पानीपत का प्रथम युद्ध और उसकी अनसुनी कहानी | First Battle of Panipat and its unheard story |

पानीपत का प्रथम युद्ध

नवम्बर 1525 में विशेष सैनिक तैयारी के पश्चात् बाबर भारत की ओर चल पड़ा और उस समय उसके पास 12000 अश्वारोही तथा 700 तोपें थीं जिसमें तोपखाने का अफसर उस्ताद अली और मुस्तफा रूमी थे। सम्पूर्ण पंजाब पर अधिकार करने के बाद बाबर दिल्ली की ओर बढ़ाऔर उस समय दिल्ली का शासक इब्राहीम लोदी था |

इब्राहीम लोदी 40000 सैनिकों को लेकर बाबर का सामना करने के लिए पंजाब की ओर चल पड़ा और 12 अप्रैल 1526 को दोनों पक्षों की सेनाएँ पानीपत के रणक्षेत्र में एक दूसरे के सामने डट गई। 20 अप्रैल की रात्रि को बाबर ने अपने 4 या 5000 हजार सैनिकों को आक्रमण करने के लिए अफगान शिविर की ओर भेजा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

इब्राहीम लोदी की सेना उत्साहित होकर आगे बढ़ी और 21 अप्रैल 1526 को दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध छिड़ गया। बाबर की तोपों की मार के सामने इब्राहीम लोदी की सेना के पैर उखड़ गये। उसी समय बाबर ने तुलगमा सेनाओं को घूमकर पीछे से आक्रमण करने की आज्ञा दी और इसका परिणाम यह हुआ कि इब्राहीम लोदी की सेना मुगल सेना से चारों ओर से घिर गई।

बाबर ने तोपचियों को इब्राहीम लोदी की सेना पर आग बरसाने की आज्ञा दे दी और जब बाबर की सेना के द्वारा तोपों से आग बरसाई जा रही थी तभी इब्राहीम लोदी के साथी महमूद खाँ ने उससे कहा “भयानक मुसीबत का सामना है आपको मेरी नेक सलाह है कि आप मैदान से फौरन निकल कर चले जावें। अगर आपकी जिन्दगी कायम है तो ऐसी न जाने कितनी लड़ाइयाँ आप अपने जीवन में लड़ेंगे"

महमूद खां कि इस बात को सुनते ही इब्राहीम ने जवाब देते हुए कहा "लड़ाई के मैदान से भागना बादशाहों के लिए एक बड़े लज्जा की बात होती है, वे या तो विजय प्राप्त करते हैं या मारे जाते हैं और बादशाह युद्ध के मैदान से भागा नहीं करते। मेरे साथ के शूरवीर योद्धा यहाँ पर कटे पड़े हैं और मैं उनके साथ रहा हूँ और आज मरने पर भी उनके साथ रहना चाहता हूँ"

अन्त में इब्राहीम लोदी वीरता से लड़ता हुआ मारा गया। उसके 15000 सैनिक भी युद्ध में मारे गए। बाबर ने अपने हाथों से इब्राहीम लोदी के खून से सने शरीर को उठाकर रोमांचकारी शब्दों में कहा "मैं तेरी बहादुरी की तारीफ करता हूँ और शाही सम्मान के साथ उसी स्थान पर जहाँ वह मारा गया था दफना दिया जाए”

इस प्रकार 'पानीपत का युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ और बाबर ने तुरन्त दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर लिया। दिल्ली की जामा मस्जिद में बाबर के नाम का खुत्वा (धार्मिक प्रवर्चन) पढ़ा गया। इब्राहीम लोदी की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का अंत और मुग़ल सल्तनत का प्रारम्भ हो गया था |

पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम

पानीपत का प्रथम युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। इसका भारतीय इतिहास में बहुत अधिक महत्व है।

निम्नलिखित परिणाम

1.भारत में लोदी वंश के शासन का अन्त हो गया दिल्ली व पंजाब से उसकी सत्ता समाप्त हो गई। इस सम्बन्ध में इतिहासकार ईश्वरीप्रसाद ने लिखा "पानीपत युद्ध से ही दिल्ली का साम्राज्य बाबर के हाथ में आ गया था और लोदी वंश की शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई थी |

2.भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई तथा बाबर की सभी कठिनाइयों का अन्त हो गया था।

3.भारत को अत्यधिक धन - जन की क्षति उठानी पड़ी तथा बाबर को अपार धनराशि प्राप्त हुई जिसे उसने अपनी प्रजा तथा सैनिकों में वितरित कर दिया था।

4.हिन्दुओं की आशाओं पर पानी फिर गया था और उन्हें अपनी सैनिक अयोग्यता का एहसास भी होने लगा था।

5.पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बाबर का राजपूतों से युद्ध अनिवार्य हो गया था और उसकी सफलता का युग प्रारम्भ हुआ।

6.भारत के इतिहास में युद्ध के मैदानों में तोपखाने का प्रयोग पानीपत के प्रथम युद्ध से ही आरम्भ होता है क्योंकि उससे पहले भारत के किसी भी युद्ध में तोपखाने का प्रयोग नहीं हुआ था |

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