सआदत खां का इतिहास (#अवध_का_इतिहास) Awadh history in Hindi |

 

अवध राज्य का इतिहास

*अवध का क्षेत्र आधुनिक उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले से लेकर पूरब में कर्मनासा नदी तक फैला हुआ था |

*अवध की पहली राजधानी फैज़ाबाद में थी और अवध को बफर राज्य के रूप में भी जाना जाता है |

सआदत खां का इतिहास

*1722 ई. में मुग़ल शासक मुहम्मद शाह ने सआदत खां को अवध का सूबेदार बनाया गया था और 1723 में सआदत खां ने अवध में नया राजस्व बंदोबस्त लागू लिया क्योंकि जमींदारों का जुल्म किसानों पर बढ़ता जा रहा था |

*सआदत खां ने बुरहान उल मुल्क की उपाधि धारण कर अवध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी |

*सआदत खां को ईरानी सैय्यदों का वंशज माना जाता है |

*नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए सआदत खां ने ही उकसाया था |

*1739 ई. में नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और सआदत खां को बुलाया परन्तु सआदत खां ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी |

*सआदत खां का शासनकाल 1722 – 1739 के मध्य में था |

सफ़दरजंग का इतिहास

*सफ़दरजंग का पूरा नाम अबुल मंसूर खां सफ़दरजंग था जो सआदत खां का दामाद और उत्तराधिकारी था |

*1739 ई. में मुग़ल शासक मुहम्मद शाह ने सफ़दरजंग को अवध का नवाब बनाया था |

*1748 ई. में मुग़ल शासक अहमदशाह ने सफ़दरजंग को अपना वजीर बनाया और इलाहाबाद का प्रान्त भी दिया था |

*सफ़दरजंग के शासनकाल में नौकरियाँ देने में किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया और सबसे बड़े पदों पर हिन्दुओं को नियुक्त किया था |

*1753 ई. में सफ़दरजंग ने राजा नवाब राय को अपना वजीर बनाया था और 1754 ई. में सफ़दरजंग की मृत्यु हो गई थी |

*सफ़दरजंग की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शुजा उद दौला  उत्तराधिकारी बना |

*सफदरजंग का शासनकाल 1739 – 1754 के मध्य में था |

शुजा उद दौला  का इतिहास

*14 जनवरी 1761 को में पानीपत के तृतीय युद्ध में शुजा उद दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया था |

*1759 ई. में शाह आलम द्वितीय को अपने वजीर इमाद उल मुल्क की शत्रुता के कारण दिल्ली छोड़ना पड़ा तो शुजा उद दौला ने लखनऊ में शरण दी थी |

*अक्टूबर 1764 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और क्लाईव ने अवध ने नवाब शुजा उद दौला से इलाहाबाद और कड़ा के क्षेत्रों को छीन कर, मुग़ल शासक शाह आलम को दे दिए थे |

*1773 ई. में बनारस की संधि अवध के नवाब शुजा उद दौला और वारेन हेस्टिंग्स के मध्य हुई थी |

*इस संधि के तहत इलाहाबाद व कड़ा के क्षेत्रों को 50 लाख रूपए में बेच दिया था |

*अप्रैल 1774 ई. में रुहेला सरदार हाफिज़ रहमत खां और शुजा उद दौला के मध्य युद्ध हुआ जिसमें शुजा उद दौला की जीत हुई और शुजा उद दौला ने सम्पूर्ण रुहेलखण्ड को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था |

*शुजा उद दौला का शासनकाल 1754 – 1775 के मध्य में था |

आसफ़ उद दौला का इतिहास

*आसफ़ उद दौला ने अपनी राजधानी फैज़ाबाद से लखनऊ में स्थानांतरित कर ली थी |

*1775 ई. में आसफ़ उद दौला और वारेन हेस्टिंग्स के मध्य फैज़ाबाद की संधि हुई थी जिसके अनुसार बनारस में अंग्रेजी सेना रखी गई |

*इस संधि के तहत वारेन हेस्टिंग्स ने अवध की बेगमों की संपत्ति सुरक्षा की गारंटी ली थी परन्तु 1781 ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने जॉन मिडल्टन को बेगमों की सम्पत्ति वसूलने का आदेश दिया था |

*1784 ई. में आसफ़ उद दौला ने मुहर्रम मनाने के लिए लखनऊ में इमामबाड़ा का निर्माण करवाया था |

*आसफ़ उद दौला का शासनकाल 1775 – 1797 के मध्य में था |

*आसफ़ उद दौला के बाद वजीर अली अवध का नवाब बना जिसका शासनकाल 1797 - 1798 ई. तक था |

सआदत अली खां का इतिहास

*1801 ई. में सआदत अली खां ने वेलेजली से सहायक संधि स्वीकार की और इलाहाबाद का क्षेत्र भी अंग्रेजों को प्रदान कर दिया था |

*1819 ई. में सआदत अली खां को राजा की उपाधि प्रदान की गयी थी |

*सआदत अली खां का शासनकाल 1798 – 1819 के मध्य में था |

गाजीउद्दीन हैदर अली खां का इतिहास

*1815 ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने गाजीउद्दीन हैदर अली खां को बादशाह की उपाधि प्रदान की थी |

*गाजीउद्दीन हैदर अली खां के बाद नासिरुद्दीन मुहम्मद अली, अमजद अली नवाब बने |

वाजिद अली शाह का इतिहास 

*वाजिद अली शाह को अवध का अंतिम नवाब माना जाता है |

*1854 ई. में लार्ड डलहौजी ने कुशासन का आरोप लगा कर 1856 ई. में अवध को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया था और वाजिद अली शाह को नज़र बंद कर कलकत्ता भेज दिया गया था |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ