फिरोजशाह तुगलक का इतिहास...| History of Ferozeshah Tughlaq… |


1.फिरोजशाह तुगलक का प्रारंभिक जीवन

फिरोजशाह तुगलक, मोहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई थे | फिरोजशाह तुगलक का वास्तविक नाम कमालुद्दीन फ़िरो था इनके पिता का नाम मलिक रज्जब था और उनका जन्म 1309 ई. में बीबी जैला के गर्भ से हुआ था | सर्वप्रथम मोहम्मद बिन तुगलक ने फिरोजशाह तुगलक को  अमीर ए हाजिब पद पर नियुक्त किया था |
 
2.सिंहासनारोहण

फिरोजशाह तुगलक का दो बार राज्याभिषेक हुआ था | 22 मार्च 1351 ई. को थट्टा (आधुनिक सिन्ध, पाकिस्तान)में  पहला राज्याभिषेक संपन्न हुआ था | दूसरा राज्याभिषेक अगस्त 1351 ई. में  दिल्ली में संपन्न हुआ एवं 21 दिनों तक उत्सव मनाया गया | खलीफा ने फिरोजशाह तुगलक को  अमीर उल मोमनीन या सैयद उस सलातीन (खलीफा का नायब) की उपाधि प्रदान की थी |

3.प्रशासनिक सुधार

तुगलक वंश का शासनकाल वज़ारत का चरमोत्कर्ष काल माना जाता है |  फिरोजशाह तुगलक ने वजीर का पद मलिक मकबूल (खान ए जहाँ) को,  नायब वजीर का पद मलिक राजी को तथा गाज़ी शाहना को सार्वजनिक विभाग की जिम्मेदारी सौंपी थी |
 
*राजस्व व्यवस्था एवं आर्थिक सुधार- तारीख ए फिरोजशाही के अनुसार फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में इनके (जनता के) घर, अनाज, संपत्ति, धोड़े तथा फर्नीचर से भरे पड़े थे | प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रचुर मात्रा में सोना-चांदी थी,  कृषक वर्ग की कोई भी महिला बिना आभूषण कि नहीं देखी जा सकती थी | कोई घर ऐसा नहीं था जिसमें अच्छे पलंग ना हो | धन खूब बहता था और सभी लोग आराम से रहते थे | इस युग में राज्य को आर्थिक दिवालियापन का सामना नहीं करना पड़ा” |
 
*फिरोजशाह तुगलक ने 24 करों के बदले सिर्फ 5 कर - जजिया, जकात, खराज, ख़ुम्स और हब ए शर्ब लगाए |
*जजिया कर-  जजिया कर ब्राह्मणों को छोड़कर सभी गैर मुस्लिमों से लिया जाता था लेकिन फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुल्तान थे जिन्होंने ब्राह्मणों से भी जजिया कर वसूला |
*जकात- यह मुसलमानों की संपत्ति पर लिए जाने वाला कर था जो 2.5%  लिया जाता था |
*खराज- यह भूमि कर था जो उपज का 1/3 भाग के बराबर लिया जाता था |
*ख़ुम्स- यह युद्ध में लूटे हुए धन पर लिए जाने वाला कर था  जो फिरोजशाह तुगलक ने 1/5 भाग लिया |
*हब-ए-शर्ब-  यह सिंचाई कर होता था जो केवल नहरों से सिंचाई करने वाले क्षेत्रों से लिया जाता था  यह एक नया कर था जो फिरोजशाह तुगलक ने प्रारंभ किया था | यह कर कृषि की उपज का 10%  लिया जाता था | फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में लगान (भूमि कर), पैदावार का 1/5 से 1/3 भाग लिया जाता था | फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुल्तान थे जिन्होंने राज्य की आमदनी का ब्यौरा तैयार करवाया था |

*जागीरदारी प्रथा-  फिरोजशाह तुगलक ने जागीरदारी प्रथा को पुनः प्रारंभ किया | सैनिकों, सेनापतियों, और अन्य पदाधिकारियों को जागीर के रूप में वेतन देने की प्रथा शुरू की गई | तारीख ए फिरोजशाही के अनुसार- सर्वशक्तिमान अल्लाह जब अपने सेवकों की आजीविका वृद्धावस्था के कारण वापस नहीं लेता है, खुदा  का बंदा होने के नाते भला मैं अपने वीर सैनिकों को कैसे पदच्युत कर सकता हूं” |
 
*इतलाक  प्रथा- सर्वप्रथम इतलाक प्रथा की शुरुआत  फिरोज शाह तुगलक ने की थी इतलाक (नियुक्ति पत्र) प्रथा, जब कोई सैनिक लगान वसूली करने वाले अधिकारी के पास जाता था तो उसे 50%  लगान मिलता था | फिरोजशाह तुगलक ने घूसखोरी को स्वयं प्रोत्साहित किया |  फिरोजशाह तुगलक का शासन काल मध्यकालीन भारत में सबसे भ्रष्ट शासन काल कहा जाता है |  फिरोजशाह तुगलक का आदर्श वाक्य था- खजाना बड़ा होने से अच्छा है लोगों का कल्याण | दुखी हृदय से अच्छा है खाली खजाना |

*दीवान ए बन्दगान-  यह दासों का विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी | अर्ज़ ए बंदगान दासों की भर्ती एवं निरीक्षण करने वाला प्रमुख अधिकारी होता था | इस समय दासों की संख्या 1 लाख 80 हज़ार थी |  फिरोजशाह तुगलक ने दासों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था | फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में एक रोजगार दफ्तर भी खुलवाया था |

*दीवान  ए खैरात- यह दान विभाग होता था इसकी स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी और इसी विभाग के अंतर्गत विवाह-विभाग भी होता था जो गरीब लड़कियों की शादी के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता था |

*दारुल शफ़ा-  फिरोजशाह तुगलक ने रोगियों के लिए इस विभाग की स्थापना की थी |  यह विभाग रोगियों के लिए नि:शुल्क चिकित्सा एवं भोजन की व्यवस्था करता था |
 
4.स्थापत्य कला

तुगलक काल में स्थापत्य कला का सबसे ज्यादा विकास फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में हुआ |  फिरोजशाह तुगलक ने निर्माण कार्य के लिए लोक निर्माण विभागकी स्थापना करवाई एवं मलिक गाजी शाहना को इसका प्रमुख बनाया था | फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में, संपूर्ण राज्य के मुख्य वास्तुकार मलिक गाजी शाहना एवं अब्दुल हक उनके सहायक थे | फिरोजशाह तुगलक ने 300 नए नगरों की स्थापना की, जिसमें प्रमुख नगर -  फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर, जौनपुर और फिरोजाबाद हैं |  फिरोजपुर को अखिनीपुरभी कहा जाता है | 1352 ई. दिल्ली में मदरसा ए फिरोजशाही का निर्माण भी करवाया था | इसी विषय में फरिश्ता ने लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक ने 40 मस्जिदें, 30 विद्यालय, 20 महल, 100 अस्पताल, 5 मकबरे, 100 सार्वजनिक गृह, और अनेक बाग-बगीचों का निर्माण करवाया”| फिरोजशाह तुगलक ने कुतुब-मीनार, जामा-मस्जिद, शम्सी-तालाब, अलाई-दरवाजा आदि की मरम्मत करवाई थी | फिरोजशाह तुगलक शासन के शासनकाल में बनवाई गई नहरों की जानकारी याहिया बिन अहमद सरहिंदी की पुस्तक तारीख ए मुबारकशाहीमें मिलती है |  फिरोजशाह तुगलक ने सम्राट अशोक के 2 स्तंभों- टोपरा से लाए गए स्तंभ को शाही महल फिरोजाबाद (फिरोजशाह कोटला) की मस्जिद के पास स्थापित करवाया था |  दूसरा स्तंभ मेरठ से लाया गया लेकिन पांच खंडों में टूट जाने के कारण दिल्ली में ( आधुनिक बड़ा हिंदू राव अस्पताल) के पास में स्थापित किया गया था |

5.शिक्षा एवं साहित्य

फिरोजशाह तुगलक को शिक्षा एवं साहित्य में विशेष रूचि थी उनके दरबार में  जियाउद्दीन बरनी जिसने फारसी में तारीख ए फिरोजशाही एवं अरबी में फतवा ए जहांदारी की रचना की थी | ‘शम्स-ए- सिराज अफीफ ने भी तारीख ए फिरोजशाहीकी रचना की थी जिसमें  फिरोज शाह तुगलक की सभी जानकारियां प्रदान की गई | फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा फुतुहात ए  फिरोजशाहीकी रचना की थी | संपूर्ण तुगलक वंश के शासन काल में सबसे ज्यादा फारसी भाषा  का विकास, फिरोज़ शाह तुगलक के शासन काल में हुआ था | संगीत और औषधि पर लिखे गए संस्कृत एवं पाली ग्रंथों का फारसी में अनुवाद, सबसे ज्यादा  फिरोज शाह तुगलक के शासन काल में हुआ था | ‘दलायल ए फिरोजशाहीको संस्कृत से फारसी में अनुवाद अजीजुद्दीन किरमानी ने किया था |

संगीत:-  संगीत पर आधारित ग्रंथ राग-दर्पण  का फारसी भाषा में अनुवाद सर्वप्रथम फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में ही हुआ था | 
सिक्कों:-  फिरोजशाह तुगलक ने अपने सिक्कों पर अपना तथा अपने पुत्र फतेह खां का नाम अंकित करवाया एवं कुछ  सिक्कों पर मिस्र के खलीफा का नाम भी अंकित करवाया था |

6. फिरोजशाह तुगलक की धार्मिक नीति

फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुल्तान थे जिसने इस्लामी कानून शरीयत को प्रधानता दी |  फिरोजशाह तुगलक सूफी संत फरीरुद्दीन गंज शंकर के अनुयायी थे | दिल्ली के बाहर स्थित सभी मजारों पर, मुस्लिम महिलाओं का प्रतिबंध लगाने वाले प्रथम दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक थे | फिरोजशाह तुगलक ने हिंदुओं को जिम्मी  कहकर पुकारा | फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत के प्रथम सुल्तान थे जिन्होंने स्वयं को खलीफा का नायब  घोषित किया था | फिरोजशाह तुगलक की धार्मिक नीति के बारे में इतिहासकार डॉक्टर आर. सी. मजूमदार ने लिखा फिरोजशाह तुगलक इस युग के सबसे महान धर्मांध (सुल्तान) थे और इस क्षेत्र में वह सिकंदर लोदी और औरंगजेब से अग्रगामी थे |

7.प्रमुख सैन्य अभियान 

*बंगाल अभियान- फिरोजशाह तुगलक ने बंगाल के खिलाफ प्रथम अभियान 1353-54 ई. में  बंगाल के शासक हाजी इलियास के विरुद्ध किया था | फिरोज शाह तुगलक ने जब हाजी इलियास के किले पर आक्रमण किया तो वह अपना राज्य छोड़कर भाग गया | फिरोज शाह तुगलक ने इसी अभियान के दौरान इकदला का नाम बदलकर आजादपुर तथा पांडुआ का नाम बदलकर फिरोजाबाद कर दिया था |  फिरोजशाह तुगलक का बंगाल के विरुद्ध द्वितीय अभियान 1359 ई. में पूर्वी बंगाल के शासक सिकंदर शाह के विरुद्ध था परंतु सिकंदर शाह ने फिरोजशाह तुगलक के साथ संधि कर ली | इसी अभियान से वापस आते समय फिरोजशाह तुगलक ने जौनपुर की स्थापना की थी |

*जाजनगर  अभियान- फिरोजशाह तुगलक ने 1360 ई. में जाजनगर (आधुनिक ओडिशा)  के विरुद्ध अभियान किया था किंतु जाजनगर के राजा वीर भानुदेव तृतीय संधि के लिए तैयार हो गए | इसी अभियान के दौरान फिरोजशाह तुगलक ने  पुरी के जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति को तोड़ दिया था |

*नागरकोट  अभियान- फिरोजशाह तुगलक ने 1365 ई. में नागरकोट (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) के विरुद्ध अभियान किया था लेकिन वहां के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया था | इसी अभियान के दौरान फिरोजशाह तुगलक ने ज्वालामुखी मंदिरको नष्ट कर दिया था और वहां से 300 ग्रंथ, अपने साथ लाए थे और इनमें से प्रमुख ग्रंथों का अनुवाद फारसी में करवाया,  जिसमें सबसे प्रमुख ग्रंथ, दर्शन एवं नक्षत्र विज्ञान था जिसका फारसी में अनुवाद अजीजुद्दीन किरमानी खालिद ने दलायल ए फिरोजशाहीके नाम से किया था |
 
*थट्टा अभियान- फिरोजशाह तुगलक का अंतिम सैन्य अभियान 1365-67 ई.में थट्टा (आधुनिक सिन्ध, पाकिस्तान) के शासक  अलाउद्दीन जूना तथा सद्रुद्दीन के विरुद्ध था परंतु फिरोजशाह तुगलक की सेना पराजित हुई और अभियान असफल रहा,  वापस आते समय फिरोजशाह तुगलक कच्छ की खाड़ी में चले गए और 6 महीने भटकने के बाद गुजरात पहुंचे | फिरोजशाह तुगलक ने दोबारा सिंध पर आक्रमण किया और यह अभियान सफल रहा  एवं दोनों के बीच संधि हो गई | सिन्ध को दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया गया 

8. प्रमुख विद्रोह 

*गुजरात विद्रोह- 1376-77 ई. में  गुजरात के राज्यपाल शम्सुद्दीन दमगानी ने गुजरात में विद्रोह किया किंतु उसकी हत्या कर दी गई और उसके स्थान पर मलिक मुफर्रह  को फ़रहतुल्मुल्क सुल्तानी की उपाधि दे कर, गुजरात का नया राज्यपाल बनाया गया | फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में यह राज्यपाल का प्रथम विद्रोह था |

*मलिक मकबूल-  मलिक मकबूल मूल रूप से तेलंगाना के हिंदू ब्राह्मण थे उनका वास्तविक नाम कुन्न  था | फिरोजशाह तुगलक ने उन्हें खान ए जहांकी उपाधि दे कर अपना वजीर बनाया था | 1368 ई. में  उनकी मृत्यु हो जाने पर, उनके पुत्र जौना खां (खान ए जहां द्वितीय) को नया वजीर नियुक्त किया गया |

9.उत्तराधिकारी एवं मृत्यु

फिरोजशाह तुगलक ने अपना उत्तराधिकारी  अपने जेष्ठ पुत्र फतेह खां को चुना था परंतु 1374 ई. में  उसकी मृत्यु हो गई | इसके पश्चात दूसरे पुत्र जफर खां को उत्तराधिकारी चुना गया  लेकिन बहुत जल्द उसकी भी मृत्यु हो गई | फिरोजशाह तुगलक ने अपने तीसरे पुत्र मोहम्मद खां 1387 ई. में नासिरुद्दीन मोहम्मद शाह है के नाम से गद्दी पर बैठाया किंतु सुल्तान का पद संभालने में असफल रहा और अंततः विवश होकर फिरोजशाह तुगलक ने फतेह खां के पुत्र तुगलक शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना पड़ा | सितंबर 1388 ई. में फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु हो गई |


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