जैन धर्म और उसके सिद्धांत..| Mahavir Swami and his history..|

1.जैन धर्म का इतिहास

सबसे पहले बात करते हैं कि जैन धर्म है या जैन धम्म है अगर आप जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करेंगे तो आपको वहां पर जैन धम्म शब्द लिखा मिलता है परन्तु जैसे ही आप जैन धर्म के संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन करेंगे तो आपको वहां पर जैन धर्म शब्द लिखा मिलता है और जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास कल्पसूत्र ग्रन्थ तथा महावीर स्वामी के बारे में जानकारी भगवती सूत्र में प्रदान की गई है | 

2.जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास 

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए 1.ऋषभदेव या आदिनाथ 2.अजितनाथ 3.संभवनाथ 4.अभिनन्दन नाथ 5.सुमतिनाथ 6.पद्रम प्रभु 7.सुपार्श्व नाथ 8.चन्द्र प्रभु 9.सुविधिनाथ या पुष्प दन्त 10.शीतल नाथ 11.श्रेयांश 12.वासुपूज्य 13.विमलनाथ 14.अनंत नाथ 15.धर्मनाथ 16.शांतिनाथ 17.कुंथ नाथ 18.अर्ह नाथ 19.मल्लि नाथ 20.मुनि सुब्रतनाथ 21.नेमिनाथ 22.अरिष्टनेमि 23.पार्श्वनाथ और 24वे तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए परन्तु इतिहास केवल महावीर स्वामी का ही लिखा गया है क्योंकि अन्य तीर्थंकरों का इतिहास न तो सही से इतिहास मिलता है और न ही पुरातत्व साक्ष्य मिलते हैं |

3.महावीर स्वामी का प्रारम्भिक इतिहास 

महावीर स्वामी का जन्म 599 या 540 ई. पू. में कुण्डग्राम (वैशाली के निकट) विहार में हुआ था | इनके बचपन का नाम वर्द्धमान था और महावीर स्वामी का जन्म ज्ञात्रिक कुल के मुखिया सिद्धार्थ के यहाँ पर हुआ था | महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला या विदेहदत्ता था जो लिच्छवी राजा चेतक की बहिन थीं और महावीर स्वामी का विवाह यशोदा से हुआ था और यशोदा के ही गर्भ से उन्हें एक पुत्री अनोज्या या प्रियदर्शिनी उत्पन्न हुई जिनका विवाह जामिल नामक व्यक्ति से हुआ था |

महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन तथा राज्य के प्रमुख व्यक्तियों से आज्ञा लेकर गृहत्याग किया था और अपनी शिविका में बैठकर धूम-धाम से सेना तथा सवारी के साथ कुण्डग्राम के बीच होते हुए षन्दवन नाम के बगीचे में पहुँचकर अशोक वृक्ष के नीचे रुके और अपने सभी आभूषण उतारकर ढाई दिन तक उपवास किया और अपने बाल नोच करके भिक्षु (सन्यासी) बन गए |

जैन ग्रन्थ आचरांग सूत्र के अनुसार महावीर स्वामी सबसे पहले कुम्भहार गॉंव में पहुंचे और वहीँ पर तप शुरू किया और आरम्भ में 13 महीनों तक वस्त्र पहनते रहे, बाद में वस्त्रों को सुवर्ण-बालुका नदी फेंक दिए | हाथ में भिक्षा पात्र लेकर नग्न अवस्था में घूमने लगे और इस प्रकार उन्होंने अपनी कठोर तपस्या प्रारम्भ की | 6 वर्ष बाद नालंदा गए तो वहां पर मक्खलिपुत्र गोशाल नामक एक सन्यासी से उनकी मुलाकात हुई और कोल्लाग के पास पणित भूमि नामक स्थान पर दोनों ने कठोर तप किया परन्तु कुछ समय बाद दोनों के मध्य मतभेद हो गए तथा एक दूसरे के आलोचक बन गए |

इसके बाद मक्खलिपुत्र गोशाल ने एक सम्प्रदाय की स्थापना की जो आगे चलकर आजीवक-सम्प्रदाय के नाम से विख्यात हुआ और इसका केंद्र श्रावस्ती में था | महावीर स्वामी ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की और हालत इतनी ख़राब हो गई कि छोटे-छोटे कीटाणु उनके शरीर पर रेंगने लगे और 13वे वर्ष उन्हें ज्रम्भिका ग्राम के पास ऋजुपालिका नदी के किनारे शाल वृक्ष (बरगद का पेड़) के नीचे उन्हें कैवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति हुई और तभी से महावीर अर्हत (पूज्य) जिन (विजय) निर्ग्रन्थ (बन्धनहीन) कहलाए |

ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने अपना पहला उपदेश राजगीर (आधुनिक विहार में) में विपुलाचल पहाड़ी पर वाराकर नदी के किनारे प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिया | महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य तथा प्रथम विरोधी उनके दामाद जामिल बने और वैशाली के राजा चेतक जो महावीर स्वामी के मामा थे वो शिष्य बने और चम्पा नगर के राजा दधिवाहन भी शिष्य बने तथा उनकी पुत्री चम्पा या चंदना भी महावीर स्वामी की शिष्या बनी जो प्रथम भिक्षुणी थीं |

महावीर स्वामी ने पावा (आधुनिक पावापुरी, विहार) में सबसे पहले 11 ब्राह्मणों को उनके शिष्यों सहित जैन धर्म ग्रहण करवाया और सभी को 11 गणधरों (समूह) में बाँट दिया तथा प्रत्येक गण (समूह) में एक गणधर (अध्यक्ष) नियुक्त किया | महावीर स्वामी का संघ 4 कोटियों में विभक्त था 1.भिक्षु  2.भिक्षुणी  3.श्रावक  4.श्राविका | प्रथम 2 कोटियाँ जैन साधुओं के लिए तथा शेष 2 कोटियाँ गृहस्थ उपाषकों के लिए हैं  |

4.जैन धर्म के सिद्धांत 

1.जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है |
2.जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है |
3.जैन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है |
4.जैन धर्म कर्मवाद में विश्वास करता है |

5.जैन धर्म के पंच महाव्रत

1.अहिंसा - मन, वचन तथा कर्म किसी भी प्रकार से हिंसा नहीं करनी चाहिए |
2.सत्य - मनुष्य को हमेशा सच तथा मधुर बोलना चाहिए |
3.अस्तेय - बिना अनुमति के किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करना चाहिए और न ही इच्छा करनी चाहिए |
4.अपरिग्रह - किसी भी प्रकार की संपत्ति एकत्रित नहीं करनी चाहिए |
5.ब्रह्मचर्य - किसी भी महिला को देखना तथा वार्तालाप नहीं करना चाहिए |

6.जैन धर्म के त्रिरत्न 

1.सम्यक दर्शन - किसी भी वस्तु या महिला को वास्तविक स्वरुप में देखना ही सम्यक दर्शन है |
2.सम्यक ज्ञान - सच्चा और पूर्ण ज्ञान |
3.सम्यक आचरण - दैनिक जीवन में नैतिक आचरण रखना | 

7.जैन धर्म के 4 शिक्षा व्रत (गृहस्थ व्यक्तियों के लिए)

1.देशविरती - किसी देश/प्रदेश की सीमा से आगे न जाने का व्रत |
2.सामयिक व्रत - दिन में 3 बार सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर ध्यान लगाना |
3.प्रोपोघोपवास - उपवास व्रत रखना |
4.वैया व्रत - दान, पूजा आदि करना चाहिए |

8.जैन धर्म की 5 समितियां (भिक्षुओं के लिए)

1.ईर्या समिति - ऐसे रास्ते से चलना चाहिए जहाँ पर कीट-कीटाणु न मरे |
2.भाषा समिति - भाषण करते समय मधुर तथा प्रिय भाषा बोलना चाहिए |
3.ऐषणा समिति - भोजन द्वारा किसी भी प्रकार के जीव हिंसा नहीं होनी चाहिए |
4.आदान क्षेपणा समिति - किसी भी कीट-पतंग की हिंसा नहीं होनी चाहिए |
5.व्युत्सर्ग समिति - मल-मूत्र करते समय किसी भी कीट-पतंग की हत्या नहीं होनी चाहिए |

9.सल्लेखना विधि

सल्लेखना (स्वेच्छा मृत्यु) द्वारा शरीर को कष्ट देना और बिना कुछ खाए पिए एक ही स्थान पर अपने शरीर को नष्ट कर देने की क्रिया को जैन धर्म में सल्लेखना कहा गया है |

10.महावीर स्वामी की मृत्यु
 
महावीर स्वामी ने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार 30 वर्षों तक किया और 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु 468 ई.पू. या 427 ई.पू. में पावा (आधुनिक पावापुरी, विहार) के मल्लराजा सृस्टिपाल या सृस्तिपाल के महल में हुई थी | 

11.जैन धर्म का विभाजन

महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद सुधर्मन जैन संघ के प्रथम अध्यक्ष बने और सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बू 44 वर्ष तक जैन संघ के अध्यक्ष रहे | अंतिम नन्द राजा के समय में सम्भूति विजय तथा भद्रवाहू, जैन संघ के अध्यक्ष थे तथा सम्भूति विजय की मृत्यु चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण के समय में हुई और सम्भूति विजय के शिष्य स्थूलभद्र थे जो जैन संघ के अध्यक्ष बने | 

अब जैन संघ के दो अध्यक्ष स्थूलभद्र और भद्रवाहू हुए तथा इसी समय मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा जिसके कारण भद्रवाहू अपने शिष्यों सहित चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर्नाटक चले गए परन्तु स्थूलभद्र अपने शिष्यों सहित मगध में ही रुके रहे | भद्रवाहू के वापस लौटने पर मगध के साधुओं से उनका मतभेद हो गया जिसके कारण जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में विभाजित हो गया | स्थूलभद्र के शिष्य श्वेताम्बर कहलाए जो श्वेत वस्त्र धारण करते हैं और भद्रवाहू के शिष्य दिगम्बर कहलाए जो नग्न अवस्था में रहते हैं |   

12.प्रमुख जैन सभाएं 

1.प्रथम जैन सभा - यह सभा चन्द्रगुप्त के शासनकाल में हुई थी जिसकी अध्यक्षता स्थूलभद्र ने की और इस सभा में जैन धर्म के 12 अंगों का संकलन किया गया |

2.द्वितीय जैन सभा - यह सभा वल्लभी गुजरात में हुई थी और इसकी अध्यक्षता देवर्धिगण या क्षमाश्रमण ने की थी और इस सभा में जैन ग्रंथों का अंतिम संकलन किया गया था |

13. जैन धर्म के साहित्य   

जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों को पुव्व कहा जाता है और इनकी संख्या 14 है | जैन साहित्य को आगम (सिद्धांत) कहा जाता है और ये अर्धमागधी, मागधी या प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं और इसके अंतर्गत 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र, 4 मूलसूत्र एवं अनुयोग सूत्र आते हैं |    
        

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