लोदी वंश [1451-1526 ई.]
लोदी वंश का परिचय- दिल्ली सल्तनत के सभी राजवंशों में, लोदी वंश अंतिम राजवंश था जिसकी स्थापना 1451 ईस्वी में बहलोल लोदी ने की थी और यह प्रथम अफगान राज्य भी माना जाता है | लोदी वंश के तीन शासकों - बहलोल लोदी, सिकंदर लोदी और इब्राहिम लोदी ने 1451 से 1526 ईसवी अर्थात 75 वर्षों तक शासन किया था | लोदी वंश के शासक मूल रूप से अफगानिस्तान के रहने वाले थे |
सिकंदर लोदी का इतिहास [1489- 1517 ई.]
*सिकंदर लोदी प्रारंभिक इतिहास- सिकंदर लोदी का वास्तविक नाम ‘निजाम खां’ था उनके पिता का नाम बहलोल लोदी था और माता का नाम जैबन्द था | 12 जून 1489 ईस्वी को बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद, उनके दूसरे पुत्र निजाम खां जो 16 जुलाई 1489 ईसवी को सिकंदर लोदी के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठे | लोदी वंश के सभी शासकों में सिकंदर लोदी का साम्राज्य सबसे ज्यादा विस्तृत था |
1504-5 ई. में सिकंदर लोदी ने आगरा नामक एक नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया | लोदी वंश के सभी शासकों में सिकंदर लोदी को महान शासक माना जाता है | गले की बीमारी के कारण 21 नवंबर 1517 ईसवी को सिकंदर लोदी की मृत्यु हो गई | सिकंदर लोदी की एक मशहूर कहावत थी “राजा का कोई सगा संबंधी नहीं होता है” |
*सिकंदर लोदी की आर्थिक नीति- सिकंदर लोदी ने अपनी आंतरिक स्थिति को सुधारने के लिए कृषि एवं व्यापार पर विशेष ध्यान दिया था | सिकंदर लोदी ने भूमि की माप के लिए ‘गज़-ए-सिकंदरी’ नामक प्रमाणिक माप का प्रारंभ किया जो मुगल काल तक प्रचलन में रहा | सिकंदर लोदी ने वस्तुओं का मूल्य कम करने के उद्देश्य से अनाज पर चुंगी कर ना लेने का आदेश दिया था | सिकंदर लोदी ने योग्य व्यक्तियों को उनकी योग्यतानुसार आर्थिक सहायता प्रदान की थी |
*सिकंदर लोदी की धार्मिक नीति- धार्मिक दृष्टि से सिकंदर लोधी असहिष्णु थे उन्होंने उलेमा वर्ग को खुश करने के लिए हिंदुओं के धार्मिक संस्कारों पर प्रतिबंध लगा दिया तथा मंदिर एवं मूर्तियों को नष्ट करवाया | नगरकोट की ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति तोड़कर, उसके टुकड़ों को मांस तोलने के लिए कसाईयों को दे दिया था | इसके अतिरिक्त मथुरा, चंदेरी आदि स्थानों पर मंदिरों एवं मूर्तियों को नष्ट करवाया था |
सिकंदर लोदी ने हिंदुओं के अलावा मुसलमानों में प्रचलित कुप्रथाओं को भी रोकने का प्रयत्न किया | मोहर्रम में ताजिए निकालना बंद करवा दिया और मुस्लिम स्त्रियों को संतों की मजार पर जाने से रोक लगा दी |
*सिकंदर लोदी साहित्य एवं स्थापत्य कला- सिकंदर लोदी शिक्षित एवं विद्वान शासक थे वह फारसी भाषा के ज्ञाता थे और उन्होंने “गुलरूखी” के उपनाम से फारसी में कविताएं भी लिखी | मुस्लिम शिक्षा में सुधार के लिए सिकंदर लोदी ने प्रसिद्ध विद्वान शेख अब्दुल्लाह एवं शेख अजीमुल्लाह को दिल्ली आमंत्रित किया था | सिकंदर लोदी के संरक्षण में मियां भुआँ ने औषधी शास्त्र का “तिब्बत-ए-सिकंदरी” या “फ़रहंग-ए-सिकंदरी” के नाम से फारसी में अनुवाद किया था |
संगीत पर आधारित पहला फारसी ग्रंथ, “लज्जत-ए-सिकंदरशाही” की रचना सिकंदर लोदी के शासनकाल में हुई थी | सिकंदर लोदी के दरबार में मियां ताहिर रहते थे और दिल्ली में अपने पिता बहलोल लोदी के मकबरे का निर्माण भी कराया था | मियां भुआँ द्वारा 1505 ईसवी में दिल्ली में निर्मित “मोठ की मस्जिद” लोदी वंश के स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना जाता है |
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प्राचीन इतिहास PDF – http://bit.ly/3G9U4ye
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