चन्द्रगुप्त मौर्य और बिन्दुसार का इतिहास...| History of Chandragupta Maurya and Bindusara |

मौर्य वंश का सम्पूर्ण इतिहास

1.मौर्य इतिहास के स्त्रोत 

अर्थशास्त्र - यह राजनीति और प्रशासन पर लिखी गई पुस्तक है और इस पुस्तक को चाणक्य, विष्णु गुप्त या कौटिल्य नामक व्यक्ति ने लिखा था परन्तु इसकी रचना कब हुई इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण अब तक हासिल नहीं हुए हैं | इस पुस्तक को 15 भागों तथा 180 उपभागों में विभाजित किया गया है तथा इसमें न तो किसी मौर्य राजा के नाम का उल्लेख है और न ही मौर्य प्रशासन की जानकारी प्रदान की गई है | इस पुस्तक का उल्लेख सर्वप्रथम 1909 में डॉ. शाम शास्त्री नामक एक व्यक्ति ने किया था परन्तु शाम शास्त्री ने इस पुस्तक को लिखने के लिए किस प्राचीन ग्रन्थ का सहारा लिया इसकी चर्चा उन्होंने नहीं की |

इण्डिका - इस ग्रन्थ की रचना मेगास्थनीज़ ने 304 से 299 ई. पू. के मध्य में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरवार में की थी और मेगास्थनीज़, सिकंदर के उत्तराधिकारी तथा बेबीलोन के शासक सेल्यूकस निकेटर के राजदूत थे | इण्डिका ग्रन्थ में चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन, राजधानी पोलिब्रोथा (पाटिलपुत्र) और  भू-राजस्व के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की गई है | मेगास्थनीज़ ने इण्डिका में ही एक विशाल कच्ची सड़क का उल्लेख किया है और उसी सड़क को शेरशाह सूरी ने पक्की सड़क के रूप में परिवर्तित करवा के शेरशाह सूरी मार्ग का नाम प्रदान किया था फिर उसी सड़क को ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने जी. टी. रोड (ग्रांड ट्रंक रोड) का नाम प्रदान किया | 

जूनागढ़ अभिलेख - यह अभिलेख शक राजा रुद्रदामन के द्वारा निर्मित करवाया गया था और इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सम्राट अशोक के नामों का उल्लेख किया गया है |

मुद्राराक्षस - इस पुस्तक की रचना संस्कृत भाषा में विशाखदत्त ने चौथी शताब्दी के आस-पास में की थी और इसकी रचना नाटकीय रूप में की गई है | मुद्राराक्षस में हवा-हवाई बातों का ज्यादा उल्लेख है जैसे इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र तथा घनानंद का पुत्र कहा गया है |      
    
दिव्यावदान - यह बौद्ध ग्रन्थ है और इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय बताया गया है और परन्तु चाणक्य, कौटिल्य या विष्णु गुप्त के नाम का कोई उल्लेख नहीं किया गया है | 

परिशिष्ट पर्वन - यह जैन ग्रन्थ है और इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय तथा पिप्पलिवन का मौरिय (मयूर को पालने वाले) राजा बताया गया है | परिशिष्ट पर्वन ग्रन्थ में चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की गई परन्तु चाणक्य, कौटिल्य या विष्णु गुप्त के नाम का कोई उल्लेख इसमें भी नहीं किया गया है |  

अभिलेख - भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख सम्राट अशोक के माने जाते हैं और इनकी संख्या बौद्ध ग्रंथों में 84000 बताई गई है परन्तु अभी कुछ अभिलेखों को ही खोजा गया है | इन अभिलेखों में मौर्य वंश का इतिहास मिलता है |

2.मौर्य वंश का परिचय

मौर्य वंश या मौरिय वंश, इसका वास्तविक नाम मौरिय वंश है और इसकी स्थापना महात्मा बुद्ध के समय से पहले ही पिप्पलिवन में हो गई थी क्योंकि बौद्ध ग्रन्थ महापरिनिर्वाण सूत्र में पिप्पलिवन के मौरिय राजाओं का उल्लेख है और उसमें कहा गया है कि महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके शरीर धातु (राख) को 8 भागों में बाँटा गया था जिसमें पिप्पलिवन के मौरिय राजा भी शामिल थे और पिप्पलिवन के मौरिय राजा ने अपने राज्य में एक स्तूप का निर्माण भी करवाया था | 

मगध पर मौर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने 323 ई. पू. में नन्द वंश के अंतिम राजा घनानंद की हत्या करवा कर की थी और मौर्य वंश के राजाओं का राजवंशीय चिन्ह मयूर (मोर) था इसीलिए चन्द्रगुप्त के नाम में मौरिय या मौर्य शब्द जुड़ा है | मौर्य वंश के प्रथम राजा चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अंतिम राजा ब्रह्द्रथ थे परन्तु सबसे शक्तिशाली राजा अशोक को माना जाता है |

3.चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास 

*चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल 322 से 298 ई. पू. के मध्य में था |

*बौद्ध ग्रंथों तथा जैन ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय तथा मूल रूप से पिप्पलिवन का राजा बताया गया है |

*चन्द्रगुप्त मौर्य का सबसे अधिक उल्लेख परिशिष्ट पर्वन, राजावली कथा और इण्डिका जैसे ग्रंथों में मिलता है |

*चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन गुरु भद्रवाहू से जैन धर्म की दीक्षा ली थी |

*यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स तथा एन्ड्रोकोट्स के नाम से अपने ग्रंथों में लिखा है |

*बौद्ध ग्रन्थ महाबोधि वंश और जैन ग्रन्थ परिशिष्ट पर्वन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने प्रारम्भ में मगध पर कई आक्रमण किए परन्तु सफलता नहीं मिली | इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने पंजाब और सिन्ध पर आक्रमण किया और सफलता हासिल की और फिर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध के आस-पास के राज्यों पर आक्रमण करना शुरू किए और सभी राजाओं को अपने अधीन कर लिया |

*323 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने आस-पास के राजाओं का एक मजबूत संघ बनाया और मगध पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु आक्रमण से पहले चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध के राजा घनानंद के कुछ मंत्रियों को धन का लालच देकर घनानंद की धोखे से हत्या करवा दी | उसी समय घनानंद के सेनापति भद्द्साल ने चन्द्रगुप्त मौर्य पर आक्रमण कर दिया लेकिन चन्द्रगुप्त मौर्य पहले से तैयार थे युद्ध के लिए | दोनों के मध्य युद्ध हुआ जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य की जीत हुई और इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य  ने मगध के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था, इस युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य का साथ पवर्तक नामक राजा ने दिया था |

*304 या 305 ई. पू. में मगध के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के उत्तराधिकारी तथा बेबीलोन के शासक सेल्यूकस निकेटर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य की जीत हुई | इस युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने अपने लेखों में किया है और फिर सेल्यूकस निकेटर ने अपनी पुत्री हेलना या कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया था और दहेज़ के रूप में हेरात, कंधार, मकरान और काबुल के राज्य दिए थे | 

*इस युद्ध को जीतने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने विशाल सेना लेकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप (आधुनिक भारत) पर आक्रमण किए और ज्यादातर राजाओं को अपने अधीन कर लिया था |

*मेगास्थनीज़ ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरवार में अपने इण्डिका ग्रन्थ की रचना 304 से 299 ई. पू. के मध्य में की थी |

*जैन ग्रन्थ राजावली कथा के अनुसार 298 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य अपने पुत्र बिन्दुसार को मगध का शासन सौंप कर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर चले गए थे और वहीँ पर उन्होंने संलेखना पद्धति से अपने प्राणों का त्याग किया था | 

4.बिन्दुसार का इतिहास 

*बिन्दुसार का शासनकाल 298 से 273 ई. पू. के मध्य में था |

*बिन्दुसार को अमित्रघात (शत्रुओं का विनाश करने वाला) और सिंहसेन के नामों से भी जाना जाता है |

*पुराणों में बिन्दुसार को भद्रसार कहा गया है |

*जैन ग्रन्थ परिशिष्ट पर्वन के अनुसार बिन्दुसार की माता का नाम दुर्धरा था |

*बिन्दुसार के शासनकाल में अशोक उज्जैन के प्रशासक थे |

*बिन्दुसार के दरवार में डाईमेकस आए थे जो सीरिया के राजा एंटियोकस प्रथम के राजदूत थे |

*बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायी थे और आजीवक सम्प्रदाय के प्रसिद्ध गुरु पिंगलवत्स के परम मित्र थे | 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ