फाहियान का सम्पूर्ण इतिहास | Complete history of Faxian |

फाहियान कौन थे..?

फाहियान एक चीनी यात्री थे जो बौद्ध धम्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए, गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आए थे वैसे फाहियान का वास्तविक नाम कुंग था परन्तु जब वह बौद्ध साधु बने तब उनका नाम फाहियान रखा गया था जिसका अर्थ धम्म गुरु होता है | चीनी भाषा में फा का अर्थ धम्म और हियान एक बौद्ध सम्प्रदाय का नाम है जिसे कुछ इतिहासकारों ने हीनयान भी लिखा है परन्तु वास्तविक नाम हियान ही है तो फाहियान बौद्ध धम्म के हियान सम्प्रदाय के गुरु थे |

फाहियान ने 399 से 414 ई. के मध्य में भारत की यात्रा की थी परन्तु वह 400 से 411 ई. के मध्य में ही मूल भारत में रहे और उनके साथ चीन के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान हवेकिंग, तावचिंग, हवेयिन और हबेबोई भी आए थे |

फाहियान ने भारत में कहाँ – कहाँ भ्रमण किया..?

फाहियान ने चीन के खोतान तथा पाकिस्तान के स्वात से होते हुए और अफगानिस्तान/पाकिस्तान के मध्य में स्थित गांधार प्रदेश को पार करते हुए, कुषाणों की राजधानी पेशावर पहुंचे जहाँ कनिष्क के द्वारा बनवाए गए प्रसिद्ध बौद्ध विहार के दर्शन किए और इसके बाद आधुनिक भारत के पंजाब होते हुए उत्तर प्रदेश के मथुरा, कन्नौज, श्रावस्ती, काशी, कुशीनगर और विहार के वैशाली, नालंदा, बोधगया, राजगृह, पाटिलपुत्र तथा नेपाल के तराई में स्थित कपिलवस्तु में पहुंचे और बौद्ध धम्म से सम्बंधित जानकारियां एकत्रित कीं |

फाहियान ने अपने लेखों में मध्य भारत की जनता को सबसे सुखी और समृद्ध बताया है | मध्य भारत के लोग लहसुन तथा प्याज का सेवन नहीं करते थे और न ही किसी जीव हत्या करते थे |

फाहियान ने आगे लिखा है प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा का आयोजन होता था जिसके मध्य में एक बड़ा सा रेशम का ध्वज लगाया जाता था जिसके मध्य में बुद्धदेव की मूर्ति होती थी और उनके आस-पास बोधिसत्व की मूर्तियाँ होती थीं |

फाहियान ने पाटिलपुत्र की यात्रा के दौरान वहां पर सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया गया राजमहल देखा और उसी के पास एक महाविहार था जहाँ पर बौद्ध धम्म की महायान शाखा के, एक प्रसिद्ध गुरु ब्राह्मण कुमार को देखा वो उस समय के इतने प्रख्यात विद्वान थे कि उनके सामने कोई खड़ा नहीं रह सकता था और बड़े-बड़े गुरु उनसे वार्तालाप करने से घबराते थे | 

फाहियान ने आगे लिखा है जब सूर्य पश्चिम दिशा की ओर रहता है तो जैन धम्म के देवालय पर बुद्ध देव के महाविहार की छाया पड़ती थी और जब सूर्य पूर्व दिशा में रहता था तब देवालय की छाया बुद्ध देव के महाविहार पर नहीं पड़ती थी |

फाहियान ने जैन धम्म के बारे में लिखा है जैन साधु प्रतिदिन अपने देवालय की साफ सफाई करके पूजा करते थे तथा जैन धम्म देश व्यापी नहीं था |

फाहियान के लेखों के अनुसार समण (बौद्ध गुरु)  और जैन गुरु लोक - परलोक और पूजा पाठ करते समय अपने पूर्व देवों (गुरुओं) को याद करते थे परन्तु किसी ईश्वरीय शक्ति में विश्वास नहीं करते थे और न ही समण और जैन एक दूसरे की आलोचना नहीं करते थे |       

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