लॉर्ड वेलेजली - 1798 से 1805 ई. तक
सर जॉन शोर के
बाद 26 अप्रैल 1798 ई. को लार्ड वेलेजली भारत के गवर्नर जनरल बनकर आए। वह पूर्ण
साम्राज्यवादी व्यक्ति थे। जिस समय लार्ड वेलेजली भारत के गवर्नर जनरल बनकर आए उस
समय भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत ख़राब थी | इतिहासकार
अल्फ्रेड लॉयल के अनुसार
*मैसूर
में उस समय टीपू सुल्तान का शासन था।
*हैदराबाद के
निजाम फ्रांसीसियों से सहायता प्राप्त कर रहा
थे ।
*मुगल बादशाह
शाहआलम नाम-मात्र के शासक थे ।
*पंजाब में राजा
रणजीतसिंह ने बहुत अधिक शक्ति बढ़ा ली थी, परन्तु
अंग्रेजों का सामना करने का उसमें साहस न था ।
*मराठों का
उत्तर एवं मध्य भारत में विस्तार था। ग्वालियर में सिन्धिया,
बड़ौदा में गायकवाड़, बरार में भोंसला तथा इंदौर में होल्कर का शासन था। परन्तु वे आपस में निरन्तर लड़ते-झगड़ते रहते थे ।
लॉर्ड वेलेजली की नीति
लॉर्ड वेलेजली
साम्राज्यवादी नीति के पूर्ण समर्थक थे। उन्होंने भारत की राजनीतिक स्थिति को
‘अत्यन्त गम्भीर’ स्थिति कहा। लॉर्ड वेलेजली ने सर जॉन शोर की अहस्तक्षेप की नीति
का परित्याग कर साम्राज्यवादी नीति को अपनाया ।
लॉर्ड
वेलेजली की सहायक नीति
लॉर्ड वेलेजली
की भारतीय राजाओं से मैत्री - सम्बन्ध स्थापित करने की नीति को भारतीय इतिहास में
‘सहायक - संधि’ के नाम से जाना गया है । सहायक संधि की प्रमुख शर्तें |
(1) इस सन्धि को
स्वीकार करने वाले राजा को कम्पनी का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था और अपने राज्य में अपने ही खर्च पर अंग्रेजी सेना रखनी होती थी।
(2) उसको अपने
दरबार में एक अंग्रेज रेजीडेण्ट रखना होता था।
(5) यदि
सहायक-सन्धि स्वीकार करने वाले राजाओं के मध्य आपस में किसी भी प्रकार का झगड़ा हो
जाय तो उनको अंग्रेजों को मध्यस्थ बनाना पड़ता था और अंग्रेजी कम्पनी के निर्णय
स्वीकार करने को वे बाध्य किये जाते थे।
(6) जो राज्य इन
सभी शर्तों को स्वीकार कर लेता था उस राज्य के वाहरी आक्रमणों तथा आन्तरिक विद्रोहों से रक्षा करने का उत्तरदायित्व ईस्ट इंडिया कम्पनी ले लेती थी।
सहायक
संधि के लाभ
(1) सहायक संधि
द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी के साधनों में बड़ी वृद्धि हुई जिसके कारण वह भारत में
सर्वोच्च सत्ता बन गई। उसका देशी राज्यों की बाहरी नीतियों पर पूर्ण अधिकार
स्थापित हो गया।
(2) ईस्ट
इंडिया कम्पनी का व्यय कम हो गया क्योंकि जो सेना देशी राजाओं के राज्यों में रहती
थी उसका सम्पूर्ण खर्च देशी राजाओं को देना पड़ता था। इससे कम्पनी की आर्थिक
स्थिति सुदृढ़ हो गई।
(3) सहायक संधि
के अन्तर्गत जो सेना देशी राज्यों में रहती थी उसके कारण ईस्ट इंडिया कम्पनी का
राज्य बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित हो गया और ईस्ट इंडिया कम्पनी को अनेक युद्धों
से छुटकारा मिल गया।
(4) सहायक सन्धि
स्वीकार करने वाले राजा अंग्रेजों की स्वीकृति के बिना किसी भी विदेशी को अपने
राज्य में नौकर नहीं रख सकते थे। इससे देशी राज्यों से फ्रांसीसी प्रभाव का अन्त
होना आरम्भ हो गया।
सहायक
सन्धि के दोष
(1) भारतीय
राजाओं का शक्तिहीन होना - सहायक संधि के द्वारा देशी राजा शक्तिहीन हो गये। उनका
अपने राज्य की बाहरी - नीति पर कोई अधिकार न रह गया क्योंकि अब वे अंग्रेजों की
आज्ञा के बिना न तो किसी से सन्धि कर सकते थे और न ही किसी से युद्ध |
(2)
आर्थिक संकट- कम्पनी की सेना रखने वाले राज्यों को सेना का सम्पूर्ण खर्च देना पड़ता था। इस कारण उनको आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा।
(3) बेरोजगारी
की समस्या- देशी राजाओं को अंग्रेजी सेना रखना अनिवार्य था। इससे बहुत से भारतीय
सैनिक बेरोजगार हो गये और राज्यों में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई। बेरोजगार
सैनिकों ने चारों ओर विद्रोह करना प्रारम्भ कर दिया।
(4) जनता को
कष्ट- देशी राजाओं के समक्ष आर्थिक संकट होने के कारण जनता को अधिक करों का बोझ
वहन करना पड़ा, जिससे जनता को बड़े कष्टों का सामना
करना पड़ा।
सहायक
- सन्धि स्वीकार करने वाले राज्य
(1) लॉर्ड
वेलेजली की सहायक - संधि का सर्वप्रथम शिकार 1798 ई. में हैदराबाद के निज़ाम हुए और
सहायक संधि की शर्तों के अनुसार निज़ाम को अपने राज्य में 6 बटालियन अंग्रेजी सेना
रखनी पड़ी |
(2) लॉर्ड
वेलेजली की सहायक - संधि का दूसरा शिकार मैसूर के शासक टीपू सुल्तान हुए लेकिन
टीपू सुल्तान ने सहायक संधि स्वीकार करने से इंकार कर दिया था |
मई 1799 ई. में टीपू और अंग्रेजों के मध्य हुआ जिसमें अंग्रेजों की
जीत हुई |
अंग्रेज
इतिहासकारों ने टीपू सुल्तान की प्रशंसा भी की है। "टीप का राज्य खूब बसा हुआ
था उसके उर्वर प्रदेशों में अच्छी खेती होती थी। मैसूर राज्य की सेना का अनुशासन
तथा राजभक्ति प्रशंसनीय थी। यद्यपि टीपू कठोर तथा स्वेच्छाचारी शासक था तथापि वह
सदैव अपनी प्रजा के दुःख-सुख का ध्यान रखता था। उसका राज्य सुख-सम्पन्न था।
व्यापार की उत्तरोत्तर उन्नति हो रही थी बड़े-बड़े नगरों की संख्या बढ़ रही थी और
प्रजा स्वतन्त्रतापूर्वक अपने-अपने व्यापारिक कार्य को करती थी"
(3) लॉर्ड
वेलेजली की सहायक - संधि का अगला शिकार अवध राज्य हुआ |
अवध के नवाब सआदत अली खां ने 1801 ई. में लॉर्ड वेलेजली की सहायक -
संधि स्वीकार कर ली थी |
*अवध की सेना का
विघटन कर दिया गया और अंग्रेजी सेना में वृद्धि कर दी गई।
*अंग्रेजी सेना
के व्यय के लिये अवध राज्य का आधा भाग अंग्रेजों को प्राप्त हुआ।
*नवाब के दरबार
में एक अंग्रेज रेजीडेण्ट रहने लगा |
(4) लॉर्ड
वेलेजली की सहायक - संधि का अगला निशाना पेशवाओं को बनाया गया | 31 दिसम्बर, 1802 ई. को पेशवा और अंग्रेजों के बीच
बेसीन की सन्धि हुई जिसके अनुसार
*पेशवा ने
अंग्रेजों की पूर्ण अनुमति के बिना किसी भी राज्य से संघर्ष न करने का करने का
वायदा किया ।
*अंग्रेजों ने
अपने 60,000 सैनिकों के स्थायी रूप से बाजीराव द्वितीय के क्षेत्र में रखने का आश्वासन दिया ।
*लॉर्ड वेलेजली
की सहायक संधि को इंदौर के होल्कर शासकों ने स्वीकार नहीं किया था |
*लॉर्ड वेलेजली
को ‘सहायक - संधि’ का जन्मदाता माना जाता है |
*लॉर्ड वेलेजली
स्वयं को ‘बंगाल का शेर’ कहता था |
*लॉर्ड वेलेजली
के शासनकाल, 1800 ई. में नागरिक सेवा में भर्ती
किए गए युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की
स्थापना की गयी थी |
वेलेजली के कार्यों का मूल्यांकन
भारत में
ब्रिटिश साम्राज्य के निर्माताओं में वेलेजली को प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह
ब्रिटिश सत्ता को स्थापित करने के उद्देश्य से भारत आया। निःसन्देह उसे अपने
उद्देश्यों में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। उसकी सहायक सन्धियाँ अंग्रेजी राज्य को
सुदृढ़ करने में विशेष सहायक सिद्ध हुईं। अंग्रेजों को आन्तरिक झगड़ों और बाह्य
आक्रमणों से भय न रहा। उनकी सहायक सन्धि की नीति से देशी राजा पंगु हो गये।
वेलेजली ने
पेशवाओं को परास्त कर अंग्रेजी शक्ति की धाक जमा दी। सैद्धान्तिक रूप में उसने
सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजों को प्रभुसत्ता स्थापित कर दी। डॉ.ईश्वरी प्रसाद ने
लिखा है, "वास्तव में इसमें संदेह नहीं कि भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की
स्थापना करने का बहुत कुछ श्रेय वेलेजली को है।" वेलेजली के कार्यों का
मूल्यांकन करने पर अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि क्लाइव ने भारत में
ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की, वारेन हेस्टिंग्ज ने उसे
सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित किया और वेलेजली ने उसे विस्तृत किया और उसकी मर्यादा
तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की और उसे भारत की शक्ति बना दिया।
0 टिप्पणियाँ
यह Post केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टी से लिखा गया है ....इस Post में दी गई जानकारी, भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त [CLASS 6 से M.A. तक की] पुस्तकों से ली गई है ..| कृपया Comment box में कोई भी Link न डालें.
प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
मध्यकालीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3LGGovu
आधुनिक इतिहास PDF – http://bit.ly/3wDnfX3
सम्पूर्ण इतिहास PDF – https://imojo.in/1f6sRUD