बौद्ध धर्म और जैन धर्म में अंतर | बौद्ध धर्म और जैन धर्म में असमानता | difference between Buddhism and Jainism |

 

बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानता और असमानता  

बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के सिद्धान्तों, उपदेशों एवं शिक्षाओं का अध्ययन करने से मालूम होता है कि दोनों धर्मों में पर्याप्त रूप से समानताएँ और असमानताएँ मौजूद हैं।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म में  समानता  

(1) बौद्ध धर्म और जैन धर्म की उत्पत्ति उत्तर भारत में हुई और दोनों धर्मों के प्रचारक क्षत्रिय राजकुमार थे।

(2) बौद्ध धर्म और जैन धर्म कर्मकांड के विरोधी थे।

(3) बौद्ध धर्म और जैन धर्म बलि - प्रथा के विरोधी थे।

(4) बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने ईश्वर के प्रति उदासीनता दिखाई।

(5) बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने वर्ण - व्यवस्था का विरोध किया। 

(6) बौद्ध धर्म और जैन धर्म की प्रचार - भाषा जनसाधारण द्वारा बोली जाने वाली पालि/प्राकृत भाषा थी |

(7) बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने अहिंसा पर जोर दिया।

(8) बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार किया।

(9) बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ही कर्म - सिद्धान्त को मानते थे।

(10) बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध आन्दोलन किया।

(11) बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ने संघ-व्यवस्था की स्थापना कर अपने - अपने धर्म का प्रचार किया।

(12) बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुयायी उपासक एवं साध्वी दो भागों में विभक्त थे।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म  में असमानता

(1) बौद्ध धर्म आत्मा को नहीं मानता है परन्तु जैन धर्म आत्मा को मानता है |

(2) जैन धर्म शरीर यातना पर विशेष जोर प्रदान करता है जबकि बौद्ध घर्म विलास और तप के बीच के मध्यम मार्ग को मानता है।

(3) जैन धर्म, बौद्ध धर्म की अपेक्षा अहिंसा पर विशेष बल देता है।

(4) जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध-धर्म में संघ व्यवस्था का विशेष महत्त्व है।

(5) बौद्ध धर्म आत्मा के अस्तित्व के विषय में मौन है जबकि जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व को मानता है।

(6) जैन धर्म का प्रचार मुख्यत: वैश्य जाति में ही हुआ जबकि बौद्ध धर्म जनसाधारण का धर्म बन गया।

(7) जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण अधिक प्राप्त हुआ।

(8) जैन धर्म का प्रचार केवल भारत में हुआ लेकिन बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी हुआ।

 

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