1857 की लड़ाई के प्रमुख कारण | स्वतंत्रता संग्राम | Revolt of 1857 in Hindi |


1857 की लड़ाई के प्रमुख कारण                      

*1851 में लार्ड डलहौजी के द्वारा नाना साहब की 8 लाख वार्षिक पेंशन को बंद कर दिया गया था |

*1856 में लार्ड डलहौजी ने अवध राज्य के अंतिम नवाब वाजिद अलीशाह के राज्य पर कुशासन का आरोप लगाकर उसे अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बना लिया था और कोलकाता में नजरबन्द कर दिया था जिससे अवध राज्य में बड़ी हलचल पैदा हो गई थी |

*भारतीय सैनिकों को अंग्रेजी सैनिकों की अपेक्षा कम वेतन दिया जाता था और उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त नहीं किया जाता था |          

*1856 में आए एक एक्ट के द्वारा सैनिकों को समुद्र के रास्ते विदेश जाना अनिवार्य कर दिया गया तथा पगड़ी बांधने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था | 

*इसी समय सैनिकों को नए प्रकार के कारतूस प्रदान किए गए जिन्हें मुँह से खोलना पड़ता था |

*इन सारी घटनाओं के बाद मुग़ल शासक बहादुर शाह, अवध के नवाब वाज़िद अलीशाह, तात्याटोपे और कुँवरसिंह आदि के द्वारा एक बड़ा क्रांतिकारी संगठन बनाया गया |

*इस संगठन का नेता मुग़ल शासक बहादुरशाह को बनाया गया था और क्रांति की तारीख 31 मई 1857 निश्चित की गई लेकिन उससे पहले ही बैरकपुर छावनी के सैनिकों ने नए प्रकार के कारतूसों को मुँह से काटने से इंकार कर दिया, इस पर अंग्रेज अधिकारियों के उन्हें पद से हटाने की धमकी दी और उन्हें दण्ड देने का भी निश्चय किया |

*इस घटना के बाद मंगल पाण्डेय नामक एक सैनिक ने 29 मार्च 1857 को दो अंग्रेज अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी |

*इसके बाद मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करके 8 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटका दिया गया |

*मंगल पाण्डेय की फांसी के बाद मेरठ के सैनिकों ने भी नए कारतूसों के प्रयोग से इंकार कर दिया, इसके बाद उन्हें भी जेल में डाल दिया गया |

*10 मई 1857 को भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की घोषणा कर दी और दिल्ली चलो का नारा देकर दिल्ली की ओर चल पड़े |

*11 मई 1857 को क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली के लाल किले पर अधिकार कर बहादुरशाह ज़फर को अपना बादशाह घोषित कर दिया |

*इसके बाद अंग्रेजों ने हेनरी बर्नार्ड और आर्कडेल विल्सन के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना दिल्ली भेजी तथा दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ और इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई |

*अंग्रेजों ने दिल्ली के लाल किले पर फिर से अधिकार कर लिया और बहादुरशाह ज़फर को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाकर रंगून भेज दिया जहाँ 7 नवम्बर 1862 को बहादुरशाह ज़फर की मृत्यु को हो गई |

*इस घटना के बाद कानपुर में नाना साहब और तात्याटोपे ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया तथा बिहार में जगदीशपुर के जमींदार कुंबर सिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया |

*जून 1858 में अंग्रेजों ने सर हुरोज के नेतृत्व में एक सेना झाँसी भेजी | हुरोज ने झाँसी के किले पर आक्रमण कर दिया रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी पराजय होने से पहले ही झाँसी ग्वालियर चली गईं लेकिन हुरोज ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और 18 जून 1858 को वह वीर गति को प्राप्त हुई लेकिन स्वतंत्रता की आग तब तक पूरे देश में फैल गई थी |

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