यवन राजा मिनांडर को नागसेन ने शास्त्रार्थ में कैसे पराजित किया था | Minander and Nagasena |

 

मिलिंदपन्हो ग्रंथ

*मिलिंदपन्हो मूल रूप से पाली भाषा में लिखा गया एक प्रसिद्ध ग्रंथ था, परंतु इसके लेखक के बारे में चर्चा नहीं की गई है । पाली साहित्य में मिलिंदपन्हो ग्रंथ को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है । इस ग्रंथ की एक प्रति चीन के तीर्थयात्री अपने यहां ले गए थे । मिलिंदपन्हो ग्रंथ का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया । 1937 में पाली भाषा से हिंदी में अनुवाद जगदीश कश्यप के द्वारा किया गया था ।

मिनांडर का इतिहास

*नाम - मिनांडर, मिलिंद, मनेंदर, मनेन्द्रस आदि

*जन्म - बगराम (आधुनिक अफगानिस्तान की परवान प्रांत में)

*वंश का नाम - डेमेट्रियस वंश

*पिता का नाम - डेमेट्रियस द्वितीय जो बैक्ट्रिया और अराकोशिया के राजा थे।

*जीवनसाथी - यवन राजकुमारी अगाथोकि्लया ।

*उत्तराधिकारी - स्ट्रेटो प्रथम ।

*शासनकाल - संभवतः 160 - 130 ईसा पूर्व ।

*राजधानी - साकल या सगाला (आधुनिक पाकिस्तान का सियालकोट) और दूसरी राजधानी अफगानिस्तान के बल्ख में थी ।

*मिनांडर का साम्राज्य इंडो ग्रीक साम्राज्य के नाम से जाना जाता है, जिसकी सीमाएं संभवतः आमू दरिया से लेकर गंगा/यमुना तक थीं ।

*मिनांडर को एशिया का संरक्षक भी कहा जाता है ।

*मिनांडर को योग, न्याय, गणित, संगीत, चिकित्सा, इतिहास, ज्योतिष, तर्क आदि का अच्छा ज्ञान था ।

*मिनांडर को शास्त्रार्थ करना अत्यधिक पसंद था । मिनांडर ने अनेक भारतीय साधुओं को शास्त्रार्थ में पराजित किया था । साधु, संत मिनांडर से बहुत घबराते थे ।

*किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा लिखी गई पुस्तक पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी में भी मिनांडर का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि यवन राजा मिनांडर के सिक्के भड़ौच (गुजरात में) के बाजार में खूब चलते थे । पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी का लेखक 80 . के आसपास हिंद महासागर की यात्रा पर आया था ।

*मिनांडर के अभी तक 22 सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिसमें 8 सिक्के ऐसे हैं । उनमें मिनांडर की शक्ल भी है । मिनांडर के सिक्कों में एक तरफ ग्रीक भाषा में Basileos Soteros Menadrou और दूसरी तरफ पाली भाषा में महरजस तदतस मेनंद लिखा हुआ है ।

*मिनांडर के कुछ सिक्के ऐसे प्राप्त हुए हैं जो अन्य सिक्कों से बहुत अलग हैं, जिन पर बौद्ध धर्म का प्रधान चिन्ह धर्मचक्र बना हुआ है । एक तरफ ग्रीक भाषा में Basileos Dikaiou Menadrou और दूसरी तरफ पाली भाषा में महरजस धम्मिकस मनेन्दस लिखा हुआ है । मिनांडर के इन्हीं सिक्कों से उसके बौद्ध धर्मी होने का पता चलता है ।

*पाली ग्रंथ मिलिंदपन्हो में लिखा है कि यवन राजा मिनांडर ने अपने अंतिम समय में राजसत्ता का त्याग करके बौद्ध भिक्खू का जीवन व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया था ।

*ग्रीक दार्शनिक और इतिहासकार प्लूटार्क ने लिखा है कि मिनांडर न्यायप्रिय, विद्वान और जनप्रिय राजा था । मिनांडर की मृत्यु के बाद उसके अवशेषों पर बड़े-बड़े स्तूपों का निर्माण करवाया गया था ।

*मिनांडर की मृत्यु संभवतः 130 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी ।

नागसेन का इतिहास

*नागसेन का जन्म संभवतः पंजाब के कजंगल गांव में हुआ था, परंतु मान्यताओं के अनुसार नागसेन का जन्म हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे किसी में हुआ था ।

*नागसेन के पिता का नाम सोनुत्तर था जो एक किसान थे ।

*नागसेन को पंच विधा का अच्छा ज्ञान था ।

*नागसेन के पहले गुरु भदंत रोहन थे, जिनके साथ वह हिमालय के रक्षित तल नामक स्थान पर गए । जहां पर उन्होंने त्रिपिटक का ज्ञान प्राप्त किया ।

*नागसेन भदंत रोहन से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, भदंत अश्व गुप्त के पास गए । भदंत अश्व गुप्त नागसेन से बहुत प्रभावित हुए, और उन्होंने नागसेन को पाटलिपुत्र के अशोकाराम विहार के प्रमुख आचार्य धर्मरक्षित के पास भेज दिया था ।

*नागसेन की बाकी शिक्षा भदंत धर्मरक्षित के नेतृत्व में पाटलिपुत्र के अशोकाराम विहार में ही पूरी हुई थी।

*नागसेन जब पाटलिपुत्र की अशोकाराम विहार में थे, तभी उन्हें मिनांडर से शास्त्रार्थ के लिए पंजाब से बुलावा आया था ।

*नागसेन ने संघ के सभी प्रमुख आचार्यों से अनुमति ली और सागल/सियालकोट के संखेय मठ पहुंचे । जैसे ही सागल नगर के लोगों को पता चला कि नागसेन राजा मिनांडर से शास्त्रार्थ करने हेतु आए हैं । पूरे नगर में हड़कंप मच गया, इसकी सूचना राजा मिनांडर को हुई और मिनांडर ने अपने विश्वासपात्र मंत्री दमित्री को संखेय मठ भेजा ।

*दमित्री ने नागसेन से पूछा - क्या आप राजा से शास्त्रार्थ करने को तैयार हो ?

*नागसेन ने उत्तर दिया - हां महाराज में तैयार हूं ।

*दूसरे दिन राजा मिनांडर अपने रथ पर सवार होकर, अपने सभी मंत्रियों के साथ संखेय मठ पहुंचे, जहां पर दोनों के मध्य शास्त्रार्थ हुआ ।

मिनांडर और नागसेन का शास्त्रार्थ

*मिनांडर - भंते आपका क्या नाम है ?

*नागसेन - महाराज मेरा नाम नागसेन है, और मेरे सारथी भी मुझे इसी नाम से पुकारते हैं ।

*मिनांडर - भंते ये नागसेन क्या है ? क्या यह नाखून नागसन है ? क्या आपके दांत, नागसेन है? क्या शरीर की त्वचा, मास, खून, दिमाग यह सब नागसेन है ?

*नागसेन - नहीं महाराज ।

*मिनांडर - भंते तो क्या आपका रूप नागसेन है ?

*नागसेन - नहीं महाराज ।

*मिनांडर - भंते तो क्या आपके संस्कार नागसेन है ?

*नागसेन - नहीं महाराज ।

*मिनांडर - भंते मैं आपसे पूछते - पूछते थक गया हूं, और अभी तक मुझे ये पता नहीं लगा है कि आखिर नागसेन क्या है ?

*नागसेन - महाराज क्या आप पैदल चलकर यहां पर आए हैं ?

*मिनांडर - भंते मैं पैदल नहीं बल्कि रथ से आया हूं ।

*नागसेन - महाराज यदि आप रथ से आए हैं, तो मुझे यह बताएं कि आपका रथ कहां है ? क्या चक्के रथ हैं ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - तो क्या रस्सियां रथ हैं ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - तो क्या लगाम रथ है ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - तो क्या चाबुक रथ है ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - तो क्या घोड़े रथ हैं ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - महाराज मैं आपसे पूछते - पूछते थक गया हूं, परंतु मुझे अभी तक यह पता नहीं चला है कि रथ क्या है ? सभा में उपस्थित सभी लोग सुनें । मैं महाराज से पूछ रहा हूं कि रथ क्या है ? तो महाराज उत्तर नहीं दे पा रहे हैं । महाराज क्या आप मेरे प्रश्न का उत्तर दे पाओगे ?

*मिनांडर - भंते यह सारी चीज है आधार मात्र हैं, केवल व्यवहार के लिए इसका नाम रथ है ।

*नागसेन - महाराज तो आपने जान लिया कि रथ क्या है । इसी तरह मेरे नाखून, दांत, त्वचा, खून इत्यादि आधार पर, केवल व्यवहार के लिए इन सबका नाम नागसेन है, परंतु वास्तव में नागसेन नाम का कोई व्यक्ति नहीं है ।

*मिनांडर - भंते दुनिया में क्या कोई ऐसी चीज है जो मरने के बाद जन्म ग्रहण नहीं करती है ?

*नागसेन - महाराज कुछ जीव ऐसे हैं जो जन्म ग्रहण करते हैं, और कुछ जीव ऐसे हैं जो जन्म ग्रहण नहीं करते हैं ।

*मिनांडर - भंते कौन से जीव जन्म ग्रहण करते हैं, और कौन से जीव जन्म ग्रहण नहीं करते हैं ?

*नागसेन - महाराज जिन जीवों की इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, वो जन्म ग्रहण करते हैं । जिन जीवों की इच्छाएं अधूरी नहीं रहती हैं वो जन्म ग्रहण नहीं करते हैं ।

*मिनांडर - भंते पवित्र धम्म क्या है ?

*नागसेन - महाराज ब्रम्हचर्य, सील, श्रद्धा, स्मृति और समाधि । यह सभी पवित्र धम्म के मूल आधार हैं, और इनको धारण करना ही पवित्र धर्म है ।

*मिनांडर - भंते आप मरने के बाद जन्म ग्रहण करोगे या नहीं ?

*नागसेन - महाराज मैंने तो पहले ही कह दिया है कि यदि सांसारिक इच्छाओं के साथ मरूंगा तो जन्म ग्रहण करूंगा, अगर सांसारिक इच्छाओं के साथ नहीं मरूंगा तो जन्म ग्रहण नहीं करूंगा ।

*मिनांडर - भंते क्या कारण है कि सभी मनुष्य एक ही तरह के नहीं होते हैं । कुछ मनुष्य कम उम्र में ही मर जाते हैं ? कुछ मनुष्य अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं? कुछ मनुष्य जन्म से ही रोगी होते हैं ? कुछ मनुष्य जन्म से ही निरोगी रहते हैं? कुछ मनुष्य गरीब होते हैं? कुछ मनुष्य अमीर होते हैं? कुछ मनुष्य बेवकूफ होते हैं? और कुछ मनुष्य अत्यधिक विद्वान होते हैं? ऐसा क्यों?

*नागसेन - महाराज क्या कारण है कि जंगल की सभी वनस्पतियां एक समान नहीं होती हैं ? कोई खट्टी हैं? कोई नमकीन हैं? कोई तीखी हैं? कोई अत्याधिक कड़वी हैं? ऐसा क्यों?

*मिनांडर - भंते मैं समझता हूं कि बीज अलग-अलग होने की वजह से ही वनस्पतियां अलग-अलग होती हैं ।

*नागसेन - महाराज इसी तरह सभी व्यक्तियों के कर्म अलग-अलग होते हैं । सभी मनुष्य अपने कर्मों के मालिक हैं । उन्हें अपने कर्मों के अनुसार ही अनेक प्रकार की योनियों में उत्पन्न होना पड़ता है । अपना कर्म ही अपना बंधु है । अपने कर्म से ही लोग ऊंचे और नीचे होते हैं । कोई व्यक्ति अत्यधिक भोग विलास का जीवन जीना शुरु कर दे, तो वह अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है । कोई व्यक्ति बेवजह हत्याएं करना शुरू कर दे तो उसका मन अशांत हो जाता है । प्रत्येक व्यक्ति का अपना कर्म ही निर्धारित करता है कि उसका अगला जन्म कैसा होगा ।

*मिनांडर - भंते क्या आपने भगवान बुद्ध को देखा है ?

*नागसेन - नहीं महाराज ।

*मिनांडर - भंते तो क्या आपके आचार्यों ने भगवान बुद्ध को देखा है ?

*नागसेन - नहीं महाराज ।

*मिनांडर - भंते तब तो भगवान बुद्ध कभी इस संसार में पैदा ही नहीं हुए ?

*नागसेन - महाराज आपने या आपके पिता ने सिंधु नदी को देखा है ?

*मिनांडर - हां भंते ।                     

*नागसेन - महाराज क्या आपने या आपके पिता ने सिंधु नदी का उद्गम स्थल देखा है ?

*मिनांडर - नहीं भंते ।

*नागसेन - महाराज तो क्या सिंधु नदी का कोई उद्गम स्थल नहीं है ?

*मिनांडर - नहीं भंते । सिंधु नदी का उद्गम स्थल जरूर है, क्योंकि सिंधु नदी है तो उसका उदगम भी कहीं ना कहीं होगा ।

*नागसेन - महाराज इसी तरह से मेरे पास जो श्रेष्ठ ज्ञान है, वह भगवान बुद्ध के द्वारा दिया गया है ।

*मिनांडर - भंते क्या भगवान बुद्ध परम श्रेष्ठ हैं ?

*नागसेन - हां महाराज ।

*मिनांडर - भंते भगवान बुद्ध कैसे परम श्रेष्ठ हैं ?

*नागसेन - महाराज जिन व्यक्तियों ने महासमुद्र को नहीं देखा है । क्या वे व्यक्ति यह नहीं जानते हैं कि वह कितना विशाल है, जिसमें अनेक नदियां जाकर समाहित हो जाती है ।

*मिनांडर - हां भंते जरूर जानते हैं ।

*नागसेन - महाराज इसी तरह जो भिक्खू अर्हत को प्राप्त हो गए हैं, वो ये जान सकते हैं कि उनके पास कौन सा ज्ञान है । उनके ज्ञान से भी श्रेष्ठ ज्ञान भगवान बुद्ध के पास रहा होगा । इसीलिए भगवान बुद्ध परम श्रेष्ठ हैं ।

*मिनांडर - भंते समुद्र को समुद्र क्यों कहा जाता है ?

*नागसेन - महाराज समुद्र में नमक और पानी (सम/उदक) की मात्रा बराबर है इसीलिए उसे समुद्र कहा जाता है ।

*मिनांडर - भंते यह समुद्र का पानी इतना खारा क्यों होता है ?

*नागसेन - महाराज अत्यधिक समय तक एक ही जगह पानी भरा रहे तो उसमें खारापन आ जाता है, परंतु समुद्र तो असंख्य वर्षों से भरा है, इसीलिए उसका पानी खारा हो गया है ।

*मिनांडर - भंते तो फिर तालाब का पानी खारा क्यों नहीं होता है ?

*नागसेन - महाराज तालाब समय-समय पर सूखता है, और बारिश आने पर फिर भर जाता है । इसीलिए उसका पानी खारा नहीं होता है ।

*मिनांडर - भंते क्या भगवान बुद्ध का कोई गुरु था ?

*नागसेन - महाराज भगवान बुद्ध के शुरुआत में अनेक गुरु हुए परंतु ज्ञान प्राप्ति के बाद उनका कोई गुरु नहीं हुआ । भगवान बुद्ध ने स्वयं कहा है - ना मेरा कोई गुरु है, ना मेरे समान कोई दूसरा है । देवताओं और मनुष्यों के साथ सारे संसार में मेरा कोई जोड़ नहीं है ।

*मिनांडर - भंते मैंने सुना है अलार कलाम भगवान बुद्ध के गुरु थे ?

*नागसेन - महाराज भगवान बुद्ध ने जब गृह त्याग किया था, तब वह एक साधारण व्यक्ति थे । उस दौरान उन्होंने अलार कलाम से शिक्षा ग्रहण की थी, परंतु अलार कलाम ने कभी भी अपने शिष्यों में उन्हें शामिल नहीं किया था । जब भी वह अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे, तो भगवान बुद्ध को अपने बराबर में बैठते थे । आलार कलाम ने भगवान बुद्ध को कभी अपना शिष्य नहीं माना, बल्कि हमेशा उनके साथ मित्र की तरह व्यवहार किया । भगवान बुद्ध को अलार कलाम से जो ज्ञान प्राप्त हुआ था वह साधारण ज्ञान था | उससे किसी व्यक्ति को बुद्धत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती | बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपने अंदर के ज्ञान को खोजना पड़ता है जो स्वयं भगवान बुद्ध ने खोजा था इसीलिए उनका कोई गुरु नहीं है ।

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