प्रथम विश्व युद्ध का प्रमुख कारण और परिणाम | First world war history in HINDI |

 

प्रथम विश्वयुद्ध का प्रमुख कारण

*20वीं शताब्दी के पहले दशक में, पूरा यूरोप दो शक्तिशाली गुटों अर्थात त्रिराष्ट्रीय मैत्री और त्रिराष्ट्रीय संघ में बटा हुआ था । त्रिराष्ट्रीय मैत्री में इंग्लैंड, फ्रांस और रूस शामिल थे । त्रिराष्ट्रीय संघ में इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी शामिल थे । इन दोनों ने पूरे यूरोप का राजनीतिक वातावरण जहरीला बना दिया था । साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, उग्रराष्ट्रवाद, सैनिक शक्ति का विकास आदि के कारण, यूरोप के अधिकतर देशों के मध्य शत्रुता का वातावरण पैदा हो गया था । यही कारण था कि 1914 में एक ऐसी घटना का जन्म हुआ जिसने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया । इसी घटना को प्रथम विश्व युद्ध के नाम से जाना जाता है, और ये लगभग 4 वर्षों (1914 - 1918) के मध्य चला था ।

*प्रथम विश्व युद्ध के परिणामों ने पूरे विश्व को प्रभावित किया था । प्रथम विश्वयुद्ध कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि कई ऐसे अनेक कारण थे जिन्होंने इस महाघटना की पृष्ठभूमि को तैयार किया था ।

1.उग्रराष्ट्रवाद - प्रथम विश्व युद्ध के पहले यूरोप के कई देशों में उग्रराष्ट्रवाद की भावना विकसित हो चुकी थी, जिसमें इंग्लैंड, स्पेन, जर्मनी, पुर्तगाल, बेल्जियम, इटली, फ्रांस, हॉलैंड आदि शामिल थे । इसी कारण अधिकतर देशों के मध्य तनाव, घृणा, संघर्ष और द्वेष की भावना उत्पन्न हो गई और इसी भावना ने प्रथम विश्वयुद्ध को जन्म दिया ।

2.साम्राज्यवाद - 20वीं शताब्दी के शुरुआत में इंग्लैंड और जर्मनी के बीच, विवाद का प्रमुख कारण आर्थिक साम्राज्यवाद था । दोनों देशों की व्यवसायिक और औद्योगिक उन्नति, एक दूसरे के लिए प्रतिस्पर्धा का प्रमुख कारण बन गई ।

3.उपनिवेशवाद - प्रथम विश्व युद्ध के पहले यूरोप के अनेक देश प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करके, अपना माल बेचने के लिए अविकसित देशों को अपने अधिकार में करके, उन्हें उपनिवेश बनाने में जुटे थे, क्योंकि वे अपने आर्थिक विकास के लिए, इस नीति को आवश्यक मानते थे ।

4.सैनिक शक्ति का विकास - इंग्लैंड, रूस और फ्रांस जिन्हें मित्रराष्ट्र या त्रिराष्ट्रीय मैत्री गुट कहा जाता था । दूसरा जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रिया-हंगरी का गुट था, जिसे केंद्रीय राष्ट्र, धुरी राष्ट्र या त्रिराष्ट्रीय संघ कहा जाता था । दोनों गुट सैनिक शक्ति का विकास करने में लग गए, और यही सैनिक शक्ति ने प्रथम विश्व युद्ध का माहौल पैदा किया ।

5.तात्कालिक कारण - 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेन्ट और उनकी रानी सोफी की सेराजिवो (बोस्निया की राजधानी) में गोली मारकर हत्या कर दी गई । इस घटना को करने का आरोप सर्बिया पर लगाया गया । ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के सामने 10 मांगे रखीं और इन मांगों को स्वीकार करने के लिए 48 घंटे का समय दिया । सर्बिया ने इन मांगों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया । 5 जुलाई 1914 को जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को अपना समर्थन दिया और 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया । 31 जुलाई 1914 को रूस ने ऑस्ट्रिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी । फ्रांस भी इस युद्ध में शामिल हो गया क्योंकि वह उसका मित्र था । 4 अगस्त 1914 को ब्रिटेन भी इस युद्ध में शामिल हुआ । प्रथम विश्वयुद्ध का सबसे प्रमुख कारण यही माना जाता है ।

प्रथम विश्व युद्ध के समय हुई घटनाओं का विवरण

1.पश्चिमी मोर्चा - इस क्षेत्र में जर्मनी का मुख्य उद्देश्य फ्रांस पर अधिकार करना था । जर्मनी ने सबसे पहले बेल्जियम पर अधिकार करने के लिए अपनी सेनाओं को तैयार किया । अगस्त 1914 में जर्मनी ने बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स पर अधिकार कर लिया । फ्रांस और इंग्लैंड ने बेल्जियम की सहायता के लिए अपनी सीमाएं भेजीं, परंतु जर्मनी ने उन्हें पराजित कर दिया था । इस विजय के बाद जर्मनी का उत्साह और बढ़ गया था । जर्मनी का अगला निशाना फ्रांस की राजधानी पेरिस थी । जर्मनी ने पेरिस पर अधिकार करने के लिए अपनी सेनाओं को तैयार किया और कुछ ही समय में जर्मनी ने पूरे उत्तरी फ्रांस पर अधिकार कर लिया था । जर्मनी की सेना पेरिस पर अधिकार करने वाली ही थी, तभी मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने उसका मुकाबला किया । मार्न नदी के पास जर्मनी और मित्र राष्ट्रों की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ परंतु मित्र राष्ट्रों की सेना जर्मनी को पराजित नहीं कर पायी ।

2.पूर्वी मोर्चा - प्रथम विश्व युद्ध के समय जो युद्ध पूर्वी देशों के साथ हुए, उन्हें ही पूर्वी मोर्चा के नाम से जाना जाता है । अगस्त 1914 में रूस ने पूर्वी प्रशा पर आक्रमण करने का निश्चय किया । रूस की सेना आगे बढ़ी और उसने कई स्थानों पर विजय प्राप्त की । रूस की इस विजय के बाद जर्मनी ने रूस की ओर ध्यान दिया, और हिण्डेनबर्ग के नेतृत्व में रूस की सेना को पराजित कर दिया । इस युद्ध में रूस की बुरी पराजय हुई । उसे जीते हुए क्षेत्र तथा कुछ अपनी भूमि भी जर्मनी को देनी पड़ी, जिससे रूस की जनता में निराशा का वातावरण छा गया था ।

3.दक्षिणी मोर्चा - 23 मई 1915 को इटली ने इंग्लैंड, रूस और फ्रांस के समर्थन में ऑस्ट्रिया के युद्ध में शामिल होने की घोषणा की । जून 1915 में इटली ने ऑस्ट्रिया पर आक्रमण किया, लेकिन उसे ऑस्ट्रिया से बुरी तरह पराजित होना पड़ा । 1917 में ऑस्ट्रिया-जर्मनी की संयुक्त सेनाओं ने इटली पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में इटली फिर बुरी तरह पराजित हुआ । इटली ने अपनी बुरी स्थिति को देखते हुए इंग्लैंड और फ्रांसीसी सेनाओं की सहायता ली और अपनी स्थिति को संभाला । 1918 में ऑस्ट्रिया को अलग-अलग मोर्चों पर पराजय का सामना करना पड़ा । 3 नवंबर 1918 को ऑस्ट्रिया ने अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन के सामने शांति संधि प्रस्ताव रखा और मित्र राष्ट्रों के सामने बिना शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया ।

4.समुद्री मोर्चा - प्रथम विश्वयुद्ध के सभी मोर्चों में सबसे विशाल मोर्चा समुद्री मोर्चा को माना जाता है । पूरे यूरोप में इंग्लैंड उस समय अपनी जल शक्ति के लिए प्रसिद्ध था । इंग्लैंड सरकार अपनी सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहती थी, क्योंकि उसके व्यापार, वाणिज्य व उपनिवेशों की रक्षा के लिए जल सेना बहुत जरूरी थी । अगस्त 1914 में इंग्लैंड ने होलीगोलैण्ड के पास जर्मनी की जल सेना को बुरी तरह पराजित किया था । जर्मनी ने चिली के बंदरगाह के पास इंग्लैंड को पराजित करके अपनी पराजय का बदला ले लिया और इंग्लैंड को खुली चुनौती दे डाली । 8 दिसंबर 1914 को इंग्लैंड ने फोकलैंड दीप समूह में जर्मनी के जहाज बेड़े को नष्ट करके उसके अहंकार को तोड़कर अपनी सर्वोच्चता सिद्ध की ।

5.प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका का प्रवेश - जर्मनी के गलत कार्यों को देखते हुए, अमेरिका ने 6 अप्रैल 1917 को मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, रूस, फ्रांस) की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने का निर्णय लिया था । अमेरिका के मित्र राष्ट्रों की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होना जर्मनी को हजम नहीं हुआ और उसने 1200 यात्री वाले अमेरिकी जहाज लुसटानिया को डुबो दिया । लुसटानिया को डूबोने के बाद जर्मनी ने पांच और अमेरिकी जहाजों को डुबो दिया । इन घटनाओं के बाद अमेरिका ने मित्र राष्ट्रों की तरफ से युद्ध करने का निश्चय लिया और मित्र राष्ट्रों की स्थिति अत्यधिक मजबूत हो गई ।

6.प्रथम विश्व युद्ध में हवाई जहाजों का प्रयोग - प्रथम विश्व युद्ध में पहली बार हवाई जहाजों का प्रयोग किया गया था । उस समय सबसे ज्यादा हवाई जहाज जर्मनी के पास थे । मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, रूस, फ्रांस) के पास भी छोटे-छोटे हवाई जहाज थे । हवाई जहाजों की मदद से ही दोनों पक्षों ने एक दूसरे के क्षेत्रों पर भीषण बमबारी की, और इस बमबारी में दोनों पक्षों को अपार क्षति का सामना करना पड़ा ।

7.प्रथम विश्व युद्ध का अंत - 28 मार्च 1918 को मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेनाओं का सेनापति जनरल फॉच को बनाया गया । जनरल फॉच के समीकरणों ने मित्र राष्ट्रों की स्थिति को सुधारा । 29 सितंबर 1918 को बुल्गारिया तथा 31 अक्टूबर 1918 को तुर्की ने आत्मसमर्पण किया । मित्र राष्ट्रों ने चारों ओर से जर्मनी पर आक्रमण शुरू कर दिए, जर्मनी की सेनाओं ने बड़ी वीरता के साथ मित्र राष्ट्रों की सेनाओं का सामना किया । उसी समय 8 नवंबर 1918 को बर्लिन में क्रांति हो गई और जर्मनी के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय परिवार सहित हॉलैंड भाग गए । जर्मनी की नई सरकार ने मित्र राष्ट्रों के सामने संधि प्रस्ताव रखा । अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के परामर्श पर 11 नवंबर 1918 के दिन 11:00 बजे जर्मन सेनाओं ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था । प्रथम विश्व युद्ध 4 वर्ष 3 माह 11 दिन तक चला था ।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम

*प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों के लगभग 50 लाख व्यक्ति मारे गए थे और एक करोड़ से भी ज्यादा घायल हुए थे ।

*प्रथम विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्रों के 80 लाख व्यक्ति मारे गए थे और दो करोड़ से भी ज्यादा व्यक्ति घायल हुए थे ।

*प्रथम विश्व युद्ध के दौरान धन का अभूतपूर्व प्रयोग होने के कारण, यूरोपीय देशों का आर्थिक तंत्र ध्वस्त हो गया था ।

*प्रथम विश्वयुद्ध में लगभग विश्व के 36 देशों ने भाग लिया था ।

*प्रथम विश्वयुद्ध में लगभग 64 करोड़ व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था ।

*प्रथम विश्व युद्ध के कारण ही जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में फासीवाद उदय हुआ था ।

*प्रथम विश्व युद्ध के कारण ही नास्तिकवाद का उदय हुआ था ।

*प्रथम विश्वयुद्ध के कारण ही लीग ऑफ नेशंस की स्थापना हुई थी ।

पेरिस शांति सम्मेलन

*11 नवंबर 1918 को जर्मनी के आत्मसमर्पण करने के बाद मित्र राष्ट्रों की तरफ से, पराजित राष्ट्रों के साथ संधियां करने के लिए, फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक शांति सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें मित्र राष्ट्रों के लगभग 80 प्रतिनिधि शामिल हुए थे । इन सभी प्रतिनिधियों में फ्रांस के क्लीमेन्सो, अमेरिका के वुडरो विल्सन, इंग्लैंड के लायड जॉर्ज, इटली के ऑरलैंडो, जापान के सैओन्जी प्रमुख थे । शांति सम्मेलन की अध्यक्षता फ्रांस के क्लीमेन्सो ने की थी । पेरिस शांति सम्मेलन की कार्यवाही का प्रारंभ 18 जनवरी 1919 को हुआ था । इस सम्मेलन के सभी निर्णय अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस ने ही लिए थे । पेरिस शांति सम्मेलन में पराजित देशों के साथ अलग-अलग शांति संधियां की गईं ।

वर्साय की संधि

*वर्साय की संधि 28 जून 1919 को हुई थी, और इसे ही पेरिस शांति सम्मेलन की सबसे विवादास्पद संधि माना जाता है ।

वर्साय संधि की प्रमुख शर्तें

1.जर्मनी की थल सेना अधिकारियों सहित एक लाख तक सीमित कर दी गई थी ।

2.नौसेना पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे ।

3.जर्मनी की अनिवार्य सैनिक सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ।

4.जर्मनी का डेंजिग बंदरगाह लीग ऑफ नेशंस के नियंत्रण में दे दिया गया था ।

5.जर्मनी की राइन नदी के तट की किलेबंदी कर दी गई थी ।

6.जर्मनी का सार क्षेत्र 15 वर्षों के लिए लीग ऑफ नेशंस को दे दिया गया था ।

7.जर्मनी को क्षतिपूर्ति के लिए मजबूर किया गया था ।

न्यूडली की संधि

*न्यूडली की संधि 27 नवंबर 1919 को बल्गारिया के साथ हुई थी । इस संधि की प्रमुख शर्तें ।

1.पश्चिमी बल्गारिया के कुछ प्रदेश यूगोस्लाविया को दे दिए गए थे ।

2.बल्गारिया की जल सेना 10 हजार तक सीमित कर दिया गया था ।

3. बलगारिया पर 35 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाया गया था ।

सेण्ट जर्मेन की संधि

*सेण्ट जर्मेन की संधि 10 दिसंबर 1919 को ऑस्ट्रिया के साथ हुई थी । सेण्ट जर्मेन संधि की प्रमुख शर्तें ।

1.ऑस्ट्रिया के पोलैंड, हंगरी, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी गई थी ।

2.मोराविया, बोहेमिया, साइलिशिया को मिलाकर चेकोस्लोवाकिया का निर्माण किया गया था ।

3.बोस्निया, हर्जेगोविना और डालयेशियन तट के कुछ भाग को मिलाकर यूगोस्लाविया का गठन किया गया था । 

4.हैप्सबर्ग शासन का अंत करके और ऑस्ट्रिया को एक छोटा सा जनतंत्र बना दिया गया था ।

ट्रियानो की संधि

*ट्रियानो की संधि 4 जून 1920 को हंगरी के साथ हुई थी । ट्रियानो संधि की प्रमुख शर्तें ।

1.हंगरी को ऑस्ट्रिया से अलग कर दिया गया था ।

2.हंगरी की सेना 35 हजार तक सीमित कर दी गई थी ।

3.हंगरी को भी युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए मजबूर गया था ।

सेवरीज की संधि

*सेवरीज की संधि 10 अगस्त 1920 को टर्की के साथ हुई थी, परंतु तुर्की ने मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था और इस संधि को लागू नहीं होने दिया था । सेवरीज की संधि के स्थान पर मित्र राष्ट्रों की तरफ से लोसाने की संधि लाई गई थी । लोसाने की संधि 24 जुलाई 1923 को हुई थी ।

*पेरिस शांति सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों ने बदले की भावना से प्रेरित होकर, पराजित राष्ट्रों को अपमानजनक संधियां करने के लिए मजबूर किया । मित्र राष्ट्रों के इसी रवैया से द्वितीय विश्व युद्ध का जन्म हुआ था ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ