वाकाटक वंश का परिचय
वाकाटक वंश का
उल्लेख अजंता लेख तथा वायुपुराण में मिलता है वैसे तो भारतीय इतिहासकारों ने
वाकाटक वंश का इतिहास विस्तार से नहीं लिखा है | अजंता लेख के अनुसार वाकाटक वंश
के प्रथम राजा विन्ध्यशक्ति थे और इतिहासकारों ने विन्ध्यशक्ति को ही वाकाटक वंश
का संस्थापक भी माना है | वाकाटक राजवंश ने मध्य भारत के हिस्से पर 200 वर्षों से
भी अधिक समय तक शासन किया था और इसकी राजधानी नन्दिवर्धन, नागार्धन, नागवर्धन गांव
में थी जो आधुनिक महाराष्ट्र के नागपुर जिले में स्थित है और अजंता की गुफ़ा संख्या
9 व 10 वाकाटक राजवंश से ही सम्बंधित है |
वाकाटक वंश की
स्थापना 250 या 255 ई. में, वाकाटक राजवंश के प्रथम राजा विन्ध्यशक्ति के
द्वारा की गई थी परन्तु वाकाटक राजवंश का सबसे शक्तिशाली राजा प्रवरसेन प्रथम को
माना जाता है क्योंकि प्रवरसेन के शासनकाल में 4 अश्वमेघ यज्ञों का आयोजन किया गया
था | वाकाटक वंश, ब्राह्मण राजवंश था और वाकाटक वंश के राजाओं ने सबसे अधिक
ब्राह्मणों को भूमि दान में दिया था और सांस्कृतिक दृष्टि से वाकाटक राजा शैव धर्म
के अनुयायी थे |
वाकाटक वंश की
रानी प्रभावती गुप्त जो गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थीं उनका
विवाह वाकाटक राजवंश के राजा रुद्रसेन द्वितीय से हुआ था | रुद्रसेन द्वितीय की
मृत्यु के बाद प्रभावती गुप्त ने वाकाटक राजवंश की बागडोर सम्भाली और 390 से 400
ई. के मध्य में उन्होंने शासन किया | प्रभावती गुप्त बहुत शक्तिशाली महिला थीं
उनके शासनकाल में वाकाटक राजवंश का शासन बहुत प्रभावशाली रहा जो आज भी इतिहासकारों
के लिए एक अहम् जानकारी प्रदान करता है |
1.विन्ध्यशक्ति (255 – 275 ई.)
*विन्ध्यशक्ति
सातवाहन वंश के अधीन मालवा के राजा थे परन्तु सातवाहन वंश के पतन होने पर
विन्ध्यशक्ति ने स्वयं को स्वतंत्र राजा
घोषित कर दिया था और सम्पूर्ण विन्ध्य पर्वतीय क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था |
*विन्ध्यशक्ति
का वास्तविक नाम विरुध था और अजंता लेख में वंश केतु नाम लिखा हुआ है |
*विन्ध्य
पर्वतीय क्षेत्र को जीतने के बाद विरुध ने विन्ध्यशक्ति की उपाधि धारण की थी |
*अजंता लेख में
विन्ध्यशक्ति को इन्द्र के समान बताया गया है |
2.प्रवरसेन (275 – 335 ई.)
*प्रवरसेन,
विन्ध्यशक्ति के पुत्र और वाकाटक वंश के वास्तविक संस्थापक थे |
*प्रवरसेन
वाकाटक वंश के एक मात्र राजा थे जिन्होंने सम्राट की उपाधि धारण की थी |
*प्रवरसेन ने
वाकाटक साम्राज्य की सीमाओं को बुन्देलखण्ड तक बढ़ा दिया था |
*प्रवरसेन ने
अपने शासनकाल में 4 अश्वमेघ और एक राजसूय यज्ञ का आयोजन करवाया था |
3.रुद्रसेन
प्रथम (335 – 360 ई.)
*रुद्रसेन
प्रथम, प्रवरसेन की पौत्र थे और उनके पिता का नाम गौतमीपुत्र था |
*रुद्रसेन
प्रथम, गुप्त वंश के प्रसिद्ध राजा समुद्र गुप्त के समकालीन थे |
4.पृथ्वीसेन
प्रथम (360 – 385 ई.)
*वाकाटक
अभिलेखों में पृथ्वीसेन प्रथम को महाभारत के युधिष्टर के समान बताया गया है |
5.रुद्रसेन
द्वितीय (385 – 390 ई.)
*रुद्रसेन
द्वितीय, पृथ्वीसेन प्रथम के पुत्र थे |
*रुद्रसेन
द्वितीय का विवाह गुप्त वंश के प्रसिद्ध राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री
प्रभावती गुप्त से हुआ था |
*रुद्रसेन
द्वितीय के दो पुत्र दिवाकर सेन और दामोदर सेन थे |
6.प्रभावती
गुप्त (390 – 400 ई.)
*रुद्रसेन
द्वितीय के बाद प्रभावती गुप्त वाकाटक वंश की संरक्षिका के रूप में शासिका बनी
क्योंकि उनके दोनों पुत्र दिवाकर सेन और दामोदर सेन अल्पवयस्क थे |
7.प्रवरसेन
द्वितीय (400 – 440 ई.)
*प्रवरसेन
द्वितीय का वास्तविक नाम दामोदर सेन था जो प्रभावती गुप्त और रुद्रसेन द्वितीय के
पुत्र थे |
*प्रवरसेन
द्वितीय के शासनकाल में सबसे अधिक भूमि ब्राह्मणों को दान में दी गई थी |
*प्रवरसेन
द्वितीय ने सेतुबंध नामक ग्रन्थ की रचना की थी |
8.नरेंद्र
सेन (440 – 460 ई.)
*नरेंद्र सेन,
प्रवरसेन द्वितीय के पुत्र थे |
*नरेंद्र सेन का
विवाह कदम वंश की राजकुमारी अजित भट्टारिका से हुआ था |
9.पृथ्वीसेन
द्वितीय (460 – 480 ई.)
*पृथ्वीसेन
द्वितीय ने परमभागवत की उपाधि धारण की थी |
*पृथ्वी सेन
द्वितीय के बाद वाकाटक राजाओं का इतिहास उपलब्ध नहीं है |
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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD