मगध साम्रज्य का इतिहास तथा हर्यंक वंश..| History of Magadha Empire and Haryanka Dynasty ..|

मगध साम्राज्य का उदय

सबसे पहले बात करते हैं कि मगध साम्राज्य कहाँ पर स्थित था, मगध साम्राज्य आधुनिक विहार के पटना, बोधगया तथा उसके आस-पास के क्षेत्र में स्थित था | वैसे तो मगध का इतिहास काफी पुराना है परन्तु ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध न होने के कारण, इसके प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी नहीं मिलती है | मगध के इतिहास की शुरुआत हर्यंक वंश से मानी जाती है जिसके संस्थापक सम्राट बिम्बिसार थे जो महात्मा बुद्ध के समकालीन माने जाते हैं | बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सम्राट बिम्बिसार 544 ई.पू. में मगध के सिहांसन पर बैठे थे |

हर्यंक वंश - [544 से 412 ई. पू.]

1.सम्राट बिम्बिसार - 544 से 492 ई. पू. तक 

*सम्राट बिम्बिसार के शासनकाल की जानकारी बौद्ध ग्रन्थ महावंश में प्रदान की गई है |

*सम्राट बिम्बिसार को श्रेणिक भी कहा जाता है |

*सम्राट बिम्बिसार बौद्ध धम्म के अनुयायी थे |

*सम्राट बिम्बिसार की कई रानियाँ थीं जिनमें से सबसे प्रमुख वैशाली के लिच्छवी राजा चेतक की पुत्री चेल्लना थीं और इन्हीं के गर्भ से अजातशत्रु का जन्म हुआ था तथा दूसरी रानी कोशल के राजा प्रसेनजित की बहिन कौशल देवी थीं और तीसरी रानी पंजाब के राजा भद्र की पुत्री क्षेमा थीं जो बिम्बिसार की मृत्यु के बाद महात्मा बुद्ध के संघ में शामिल हो गईं थीं |

*सम्राट बिम्बिसार के शासनकाल में मगध की राजधानी राजगृह में थी |

*सम्राट बिम्बिसार के राजवैध जीवक थे जो वैशाली की नर्तकी या गणिका आम्रपाली के पुत्र थे | जीवक ने तक्षशिला (आधुनिक पाकिस्तान में) से वैध की शिक्षा ग्रहण की थी और अंत में उन्होंने सम्राट बिम्बिसार के कहने पर महात्मा बुद्ध की सेवा कार्यरत हो गए थे |   

*सम्राट बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध को वेणुवन विहार दान में दिया था जो राजगृह में स्थित थी |

*बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिम्बिसार ने अंग महाजनपद को मगध साम्राज्य का हिस्सा बनाया था |

*बौद्ध ग्रन्थ महावंश के अनुसार बिम्बिसार ने मगध पर 52 वर्षों तक शासन किया था |

*बुद्ध चरित्र ग्रन्थ में बिम्बिसार को हर्यंक वंश का सम्राट बताया गया है परन्तु कुछ भारतीय इतिहासकारों ने बिम्बिसार को पितृहंता वंश और नाग वंश का बताया हैं |

*बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को जेल में कैद कर दिया था और 492 ई.पू. में बिम्बिसार की जेल में ही मृत्यु हो गई थी |

2.अजातशत्रु - 492 से 460 ई.पू. तक 

*बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अजातशत्रु 492 ई.पू. में मगध के सिंहासन पर बैठे थे और उन्हें कुणिक के नाम से भी जाना जाता है |

*जैन ग्रन्थ आवश्यक सूत्र और उपांग 1 के अनुसार अजातशत्रु एक बार महावीर स्वामी से मिलने गए और महावीर स्वामी से पूछा..भंते..! चक्रवर्ती सम्राट मृत्यु के बाद कहाँ जाते हैं..? | महावीर स्वामी ने उत्तर देते हुए कहा - चक्रवर्ती सम्राट मृत्यु के बाद 7वे नरक में जाते हैं और तुम 6ठे नरक में जाओगे क्योंकि तुम चक्रवर्ती सम्राट नहीं हो..! अजातशत्रु ने फिर पूछा..में चक्रवर्ती सम्राट नहीं हूँ..? | महावीर स्वामी ने फिर उत्तर देते हुए कहा - हाँ.. तुम चक्रवर्ती सम्राट नहीं हो क्योंकि चक्रवर्ती सम्राट सिर्फ 12 हुए जिसमें अंतिम चक्रवर्ती सम्राट तुम्हारे पिता थे..! महावीर स्वामी की ये बात सुनकर सम्राट अजातशत्रु क्रोधित होकर बोले.. भंते..! में इतिहास बदलूँगा और 13वा चक्रवर्ती सम्राट बनूँगा

*अजातशत्रु ने चक्रवर्ती सम्राट बनने की इच्छा में अपने आस-पास के राज्यों पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया था जिसमें अजातशत्रु की कोशल तथा लिच्छवी राजाओं पर विजय सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है |

*अजातशत्रु ने कोशल के राजा प्रसेनजित के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी परन्तु बाद में दोनों के मध्य समझौता हो गया जिसमें प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजिरा का विवाह अजातशत्रु के साथ कर दिया था |

*अजातशत्रु ने वैशाली के लिच्छवी राजाओं को परास्त करने के लिए गंगा के किनारे एक नए किले का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया था और उसके आस-पास अपने सैनिकों की बस्तियां भी बसाना शुरू कर दिया था तथा यहीं पर अजातशत्रु ने अपनी नई राजधानी बनाई और बाद में यही स्थान पाटिलपुत्र के नाम से जाना गया |

*बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अजातशत्रु ने वैशाली में स्थित लिच्छवी गणराज्य के विरुद्ध युद्ध किया जिसमें अजातशत्रु ने पत्थर फेंकने वाले हथियार और रथ पर आगे तलवार के जैसे पंख लगाने वाले हथियारों का प्रयोग किया जिससे लिच्छवी राजा परिचित नहीं थे और अंत में अजातशत्रु ने पूरे लिच्छवी गणराज्य को तहस-नहस कर दिया था | 

*इन सभी युद्धों को जीतने के बाद अजातशत्रु का मन अशांत हो गया और वह अंत में महात्मा बुद्ध से मिलने गए और महात्मा बुद्ध से पूछा...बुद्ध..! ये मन इतना अशांत क्यों रहता है..? बुद्ध ने जवाब दिया - जब हम किसी वस्तु को हासिल करने में असफल हो जाते हैं तो हमारा मन अशांत हो जाता है ..तुम चक्रवर्ती सम्राट बनने का प्रयत्न कर रहे हो जिसमें हजारों मनुष्यों की मृत्यु हो रही है..! अजातशत्रु ने बुद्ध से फिर पूछा..तो क्या में चक्रवर्ती सम्राट नहीं बन सकता..? महात्मा बुद्ध ने फिर जवाब दिया..अवश्य ही तुम चक्रवर्ती सम्राट बन सकते है..परन्तु उसके लिए युद्ध करने और निर्दोष मनुष्यों को मारने को कोई आवश्यकता नहीं है.. तुम जन कल्याण और अच्छे कर्मों से चक्रवर्ती सम्राट बन सकते हो..|

*महात्मा बुद्ध की यह सलाह अजातशत्रु को बहुत पसन्द आई और उन्होंने कुछ समय बाद बौद्ध धम्म ग्रहण कर लिया था |

*अजातशत्रु के ही शासनकाल 483 ई. पू. में महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण (मृत्यु) प्राप्त हुआ था महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण (मृत्यु) के बाद अजातशत्रु ने राजगृह में एक स्तूप का निर्माण करवाया था |  

*महात्मा बुद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद 483 ई. पू. में ही अजातशत्रु ने राजगृह की सप्तपर्णी गुफ़ा में प्रथम बौद्ध संगीति आयोजन करवाया और इसकी अध्यक्षता महाकश्यप के द्वारा की गई थी तथा इसमें महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद और उपालि भी उपस्थित हुए थे और इस संगीति की मुख्य विशेषता थी | इसमें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन हुआ तथा उन्हें सुत्तपिटक और विनयपिटक का नाम प्रदान किया गया था |

3.उदयन - 460 से 444 ई.पू. तक 

*अजातशत्रु के बाद उनके पुत्र उदयन मगध के सम्राट बने जिन्हें उदयभद्र के नाम से भी जाना है |

*मगध के सम्राट बनने से पहले उदयन चम्पा नगर के राज्यपाल थे |

*उदयन ने अपने पिता अजातशत्रु के द्वारा बसाए गए पाटिलपुत्र को शहर के रूप में परिवर्तित किया और उसे अपनी राजधानी बनाया था |

*कुसुमपुर नगर (आधुनिक विहार में) को बसाने का श्रेय सम्राट उदयन को ही दिया जाता है और वहीँ पर उदयन ने विहार तथा चैत्यों (बौद्ध प्रार्थना स्थल) का निर्माण करवाया था |

*उदयन के बाद अनुरुद्ध, मुण्ड और नागदशक मगध के राजा हुए |

*बौद्ध ग्रन्थ महावंश के अनुसार हर्यंक वंश के अंतिम राजा नागदशक थे जिनकी 412 ई.पू. में उनके ही मंत्री शिशुनाग ने हत्या कर, मगध पर एक नए राजवंश शिशु नाग वंश की स्थापना की थी |

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