विजयनगर साम्राज्य का साहित्य, कला एवं प्रशासन | Literature, Art and Administration of Vijayanagara Empire |

विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन

*विजयनगर का शासन वंशानुगत राजतंत्र पर आधारित था और उसका मूल आधार निरंकुश राजतंत्र था |

*कृष्णदेव राय अपने आमुक्त माल्याद ग्रंथ में लिखा है कि अपनी प्रजा की सुरक्षा और कल्याण के उद्देश्य को सदैव आगे रखो, तभी देश में लोग राजा के कल्याण की कामना करेंगे और राजा का कल्याण तभी होगा, जब देश प्रगतिशील और समृद्धशाली होगा |

*विजयनगर का केंद्रीय प्रशासन 3 परिषदों में बटा हुआ था |          

1.राजपरिषद - यह राजा की सलाहकार समिति होती थी और इसका सर्वप्रमुख कार्य राजा को सलाह देना तथा राजा का राज्याभिषेक करना होता था |

*विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत युवराज के राज्याभिषेक को पट्टाभिषेकम कहा जाता था |

2.मंत्री परिषद - इसका प्रमुख अधिकारी प्रधानी या महाप्रधानी कहलाता था और इसके अध्यक्ष को सभानायक कहा जाता था |

3.सामान्य परिषद - इसका सर्व प्रमुख कार्य राजा को परामर्श देना होता था किंतु इसके परामर्श को राजा अपनी इच्छा अनुसार स्वीकार या अस्वीकार कर सकता था |

*प्रांतीय प्रशासन - विजयनगर साम्राज्य का प्रांतीय प्रशासन मंडलम (राज्य), कोट्टम या वलनाडू (जिला), नाडु (तहसील), मेलग्राम (25 गांव का समूह), उर या ग्राम में बटा हुआ था |

*उर या ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी |

*स्थानीय प्रशासन - सभा और नाडु विजयनगर साम्राज्य की स्थानीय प्रशासनिक संस्थाएं थीं | ब्रह्मादेय ग्राम की सभाओं को चतुर्वेदी मंगलम कहा जाता था |

*ब्राह्मणों को छोड़कर अन्य जातियों वाले गांव की सभाओं को उर कहा जाता था | नाडू (तहसील) ग्रामों की एक बड़ी राजनीतिक इकाई होती थी और उसकी बैठक तहसील स्तर पर की जाती थी |

*आयंगर व्यवस्था - इस व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक गांव में एक स्वतंत्र इकाई के रूप में 12 शासकीय अधिकारियों का एक समूह बनाया जाता था और उसी समूह को आयंगर कहा जाता था |

*आयंगर व्यवस्था के अनुसार सेनतेओवा, बंगार निरीक्षक, निरतिक्कर, महानायकाचार्य आदि प्रमुख अधिकारी माने जाते थे |

*सैन्य प्रशासन – विजयनगर राज्य में एक विशाल सेना थी और सैन्य विभाग को कंदाचार कहा जाता था |

*प्रमुख दंडनायक अथवा सेनापति सैन्य विभाग के अधिकारी होते थे | विजयनगर साम्राज्य के सैन्य प्रशासन के बारे में ईरान के राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने लिखा हैसेना और स्थानीय पुलिस का वेतन वेश्यालयों से होने वाली आय से दिया जाता था जिसके लिए गरीब मजदूरों की लड़कियों को बलपूर्वक वेश्यालयों में भेजा जाता था |

*न्याय व्यवस्था - न्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था और न्याय हिंदू ग्रंथों के अनुसार किया जाता था तथा ब्राह्मण सभी दण्डों से मुक्त थे |

*राजस्व प्रशासन - राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था जिसे शिष्ट कहा जाता था | लगान वसूली विभाग को आठ्वन कहा जाता था तथा लगान वसूली दर से के मध्य में वसूल किया जाता था |

*विजयनगर साम्राज्य में चावल मुख्य कृषि उपज थी और विजयनगर साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि पर आधारित था |

*काली मिर्च और अदरक का विश्व के विभिन्न भागों में निर्यात किया जाता था तथा  विजयनगर साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कालीकट था |

भूमि का विभाजन

1.भण्डारवाद - यह भूमि सीधे राज्य के नियंत्रण में होती थी |

2.ब्रह्मादेय - यह भूमि ब्राह्मणों को धार्मिक दान में दी जाने वाली भूमि होती थी |

3.अमरम - यह भूमि सैनिकों को वेतन स्वरूप दी जाती थी |

4.कुट्टगि - यह पट्टे पर दी गई भूमि होती थी |

*मुद्रा व्यवस्था - विजयनगर साम्राज्य में स्वर्ण धातु के सिक्कों का सर्वाधिक प्रचलन था | विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्ध सिक्का स्वर्ण का वराह था |

*सोने के छोटे सिक्कों को प्रताप तथा फणम कहा जाता था तथा चांदी के छोटे सिक्के को तार कहा जाता था |

*हरिहर के सिक्कों पर हनुमान एवं गरुड़, तुलुव वंश के सिक्कों पर बैल, गरुड़, लक्ष्मी नारायण और अरावीडू वंश के सिक्कों पर वैष्णव अनुयायियों की आकृतियां अंकित थीं |

*दास प्रथा – विजयनगर साम्राज्य में दास प्रथा का बहुत प्रचलन था जिसमें पुरुष व स्त्री दोनों का क्रय - विक्रय किया जाता था जिसे वेस - वग कहा जाता था |

*स्त्रियों की स्थिति - विजयनगर साम्राज्य में स्त्रियों की स्थिति बहुत दयनीय थी | 1354 . के एक अभिलेख के अनुसार बाल विवाह और सती प्रथा का खूब प्रचलन था |

*विधवा स्त्रियों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी और मंदिरों में देव पूजा के नाम पर 12 से 16 वर्ष की लड़कियों को देवदासी बनाया जाता था | जिसका उल्लेख बारबोसा, नूनिज और सीजर फ्रेडरिक ने अपने लेखों में आंखों देखा वर्णन किया है |

*धर्म - विजयनगर के शासक शैव धर्म और वैष्णव धर्म के अनुयायी थे | विजयनगर का प्रमुख त्योहार महानवमी त्योहार होता था |

विजयनगर साम्राज्य का साहित्य

*संगम वंश के शासक देवराय द्वितीय ने संस्कृत ग्रंथों महानाटक सुधानीति और ब्रह्मासूत्र पर एक टीका की रचना की थी |

*सालुव वंश के शासक कृष्णदेव राय ने जाम्बवती कल्याणम और ऊषा परिणय की रचना संस्कृत में की थी | कृष्णदेव राय ने ही तेलुगु भाषा में आमुक्त माल्याद ग्रंथ की रचना की थी और कृष्णदेव राय के शासनकाल को तेलुगु भाषा का स्वर्णिम काल माना जाता है |

विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला एवं संस्कृति

*स्थापत्य कला - द्रविड़ शैली के आधार पर विजयनगर साम्राज्य के स्थापत्य कला की शुरुआत होती है | कृष्णदेव राय ने हजारा मंदिर, विट्ठल स्वामी मंदिर, चिदंबरम मंदिर और कांचीपुरम में वरदराज मंदिर तथा एकम्बरनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था । विजयनगर साम्राज्य की अंतिम वास्तुकला शैली को मदुरा शैली कहा जाता है  |

*चित्रकला - विजयनगर साम्राज्य की चित्रकला को लिपाक्षी कला के नाम से जाना जाता है | विजयनगर में नृत्य और संगीत को मिलाकर एक शैली विकसित हुई थी जो यक्षिणी शैली के नाम से जानी जाती है |

*संगीत ग्रंथ - वीणा विजयनगर साम्राज्य का सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय संगीत वाद्ययंत्र था | रामराय के संरक्षण में राम अमात्य ने स्वरमेलकलानिधि नामक संगीत ग्रंथ की रचना की थी | संत विद्यारण्य ने संगीत ग्रंथ संगीतसार की रचना की थी | कृष्णदेव राय के दरबारी संगीत कवि लक्ष्मीनारायण थे जिन्होंने संगीत सूर्योदय नामक ग्रंथ की रचना की थी |

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