राष्ट्रकूट वंश का इतिहास | Rashtrakuta Vansh Ka Itihas | Rashtrakuta Dynasty History | #1

 

राष्ट्रकूट वंश का परिचय

'राष्ट्रकूट वंश की उत्पत्ति' के संबंध में इतिहासकार एक मत नहीं हैं परन्तु राष्ट्रकूट राजा इन्द्र तृतीय के 'नौसारी अभिलेख' में उन्हें रटठ कुल से सम्बंधित बताया गया है | प्रारम्भिक राष्ट्रकूट राजा वातापी/बादामी के चालुक्य राजाओं के सामंत थे और 735 ई. में चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय के द्वारा दन्तिदुर्ग को सामंत नियुक्त किया गया था | 753 ई. में दन्तिदुर्ग ने चालुक्य वंश के अंतिम राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित करके स्वयं को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया था |

दन्तिदुर्ग के द्वारा ही 'राष्ट्रकूट वंश की स्थापना' की गई थी जिसकी प्रारम्भिक राजधानी मयूरखिड़ी में थी परन्तु बाद में अमोघवर्ष प्रथम ने मान्यखेत (आधुनिक नाम मालखेड़ा, कर्नाटक) को राजधानी बनाया था | राष्ट्रकूट वंश के राजा सनातन जैन और बौद्ध, तीनों धर्मों के अनुयायी थे जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण एलोरा की गुफ़ाओं में देखने को मिलता है और 'राष्ट्रकूट वंश की राजकीय भाषा' कन्नड़ एवं संस्कृत थी | राष्ट्रकूट वंश में कुल 15 राजा हुए जिन्होंने 735 – 982 ई. के मध्य में शासन किया था |

राष्ट्रकूट वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

अभिलेख

1.एलोरा अभिलेख – यह अभिलेख दन्तिदुर्ग का है जिसमें राष्ट्रकूट वंश की स्थापना के सम्बन्ध में जानकारी बताई गई है |

2.सामंतगढ़ लेख – यह अभिलेख भी दन्तिदुर्ग का है जिसमें दन्तिदुर्ग के शासनकाल की प्रारम्भिक जानकारी बताई गई है |

3.बड़ौदा अभिलेख – यह अभिलेख कृष्ण प्रथम का है और इसमें एलोरा के कैलाश मंदिर की सुन्दरता पर चर्चा की गई है |

4.नौसारी अभिलेख – यह अभिलेख इन्द्र तृतीय का है जिसमें राष्ट्रकूट राजाओं को रटठ कुल से सम्बंधित बताया गया है |

साहित्य

1.कविराज मार्ग – इस ग्रन्थ की रचना राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष के द्वारा की गई थी |

2.प्रश्नोत्तर मालिका – इस ग्रन्थ की रचना भी राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष के द्वारा की गई थी |

3.अमोघवृत्ति – इस ग्रन्थ की रचना साक्तायना के द्वारा की गई थी |

4.शांति पुराण – इस ग्रन्थ की रचना कवि पोन्न के द्वारा की गई थी |

5.आदि पुराण – इस ग्रन्थ की रचना जैन आचार्य जिनसेन के द्वारा की गई थी |

6.राजवार्तिक – इस ग्रन्थ की रचना जैन आचार्य अकलंक भट्ट के द्वारा की गई थी |

7.गणितसार संग्रह – इस ग्रन्थ की रचना महावीराचार्य के द्वारा की गई थी |     

दन्तिदुर्ग

*राष्ट्रकूट वंश का पहला स्वतंत्र राजा दन्तिदुर्ग को माना जाता है |

*दन्तिदुर्ग का एक सामंत के रूप शासनकाल 735 – 753 ई. के मध्य में था |

*दन्तिदुर्ग का एक स्वतंत्र राजा के रूप में शासनकाल 753 – 758 ई. के मध्य में था |

*दन्तिदुर्ग के द्वारा ही वातापी/बादामी के अंतिम चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित करके राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की गई थी इसीलिए दन्तिदुर्ग को ही राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक माना जाता है |

*दन्तिदुर्ग को चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय के द्वारा पृथ्वीवल्लभ की उपाधि प्रदान की गई थी |

*दन्तिदुर्ग ने परमभट्टारक, महाराजाधिराज और परमेश्वर की उपाधियाँ धारण की थी |

*दन्तिदुर्ग ने अपनी राजधानी मयूरखिड़ी (महाराष्ट्र में) में बनाई थी |

*दन्तिदुर्ग ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में हिरण्यगर्भ दान महायज्ञ का आयोजन करवाया था जिसे महादान के नाम से भी जाना जाता है |

कृष्ण प्रथम

*कृष्ण प्रथम, दन्तिदुर्ग के उत्तराधिकारी थे |

*कृष्ण प्रथम का शासनकाल संभवता 758 – 773 ई. के मध्य में था |

*कृष्ण प्रथम ने वातापी/बादामी के चालुक्य वंश को पूर्ण रूप से समाप्त करके सारे चालुक्य वंश पर अधिकार कर लिया था |

*कृष्ण प्रथम ने मैसूर के गंग साम्राज्य को भी अपने अधीन कर लिया था |

*कृष्ण प्रथम को राष्ट्रकूट वंश का पहला शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |

*कृष्ण प्रथम के द्वारा 'चाँदी के सिक्के' चलवाए गए थे |

*कृष्ण प्रथम ने राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी |

*कृष्ण प्रथम के दरवार में 'राजवार्तिक ग्रन्थ' के रचयिता जैन आचार्य अकलंक भट्ट रहते थे |

*कृष्ण प्रथम के द्वारा ही एलोरा के प्रसिद्ध 'कैलाश मंदिर' का निर्माण करवाया था |

*'एलोरा की गुफाएँ' आधुनिक महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है जिसमें कुल 34 गुफाएँ हैं | 1-12 तक बौद्ध, 13-29 तक हिन्दू एवं 30-34 तक जैन गुफाएँ हैं और यूनेस्को के द्वारा इन्हें 'विश्व धरोहर स्थल' माना गया है |

गोविन्द द्वितीय

*गोविन्द द्वितीय, कृष्ण प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*'गोविन्द द्वितीय का शासनकाल' संभवता 773 – 780 ई. के मध्य में था |

*गोविन्द द्वितीय ने वेंगी के चालुक्य राजाओं को पराजित किया था |

*धुलिया दानपत्र लेख के अनुसार गोविन्द द्वितीय ने नासिक और खानदेश का शासन अपने छोटे भाई ध्रुव को सौंपा था |

ध्रुव निरुपम

*'ध्रुव का शासनकाल' संभवता 780 – 793 ई. के मध्य में था |

*ध्रुव का उल्लेख 'धुलिया दानपत्र लेख' में किया गया है |

*ध्रुव को 'धारावर्ष' के नाम से भी जाना जाता है |

*ध्रुव ने पल्लव वंश के राजा दन्तिवर्मन, वेंगी के चालुक्य राजा विष्णुवर्धन चतुर्थ, प्रतिहार वंश के राजा वत्सराज और बंगाल के पाल वंशीय राजा धर्मपाल को पराजित किया था |

*ध्रुव ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया था लेकिन 'त्रिपक्षीय संघर्ष' में किसकी जीत हुई थी इस पर इतिहासकार एक मत नहीं हैं क्योंकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि त्रिपक्षीय संघर्ष में ध्रुव की जीत हुई थी परन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है |

*त्रिपक्षीय संघर्ष के बाद कन्नौज पर न तो ध्रुव का अधिकार था और न ही प्रतिहार राजा वत्सराज का अधिकार था इसीलिए निश्चिततौर यह कहा नहीं जा सकता कि त्रिपक्षीय संघर्ष में किसकी जीत हुई थी |

*राधेनपुर ताम्रपत्र लेख के अनुसार ध्रुव के 4 पुत्र स्तम्भ, कर्क, गोविन्द और इन्द्र थे |

गोविन्द तृतीय

*'गोविन्द तृतीय का शासनकाल' संभवता 793 – 814 ई. के मध्य में था |

*गोविन्द तृतीय ने भी अपने पिता की तरह कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया था और इसमें गोविन्द तृतीय की जीत हुई थी |

*गोविन्द तृतीय ने पल्लव, पाण्ड्य, केरल और गंग वंशीय राजाओं को पराजित कर अपने  साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया था |

*गोविन्द तृतीय को राष्ट्रकूट वंश का शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |

अमोघवर्ष प्रथम

*'अमोघवर्ष प्रथम का शासनकाल' संभवता 814 – 878 ई. के मध्य में था |

*अमोघवर्ष प्रथम के द्वारा ही 'मान्यखेत' (आधुनिक नाम मालखेड़ा, कर्नाटक) को बसाया था |

*अमोघवर्ष प्रथम ने अपनी 'राजधानी मान्यखेत' में बनाई थी |

*अमोघवर्ष प्रथम जैन धर्म के अनुयायी थे |

*अमोघवर्ष प्रथम के गुरु जैन आचार्य जिनसेन थे |

*अमोघवर्ष प्रथम के द्वारा कन्नड़ भाषा में 'कविराज मार्ग' एवं प्रश्नोत्तर मालिका ग्रंथ की रचना की थी |

*अमोघवर्ष प्रथम के दरवार में आदि पुराण के रचयिता जिनसेन, अमोघवृत्ति के रचयिता साक्तायना और गणितसार संग्रह के रचयिता महावीराचार्य रहते थे |

*अमोघवर्ष प्रथम ने जल समाधि के द्वारा अपने प्राणों का त्याग किया था |

कृष्ण द्वितीय

*कृष्ण द्वितीय, अमोघवर्ष प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*कृष्ण द्वितीय का शासनकाल संभवता 878 – 914 ई. के मध्य में था |

*कृष्ण द्वितीय का सम्पूर्ण शासनकाल चालुक्य वंशीय राजाओं के साथ संघर्ष में बीता था |

*कृष्ण द्वितीय ने मालवा और काठियावाड़ पर विजय प्राप्त की थी |

*कृष्ण द्वितीय को राष्ट्रकूट वंश का निर्बल राजा माना जाता है |

इन्द्र तृतीय

*इन्द्र तृतीय का शासनकाल संभवता 914 – 927 ई. के मध्य में था |

*इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण करके खूब लूट-पाट मचाई थी |

*इन्द्र तृतीय के शासनकाल में प्रसिद्ध 'अरब यात्री अलमसूदी' ने भारत की यात्रा की थी और उन्होंने अपने लेखों में इन्द्र तृतीय को भारत का सबसे अच्छा राजा बताया है |

*इन्द्र तृतीय के बाद अमोघवर्ष द्वितीय, गोविन्द चतुर्थ और अमोघवर्ष तृतीय राजा हुए परन्तु इनमें से कोई भी राजा शक्तिशाली नहीं हुआ |

कृष्ण तृतीय

*कृष्ण तृतीय का शासनकाल संभवता 939 – 9 67 ई. के मध्य में था |

*कृष्ण तृतीय के द्वारा अकाल वर्ष की उपाधि धारण की गई थी |

*कृष्ण तृतीय ने काँची और तंजौर पर विजय प्राप्त करने के बाद 'तंजयकोण्ड' की उपाधि धारण की थी |

*कृष्ण तृतीय ने चोल वंशीय राजा परान्तक प्रथम को पराजित कर रामेश्वरम में एक सुन्दर मंदिर और एक 'विजय स्तम्भ' का निर्माण करवाया था |

*कृष्ण तृतीय के दरवार में 'शांति पुराण' के रचयिता पोन्न रहते थे |

*कृष्ण तृतीय को राष्ट्रकूट वंश का अंतिम शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |

*कृष्ण तृतीय के बाद खोट्टिग या अमोघवर्ष चतुर्थ राजा हुए जिनका शासनकाल संभवता 967 – 972 ई. के मध्य में था |

कर्क द्वितीय

*कर्क द्वितीय का शासनकाल संभवता 972 – 975 ई. के मध्य में था |

*कर्क द्वितीय एक निर्बल राजा थे और उनके शासनकाल में राष्ट्रकूट साम्राज्य बहुत कमजोर हो गया था इसी का फ़ायदा तैलप द्वितीय ने उठाया और  कर्क द्वितीय को पराजित करके 'कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना' की थी |

*'राष्ट्रकूट वंश का अंतिम राजा' इन्द्र चतुर्थ को माना जाता है जिनका शासनकाल संभवता 975 – 982 ई. के मध्य में था |

राष्ट्रकूट राजा और उनका शासनकाल

दन्तिदुर्ग

735 – 758 ई.

कृष्ण प्रथम

758 – 773 ई.

गोविन्द द्वितीय 

773 – 780 ई.

ध्रुव निरुपम

780 – 793 ई.

गोविन्द तृतीय

793 – 814 ई.

अमोघवर्ष प्रथम

814 – 878 ई.

कृष्ण द्वितीय

878 – 914 ई.

इन्द्र तृतीय

914 – 927 ई.

गोविन्द चतुर्थ

927 – 936 ई.

अमोघवर्ष तृतीय

936 – 939 ई.

कृष्ण तृतीय

939 – 967 ई.

खोट्टिग

967 – 972 ई.

कर्क द्वितीय

972 – 975 ई. 

इन्द्र चतुर्थ

975 – 982 ई.

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