हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास...| History of Harappan Civilization or Indus Valley Civilization |


हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता

वैसे तो... सभी भारतीय सभ्यताओं में हड़प्पा सभ्यता, सबसे प्राचीन सभ्यता मानी जाती है और इस सभ्यता के बारे में जानकारी अलेक्ज़ेंडर कनिंघम, जॉन मार्शल, राय बहादुर दया राम साहनी और सर मार्टिमर व्हीलर के द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्टों में मिलती है और उन्हीं रिपोर्टों के आधार पर भारतीय इतिहासकारों ने हड़प्पा सभ्यता के बारे में लिखा है |

हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मेसन के द्वारा प्रदान की गई थी | चार्ल्स मेसन ने हड़प्पा में स्थित टीले की जानकारी अंग्रेज अधिकारियों को प्रदान की | इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जनक अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने 1853 और 1873 में हड़प्पा में स्थित टीले का सर्वेक्षण कराया | 

1921 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल थे उन्होंने 1921-22 में दयाराम साहनी और माधोस्वरूप वत्स को उत्खनन (खुदाई करने) के लिए हड़प्पा भेजा और 1922-23 में राखालदास बनर्जी को मोहनजोदड़ो में उत्खनन कार्य (खुदाई) के लिए भेजा | हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में प्राप्त वस्तुओं के आधार पर ही हड़प्पा सभ्यता की पहली अधिकारिक रिपोर्ट 1931-32 में पेश की गई | 

इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहें या सिन्धु घाटी सभ्यता...? हालाँकि प्रारम्भ में इस सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से ही पुकारा गया था क्योंकि इस सभ्यता के स्थल सिन्धु नहीं के आस-पास स्थित थे परन्तु रंगपुर, लोथल और कालीबंगा जैसे नए स्थलों की खोज हुई जो सिन्धु नदी या उसकी सहायक नदियों के आस-पास नहीं थे इसीलिए विद्वानों ने इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहना ही उचित समझा |

हड़प्पा सभ्यता का समय (काल) इतिहासकारों ने अलग-अलग बताया है परन्तु रेडियोकार्बन पद्धति के आधार पर हड़प्पा सभ्यता का समय 2500 से 1500 ई. पू. के मध्य माना गया है अगर इसके क्षेत्रफल की बात करें तो उत्तर में मांडा (जम्मू-कश्मीर में) से लेकर दक्षिण में दाइमाबाद (उत्तरी महराष्ट्र में) तथा पश्चिम में सुत्कांगेडोर (बलोचिस्तान में) से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक था |

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर  

1.हड़प्पा - इस सभ्यता का खोजा जाने वाला पहला नगर था और यह नगर आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रदेश में स्थित मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के बाएँ तट पर स्थित था | हड़प्पा नगर का उत्खनन कार्य दयाराम साहनी और माधोस्वरूप वत्स ने 1921-22 में किया था और यहाँ से कुछ मुहरें प्राप्त हुईं थीं जिन पर एक सींग वाले पशु का चित्र बना हुआ है | क्षेत्रफल की दृष्टि से हड़प्पा नगर, हड़प्पा सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा नगर था |


2.मोहनजोदड़ो - हड़प्पा सभ्यता का खोजा जाने वाला दूसरा नगर था और यह नगर आधुनिक पाकिस्तान के सिन्ध प्रदेश के लरकाना या ननकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित था | मोहनजोदड़ो का उत्खनन कार्य 1922-23 में राखालदास बनर्जी ने किया था और यहाँ से स्वास्तिक चिन्ह, एक शील पर तीन मुंह वाले देवता की मूर्ति मिली जिसके चारों ओर हाथी, गेंडा, चीता और भेंसा के चित्र बनाए गए हैं | मोहनजोदड़ो से ही एक कांस्य की नाचने वाली महिला (नर्तकी) की मूर्ति मिली और एक अनाज रखने की सबसे बड़ी इमारत (अन्नागार) के साक्ष्य भी मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त हुए हैं जिसमें एक बड़ा सा नहाने का स्थान भी है जिसे इतिहासकारों ने स्नानकुण्ड कहा है | मोहनजोदड़ो, हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था |

3.चन्हुदड़ो - हड़प्पा सभ्यता का यह नगर आधुनिक पाकिस्तान के सिन्ध प्रदेश में सिन्धु नदी के बाएँ तट पर स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य 1931 में  N. G. मजूमदार ने किया था | चन्हुदड़ो से एक मुद्रा प्राप्त हुई जिस पर तीन घड़ियाल तथा दो मछलियों के चित्र बनाए गए थे और चन्हुदड़ो में ही पकी हुई ईंटों से नालियां बनाने के प्रमाण मिलते हैं |

4.कालीबंगा - हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल आधुनिक राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य 1953 में B.B. लाल और B.K. थापर ने किया था | यहाँ से जुते हुए खेत, नक्काशीदार ईंटों, चमकीले पत्थर (शिव लिंग), अग्निकुण्ड, घोड़े के अस्थिपंजर और युग्मित (एक साथ) समाधियों के प्रमाण मिले हैं |

5.लोथल - हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल आधुनिक गुजरात के अहमदाबाद जिले ने भोगवा नदी के किनारे पर स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य 1954 में रंगनाथ राव ने किया था | लोथल से चावल के दाने, गेंहू पीसने वाले दो पाट, 20 समाधियाँ जिसमें कुछ युग्मित समाधियाँ भी थी आदि के प्रमाण मिले हैं और लोथल नगर में घरों के दरवाजे सड़क की ओर खुलते थे |

6.आलमगीरपुर - हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल आधुनिक उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य 1958 में यज्ञदत्त शर्मा ने किया था | आलमगीरपुर से एक नांद पर बुने हुए वस्त्र के चित्र, शंख आदि के प्रमाण मिले हैं |

7.बनमाली - हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल आधुनिक हरियाणा के हिसार जिले में रंगोई नदी के किनारे स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य 1974 में R.S. विष्ट ने किया था | बनमाली से मिट्टी का हल, जौ, आदि  प्राप्त हुए हैं |

8.धौलावीरा - हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल आधुनिक गुजरात के कच्छ जिले में स्थित था और इसके उत्खनन का कार्य रविन्द सिंह विष्ट ने 1990-91 में किया था | धौलावीरा से घोड़े के अवशेष, एक पशु की कांस्य प्रतिमा, एक अभिलेख, खेलने का मैदान, नेवले की मूर्ति, विशाल जलाशय और धौलावीरा के प्रवेश द्वार पर एक साईनबोर्ड भी प्राप्त हुआ है जिस पर लिखे हुए लेखों को अभी तक पढा नहीं जा सका है |    

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन 


कृषि - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त गेंहू, जौ, तिल, सरसों, मटर, तरबूज आदि के दाने प्राप्त हुए हैं इससे यह सिद्ध होता है कि यहाँ पर इनकी अच्छी पैदावार होती थी | 

भोजन - गेंहू, जौ, खजूर, घी, ढूध, दही, भेड़, मुर्गा, मछली, कछुआ, सूअर आदि हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मुख्य भोजन थे | 

पशुपालन - हड़प्पा सभ्यता के लोग कुत्ता, सांड, भेड़, बकरी, हाथी, बैल, भैंस, सूअर, बिल्ली, गधा, ऊंट आदि जानवर पालते थे |

धातुएँ - हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर, लकड़ी, सोना, चाँदी, ताँवा, काँसा, जस्ता आदि का प्रयोग करते थे परन्तु उस समय उन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था |

व्यापार - हड़प्पा सभ्यता के लोग कपड़ा बुनने तथा कातने का काम किया करते थे और व्यापार का काम अफगानिस्तान, तुर्किस्तान, मेसोपोटामिया, खुरासान, ग्रीक आदि देशों में किया करते थे |

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन       

 
आभूषण - हड़प्पा सभ्यता के लोग आभूषण के शौक़ीन थे जिसमें वह अंगूठियाँ, कंठहार, कड़े, करधनी, भुजबंध, पायजेब, बालियाँ आदि पहनते थे |

वेश विन्यास - हड़प्पा सभ्यता के लोग रेशमी और सूती कपड़ों का उपयोग किया करते थे |

गृह पात्र - हड़प्पा सभ्यता के लोग घरेलू वस्तुओं में तसले, लोटे, प्याले, मटके आदि  का उपयोग करते थे |

धार्मिक जीवन - हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती, वृक्ष, पशुओं, सूर्य आदि की पूजा किया करते थे |

हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अंतर 

हड़प्पा सभ्यता
1.हड़प्पा सभ्यता के लोग प्रकृति की पूजा किया करते थे |
2.हड़प्पा सभ्यता के लोग मांस का सेवन किया करते थे |
3.हड़प्पा सभ्यता नगरीय सभ्यता थी |
4.हड़प्पा सभ्यता के लोगों को लोहे का ज्ञान नहीं था |
5. हड़प्पा सभ्यता में मातृसत्ता प्रचलित थी |

वैदिक सभ्यता
1.वैदिक सभ्यता के लोग हवन के माध्यम से इंद्र और अग्नि की पूजा करते थे |
2.वैदिक सभ्यता के लोग मांस का सेवन नहीं करते थे |
3.वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी |
4.वैदिक सभ्यता के लोगों को लोहे का ज्ञान था |
5.वैदिक सभ्यता पितृप्रधान सभ्यता थी |

हड़प्पा सभ्यता का अंत 

हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ इसका उत्तर कोई नहीं दे सकता क्योंकि इतिहासकारों के मत एक नहीं हैं | इतिहासकार तरह - तरह की दलीले देते हैं |
1. जॉन मार्शल और रविन्द्र सिंह विष्ट ने कहा है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत बाड़ से हुआ है |
2.आरेल स्टाइन और अमलानन्द घोष ने कहा है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत जलवायु परिवर्तन से हुआ है |
3.एम. आर. साहनी, जॉर्ज डेल्स, और आर. एल. राइक्स ने कहा है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत भूकम्प से हुआ है |
4.अमेरिकी इतिहासकार केनेडी ने कहा कि हड़प्पा सभ्यता का अंत मलेरिया की महामारी से हुआ था |
5.एम. दिमित्रियेव जो रूस के इतिहासकार थे वो कहते हैं कि हड़प्पा सभ्यता का अन्त गाज (बिजली) गिरने से हुआ था |
6.गार्डन चाइल्ड, मैके, पिग्गट और मार्टिमर व्हीलर ने कहा है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत आर्यों के राजा इंद्र ने किया था क्योंकि ऋग्वेद में इंद्र को पुरन्दर कहा गया और जिसका अर्थ होता है घर और शहरों को उजाड़ने वाला | 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल ने 1931 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने कहा - मोहनजोदड़ो में एक डैडमैंन गली है जिसमें एक खोपड़ी का कंकाल तथा एक वयस्क की छाती का कंकाल, कुछ हाथ की हड्डियाँ प्राप्त हुईं हैं जो बिल्कुल भुरभुरी अवस्था में थी |  [मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन 1931] 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक मार्टिमर व्हीलर ने अपनी रिपोर्ट में कहा - मोहनजोदड़ो के साक्ष्यों में पुरुष, महिलाओं और बच्चों का बड़ी बेरहमी से जनसंहार किया गया था | पुरुष तथा महिलाओं के जो कंकाल प्राप्त हुए हैं उनपर आभूषण भी थे इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी भी पुरुष या महिला की साधारण मृत्यु होने पर उसके साथ आभूषणों को नहीं दफनाया जाता और कुछ कंकालों को कुलहाड़ी जैसे हथियारों से काटा गया था | [हड़प्पा 1946, एंशिएंट इण्डिया (जर्नल) 1947]     
    

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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye

मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu

आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3

सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD