नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह का इतिहास | नासिर खान का इतिहास | Nasiruddin Khusaro Shah History |

 

ऐतिहासिक तथ्य

तारीख ए फ़िरोजशाही, दिल्ली सल्तनत का इतिहास जानने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है और इस ग्रन्थ की रचना ज़ियाउद्दीन बरनी के द्वारा फ़ारसी भाषा में की गई थी | तारीख ए फ़िरोजशाही में मुबारक शाह खिलज़ी और नासिरुदीन ख़ुसरो शाह के शासनकाल में हुई विशेष घटनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान की गई है |

नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह का इतिहास

*नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह का मूल नाम मुबारक हसन था |

*मुबारक हसन मूल रूप से मालवा की रहने वाली बरादु जाति से सम्बंधित था |

*अलाउद्दीनखिलज़ी ने 1305 में आईन उल मुल्क के नेतृत्व में मालवा को विजित करने के लिए सेना थी और सम्पूर्ण मालवा को विजित कर लिया था |

*उसी दौरान बिरादु जाति के दो प्रख्यात तलवारबाज़ लड़ाकों, हुसामुद्दीन और मुबारक हसन को बंदी बना लिया गया था इसके बाद उन्हें अलाउद्दीन खिलज़ी के सामने उपस्थित किया गया |

*अलाउद्दीनखिलज़ी ने उनकी वीरता और प्रतिभा को देखकर, उन्हें अपनी सेना में उच्च पद प्रदान किया था तथा कुछ समय बाद दोनों भाईयों ने इस्लाम धर्म क़ुबूल कर लिया था |

*ज़ियाउद्दीन बरनी के अनुसार मुबारक शाह खिलज़ी और मुबारक हसन के मध्य शारीरिक सम्बन्ध था क्योंकि मुबारक शाह खिलज़ी खुले दरबार में मुबारक हसन को चुम्बन/आलिंगन करता था |

*मुबारक शाहखिलज़ी ने मुबारक हसन को ख़ुसरो खां की उपाधि प्रदान की थी |

*अप्रैल/जुलाई 1320 में मुबारक हसन उर्फ़ ख़ुसरो खां ने अपने विश्वासपात्र बिरादु सैनिकों के साथ मिलकर मुबारक शाह खिलज़ी की हत्या कर स्वयं को दिल्ली का शासक घोषित कर लिया था |

*मुबारक हसन उर्फ़ ख़ुसरो खां ने नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह की उपाधि धारण कर अप्रैल/जुलाई 1320 में दिल्ली का सिंहासन प्राप्त किया था |

*नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह को भारतीय इतिहास में नासिर खान के नाम से भी जाना जाता है |

*दिल्ली का शासक बनने के बाद नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह ने पैग़म्बर के सेनापति की उपाधि धारण कर सिक्के जारी किए |

*इसके बाद देवल देवी से विवाह किया जो अलाउद्दीन खिलज़ी के पुत्र ख़िज्र खां की बेगम थी |

*देवल देवी गुजरात के बाघेला वंशीय राजा रायकर्ण की पुत्री थी जिसे मलिक काफ़ूर उठा लाया था और बाद में अलाउद्दीन खिलज़ी के कहने पर उसका विवाह ख़िज्र खां के साथ करवा दिया था |

*नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह को सभी सूबेदारों ने अपना शासक स्वीकार किया लेकिन दीपालपुर के सूबेदार मलिक तुगलक उर्फ़ गयासुद्दीन तुगलक ने स्वीकार नहीं किया था |

*मलिक तुगलक उर्फ़ गयासुद्दीन तुगलक ने नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह को इस्लाम का दुश्मन तथा काफ़िर कहा था क्योंकि वह मूल रूप से हिन्दू था |

*मलिक तुगलक उर्फ़ गयासुद्दीन तुग़लक ने नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह को पद से हटाने के लिए एक विशाल सेना बनाई जिसमें तुर्क, मंगोल, रूमी, मेवाती और राजपूत शामिल थे |

*मलिक तुग़लक उर्फ़ गयासुद्दीन तुगलक विशाल सेना लेकर दिल्ली की ओर रवाना हुआ और रास्ते में छोटे - छोटे राज्यों को विजित करता हुआ दिल्ली ने निकट पहुंचा जहाँ पर नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह की सेना भी युद्ध के लिए तैयार थी |

*इसी समय मलिक तुगलक उर्फ़ गयासुद्दीन तुग़लक ने अपने सैनिकों से कहा था - एक काफ़िर हमारा शासक कैसे हो सकता है ‘इस्लाम ख़तरे में है’ |

*5 सितम्बर 1320 को दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह की सेना पराजित हुई और उसे बंदी बनाकर मलिक तुग़लक उर्फ़ गयासुद्दीन तुग़लक के सामने उपस्थित किया गया |

*मलिक तुग़लक उर्फ़ गयासुद्दीन तुग़लक ने नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह की, ठीक उसी प्रकार से हत्या की जिस प्रकार उसने, मुबारक शाह खिलज़ी की हत्या की थी |

*नासिरुद्दीन ख़ुसरो शाह की हत्या के बाद अमीरों के विशेष आग्रह करने पर मलिक तुग़लक ने 8 सितम्बर 1320 को गयासुद्दीन की उपाधि धारण कर दिल्ली का सिंहासन प्राप्त किया था |


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