चीनी यात्री इत्सिंग का जीवन परिचय तथा उनकी भारत यात्रा | Itsing history in Hindi |


इत्सिंग का यात्रा विवरण

*इत्सिंग के यात्रा विवरण का सबसे पहले अंग्रेजी में अनुवाद टोक्यो इंपीरियल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जे. तककुसू ने 'ए रिकॉर्ड ऑफ द बुद्धिस्ट रिलिजन' के नाम से किया था । इत्सिंग के यात्रा विवरण का हिंदी में अनुवाद संतराम बीए ने किया था, जिनका जन्म 14 फरवरी 1887 को पंजाब के होशियारपुर में हुआ था ।

इत्सिंग का जीवन परिचय

*इत्सिंग का जन्म 635 . में चीन के चि-लि प्रांत के फन-यांग नामक स्थान पर हुआ था ।

*इत्सिंग सिर्फ 7 वर्ष के थे तभी उन्हें शन-तुंग के एक बौद्ध बिहार में शन-यू और हुई-ह्सी के द्वारा धम्म की शिक्षा दी गई ।

*इत्सिंग जब 12 वर्ष के हुए, तब उनके गुरु शन-यू की मृत्यु हो गई । गुरु की मृत्यु के बाद इत्सिंग अकेले पड़ गए और उन्होंने अपना पूरा ध्यान धार्मिक किताबें पढ़ने में लगाया ।

*14 वर्ष की उम्र में इत्सिंग को प्रव्रज्या (बौद्ध भिक्खू बनना) मिल गई और 18 वर्ष की आयु में इत्सिंग ने पहली बार भारत यात्रा का संकल्प लिया था ।

*37 वर्ष की उम्र, यानि 671 . में इत्सिंग ने चीन से भारत के लिए यात्रा की शुरुआत की थी ।

*इत्सिंग जब चंगगान में थे तो वहीं उन्होंने भारत यात्रा का फैसला किया था, फिर बाद में विचार आया कि एक बार अपने आचार्य हुई हसी से परामर्श कर लिया जाए । इत्सिंग अपने आचार्य के पास गए और कहा - हे पूज्यदेव मेरा संकल्प है कि मैं भारत की यात्रा करूं, मैं आपसे अनुमति लेने आया हूं । इत्सिंग के आचार्य ने उत्तर दिया - तुम्हारे लिए यह अवसर बहुत लाभकारी है, ऐसा अवसर तुम्हें दोबारा नहीं मिलेगा । मैं तुम्हारी इस तीर्थयात्रा से बहुत प्रसन्न हूं । निसंकोच होकर जाओ, क्योंकि धर्म के लिए की गई तुम्हारी यात्रा अवश्य ही सफल होगी ।

*आचार्य की आज्ञा के बाद इत्सिंग अपने पहले गुरु की समाधि पर प्रार्थना करने के लिए गए, और अपनी तीर्थयात्रा के लिए विशेष प्रार्थना की । इत्सिंग ने 671 . में चीन से भारत के लिए अपनी यात्रा की शुरुआत की । एक राजदूत की सहायता से इत्सिंग कंगतुंग नगर पहुंचे, उस समय ईरान, भारत और चीन के मध्य समुद्री जहाज आते जाते थे । इत्सिंग अपनी भारत यात्रा के लिए किसी ईरानी जहाज में बैठ गए । यात्रा के प्रारंभ में ही तेज हवाओं के साथ भारी बारिश होने लगी, और बड़ी-बड़ी लहरें बादलों के समान आकाश से टकरा रही थी ।

*20 दिन की यात्रा के बाद इत्सिंग किसी भोज नामक स्थान पर पहुंचे, और वहां 6 माह तक शब्द विद्या का अध्ययन किया । उस समय वहां के राजा ने इत्सिंग को आश्रय प्रदान किया था । इत्सिंग भोज से मलयू देश गए, जिसे उस समय सिरिभोज के नाम से जाना जाता था । इत्सिंग कुछ समय के लिए सिरिभोज में ठहरे, और वहीं से भारत के लिए यात्रा की शुरुआत की । 10 दिन की यात्रा के बाद इत्सिंग एक ऐसी द्वीप पर पहुंचे, जहां पर लोग नग्न अवस्था में रहते थे ।

*इत्सिंग ने उनके बारे में लिखा है - मनोहर नारियल, केला, बांस और सुपारी के वनों के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । तभी वहां के निवासियों ने मेरे जहाज को आते देखा, वे बड़ी उत्सुकता के साथ अपनी छोटी-छोटी नाव में सवार होकर मेरे जहाज के पास आए । वे सब नारियल, केला, सुपारी और बांस की बनी हुई वस्तुएं बदल बदल करते थे, इसके बदले में, वे व्यापारियों से लोहा ले जाते थे । एक छोटे से लोहे के बदले व्यापारी उनसे 5 या 6 नारियल ऐसे ही ले लेते थे । पुरुष बिल्कुल नग्न रहते थे, और स्त्रियां अपने शरीर के निचले हिस्से को पत्तों से ढके रहती थीं ।

*कभी-कभी व्यापारी उन्हें कपड़े भी देते थे परंतु वह कपड़े नहीं लेते थे । कहते थे, हम उनका प्रयोग नहीं करते हैं । अगर किसी व्यापारी ने उनसे सामान अदल बदल नहीं किया, तो वे जहरीले वाणों से हमला कर देते थे । इत्सिंग नग्न लोगों के द्वीप से उत्तर पश्चिम दिशा में चले और 15 दिन की यात्रा के बाद 673 . में ताम्रलिप्ति (बंगाल) बंदरगाह पर पहुंचे । ताम्रलिप्ति में कुछ दिनों तक इत्सिंग ने ह्वेनसांग के शिष्य के साथ भारतीय भाषा का अध्ययन किया ताकि लोगों से बातचीत करने में आसानी हो । इत्सिंग ने ताम्रलिप्ति से कुछ भारतीय व्यापारियों के साथ महाबोधि विहार के लिए यात्रा शुरू की ।

*10 दिन की यात्रा के बाद रास्ते में एक बड़े पर्वत और कुछ दलदलों का सामना करना पड़ा, जिससे इत्सिंग की तबीयत खराब हो गई । बीमार अवस्था में इत्सिंग को बार-बार विश्राम करना पड़ता था । जब शाम हुई तो कुछ पहाड़ी लुटेरों ने इत्सिंग को पकड़ लिया । लुटेरे जोर-जोर से इत्सिंग पर चिल्लाने लगे । एक-एक करके लुटेरों ने इत्सिंग का अपमान किया । लुटेरों ने इत्सिंग के सभी वस्त्र छीन लिए । उस समय इत्सिंग को लग रहा था कि यह मेरा अंतिम समय है, मैं अपनी तीर्थयात्रा को पूरा नहीं कर पाऊंगा ।

*इत्सिंग को पश्चिम देश के व्यापारियों ने पहले ही बताया था कि तुम जहां जा रहे हो, वहां के जंगलों में लुटेरे रहते हैं, जो गोरे व्यक्तियों को पकड़कर उनकी बलि देते हैं । इत्सिंग के मन में बार-बार ये विचार आ रहा था कि ये सभी लुटेरे मुझे पकड़कर ले जाएंगे और मेरी बलि देंगे, परंतु लुटेरों ने ऐसा नहीं किया । केवल वस्त्र और सामान छीनकर इत्सिंग को जाने दिया । इत्सिंग रात्रि के दूसरे पहर में किसी गांव में पहुंचे, जहां पर कुछ भिक्खुओं ने उन्हें वस्त्र प्रदान किए । सुबह होते ही इत्सिंग उस गांव से उत्तर की ओर प्रस्थान किए और नालंदा पहुंचे ।

*इत्सिंग ने नालंदा विश्वविद्यालय में लगभग 10 वर्षों तक, बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त की । इत्सिंग ने नालंदा से ही कुछ बौद्ध ग्रंथों को प्राप्त किया । नालंदा से इत्सिंग कुशीनगर गए, जहां पर उन्होंने लेटी हुई बुद्ध प्रतिमा की पूजा की, और स्वयं अपने हाथों से प्रतिमा पर चीवर चड़ाया । इत्सिंग ने कुशीनगर से कुछ बौद्ध ग्रंथों को प्राप्त किया, और ताम्रलिप्ति की ओर प्रस्थान किए, परंतु इत्सिंग को रास्ते में लुटेरों का एक बार फिर सामना करना पड़ा । इस बार इत्सिंग लुटेरों को चकमा देने में कामयाब रहे, और अंततः वह ताम्रलिप्ति पहुंचे । ताम्रलिप्ति से जहाज में बैठकर 695 . में इत्सिंग अपने देश चीन पहुंच गए ।

*इत्सिंग भारत से लगभग 5 लाख श्लोकों की पांडुलिपियां अपने साथ चीन ले गए, जिनका बाद में चीनी भाषा में उन्होंने अनुवाद किया था, ताकि चीन का प्रत्येक व्यक्ति बौद्ध धर्म के ज्ञान को जान सके । जिस समय इत्सिंग नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उस समय उन्होंने वहां पर कागज का प्रयोग देखा था । संभवतः 713 ई. में इत्सिंग की मृत्यु हो गई थी |

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