बाबरनामा का परिचय
बाबरनामा
को तुज्क ए बाबरी भी कहा जाता है । तुज्क ए बाबरी का अर्थ 'बाबर के शासनकाल का विवरण' है । तुज्क ए
बाबरी को स्वयं बाबर ने ही चगताई भाषा में लिखा था । तुज्क ए बाबरी का फारसी भाषा
में अनुवाद अकबर के शासनकाल में अब्दुर रहीम खान ए खाना के द्वारा 1589 - 90 के मध्य में किया गया था । तुज्क ए बाबरी की फारसी पांडुलिपियां
ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित रखी हैं । बाबरनामा का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद
विलियम एरस्काइन और जॉन लीडेन ने किया था ।
बाबर का परिचय
*बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483
को आधुनिक उज्बेकिस्तान के अंदिजान शहर
में हुआ था ।
*बाबर का पूरा
नाम जहीर उद्दीन मुहम्मद बाबर था ।
*बाबर के पिता का
नाम उमर शेख मिर्जा था ।
*बाबर की माता का
नाम कुतलुग निगार खानम था ।
*बाबर
की बेगम – आयशा सुल्तान बेगम, ज़ैनब सुल्तान बेगम, माहेम बेगम, मासूमा सुल्तान
बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, अफगान अगाचा, बीबी मुबारिका यूसुफजई | दो दासिया जिन्हें
बाबर ने बेगमों का दर्जा दे रखा था | गुलनार अगाचा, नारगुल अगाचा |
*बाबर
के पुत्र/पुत्रियाँ - माहेम बेगम से हुमायूँ का जन्म हुआ | गुलरुख बेगम से कामरान
और असकरी का जन्म हुआ | दिलदार बेगम से हिन्दाल और गुलबदन का जन्म हुआ |
बाबरनामा का विवरण
फरगाना
का देश छोटा सा ही है । इसके उत्तर, पूर्व और दक्षिण में सुंदर पहाड़ियां ही पहाड़ियां हैं । जून 1494 (हिजरी सन 899
रमजान का महीना) में मेरे पिता कबूतरों
को दाना डाल रहे थे । उसी समय अचानक पूरा कबूतर खाना उनके ऊपर आ गिरा । इसी
दुर्घटना में वह चल बसे, जिस समय मेरे पिता दुखद का इंतकाल हुआ । मैं उस समय अंदिजान के
चारबाग में था । यह समाचार मुझे अंधिजान में ही मिला । मैं घबराकर घोड़े पर सवार
हुआ और किले की ओर चल पड़ा । मेरे पिता की मां शाह सुल्तान बेगम सहित सभी अमीरों
ने रस्में अदा कीं ।
मेरे
पिता उमर शेख मिर्जा बड़े ही दयावान,
उदार तथा दानी थे । उनका चेहरा चपटा सा
था । घनी दाढ़ी, बदन मोटा और भारी था । तीरंदाजी में वह ज्यादा अच्छे न थे, पर वह घूंसा बहुत अच्छा मारते थे । उनके पांच बेटियां और तीन
बेटे थे । बेटों में सबसे बड़ा मैं जहीरूद्दीन बाबर, मेरी मां का नाम
कुतलुग निगार खानम । जून 1494
(हिजरी सन 899 रमजान का महीना) में फरगाना का बादशाह बना | उस समय मेरी उम्र 12 वर्ष थी । समरकंद में उस समय मेरे पिता के बड़े भाई सुल्तान अहमद
मिर्जा का शासन था । मेरे मामा सुल्तान महमूद खां मंगोलों के खान थे, उनका राज्य उत्तर की ओर था । दोनों से मेरे पिता उमर शेख मिर्जा
के रिश्ते खराब थे । मेरे पहले शिक्षक शेख मजीद हुए । उनके कायदे कानून बहुत अच्छे
थे, पर बड़े ही लंपट थे । उन्हें लौंडा/लौंडियां रखने का बहुत शौक
था, जिनकी उम्र 12 से 18 वर्ष के बीच होती थी । मेरे दूसरे शिक्षक बाबा कुली बेग हुए ।
उनका सैन्य संगठन बहुत ही अच्छा था । ना तो वह नमाज पढ़ते थे | ना ही वह रोजा रखते
थे, बिल्कुल काफिर जैसे आदमी थे । शेख मजीद के इंतकाल के बाद ही वह
मेरे शिक्षक हुए ।
बाबर की समरकंद विजय
समरकंद
के पास पहुंचने पर हम मैदान वाले बाग में उतरे । समरकंद के लोगों में डर, भय का
माहौल था । कुछ दिनों तक घेरा डाले रहे,
पर कोई नतीजा न निकला । मैंने हुकुम
दिया कि जो सेना मौजूद है तैयार हो जाए । आन की आन मैंने उतनी ही सेना लेकर, दोनों
तरफ से हमला कर दिया । अल्लाह ताला ने मेरा मंसूबा पूरा किया । बैरियों की बुरी
हार हुई, उनके अच्छे-अच्छे अमीर तथा सिपाही पकड़ लिए गए । समरकंद वालों
की इतनी बुरी हार हुई कि उनका शहर में निकलना भी बंद हो गया । जिस समय मैंने
समरकंद पर विजय प्राप्त की, उस समय मेरी उम्र कुल 19 बरस थी । लड़ाई
- भिड़ाई का मुझे ज्यादा ज्ञान न था । बायसुंगर मिर्जा के भागने का समाचार मिलते
ही मैंने समरकंद के अंदर कूच किया ।
रास्ते
भर स्वागत के लिए बड़े बड़े अमीर, शहर के बड़े लोग तथा सिपाही लगातार आते रहे । अल्लाह की इनायत
से मैंने समरकंद और उसके अधीन सभी परगने जीत लिए । पूरी दुनिया में समरकंद जितना
अच्छा और आनंद प्रदान करने वाला कोई शहर न होगा । समरकंद और उसके आसपास में अमीर
तैमूर के द्वारा बनवाई गई इमारतें और बाग बहुत हैं । अमीर तैमूर के द्वारा बनवाया
गया 4 मंजिला महल है, जो गोक सराय के नाम से मशहूर है । आहिनी दरवाजे के पास ही एक
शाही मस्जिद है, जो पूरी पत्थर से बनी है । शाही मस्जिद को हिंदुस्तानी कारीगरों
ने बनाया है, जिन्हें अमीर तैमूर हिंदुस्तान से अपने साथ लाए थे । समरकंद के
पूरब में अमीर तैमूर के द्वारा बनवाए गए दो सुंदर बाग हैं । एक समरकंद से कुछ दूर
है जिसका नाम बूलदी है ।
दूसरा
समरकंद के पास ही है जिसका नाम दिलकुशा है । दिलकुशा बाग में ही एक महल है, जिसमें अमीर तैमूर की हिंदुस्तान को जीतने वाली तस्वीरें बनाई
गई हैं । समरकंद का कागज पूरी दुनिया में जाता है । समरकंद की बढ़िया पैदावारों
में मखमल है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है । समरकंद के कई परगने हैं । सबसे बड़ा
परगना बुखारा है । बुखारा का आड़ू बहुत मशहूर है । बुखारा के जैसा आड़ू पूरी
दुनिया में कहीं न होता है । आड़ू कब्ज के लिए बहुत ही फायदेमंद दवा है । बुखारा
की शराब बहुत तेज है । ऐसी शराब कहीं और न मिलती है । जिस दिन मैंने समरकंद पर
विजय पाई, बुखारा की शराब का खूब आनंद लिया । समरकंद की गद्दी पर बैठते ही
मैं वहां के अमीरों के साथ वही रिआयतें करने लगा जो मुझसे पहले उन्हें मिलती थीं ।
कुछ दिनों के बाद मैं समरकंद से अंदिजान गया ।
अंदिजान का विवरण
उन्हीं
दिनों आयशा सुल्तान बेगम अंदिजान आईं । वह मेरे चचा अहमद मिर्जा की बेटी है । मेरे
पिता और चचा के जीते जी ही, उससे मेरी मंगनी हो गई थी । नई-नई शादी हुई तो शुरू शुरू के
दिनों में उससे मुझे बहुत लगाव था । जी चाहता था कि हर घड़ी उसी के पास रहूं । लाज
के मारे पन्द्रह बीस दिनों में उसके पास जा पाता था । बाद में वह न जाने जी से
उतरने लगी, क्योंकि उसके शरीर में अब वो बात न रही । बात यहां तक पहुंच
चुकी थी कि महीने दो, महीने में मेरी मां मुझे बहुत ही धमकाकर, डांट कर बड़ी कठिनाई से उसके पास भेजा करती थी ।
उर्दू
बाजार में उस समय बाबरी नाम का एक लड़का रहता था । हमनामी का यह लगाओ भी क्या लगाओ
निकला, उस लड़के से एक अजीब सा लगाव पैदा हो गया । इससे पहले मैं किसी
पर फिर भी इतना फिदा न हुआ । सच तो यह है कि तब तक किसी से प्यार और मोहब्बत की
बात तक न हुई थी । मैंने दिल्लगी का नाम तक न सुना था । अब हाल यह हुआ कि फारसी
में प्यार के एकाध शेर तक कहने लगा ।
"उस हसीन चेहरे पर हुआ फिदा, मैं अपनी खुदी भी खो बैठा" ।
मेरा हाल ऐसा हो गया था कि अगर बाबरी मेरे सामने आ जाता था, तो लाज और शर्म के मारे मैं उसकी ओर आंख भरके देख भी न सकता था
। आशिकी और दीवानगी के उन्हीं दिनों में एक बार ऐसा हुआ कि मैं अपने निजी सेवकों के
साथ किसी गली से चला जा रहा था कि अचानक बाबरी मेरे सामने आ गया । उस समय मेरी
अजीब हालत हो गई, उसकी तरफ आंख उठाकर देखना या बात करना बिल्कुल मुमकिन न था ।
मेरे मुंह से एक भी बोल न निकला, बहुत घबराहट के साथ आगे बढ़ गया ।
बाबर का हिंदुस्तान पर आक्रमण
काबुल
पर विजय प्राप्त करने के बाद हिंदुस्तान को जीतने की धुन मेरे ऊपर सवार हो गई थी ।
उस समय बहीरा (कराची के पास) हिंदुस्तान का द्वार था । पास में ही था । सोचा, चलो अकेले ही, उखाड़ फेंके, शायद कुछ हाथ आ जाए । हिंदुस्तान आने पर देखा कि जट और गुजुर
जंगलों तथा पहाड़ों से झुंड के झुंड उतरकर मवेशी लूटते हैं । जिनके मवेशी लुटते थे, वे भूखे नंगे गुहार मचाते मेरे पास आए । मैंने लुटेरों की टोह
ली | कुछ लुटेरों को पकड़कर बोटी बोटी कटवा दी । आगे चल कर हम रोपड़ पहुंचे । वहां
पर इतना पानी बरसा और ऐसी सर्दी पड़ी कि झुंड के झुंड भूखे नंगे हिंदुस्तानी ठंड
से मर गए । रोपण से हम सरहिंद के पास एक झील पर पहुंचे । सुल्तान इबराहीम की ओर से
एक हिंदू सुल्तान मेरे पास आया, परंतु उसके पास कोई चिट्ठी न थी । फिर उसे मैं एलची (दूत) कैसे
मान लेता? अपना एक दूत दिल्ली भेजने के लिए वह मेरे सामने बहुत गिढ गिढाया
। मैंने उस पर तरस खाकर अपना एक दूत दिल्ली भेज दिया, पर इबराहीम ने
उसे पकड़ कर बंद कर दिया । बेचारे को इबराहीम के हारने तक वहीं पर बंद रहना पड़ा ।
पानीपत का विवरण
मास
के आखिरी दिन हम पानीपत पहुंचे । पूरे शहर को दाएं रखा । बाएं तरफ गहरी खाइयां खोद
दी गईं । उनके अंदर कांटे भर दिए गए । मेरी सेना में लगभग 10 हजार लश्कर थे । बैरी की सेना 1 लाख थी । मेरी
सेना के कुछ बेग, बैरी के लश्कर को देखकर डर गए । पर यह बेहूदा बात थी । अल्लाह जो
करेगा वही होगा । हिंदुस्तान में चलन है कि युद्ध के समय सैनिक किराए पर रख लिए
जाते हैं । युद्ध खत्म होने के बाद अपने घर चले जाते हैं । इबराहीम की सेना में
अनेक हिंदू सरदार थे । पर कुछ काम के न थे । जब हम पानीपत में खाइयां खोद रहे थे, तब वह मेरे ऊपर हमला कर सकते थे ।
हमला
न करना उनके लिए बहुत ही बुरा साबित हुआ । कोई भी जानकार लड़वैया इतनी बड़ी चूक न
करता । मैं समझ गया बैरी को युद्ध कला की समझ न है । हमारी नाकेबंदी देखकर वे समझ गए कि ये जीने मरने की ठान बैठे
हैं । पानीपत में हम सात आठ दिन रहे । मेरे थोड़े-थोड़े सैनिक रात को बैरी की
छावनी तक चले जाते थे । उनके कितने सैनिकों के सिर उतार लाते थे । ऐसा न समझ सुल्तान
पूरी दुनिया में न होगा । सवेरे सवेरे बैरी नगाड़े बजाते हुए हाथियों पर सवार होकर
निकले । हम भी लैस होकर सवार हुए । दरवेश मुहम्मद सरवानी की सलाह पर मैंने सेना को
चार भागों में बांटा ।
पहली
सेना में हुमायूं मिर्जा, मुहम्मद दूलदाई, वली खाजिन, हिंदू बेग, पीर कुली बेग । दूसरी सेना में ख्वाजां कलां, सुल्तान मिर्जा, आदिल सुल्तान, मेहंदी ख्वाजा, अमीर हुसैन । तीसरी सेना में शाह मुहम्मद, जुनेद बिरलास, कुतलुग कदम, मुहम्मद बख्श, जानी बेग । चौथी सेना में मंगोल गानची, मिर्जा बेग, अब्दुल अजीज, बाबा कशका, मलिक कासिम । कुछ लश्कर के साथ मैं और दरवेश मुहम्मद सरवानी थे ।
मैंने सभी बेगों को हुकुम दिया कि तुलगमा से बैरी पर हमला करो । हमारे लश्करों ने
बैरी सेना पर तीरों की बौछार कर दी । मेहंदी ख्वाजा बैरी की ओर आगे बढ़ा तो उस पर
कुछ बैरी हाथी लेकर चढ दौड़े । पर मेहंदी ख्वाजा ने तीरों से हाथी का मुंह तोड़
दिया ।
उस्ताद
अली कुली और मुस्तफा तवाची की गोलाबारी ने बैरी के खेमे में हड़कंप मचा दिया । तब
तक हमारे लश्करों ने बैरी को चारों ओर से घेर लिया । फिर तलवारें सूत ली गईं और
लड़ाई गरमा गई । दोपहर तक लड़ाई का घमासान ऐसा चला कि धूल के बादलों से निकट खड़े
हाथी भी दिखाई न दे रहे थे । दिन ढलना भी शुरु न हुआ था कि बैरी को बुरी तरह कुचल
दिया गया । अल्लाह ताला की मेहरबानी से काम आसान हो गया । बैरी के अनगिनत लश्कर ढेर
होते गए । पांच छः हजार बैरी लश्करों का ढेर तो मेरे पास ही लगा था । हर कहीं
लाशों के टीले ही टीले नजर आ रहे थे । बैरियों के छोटे-बड़े सरदार पकड़ लिए गए ।
मैं
इबराहीम की छावनी में गया । उसके तंबुओं में झांका, पर उसका कहीं
ठिकाना न मिला । तभी तबरेज ताहिरी ने लाशों के किसी ढेर से इबराहीम की लाश पहचानी
। उसका सिर काट कर मेरे पास लाया । मैंने इबराहीम का सिर उठाकर कहा "तुम्हारे साहस का उचित सम्मान होगा" ।
फौरन कफन मंगवाया । दिलावर खां के हाथों से नहलवाया । हुकुम दिया कि लाश जहां पड़ी
है वहीं कब्र बनाओ । उसी दिन मैंने हुमायूं को आगरा के खजाने पर कब्जा करने का
हुक्म दिया । कुछ बैगों को दिल्ली के खजाने पर कब्जा करने के लिए भेजा । फिर दो
पड़ाव चलकर हम दिल्ली पहुंचे ।
हजरत
शेख निजामुद्दीन औलिया के मजार की जियारत करके हम किले की सैर पर निकले । पूरी रात
वहीं बिताई । अगले दिन सुल्तान गयासुद्दीन बलबन, सुल्तान
अलाउद्दीन खिलजी, सुल्तान बहलोल, सुल्तान सिकंदर के बनवाए सभी इमारतों की सैर की
। जामा मस्जिद में मेरे नाम का खुत्वा पढ़ा गया । सनीचर को मैं आगरा के लिए कूच कर
गया । हुमायूं मिर्जा के आगरा पहुंचने पर शहर वालों ने किला सौंपने के
लिए हीले हवाले किए । ग्वालियर का राजा विक्रमाजीत हिंदू था । उसके बाल बच्चे आगरा
में ही थे । हुमायूं के आगरा पहुंचने पर वे भागने का विचार कर रहे थे, पर रोक लिए गए ।
हुमायूं
को उन्होंने अपनी खुशी से एक बड़ा खजाना दिया । जिसमें वह मशहूर हीरा भी था, जो सुल्तान अलाउद्दीन किसी हिंदू राजा से लाया था । मेरे आगरा पहुंचने
पर हुमायूं ने वह हीरा पेश किया । पर मैंने हुमायूं को ही वापस दे दिया । मैंने इबराहीम
की बुढ़िया मां को आगरा से कोस भर दूर 7
लाख का एक परगना दिया । उसके पुराने नौकर
भी उसके साथ रख दिए । सनीचर 30 रजब (12 मई 1526)
को खजाने का बंटवारा हुआ । हुमायूं को 7 लाख और एक बिना जांच के पूरा खजाना दिया गया । सभी बेगों को 10 - 10 लाख । लश्करों को 6
- 6 लाख । कामरान को 70 लाख । मुहम्मद जमान मिर्जा को 15 लाख । समरकंद, खुरासान, काबुल, कंधार में छोटे से छोटे बच्चों तक को सोने चांदी के ढेर दिए गए
। मक्का और मदीना को भी अकूत सोने चांदी के ढेर भेजे गए । काबुल, कंधार, खुरासान, समरकंद,
अंदिजान, बुखारा के सभी शेखों को 10
- 10 लाख भेजे ।
हिंदुस्तान का विवरण
हिंदुस्तान
बहुत लंबा चौड़ा मुल्क है । आबादी भी बहुत है । सारे हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली
है । इन दिनों यहां 5 मुसलमान पादशाह और दो काफिर हैं । इनका सब ओर मान सम्मान है । पहाड़ों
और जंगलों में बहुत से राजा हैं, पर उनका मान सम्मान न है । पूरे हिंदुस्तान में इन्हीं सात की
चलती है । पहला जौनपुर का सुल्तान । दूसरा गुजरात का मुहम्मद मुजफ्फर । तीसरा
दक्खन का बहमनी । चौथा मालवा का सुल्तान महमूद जिसे राणा सांगा ने हरा दिया ।
पांचवा बंगाल का नुसरत शाह । काफिरों में बीजानगर का राजा । दूसरा चित्तौड़ का राणा सांगा । हिंदुस्तान
कमाल का मुल्क है । दूसरी की दुनिया है । शहर और देहात बहुत फीके हैं । बहता पानी
न होने से शहर और देहात के लोग कुओं और बावड़ियों या बरसात के पानी से काम चलाते
हैं । हिंदुस्तान का पुराने से पुराना शहर एक डेढ़ दिन में उजड़ जाता है ।
हिंदू
कुछ समय में ही किसी भी स्थान पर झोपड़ियां बनाकर बस्ती बसा लेते हैं । देखते ही
देखते वह एक शहर बन जाता है । हिंदुस्तान में हाथी बहुत मशहूर जानवर है । कालपी के
आसपास मिलता है । जितना पूरब में जाओगे उतना ही और मिलेगा । कड़ा मानिकपुर के
आसपास चालीस पचास गांवों का काम तो बस हाथी को पकड़ना ही है । हाथी लश्कर में
शामिल किए जाते हैं, इसीलिए हिंदुस्तान में उनका बहुत मोल है । हिंदुस्तान
में तीन मौसम है । गर्मी के 4 महीने चैत, बैसाख, जेठ, असाढ । बरसात के 4 महीने साउन, भादों, क्वांर, कातिक । जाड़े के 4 महीने अगहन, पूस, माहों, फागुन । हिंदुस्तानी बुत की पूजा करते हैं । जोगी सिर और
दाढ़ी के बाल मुड़वाते हैं । हिंदू सिर और दाढ़ी के बाल बड़े रखते हैं ।
हिंदुस्तानी देखने में अच्छे न हैं । न मिलने जुलने में अच्छे हैं । किसान और मजूर
तो लगभग नंगे ही डोलते रहते हैं । बस थोड़ा सा एक कपड़ा नीचे रख लेते हैं ।
हिंदुस्तान की अच्छाइयों में एक यहां पर सोना चांदी बहुत है । दूसरा मुल्क लंबा
चौड़ा है ।
इबराहीम की माँ का षड्यंत्र
इबराहीम की मां बदनसीब बुढ़िया ने सुना कि मैं हिंदुस्तानियों के हाथ का खाना खाने लगा हूं तो बावर्चियों को 4 परगने का लालच देकर मेरे खाने में जहर मिलवा दिया । मैंने खाना खाया तो अलग ही स्वाद लगा । जी मचलने लगा । सिर फिरने लगा । थोड़ी ही देर बाद उल्टी होने लगी । मैंने खाने की जांच का हुक्म दिया । सभी बावर्चियों को बुलाया । डर के मारे एक बावर्ची ने सारा राज खोल दिया । सोमवार को दरबार था । सभी बावर्चियों को पेश किया गया । एक औरत को हाथी से कुचलने का हुक्म दिया । दूसरी औरत को बारूद से उड़ाने का हुक्म दिया । बाकि बचे, बावर्चियों की जीते जी खाल खिंचवा ली गई । अल्लाह ताला ने दोबारा जीना इनायत किया । मानो, मैं फिर से मां के पेट से पैदा हुआ ।
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यह Post केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टी से लिखा गया है ....इस Post में दी गई जानकारी, भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त [CLASS 6 से M.A. तक की] पुस्तकों से ली गई है ..| कृपया Comment box में कोई भी Link न डालें.
प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD