बप्पा रावल का सम्पूर्ण इतिहास | राजस्थान का इतिहास | Bappa Rawal history in hindi |

 

ऐतिहासिक स्त्रोत              

*कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल का उल्लेख किया गया है | कुम्भलगढ़ प्रशस्ति को देवनागरी लिपि और संस्कृत भाषा में लिखा गया है | वर्तमान समय में ये प्रशस्ति उदयपुर के संग्रहालय में रखी है | कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का लेखक महेश भट्ट को माना जाता है | कुम्भलगढ़ राजस्थान के राजसमन्द जिले में है |

*माउन्ट आबू के शिलालेख में भी बप्पा रावल का उल्लेख किया गया है | माउन्ट आबू अरावली की पहाड़ियों में स्थित एक हिल स्टेशन है |

*राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित कीर्ति स्तम्भ, जिसका निर्माण 13वी शताब्दी में जैन व्यापारी जीजा जी काथोड ने करवाया था | उस कीर्ति स्तम्भ में भी बप्पा रावल का वर्णन किया गया है |

*रड़कपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल और कालाभोज को अलग – अलग बताया गया है | रड़कपुर राजस्थान के पाली जिले में है |

ये सिर्फ एक कहानी है इसे इतिहास  न समझें और इस कहानी का उल्लेख कर्नल जेम्स टॉड की बुक में किया गया है | उसी बुक के आधार पर में आपको ये कहानी सुना पढ़ा रहा हूँ |

*म्लेच्छों के आक्रमण से बल्लभीपुर का विनाश हुआ, और उसका राजा सेना के साथ मारा गया था । उसकी बहुत-सी रानियाँ थीं जिसमें रानी पुष्पावती के सिवा, सभी रानियाँ राजा शिलादित्य के साथ सती हो गई थीं । विन्ध्यपर्वत के नीचे की भूमि में चन्द्रावती नाम का एक परमार वंशीय राज्य था, जिसमें वह पैदा हुई थी | राजा शिलादित्य के साथ उसका विवाह हुआ था । राजा शिलादित्य की मृत्यु से कुछ समय पहले से ही रानी पुष्पावती गर्भवती थी | म्लेच्छों के आक्रमण से पहले रानी पुष्पावती अपने पिता के यहाँ चन्द्रावती चली गई थी । जिस दिन राजा शिलादित्य की मृत्यु हुई, रानी पुष्पावती अपने पिता के यहाँ किसी देवी के मन्दिर में पूजा करने गई थी ।

*जब रानी पुष्पावती पूजा करके लौटी तो रास्ते में ही उसने बल्लभीपुर के विनाश, और राजा शिलादित्य के मारे जाने का समाचार सुना, तो रानी को असहनीय पीड़ा पहुंची | उस समय रानी पुष्पावती के साथ अनेक सहेलियाँ थीं उन्होंने रानी सहायता की । रानी पुष्पावती उस समय गर्भवती थीं, इसीलिए वो सती होने का निर्णय न कर सकीं | रानी पुष्पावती तपस्वी जीवन व्यतीत करने के लिये मलिया नाम की एक गुफा में चली गईं । उसी गुफा में रानी पुष्पावती को एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसी मलिया गुफा के पास वीरनगर नाम का एक गाँव था जिसमें कमलावती नाम की एक महिला रहती थी । रानी पुष्पावती ने उस महिला को बुलाया और अपना पुत्र उसे सौंपा दिया |

*रानी पुष्पावती ने उस महिला से कहा, आज से ये पुत्र तुम्हारा है और तुम ही इसकी माँ हो | तुम इसका पालन – पोषण अपना पुत्र समझकर करना, और अच्छी शिक्षा देकर इसका विवाह किसी क्षत्रिय कन्या के साथ कर देना | इसके बाद रानी पुष्पावती ने चिता बनाई और उसमें सती हो गईं । रानी पुष्पावती के सती हो जाने के बाद, कमलावती ने उस बालक का पालन अपना पुत्र समझकर किया । बालक गुफा में पैदा हुआ था और वहां के लोग उस समय गुफा को गुहा कहते थे । इसलिये कमलावती ने उस बालक का नाम गोह रखा दिया था । गोह बचपन से ही चंचल और ढीठ स्वभाव का था, परन्तु बड़े होने पर उसकी ये आदतें बढ़ने लगीं । गोह का मन खेल-कूद और चिड़ियों को पकड़ने में सबसे अधिक लगता था |

*कमलावती के द्वारा गोह को जो शिक्षा दी जाती थी, उसमें उसका मन नहीं लगता था | बचपन से ही गोह का मन खेल-कूद और चिड़ियों को पकड़कर उन्हें जान से मारने में ज्यादा लगता था | गोह जब बड़ा हुआ तो वह जगलों में जाकर शिकार खेलने लगा, पशु–पक्षियों की हत्या करना उसके लिए साधारण सी बात थी | कमलावती उसे रोकने का बहुत प्रयास करती थी, परन्तु कमालवती की सभी बातों को वह नजरअंदाज कर देता था | मेवाड़ के दक्षिण में ईडर नाम का एक भील राजाओं का राज्य था, और उस समय मण्डलीक नाम का राजा वहां पर शासन कर रहा था । गोह ईडर राज्य में रहने वाले भील लोगों के साथ जंगल में घूमा करता था और जंगली जानवरों का शिकार करता था |

*ईडर राज्य के ब्राह्मणों से गोह/गुहादित्य बहुत नफरत करता था | न तो उनके साथ रहना पसन्द करता था और न ही उनसे बात करना पसन्द करता था | गोह/गुहादित्य की भीलों से अच्छी दोस्ती थी और भील उसे बहुत सम्मान देते थे | एक दिन गोह/ गुहादित्य भील लड़कों के साथ खेल रहा था और खेल-खेल में ही सभी लड़कों ने गोह/ गुहादित्य को अपना राजा बनाया | एक लड़के ने अपनी ऊँगली काटकर, अपने खून से गोह/ गुहादित्य का राजतिलक किया | इस घटना की सूचना ईडर राज्य के राजा मंडलीक को मिली, कि भील लड़कों ने अपना राजा गोह/ गुहादित्य को स्वीकार कर लिया है | राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपना पूरा राज्य गोह/ गुहादित्य को सौंप दिया |

*राजा मंडलीक के कई पुत्र थे परन्तु राजा ने उन्हें राज्य की जिम्मेदारी नहीं सौंपी क्योंकि जिसके अन्दर राजा के जैसे गुड़ होते हैं राजा उसी को बनाया जाता है | राजा मंडलीक ने ये सोचकर गोह/गुहादित्य को राजा बनाया था परन्तु गोह/गुहादित्य ने कुछ समय बाद राजा मंडलीक की हत्या कर दी | इस हत्या के पीछे क्या कारण था, उसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता है | गोह/गुहादित्य के वंशज ही गुहिलोत या गोहलोत के नाम से जाने जाते हैं | गोह/गुहादित्य की आठवीं पीढ़ी में नागादित्य नाम का एक राजा हुआ । उसके व्यवहार से भील बहुत परेशान थे | एक दिन जब नागादित्य जंगल में शिकार खेलने गया, तब भीलों ने उसे घेर लिया, और उसकी हत्या करके ईडर राज्य पर अधिकार कर लिया |

*नागादित्य की हत्या के बाद उनके 3 वर्षीय पुत्र बप्पा को उदयपुर से 10 मील उत्तर की तरफ नागेन्द्र/नागदा नामक स्थान पर भेज दिया गया ताकि भील उसकी हत्या न कर दें | उस समय नागदा में बहुत ही सुन्दर – सुन्दर मंदिर थे, जहाँ पर सैकड़ों की संख्या में साधु संत रहते थे और बप्पा का बचपन उन्हीं साधुओं के बीच में बीता था | कथाओं के अनुसार शरद ऋतु के दिनों में झूलों का उत्सव बड़े उत्साह और आनन्द के साथ मनाया जाता था | इस उत्सव में सभी लड़के और लड़कियाँ शामिल होते थे, उन दिनों नागेन्द्र/नागदा में सोलंकी राजा शासन था | उस वर्ष के झूला उत्सव में भाग लेने के लिए राजा की लड़की अपनी अनेक सखियों और सहेलियों के साथ गई थी |

*वहाँ पहुँचने पर मालूम हुआ कि झूला डालने की रस्सी नहीं है, इसलिए अपनी सखियों के साथ राजकुमारी इधर-उधर देखने लगी | उसी समय बप्पा घूमते हुए वहां पर पहुँच गए, राजकुमारी ने बप्पा से झूले के लिए रस्सी लाने को कहा | बप्पा ने उत्तर देते हुए राजकुमारी से कहा - यदि तुम मुझसे विवाह कर लो, तो मैं रस्सी ला दूंगा | वहां पर उपस्थित लड़कियाँ झूलने के लिए बड़ी उत्सुक हो रही थीं | राजकुमारी ने अपनी सखियों की तरफ देखा और सभी ने हँसकर बप्पा की बात को स्वीकार कर लिया | राजकुमारी की सहेलियों ने उसी समय राजकुमारी के दुपट्टे से बप्पा के पहने हुए कपड़ों की गाँठ बाँध दी और सभी लड़कियां एक दूसरे के हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई ।

*जहाँ पर वे खड़ी थीं, बीच में एक आम का पेड़ था | घेरा बनाये हुए लड़कियाँ उस वृक्ष के आस पास घूमने लगीं और राजकुमारी के साथ बप्पा का विवाह हो गया | उसके बाद झूला उत्सव शुरू हुआ और उत्सव के बाद राजकुमारी अपनी सखियों के साथ महल में चली गई | सभी लड़कियाँ बाद में विवाह की इस घटना को भूल गईं । जब राजकुमारी विवाह के योग्य हुई तो राजा ने उसके विवाह की तैयारी शुरू कर दी | इसी अवसर पर राजा ने विवाह दोष की जानकारी के लिए ज्योतिषी को बुलाया | ज्योतिषी ने राजकुमारी का हाथ देखकर बताया कि राजकुमारी का विवाह तो हो चुका है | इस बात को सुनते ही राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ | विवाह के इस रहस्य को जानने के लिए राजा ने अपने गुप्तचरों को आदेश दिया |

 *इसकी सूचना बप्पा को हुई, बप्पा ने सोचा अब यहाँ रहना उचित नहीं है | बप्पा ने अपने सभी साथियों को बुलाया और उनसे बात की | बप्पा अपने मित्र साथियों पर बहुत भरोसा करते थे, इसलिए उनके द्वारा किसी आशंका की सम्भावना नहीं थी, परन्तु फिर भी बप्पा ने उनसे एक प्रतिज्ञा कराने के लिए एक छोटा-सा गड्ढा खोदा और पत्थर का एक टुकड़ा लेकर उन्होंने अपने साथियों से कहा - तुम सभी लोग यह शपथ लो कि सुख-दुःख में तुम लोग मेरे साथ रहोगे | प्राण जाने की घड़ी आ जाने पर भी, तुम लोग मेरी किसी बात को, किसी से भी नहीं कहोगे, लेकिन तुम्हें अन्य लोगों की जो बातें मालूम होंगी, वे तुम सभी मुसे बताओगे । शपथ लेने के बाद भी यदि तुम लोग मेरे साथ विश्वासघात करोगे तो, तुम सभी के पूर्वजों के पुण्य प्रताप इस पत्थर की तरह धोबी के गड्ढे में मिल कर नष्ट हो जायेंगे |

*इतना कह कर बप्पा ने उस पत्थर के टुकड़े को उस गड्ढे में डाल दिया । उसके बाद बप्पा के सभी साथियों ने उनके कहने के अनुसार शपथ ली, और कभी अपनी शपथ के विरुद्ध कोई काम नहीं किया | बप्पा के साथ राजकुमारी के विवाह की बात, राजा को पता चली कि राजकुमारी के विवाह की घटना जिसके साथ हुई है वो बप्पा ही है । इस बात को बप्पा के साथियों ने सुना और बप्पा को पूरा वाक्या सुनाया | बप्पा ने आने वाली विप्पति से पहले ही अपने साथियों के साथ एक गुप्त स्थान पर चले गए | यहीं पर बप्पा को याद आया कि मैंने अपनी माँ से सुना था, कि मैं चित्तौड़ के मौर्य/मोरी वंशीय राजा का भान्जा हूँ | इस आधार पर बप्पा ने चित्तौड़ जाने का विचार किया |

*बप्पा ने अपने सभी साथियों के साथ चित्तौड़ के मौर्य/मोरी वंशीय राजा मानसिंह/मानमोरी के यहाँ शरण ली और राजा को अपना पूरा परिचय दिया | राजा मानसिंह को जब ये पता चला कि बप्पा मेरा भांजा है तो वह बहुत प्रसन्न हुए | राजा मानसिंह ने बप्पा के लिए एक अच्छी जागीर का प्रबंध करके उन्हें उसका सामंत बनाया | उन दिनों राजस्थान में सामन्त प्रथा चल रही थी, जिसके अनुसार युद्ध प्रिय लड़ाकू सरदारों को राज्य की ओर से एक जागीर दी जाती थी | इसके बदले में वे सामंत आवश्यकता पड़ने पर अपने राजा की ओर से युद्ध करते थे | उस राजा मानसिंह के बहुत से सामंत थे जिसमें अजमेर, कोटा, सौराष्ट्र, हूणों का राजा अंगुत्सी आदि शामिल थे |

*राजा मानसिंह ने जब बप्पा को अच्छी जागीर प्रदान की, तो ये बहुत से सामंतों को रास नहीं आया | कुछ समय बाद खुरासानी (मलेच्छ) शासक ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया | राजा मानसिंह के सामंत युद्ध के लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि वो बप्पा को पसन्द नहीं करते थे | राजा मानसिंह के बहुत समझाने पर कुछ सामंत युद्ध के लिए मान गए | बप्पा के नेतृत्व में सभी सामंतों ने मलेच्छों के साथ युद्ध किया और बप्पा की रणनीति से मलेच्छ बुरी तरह पराजित होकर भागे परन्तु बप्पा ने उनका पीछा नहीं छोड़ा | मलेच्छों का पीछा करते – करते बप्पा अपने पूर्वजों के राज्य गजनी पहुँच गए, जहाँ पर उस समय सलीम नामक राजा राज कर रहा था |

*बप्पा ने सलीम को पराजित करके उसके राज्य पर अधिकार कर लिया परन्तु सलीम ने बप्पा की अधीनता स्वीकार कर अपनी बेटी का विवाह बप्पा के साथ कर दिया था | गजनी पर अधिकार करने के बाद बप्पा वापस चित्तौड़ आए, और जो सामंत बप्पा को पसन्द नहीं करते थे उनके विरुद्ध कार्यवाही की, जिससे राजा मानसिंह और बप्पा के मध्य मतभेद हो गए | कुछ समय के बाद बप्पा ने अपने समर्थक सामंतो के साथ मिलकर, राजा मानसिंह को सिंहासन से उतारकर चित्तौड़ के शासक बन गए | चित्तौड़ का शासक बनने के बाद बप्पा ने राजगुरु, हिन्द सूर्य, चक्कवै आदि की उपाधियाँ धारण कीं | बप्पा को रावल की उपाधि संभवतः भील सरदारों के द्वारा दी गई थी |

*कथाओं के अनुसार बप्पा रावल ने कश्मीर, खुरासान, ईरान, ईराक आदि पर विजय हासिल की थी और वहां के मलेच्छ राजाओं की राजकुमारियों के साथ विवाह किया था | बप्पा रावल ने 100 शादियाँ की थीं जिसमें 33 मुस्लिम राजकुमारियां थी | कथाओं में बप्पा रावल के बारे में अनेक बातों का उल्लेख किया गया है जिसमें बप्पा के 130 बच्चों का भी उल्लेख है | बप्पा के मरने पर मुसलमान उनके मृत शरीर को जमीन में गाड़ना चाहते थे और हिन्दू दाह क्रिया करना चाहते थे | इस बात को लेकर हिन्दू और मुसलमानों में बहुत विवाद हुआ था |

महत्वपूर्ण तथ्य

*बप्पा रावल का जन्म 713 ई. में हुआ था |

*बप्पा रावल के पिता का नाम नागादित्य था |

*बप्पा रावल का मूलनाम कालाभोज या कालभोजादित्य था |

*बप्पा रावल ने अपनी राजधानी उदयपुर के निकट नागदा में बनाई थी |

*734 ई. में बप्पा रावल ने उदयपुर के उत्तर में स्थित कैलाशपुरी में एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया था जिसका सम्बन्ध पाशुपत सम्प्रदाय से है | एकलिंग को गुहिल राजाओं का कुल देवता भी माना जाता है |

*मेवाड़ के ताम्रपत्रों में ‘श्री एकलिंगजी प्रसादतु’ और ‘दीवाण जी आदेशातु’ अंकित है |  

*एकलिंग मंदिर के निकट ही हारित ऋषि का आश्रम है जिन्हें बप्पा रावल का गुरु माना जाता है |

*एकलिंग मंदिर के निकट ही बप्पा रावल ने आदिवाराह का मंदिर भी बनाया था |

*बप्पा रावल को मेवाड़ में गुहिल राजवंश का संस्थापक माना जाता है |                                            

*चित्तौड़ के किले का निर्माण राजा चित्रागंद मौर्य ने करवाया था |

*मेवाड़ में सबसे पहले सोने के सिक्के चलाने का श्रेय बप्पा रावल को ही दिया जाता है |

*आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रावलपिंडी शहर को संभवतः बप्पा रावल ने ही बसाया था |

*बप्पा रावल ने अपने अंतिम समय में सन्यास धारण कर लिया था |

*बप्पा रावल की मृत्यु संभवतः 753 ई. में, उदयपुर से 10 मील उत्तर की तरफ नागदा में हुई थी |

*बप्पा रावल का समाधि स्थल एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील की दूरी पर बना हुआ है |  

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