बंगाल का विभाजन और उसकी दास्तां | बंगाल का विभाजन | Bengal ka vibhajan |

बंगाल विभाजन का प्रमुख कारण

*बंगाल विभाजन की घटना वायसराय लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल में होने वाली की प्रमुख घटना मानी जाती है ।

*1905 में बंगाल, जिसमें आधुनिक बांग्लादेश, बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे तथा उसकी आबादी लगभग 7 करोड थी ।

*बंगाल उस समय बहुत बड़ा क्षेत्र था और उसके प्रशासन की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथों में रहती थी परंतु लेफ्टिनेंट गवर्नर इतने बड़े क्षेत्र के प्रशासन को सही से नहीं चला सकता था । इसी कारण 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन का निर्णय लिया था ।

बंगाल का विभाजन

*लॉर्ड कर्जन ने 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा की थी ।

*बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया और 7 अगस्त 1905 को कोलकाता के टाउन हॉल में बहिष्कार प्रस्ताव पारित करके बहिष्कार आंदोलन की घोषणा की ।

*बंगाल का विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को लागू किया गया और उसके बाद बंगाल को दो भागों - पश्चिम बंगाल और पूर्वी बंगाल (आधुनिक बंगलादेश) में विभाजित कर दिया गया था ।

*इसी दिन भारतीय नेताओं ने शोक दिवस तथा रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे राखी दिवस के रुप में मनाया था ।

*बंगाल विभाजन के बाद पूरे देश में लोगों ने विदेशी सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया था जिसमें भारतीय नेताओं के अलावा छात्रों का बहुत योगदान था ।

*इस आंदोलन में छात्रों के शामिल होने पर भारतीय ब्रिटिश सरकार ने कई स्कूल व कॉलेजों को सरकारी फंड देना बंद कर दिया जिससे बहुत से छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा था ।

*16 नवंबर 1905 को कोलकाता में सम्मेलन हुआ जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा परिषद को स्थापित करने का फैसला लिया गया ।

*15 अगस्त 1906 को सद्गुरु दास बनर्जी ने राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की ।

*इसी समय रविंद्र नाथ टैगोर ने भी भारतीय छात्रों के लिए कई स्कूल खोलें ‌।

*रविंद्र नाथ टैगोर ने आंदोलन को तेज करने के लिए आमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा था जो 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत बना ।

*1905 में कांग्रेस का अधिवेशन बनारस में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में हुआ । इसमें बहिष्कार आन्दोलन का समर्थन किया गया । इस अधिवेशन में पहला मतभेद 'प्रिंस ऑफ वेल्स' के स्वागत प्रस्ताव पर हुआ क्योंकि नरम पंथी 'प्रिंस ऑफ वेल्स' का स्वागत करना चाहते थे परन्तु गरम पंथियों ने इसका विरोध किया ।  

*1905 में ही लाला लाजपत राय ने अपने भाषण में 'सत्याग्रह' को अपनाने का सुझाव दिया । कांग्रेस के मंच से ऐसा सुझाव पहली बार दिया गया था । दोनों के बीच दरार 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में और बढ़ गई । तिलक का सुझाव था कि लाला लाजपत राय को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाय परन्तु राष्ट्रवादियों को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से दूर रखने के लिये नरमपंथियों ने दादाभाई नौराजी को अध्यक्ष बनाया ।

*राष्ट्रवादियों ने इसका विरोध करना अनुचित समझा । कलकऩा के इस अधिवेशन में दादाभाई नौराजी ने घोषणा की कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का लक्ष्य स्वराज प्राप्त करना है ।

*कलकत्ता अधिवेशन में राष्ट्रवादी चाहते थे कि बहिष्कार आन्दोलन सारे भारत में चलाया जाय परन्तु नरम पंथी इसे कांग्रेस तक सीमित रखना चाहते थे और इसको लेकर दोनों में झड़प हुई ।

*कलकत्ता अधिवेशन के बाद अगले अधिवेशन में कब्जे के लिए दोनों के मध्य खुलेआम प्रतियोगिता प्रारम्भ हो गयी और सूरत अधिवेशन में राष्ट्रवादी लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाहते थे परन्तु नरम दल वालों ने रास बिहारी घोष को अध्यक्ष पद के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया ।

*बाल गंगाधर तिलक, रास बिहारी घोष के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए राजी हो गये लेकिन उन्होंने दो शर्तें रखी (1) कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में जो प्रस्ताव स्वराज, स्वदेशी, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा के बारे में पास किया था उन्हें फिर से पास किया जाये (2)रास बिहारी घोष के भाषण में जिस अंश में राष्ट्रवादियों की आलोचना की गयी है उसे हटा दिया जाए परन्तु नरमपंथी किसी प्रकार के समझौते के लिये तैयार न थे ।

*लाला लाजपत राय ने अपना नाम वापस ले लिया । रास बिहारी घोष अध्यक्ष बने परन्तु इसके तुरन्त बाद जब बाल गंगाधर तिलक अपना प्रस्ताव पेश करने मंच पर आये तब दोनों पक्षों में मारा - मारी मच गई । इसके बाद  अधिवेशन स्थगित कर दिया गया ।

*मोती लाल घोष ने कांग्रेस की एकता बचाने तथा दोनों पक्षों में समझौता कराने का प्रयास किया परन्तु असफल रहे क्योंकि बाल गंगाधर तिलक ने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया | इस प्रकार कांग्रेस दो भागों में बँट गयी |

*इसी बीच भारतीय ब्रिटिश सरकार ने देश के कुछ बड़े नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया गया ताकि आंदोलन को विफल किया जा सके लेकिन भारतीय लोगों के अंदर विरोध की प्रबल भावनाओं को देखते हुए बाद में सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया था ।

*बंगाल विभाजन के विरोध को देखते हुए अगस्त 1906 में अरुंडेल कमेटी का गठन किया गया और इस कमेटी ने बंगाल विभाजन के निर्णय को सही नहीं माना क्योंकि बंगाल विभाजन से पूरे देश में तनाव का माहौल पैदा हो गया था जिससे ब्रिटिश सरकार की छवि खराब हो रही थी ।

*30 दिसंबर 1906 को ढाका के नवाब आगा खां तथा नवाब मोहसिन उल मुल्क  के नेतृत्व में, भारतीय मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग का गठन किया गया | शुरुआत में मुस्लिम लीग को ब्रिटिशों द्वारा बहुत सहयोग मिला लेकिन जब मुस्लिम लीग ने स्वशासन के विचार को अपना लिया तो ब्रिटिशों से मिलने वाला सहयोग बंद हो गया था |

*1908 में मुस्लिम लीग के अमृतसर अधिवेशन में, सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गई जिसे ब्रिटिशों ने 1909 के मॉर्ले - मिन्टो सुधार अधिनियम के द्वारा पूरा कर दिया था |

*दिसम्बर 1911 में ब्रिटिश सम्राट् जार्ज पंचम का दिल्ली आगमन हुआ । 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में एक राजदरबार का आयोजन हुआ । यहाँ पर वायसराय हार्डिंग II ने सम्राट् की ओर से घोषणा कीबंगाल विभाजन रद्द किया जाएगा और भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली बनायी जायेगी ।

*इस प्रकार दिल्ली 1912 में कलकत्ता के स्थान पर भारत की राजधानी बनाई  गई |

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