चोल वंश का इतिहास | Chol Vansh Ka Itihas |#1

 चोल वंश का परिचय

चोल वंश की स्थापना बहुत प्राचीन समय में हो गई थी क्योंकि सम्राट अशोक के अभिलेखों में इस वंश का उल्लेख किया गया है | 'चोल वंश का प्राचीन इतिहास' उपलब्ध न होने के कारण इतिहासकारों ने 9वी शताब्दी से चोल वंश के इतिहास को प्रारम्भ किया है | 'चोल वंश की स्थापना' 9वी शताब्दी में विजयालय के द्वारा की गई थी परन्तु विजयालय से पहले भी चोल वंश में कई राजा हुए जिसमें कारिकाल का नाम उल्लेखनीय है | 'चोल वंश की प्रारम्भिक राजधानी' पुहर में थी जिसे आज पुम्पुहर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के मयीलाडूतुरै जिले में है |

पुहर के बाद उरैयुर को राजधानी बनाया गया जिसे आज वौरेयुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले के पास है | उरैयुर के बाद तंजौर को राजधानी बनाया गया जिसे आज तंजाबुर के नाम से जाना जाता है जो तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित है | तंजौर के बाद गंगेकोण्डचोलपुरम को राजधानी बनाया गया जो तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में है | 'चोल वंश का राजकीय चिन्ह बाघ' है जो उनके ध्वज पर आज भी देखा जा सकता है | 'चोल वंश की राजकीय भाषा' तमिल और संस्कृत थी परन्तु 'चोल राजाओं के अभिलेख' तमिल, तेलगु और संस्कृत भाषा में प्राप्त हुए हैं |

चोल वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

अभिलेख

1.सम्राट अशोक का दूसरा और सातवा अभिलेख - 

2.तंजौर मंदिर लेख यह लेख राजराज प्रथम का है और इसमें उनके शासनकाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया गया है |

3.तिरुवेंदिपुरम अभिलेख यह अभिलेख राजराज तृतीय का है और इसमें चोल वंश के उत्कर्ष का उल्लेख किया गया है |

4.मणिमंगलम् अभिलेख यह अभिलेख राजाधिराज प्रथम का है और इसमें श्रीलंका पर विजय पाने का उल्लेख किया गया है |    

 साहित्य

1.पेरियपुराणम् इस ग्रन्थ की रचना कवि शेक्किलार के द्वारा की गई थी और इसमें चोल राजा कुलोतुंग द्वितीय के शासनकाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया गया है |

2.वीरशेलियम इस ग्रन्थ की रचना बौद्ध विद्वान बुद्धमित्र के द्वारा की गई थी और इसमें तमिल व्याकरण का उल्लेख किया गया है |

3.जीवन चिंतामणि इस ग्रन्थ की रचना जैन विद्वान तिरुत्कदेवर के द्वारा की गई थी |

4.महावंशम् यह एक बौद्ध है और इसमें भी चोल राजाओं का उल्लेख किया है |

विजयालय

*विजयालय को 'चोल वंश का संस्थापक' माना जाता है |

*विजयालय का शासनकाल संभवता 850 871 ई. के मध्य में था |

*विजयालय ने 'नरकेसरी की उपाधि' धारण की थी |

*विजयालय ने उरैयुर से राजधानी को हटाकर तंजौर में बनाई थी |

*विजयालय के द्वारा 'निशम्भसुदिनी देवी के मंदिर का निर्माण' करवाया था |

आदित्य प्रथम   

*आदित्य प्रथम, विजयालय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*आदित्य प्रथम का शासनकाल संभवता 871 907 ई. के मध्य में था |

*आदित्य प्रथम ने पल्लव वंश के अंतिम राजा अपराजित वर्मन को पराजित करके सम्पूर्ण पल्लव राजवंश का अन्त कर दिया था |

*आदित्य प्रथम को 'चोल वंश का वास्तविक संस्थापक' माना जाता है |

*आदित्य प्रथम चोल वंश के पहले स्वतंत्र राजा थे क्योंकि उनके पिता विजयालय पल्लव राजाओं के सामंत थे |

*आदित्य प्रथम ने 'कोदण्डराम की उपाधि' धारण की थी |

*आदित्य प्रथम के द्वारा तंजौर में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया गया था |

परान्तक प्रथम

*परान्तक प्रथम, आदित्य प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*परान्तक प्रथम का शासनकाल संभवता 907 953 ई. के मध्य में था |

*परान्तक प्रथम ने पाण्ड्य राजा को पराजित करने के बाद 'मदुरैकोंड की उपाधि' धारण की थी |

*परान्तक प्रथम के द्वारा तंजौर में चिदम्बरम मंदिर का निर्माण करवाया गया था और 'नटराज की प्रतिमा' के ऊपर सोने की छत का निर्माण भी उसी समय करवाया गया था |

*परान्तक प्रथम ने 'तंजेयकोंड की उपाधि' धारण की थी |

*परान्तक प्रथम के शासनकाल में 'राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय' ने गंग राजा के साथ मिलकर 'चोल साम्राज्य' पर आक्रमण किया और तक्कोलम नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ परन्तु परान्तक प्रथम की इस युद्ध में बुरी तरह हार हुई |

*परान्तक प्रथम के बाद सुन्दर चोल (953 957 ई.), परान्तक द्वितीय (957 985 ई.) राजा हुए |

राजराज प्रथम

*राजराज प्रथम का शासनकाल संभवता 985 1014 ई. के मध्य में था |

*राजराज प्रथम ने गंग वंश, वेंगी का चालुक्य वंश, मदुरा के पाण्ड्य और केरल के चेर राजाओं को पराजित किया था |

*राजराज प्रथम ने नौ सेना का निर्माण कर श्रीलंका और उसके आस-पास के देशों पर अधिकार कर लिया था |

*राजराज प्रथम ने 'शिवपाद शेखर की उपाधि' धारण की थी |

*राजराज प्रथम को 'चोल वंश का पहला महान राजा' माना जाता है क्योंकि उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य की सीमाएं श्रीलंका के क्षेत्रों तक थीं |

*राजराज प्रथम को 'दक्षिण भारत में नौ सेना का निर्माण' करने वाला पहला राजा माना जाता है |

*तंजौर में 'राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण' राजराज प्रथम के द्वारा ही करवाया गया था जिसे आज वृहदेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है जो तमिल वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है |

*राजराज प्रथम धार्मिक दृष्टि से सहिष्णु राजा थे उन्होंने बौद्ध मठों का निर्माण भी करवाया था |

राजेन्द्र प्रथम

*राजेन्द्र प्रथम, राजराज प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*राजेन्द्र प्रथम का शासनकाल संभवता 1014 1044 ई. के मध्य में था |

*राजेन्द्र प्रथम ने पाण्ड्य, चेर, श्रीलंका और उसके आस - पास के देशों पर अधिकार करके अपने पिता राजराज प्रथम से भी बड़े साम्राज्य का निर्माण किया था |

*राजेन्द्र प्रथम को चोल वंश का सबसे शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है |

*राजेन्द्र प्रथम के गुरु 'शैव संत ईशानशिव' थे |

*अरब सागर में नौ सेना की श्रेष्ठता को स्थापित करने वाला पहला राजा राजेन्द्र प्रथम को ही माना जाता है |

*राजेन्द्र प्रथम ने गंगेईकोंडचोलपुरम नामक नगर को बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया था परन्तु उससे पहले राजधानी तंजौर में थी |

*गंगेईकोंडचोलपुरम में अनेक मंदिरों का निर्माण राजेन्द्र प्रथम के द्वारा करवाया गया था |

*वीर राजेन्द्र, परकेशरि वर्मन, मुण्डिगोंड चोल, पण्डित चोल, कडर कोंड, गंगेईकोंड चोल आदि की उपाधियाँ राजेन्द्र प्रथम के द्वारा धारण की गई थी |

राजाधिराज प्रथम

*राजाधिराज प्रथम, राजेन्द्र प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*राजाधिराज प्रथम का शासनकाल संभवता 1044 1052 ई. के मध्य में था |

*राजाधिराज प्रथम ने विजयराजेन्द्र की उपाधि धारण की थी |

*1052 . में कल्याणी के चालुक्य राजा सोमेश्वर के साथ हुए युद्ध में राजाधिराज प्रथम की मृत्यु हो गई थी |

राजेन्द्र द्वितीय

*राजेन्द्र द्वितीय, राजाधिराज प्रथम के भाई तथा उत्तराधिकारी थे |

*राजेन्द्र द्वितीय का शासनकाल संभवता 1052 1062 के मध्य में था |

*राजेन्द्र द्वितीय ने कोल्हापुर में 'जयस्तम्भ का निर्माण' करवाया था |

*राजेन्द्र द्वितीय ने 'प्रकेसरी की उपाधि' धारण की थी |

वीर राजेन्द्र

*वीर राजेन्द्र का शासनकाल संभवता 1062 1067 के मध्य में था |

*वीर राजेन्द्र, राजेन्द्र द्वितीय के भाई तथा उत्तराधिकारी थे |

*वीर राजेन्द्र ने 'राजकेसरी की उपाधि' धारण की थी |

*वीर राजेन्द्र ने अपनी पुत्री का विवाह कल्याणी के चालुक्य वंशीय राजा के साथ किया था |

*वीर राजेन्द्र के बाद अधिराजेन्द्र राजा हुए जिनका शासनकाल संभवता 1067 1070 के मध्य में था |

कुलोत्तुंग प्रथम

*कुलोत्तुंग प्रथम, अधिराजेन्द्र के बहनोई तथा उत्तराधिकारी थे |

*कुलोत्तुंग प्रथम का शासनकाल संभवता 1070 1120 ई. के मध्य में था |

*कुलोत्तुंग प्रथम ने अपनी पुत्री का विवाह श्रीलंका के राजकुमार से किया था |

*कुलोत्तुंग प्रथम ने शुंगमतर्तित की उपाधि धारण की गई थी |

*कुलोत्तुंग प्रथम के बाद विक्रम चोल (1120 1133 ई.), कुलोत्तुंग द्वितीय (1133 1150 ई.), राजराजा द्वितीय (1150 1173 ई.), राजाधिराज द्वितीय (1173 1182 ई.), कुलोत्तुंग तृतीय (1182 1216 ई.) और राजाधिराज तृतीय (1216 1250 ई.) राजा हुए परन्तु इनमें से कोई भी शक्तिशाली राजा नहीं हुआ |

राजेन्द्र तृतीय

*राजेन्द्र तृतीय का शासनकाल संभवता 1250 1279 ई. के मध्य में था |

*राजेन्द्र तृतीय को 'चोल वंश का अंतिम राजा' माना जाता है |

*राजेन्द्र तृतीय को पाण्ड्य राजा ने पराजित करके सम्पूर्ण चोल साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था |

चोलकालीन प्रशासन एवं संस्कृति

*चोल काल में राजा का पद पैतृक होता था और सबसे बड़े पुत्र को ही युवराज चुना जाता था |

*चोल काल में राजा के प्रशासकीय कार्यों को करने वाला अधिकारी औले कहलाता था |

*चोल काल में उच्च अधिकारियों को पेसंदरम और छोटे अधिकारियों को शेरुतरम कहा जाता था |

*चोल काल में राजा के अंगरक्षकों को वेलाइक कारा कहा जाता था |

*चोल काल में राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर था |

*सम्पूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रान्तों (मण्डल) में बटा हुआ था और प्रान्तों को मण्डल, मण्डल को कोट्टम, कोट्टम को नाडू और नाडू को कुर्रमों में विभाजित किया गया था |

*चोल काल में भूमि कर उपज का 1/3 भाग लिया जाता था परन्तु राजराज प्रथम के शासनकाल में ½ भाग लिया जाता था |

*चोल काल में 'देवदासी' एवं 'दास प्रथा' दोनों प्रचलित थीं |   

*चोल मूर्तिकला की मुख्य विशेषता, कांसे की मूर्तियों का निर्माण था जिसमें नटराज की काँस्य प्रतिमा सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है |

*चोल काल में ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को 'चतुर्वेदी मंगलम' के नाम से जाना जाता था |

*कलिंगतुपर्णी ग्रन्थ के रचनाकार 'जयगोन्दर' थे जो कुलोत्तुंग प्रथम के दरबार में रहते थे |

*तमिल साहित्य का त्रिरत्न पुगलेंदि, औट्टक्कुट्टन और कंबन को माना जाता है |

*चोल काल में स्थापत्य कला की जो शैली अपनाई गई उसे 'द्रविड़ शैली' के नाम से जाना जाता है |

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