चन्देल वंश का सम्पूर्ण इतिहास | History Of Chandela Dynasty |

 चन्देल वंश का परिचय

चन्देल वंश जिसे प्राचीन चन्द्र वंश की एक शाखा माना जाता है और इसकी स्थापना 830 – 31 ई. में नन्नुक के द्वारा आधुनिक मध्य प्रदेश के खजराहो नामक स्थान पर की गई थी | चन्देल वंश की राजधानी खजराहो, कालिंजर और महोबा में थी जो समय समय पर परिवर्तित होती रहती थी | चन्देल वंश की राजकीय भाषा संस्कृत तथा धर्म सनातन और जैन दोनों थे |

चन्देल वंश के ऐतिहासिक स्त्रोत

1.अभिलेख

*राजा धंगदेव का खजराहो लेख

*महोबा और मऊ का लेख

*अजयगढ़ का लेख

*हमीरपुर का नन्यौरा लेख

2.साहित्य

*श्रीकृष्ण मिश्र का प्रबोधचंद्रोदय ग्रन्थ

*जगनिक का परमालरासो ग्रन्थ जिसका आल्हाखण्ड भाग ही शेष बचा है |

*हसन निज़ामी के लेख

*चंदरबरदाई का पृथ्वीराजरासो ग्रन्थ

नन्नुक

*नन्नुक को चन्देल वंश का संस्थापक तथा पहला राजा माना जाता है |

*नन्नुक का शासनकाल सम्भवता 831 – 845 ई. के मध्य में था |

*नन्नुक ने अपनी राजधानी खजराहो में बनाई थी परन्तु उस समय उसे खजूरवाटिका या खजूर का बगीचा कहा जाता था |

*नन्नुक स्वतंत्र राजा नहीं बल्कि प्रतिहार राजाओं के सामंत थे |

*नन्नुक के शासनकाल में चन्देल साम्राज्य खजराहो तक ही सीमित था |

वाकपति

*वाकपति, नन्नुक के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*वाकपति का शासनकाल संभवता 845 – 870 ई. के मध्य में था |

*वाकपति भी अपने पिता नन्नुक की तरह प्रतिहार राजाओं के सामंत थे |

*वाकपति के शासनकाल में चन्देल साम्राज्य का विस्तार विन्ध्य के क्षेत्रों तक हो गया था |

*वाकपति के दो पुत्र जयशक्ति और विजयशक्ति थे |

जयशक्ति

*जयशक्ति, वाकपति के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*जयशक्ति का शासनकाल संभवता 870 – 885 ई. के मध्य में था |

*जयशक्ति का वास्तविक नाम जेजाक था और उन्होंने ही अपने नाम पर पूरे चन्देल साम्राज्य का नाम जेजाकभुक्ति रखा था जिसे आज बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है |

विजयशक्ति

*विजयशक्ति, वाकपति के पुत्र तथा जयशक्ति के उत्तराधिकारी थे |

*विजयशक्ति का शासनकाल संभवता 885 – 895 ई. के मध्य में था |

*विजयशक्ति का वास्तविक नाम विज्जक था |

*विजयशक्ति के शासनकाल में चन्देल साम्राज्य का विस्तार तो नहीं हुआ परन्तु विजयशक्ति ने बाहरी आक्रमणों से अपने राज्य को सुरक्षित रखा था |

राहिल

*राहिल, विजयशक्ति के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*राहिल का शासनकाल संभवता 895 – 900 ई. के मध्य में था |

*राहिल का वास्तविक नाम राहिल्या था |

*राहिल के शासनकाल में महोबा को चन्देल साम्राज्य का हिस्सा बनाया गया था |

*राहिल ने महोबा के पास राहिल्यासागर नामक एक जलाशय तथा उसके पास एक सुन्दर मंदिर का निर्माण करवाया था |    

हर्षदेव  

*हर्षदेव, राहिल्या के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*हर्षदेव का शासनकाल संभवता 900 – 925 ई. के मध्य में था |

*हर्षदेव के बारे में जानकारी खजराहो लेख में मिलती है |

*खजराहो लेख के अनुसार हर्षदेव एक शक्तिशाली तथा स्वतंत्र राजा थे परन्तु इतिहासकारों ने हर्षदेव को स्वतंत्र राजा नहीं माना है |

यशोवर्मन

*यशोवर्मन, राजा हर्षदेव के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*यशोवर्मन का शासनकाल संभवता 925 – 950 ई. के मध्य में था |

*यशोवर्मन का वास्तविक नाम लक्ष वर्मा था |

*यशोवर्मन संभवता स्वतंत्र राजा थे क्योंकि उन्होंने प्रतिहार राजा महीपाल से कालिंजर का किला छीन लिया था |

*यशोवर्मन के शासनकाल में चन्देल वंश की राजधानी महोबा (उ.प्र.) में थी |

*यशोवर्मन ने कन्नौज के राजा से भगवान विष्णु की प्रतिमा प्राप्त कर उसे खजराहो के चतुर्भुज मंदिर में स्थापित करवाया था |

धंगदेव

*धंगदेव, यशोवर्मन के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*धंगदेव का शासनकाल संभवता 950 – 1003 ई. के मध्य में था |

*धंगदेव के द्वारा खजराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया गया था |

*भारतीय इतिहासकारों ने चन्देल वंश का वास्तविक स्वतंत्र राजा धंगदेव को माना है क्योंकि उनके अधीन कन्नौज के प्रतिहार राजा त्रिलोचनपाल थे |

*धंगदेव के बारे में जानकारी खजराहो लेख से प्राप्त होती है |

*धंगदेव ने कालिंजर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था |

*धंगदेव ने परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, कालिंजराधिपति जैसी प्रख्यात उपाधियाँ धारण की थीं |

गंडदेव

*गंडदेव, राजा धंगदेव के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*गंडदेव का शासनकाल संभवता 1003 – 1017 ई. के मध्य में था |

*गंडदेव ने कन्नौज के प्रतिहार राजा यशपाल की हत्या अपने पुत्र विद्याधर देव से करवा दी थी क्योंकि यशपाल ने महमूद गज़नवी का सामना नहीं किया था |

*कुछ भारतीय इतिहासकारों का मानना है कि महमूद गज़नवी ने राजा गंडदेव को पराजित करके अपनी अधीनता स्वीकार करवाई थी |

विद्याधर देव

*विद्याधर देव, राजा गंडदेव के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे |

*विद्याधर देव का शासनकाल संभवता 1017 – 1029 ई. के मध्य में था |

*विद्याधर देव के शासनकाल में चन्देल कला एवं वास्तुकला में विशेष उन्नति हुई थी |

*यशोवर्मन, धंगदेव और विद्याधर देव के द्वारा नागर शैली में बनवाए गए कंदरिया महादेव, लक्ष्मण मंदिर, विश्वनाथ मंदिर और पाशर्व नाथ मंदिर थे |

*विद्याधर देव के शासनकाल में कलचुरि राजाओं ने चन्देल साम्राज्य का पूर्वी हिस्सा जीतकर अपने अधीन कर लिया था |

*विद्याधर देव के बाद विजयपाल (1030 – 1045 ई.) और देववर्मन (1045 – 1060 ई.) राजा हुए परन्तु इनके शासनकाल में कोई विशेष घटना नहीं हुई |

कीर्ति सिंह

*कीर्ति सिंह का शासनकाल सम्भवता 1060 – 1100 ई. के मध्य में था |

*कीर्ति सिंह का वास्तविक नाम कीर्ति वर्मन था |

*कीर्ति सिंह के पिता का नाम  विजयपाल तथा माता का नाम भुवन देवी था |

*महोबा में कीरतसागर का निर्माण राजा कीर्ति सिंह के द्वारा ही करवाया गया था |

*कीर्ति सिंह के बाद सुल्लक्षण वर्मन (1100 – 1115 ई.) जयवर्मन (1115 – 1120 ई.) पृथ्वी वर्मन (1120 – 1129 ई.) मदन वर्मन (1129 – 1162) यशोवर्मन द्वितीय (1162 – 1166 ई.) राजा हुए |

परमर्दिदेव

*परमर्दिदेव का शासनकाल संभवता 1166 – 1203 ई. के मध्य में था |

*परमर्दिदेव का वास्तविक नाम परमाल था |

*परमर्दिदेव के दरवारी कवि जगनिक थे जिन्होंने परमालरासो ग्रन्थ की रचना हिन्दी भाषा में की परन्तु वर्तमान में इस ग्रन्थ का एक भाग आल्हाखण्ड ही उपलब्ध है जिसमें परमर्दिदेव के दो सेनानायक आल्हा एवं उदल की वीर गाथा है |

*परमर्दिदेव के परम मित्र कन्नौज के राजा जयचन्द्र थे |

*1203 ई. में परमर्दिदेव ने कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली थी और इसके बाद चन्देल साम्राज्य के अधिकत्तर क्षेत्रों पर कुतुबुद्दीन ऐबक का अधिकार हो गया था |       

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