विक्रमशिला विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने क्यों नष्ट किया था । vikramshila University history in Hindi |

 

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

*विक्रम का अर्थ वीरता या श्रेष्ठ होता है और शिला का अर्थ यहाँ पत्थर नहीं है बल्कि शील है |

*विक्रमशिला महाविहार, बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है । यह महाविहार नालंदा के जैसा ही एक अन्तर्राष्ट्रीय का शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र था | इसकी स्थिति भागलपुर से 24 मील पूर्व की ओर, पथरघाट नामक पहाड़ी पर बताई गई है, जहाँ से प्राचीन काल के खण्डहर बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए हैं ।

*पाल वंशीय राजा धर्मपाल ने अपने शासनकाल में, विक्रमशिला महाविहार की स्थापना करवाई थी । उन्होंने यहाँ कई मठ भी बनवाए थे, और उन्हें उदारतापूर्वक अनुदान भी दिया था | विक्रमशिला महाविहार में 160 से भी अधिक व्याख्यान के लिए कक्ष बने हुए थे | धर्मपाल के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने 13वी शताब्दी तक, इसे राजकीय संरक्षण प्रदान किया था | जिसके परिणामस्वरूप विक्रमशिला महाविहार लगभग 400 वर्षों  से अधिक समय तक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना रहा |

*विक्रमशिला महाविहार में छः महाविद्यालय थे | प्रत्येक में एक केंद्रीय कक्ष तथा 108 अध्यापक होते थे । केंद्रीय कक्ष को 'विज्ञान भवन' के नाम से जाना जाता था | प्रत्येक महाविद्यालय में एक प्रवेश द्वार होता था | प्रत्येक प्रवेश द्वार पर, एक-एक द्वार विद्वान बैठता था, जिसे आमतौर पर महापण्डित कहा जाता था | महाविद्यालय में प्रवेश के लिए वहाँ स्थित द्वार विद्वान के परिक्षण के उपरान्त ही विधार्थी का प्रवेश संभव होता था | निम्नलिखित महापण्डितों की सूची |

1. पूर्व द्वार - आचार्य रत्नाकर शान्ति

2. पश्चिम द्वार - वागीश्वर कीर्ति

3. उत्तर द्वार - नारोप

4. दक्षिण द्वार - प्रज्ञाकरमती

5. प्रथम केंद्रीय द्वार - रत्नवज्र

6. द्वितीय केंद्रीय द्वार - ज्ञानश्रीमित्र

*विक्रमशिला महाविहार में महत्वपूर्ण विषयों जैसे - व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, पंचविद्या आदि का अध्ययन होता था |  इस महाविहार का नालन्दा महाविहार जैसा विस्तृत पाठ्यक्रम नहीं था । यहाँ के आचार्यों में सर्वाधिक उल्लेखनीय आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान थे, जो इस महाविहार के कुलपति थे | तिब्बती स्रोतों में उन्हें 200 ग्रंथों की रचना का श्रेय दिया गया है | अन्य विद्वानों में वैरोचन, रत्नाकर, शांति, ज्ञानश्री, रत्नवज्र, ज्ञानपाद, रक्षित, जेतरी, तथागत आदि के नाम प्रसिद्ध हैं | 12वी शताब्दी में लगभग तीन हजार विधार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त किया करते थे | यहाँ पर तिब्बती छात्रों के आवास के लिए, एक विशिष्ट अतिथि गृह भी बनाया गया था |  

*इस महाविहार में एक विशाल पुस्तकालय भी था | महाविहार को चलाने के लिए एक संघाध्यक्ष की देख रेख में एक परिषद् थी | ये परिषद् महाविहार से सम्बन्धित सभी प्रकार के कार्यों की देख रेख करती थी | तिब्बती विद्वान तारानाथ के विवरण से ज्ञात होता है कि पाल राजा नालन्दा विश्वविद्यालय के कार्यों की देखभाल के लिए, विक्रमशिला के आचार्यों को नियुक्त किया करते थे | यहाँ के स्नातकों को अध्ययन के बाद  इन्हें पाल राजाओं के द्वारा उपाधियाँ प्रदान की जाती थीं | स्नातकों को पण्डित की उपाधि दी जाति थी | परास्नातक को महापण्डित, उपाध्याय, आचार्य आदि की उपाधियाँ दी जाती थी |

*इस प्रकार विक्रमशिला महाविहार ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में, भारत का सर्वाधिक सम्पन्न विश्वविधालय था | इस महाविहार के प्रमुख आचार्य दीपंकर सहित अनेक विद्वान तिब्बत गए, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया |  इस प्रकार यहाँ के आचार्यों ने भारतीय ज्ञान विज्ञान को पूरी अन्तराष्ट्रीय जगत में प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की |  

*मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने संभवता 1198 से 1203 के मध्य विक्रमशिला महाविहार को दुर्ग समझकर ध्वस्त कर दिया | उसने सभी भिक्षुओं की सामूहिक हत्या करवा दी थी, तथा वहाँ के असंख्य ग्रंथों को जला दिया था | उस समय विश्वविद्यालय के कुलपति शाक्यश्रीभद्र अपने कुछ अनुयायियों के साथ किसी प्रकार जान बचाकर तिब्बत चले गए थे | भारत के इस गौरवशाली अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय का दुखद अंत हो गया था |

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