दिल्ली सल्तनत और उसकी शासन व्यवस्था | Delhi sultanate history in Hindi |


दिल्ली सल्तनत की शासन व्यवस्था और उसके महत्वपूर्ण तथ्य

*दिल्ली सल्तनत को मुख्य रूप से इस्लाम धर्म प्रधान राज्य माना जाता है और उसका प्रमुख सुल्तान होता था |

*सुल्तान उस शासक को कहा जाता था जिसका शासन स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश होता था |

*उलेमा उन धार्मिक लोगों को कहा जाता था जो इस्लामी ग्रंथों की व्याख्या करते थे |

*इस्लामी ग्रंथों की व्याख्याकारों ने देश में मौजूद समस्याओं के समाधान के लिए क़ुरान व हदीस के आधार पर अपनी सामाजिक व्यवस्था बनाई और उसी व्यवस्था को शरीयत का नाम दिया गया |

*इस्लामी कानून शरीयत, क़ुरान और हदीस पर आधारित होता है जिसमें शरीयत को प्रमुख माना जाता है |

*शरीयत के अनुसार ही खलीफ़ा और शासक अपना कार्य करते थे |

*खलीफ़ा मुस्लिम जगत के प्रधान को कहा जाता था | मुहम्मद साहब के बाद 4 प्रमुख खलीफ़ा हुए अबुबक्र, उमर, उस्मान और अली |

*शुरुआत में खलीफ़ा का चुनाव होता था परन्तु बाद में खलीफ़ा का पद वंशानुगत हो गया था |

*खलीफ़ा का पद 1924 में तुर्की के शासक मुस्तफ़ा कमालपाशा ने समाप्त कर दिया था |

*वैधानिक रूप से सुल्तान की उपाधि खलीफ़ा के द्वारा प्रदान की जाती थी |

*सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला स्वतंत्र शासक महमूद गज़नवी को माना जाता है |

*दिल्ली सल्तनत के सभी शासकों में इल्तुतमिश को पहला शासक माना जाता है जिसे खलीफ़ा के द्वारा वैधानिक रूप से सुल्तान की उपाधि प्रदान की गई थी |

*दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान मुबारक शाह खिलज़ी को माना जाता है जिसने खलीफ़ा की सम्प्रभुता को मानने से इंकार कर दिया था |   

*सल्तनत काल में राजस्व की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था |

*दिल्ली सल्तनत में पांच राजवंशों ने शासन किया 1. गुलाम वंश या मामलूक वंश [1206-1290 ई.] 2.ख़िलज़ी वंश [1290-1320 ई.] 3.तुगलक़ वंश [1320-1414 ई.] 94 वर्षों तक शासन किया जो सबसे ज्यादा था | 4.सैय्यद वंश [1414-1451 ई.] 5.लोदी वंश [ 1451-1526 ई.] |

*सल्तनत काल में मंत्रीपरिषद को मजलिस-ए-खलवत कहा जाता था और इसकी बैठक मजलिस-ए-खास या मजलिस-ए-आम में होती थी |

*मुशरिफ ए मुमालिक- प्रांतों एवं अन्य विभागों से प्राप्त आय एवं व्यय का लेखा जोखा करने वाला अधिकारी होता था |

*खज़ीन-  यह कोषाध्यक्ष होता था |

*सद्र ए सुदूर- धर्म विभाग एवं दान विभाग का प्रमुख अधिकारी होता था |

*काजी उल कुज़ात- सुल्तान के बाद न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था |

*दीवान ए खैरात-  यह दान विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी |

*दीवान ए बन्दगान- यह दास विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी |

*दीवान ए इस्तिहाक- यह पेंशन विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी |

*दीवान ए मुस्तखराज़- यह वित्त विभाग होता था इसकी स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने की थी |

*दीवान ए अमीर कोही- यह कृषि विभाग होता था इसकी स्थापना मोहम्मद बिन तुगलक ने की थी |

*दीवान ए अर्ज़- यह सैन्य विभाग होता था और इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी आरिज़ ए मुमालिक  होता था | इस विभाग की स्थापना गयासुद्दीन बलबन ने की थी |

*दीवान ए विज़ारत- इस विभाग का अध्यक्ष वजीर होता था | तुगलक काल को भारतीय वज़ारत का स्वर्ण काल माना जाता है जबकि बलबन का काल इनका निम्न काल था |

*दीवान ए ईंशा- यह शाही सचिवालय होता था इसका प्रमुख अधिकारी दबीर ए खास कहलाता था |

*दीवान ए रसालत- यह विदेश विभाग होता था |

*दीवान ए बरीद- यह गुप्तचर विभाग होता था इसका सर्वोच्च अधिकारी बरीद ए मुमालिक कहलाता था |

*अमीर ए हाज़िब- इसे  बारबाक भी कहा जाता था यह शाही  दरबार का शिष्टाचार एवं वैभव बनाए रखता था |

*दीवान ए रियासत- यह विभाग बाजार नियंत्रण की व्यवस्था करता था इस विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में हुई थी |

*दीवान ए इमारत- यह लोक निर्माण विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में हुई थी |

*प्रांतीय प्रशासन- सल्तनत काल में अनेक प्रांतों थे जिन्हें सूबा, इक्ता या विलायत कहा जाता था | इस का सर्वोच्च अधिकारी इक्ता,वली,मुक्ता व नायब होता था |

*जिला या शिक  प्रशासन- जिला या शिक का निर्माण 1279 ई. में सर्वप्रथम बलबन ने किया था इसका प्रमुख अधिकारी शिकदार होता था |

*परगना प्रशासन- जिले के नीचे परगना होता था इसका प्रमुख अधिकारी आमिल कहलाता था |

*गांव प्रशासन- गांव के प्रशासन का प्रमुख अधिकारी मुकद्दम या चौधरी होता था |

*खालसा भूमि-  खालसा भूमि वह भूमि होती थी जिसकी आय सुल्तान के लिए सुरक्षित रखी जाती थी | खालसा भूमि का सर्वाधिक विस्तार अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में हुआ था |

*इक्ता भूमि-  वेतन के रूप में अधिकारियों को प्रदान की जाने वाली भूमि इक्ता भूमि कहलाती थी |

*अनुदान भूमि-  पुरस्कार स्वरूप या धर्माचार्यों की दान में दी जाने वाली भूमि को अनुदान भूमि कहा जाता था |

*जकात- यह अमीर मुस्लिमों से लिए जाने वाला कर होता था जो 2.5% लिया जाता था |

*जजिया- यह धार्मिक कर होता था |  यह कर ब्राह्मणों को छोड़कर सभी गैर मुस्लिमों से लिया जाता था लेकिन फिरोजशाह तुगलक ने ब्राह्मणों से भी जजिया कर बसूला |

*खराज- यह गैर मुस्लिमों से लिए जाने वाला कर था जो 33-50%  के बीच लिया गया |

*ख़ुम्स- यह लूटे हुए धन पर लिए जाने वाला कर था |

*उश्र- यह मुस्लिमों से लिए जाने वाला भूमि कर था जो 10% लिया जाता था |

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