अशोक के कौशांबी स्तंभलेख में उनके परिवार का उल्लेख किया गया है, जिसमें उनके जीवित भाइयों की भी चर्चा की गई है । इससे यह अनुमान लगाया जा
सकता है कि महावंश के 5वे परिच्छेद में जो लिखा है उसमें कोई
सच्चाई नहीं है । महावंश के इस परिच्छेद में सम्राट अशोक के संपूर्ण इतिहास की
चर्चा की गई है ।
6वां परिच्छेद
महावंश
के 6वां परिच्छेद में विजय
के लंका जाने का वर्णन है । जिसमें आगे लिखा है कि प्राचीन समय में लाट देश का
राजा सिंहबाहु था । राजा के बड़े बेटे का नाम विजय था जो उसका उत्तराधिकारी था ।
विजय बहुत दुष्कर्मी तथा अत्याचारी था । वह अपने साथियों के साथ मिलकर अपने राज्य
की लड़कियों तथा जवान औरतों का बलात्कार करता था । जनता ने राजा से उसकी शिकायत की
। राजा ने अपने पुत्र को बहुत समझाया, परंतु उसने राजा की एक
भी बात नहीं मानी । राज्य
की जनता विजय के अत्याचारों से परेशान हो गई थी । जनता ने राजा से कहा तुम अपने
बेटे की हत्या करो, वरना हम सब मिलकर उसकी हत्या कर देंगे ।
1 दिन राजा ने विजय और उसके सभी साथियों को परिवार सहित दरबार में
बुलाया । सबका सिर मुंडन करवा दिया और उन्हें एक बड़ी सी नाव में बिठाकर समुद्र
में छुड़वा दिया । कुदरत का ऐसा करिश्मा हुआ कि नाव हवा के सहारे बहते - बहते लंका पहुंच गई । विजय और उसके साथियों ने वहां पर अपना राज्य बसा
लिया और इस तरह से विजय लंका का पहला राजा हुआ ।
7वां परिच्छेद
महावंश
के सातवें परिच्छेद में विजय के राज्याभिषेक का वर्णन है । विजय ने मलय देश के
पांडू राजा की पुत्री से विवाह किया था । मलय देश का पांडू राजा विजय के
राज्याभिषेक में शामिल हुआ था ।
8वां परिच्छेद
महावंश
के आठवें परिच्छेद में लंका के राजा विजय के उत्तराधिकारी पांडू वासुदेव के
राज्याभिषेक का वर्णन है । पांडू वासुदेव की रानी शाक्य वंशीय राजकुमारी कात्यायनी
थी ।
9वां परिच्छेद
महावंश
के 9वे परिच्छेद में पांडु
वासुदेव और उनकी रानी कात्यायनी के 10 पुत्र तथा एक कन्या का
वर्णन है । पांडू वासुदेव के 10 पुत्र तथा चित्रा नाम की एक
पुत्री थी । चित्रा के जन्म पर ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी की । ब्राह्मणों ने कहा
इस लड़की का लड़का राज्य की प्राप्ति के लिए अपने सभी मामाओं की हत्या करेगा । कुछ
समय बाद पांडू वासुदेव ने अपने बड़े पुत्र अभय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ।
कुछ समय बाद पांडू वासुदेव के पुत्रों को ब्राह्मणों की भविष्यवाणी के बारे में
पता चला । उन सब ने मिलकर अपनी छोटी बहन चित्रा को जेल में डाल दिया । जेल के अंदर
सेवा के लिए एक दासी को रख दिया तथा कुछ आदमी जेल के बाहर तैनात कर दिए ।
दसवां परिच्छेद
महा
वंश के दसवें परिच्छेद में पाण्डूकाभय के राज्य अभिषेक का वर्णन किया गया है ।
पाण्डूकाभय, चित्रा का बेटा
था । पाण्डूकाभय जब 16 वर्ष का हुआ तो उसने अपने मामा
गिरिकंड शिव की पुत्री सुवर्णपाली से विवाह किया । पाण्डूकाभय ने अपने बड़े मामा
अभय और सुवर्णपाली के पिता गिरिकंड शिव को छोड़कर बाकी सभी मामाओं की हत्या करके
उनके राज्य पर अधिकार कर लिया था ।
11वां परिच्छेद
महावंश
के 11वे परिच्छेद में लंका
के सबसे प्रसिद्ध राजा देवानां प्रिय तिस्य के राज्याभिषेक का वर्णन किया गया है । देवानां प्रिय तिस्य, पाण्डूकाभय का पौता था । देवानां प्रिय तिस्य ने अमूल्य रत्न अपने मित्र
धम्मसोक (सम्राट अशोक) के पास भेजें थे
। जिन्हें देखकर सम्राट अशोक अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी तरफ से तलवार,
छत्र, मुकुट, चंदन,
निर्मल वस्त्र, गंगा का जल, सोने के बर्तन आदि लंका के राजा देवानां प्रिय तिस्य को भेजे थे । देवानां
प्रिय तिस्य को ही लंकेश्वर कहा जाता है ।
12वां परिच्छेद
महावंश
के इस परिच्छेद में सम्राट अशोक के द्वारा भेजे गए धम्म उपदेशकों का वर्णन किया
गया है । धम्मसोक ने कार्तिक महीने में मज्झंतिक स्थाविर को कश्मीर तथा गांधार
प्रांत में भेजा । महादेव स्थाविर को महिष्मण्डल भेजा था । महारक्षित स्थाविर को
यमन देश तथा महेंद्र और संघमित्रा को लंका द्वीप धम्म प्रचार के लिए भेजा था ।
13वां परिच्छेद
महावंश के इस परिच्छेद में महेंद्र और संघमित्रा के लंका द्वीप जाने का वर्णन किया गया है । सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा विदिशा की राजकुमारी देवी की संतान थे । महेंद्र और संघमित्रा लंका द्वीप जाने से पहले अपनी माता देवी से विदिशा मिलने गए, और वहां से लंका द्वीप के लिए प्रस्थान कर गए थे । महेंद्र और संघमित्रा जिस समय लंका द्वीप गए थे, उस समय वहां के राजा देवानां प्रिय तस्य थे ।
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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD