नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास | बख्तियार खिलज़ी का इतिहास | Nalanda Vishwavidyalaya Ka Itihas |

ऐतिहासिक तथ्य

तबक़ात ए नासिरी

तबक़ात ए नासिरी की रचना 13वी शताब्दी में मिन्हाज़ उस सिराज़ के द्वारा फ़ारसी भाषा में की गई थी और इसमें मुहम्मद गोरी से लेकर नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल तक की जानकारी मिलती है | बख्तियार खिलज़ी का उल्लेख तबक़ात ए नासिरी में ही किया गया है और इसके अलावा किसी अन्य ग्रन्थ में बख्तियार खिलज़ी का उल्लेख नहीं किया गया है |

बख्तियार खिलज़ी का इतिहास

*बख्तियार खिलज़ी का जन्म अफ़गानिस्तान के हेलमंद प्रान्त में हुआ था |

*बख्तियार खिलज़ी का पूरा नाम इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलज़ी था |

*क़ुतुब उद दीन ने बख्तियार खिलज़ी को बिहार और बंगाल का सूबेदार बनाया था |

*बख्तियार खिलज़ी ने सबसे पहले बिहार पर आक्रमण किया था और उस समय बिहार के राजा इन्दुमन भीरु थे लेकिन इन्दुमन भीरु बख्तियार खिलज़ी के आक्रमण का सामना नहीं पाए |

*इन्दुमन भीरु की पराजय के बाद बख्तियार खिलज़ी ने सबसे पहले नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया और उसके पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था जिसमें उस समय लगभग 90 लाख पांडुलिपियाँ रखीं हुईं थी सभी जलकर खाक हो गई थीं |

*बख्तियार खिलज़ी ने नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया..? इस सम्बन्ध में अनेक कहानियाँ प्रचलित है |

*जनश्रुतियों के अनुसार – तराइन के दूसरे युद्ध के बाद बख्तियार खिलज़ी बहुत बीमार हो गया था | तुर्की तथा अफ़गानी हक़ीम, उसे ठीक नहीं कर पाए उसी समय किसी ने बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय में एक प्रसिद्ध ब्राह्मण वैद्य, राहुल श्रीभद्र रहते हैं वो आपको ठीक कर देंगे | इसके बाद बख्तियार खिलज़ी के पास राहुल श्रीभद्र को लगाया गया लेकिन बख्तियार खिलज़ी ने एक शर्त रखी | मुझे बिना हिन्दुस्तानी दवाईयों के ठीक करके दिखाओ अगर तुम ठीक न कर पाए तो में तुम्हें मार दूंगा | राहुल श्रीभद्र ने बख्तियार खिलज़ी की शर्त मान ली और 7 दिन बाद, वह फिर से बख्तियार खिलज़ी के पास आए और उसे क़ुरान प्रदान की और कहा कि प्रति दिन इसका पाठ करना है | बख्तियार खिलज़ी ने क़ुरान का कुछ दिनों तक पाठ किया और वह ठीक हो गया क्योंकि राहुल श्रीभद्र ने क़ुरान के प्रत्येक पेज पर दवाई का अदृश्य लेप लगा दिया था | जब भी बख्तियार खिजली क़ुरान का पाठ करता था तो पेज को पलटने के लिए थूंक का इस्तेमाल था और दवाई धीरे-धीरे उसके अन्दर चली जाती थी | बख्तियार खिलज़ी जब पूर्णतः ठीक हो गया तो उसने सोचा कि इतना अच्छा ज्ञान किसी दूसरे धर्म में कैसे हो सकता है..? इसके ज्ञान के केंद्र को नष्ट किया जाए | इसीलिए बख्तियार खिलज़ी ने नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था परन्तु ये जनश्रुति है इसमें कितनी सच्चाई है इसकी पुष्टि कोई नहीं कर सकता है |

*बिहार को जीतने के बाद बख्तियार खिलज़ी ने 1203 - 4 में, बंगाल पर आक्रमण किया और उस समय बंगाल के राजा लक्षमण सेन थे लेकिन बख्तियार खिलज़ी के डर से वह अपनी राजधानी नदिया को छोड़कर पूर्वी बंगाल (आधुनिक बंगलादेश) चले गए थे | बख्तियार खिलज़ी ने नदिया में खूब लूट मचाई थी और उसने बंगाल की नई राजधानी लखनौती को बनाकर अपना शासन वहीँ से शुरू किया था |

*1205 ई. में बख्तियार खिलज़ी ने तिब्बत पर आक्रमण किया लेकिन वहां की जनता ने राजा के साथ मिलकर बख्तियार खिलज़ी की सेना को बुरी तरह वहां से खदेड़ा |

*1205 ई. में ही, पश्चिम बंगाल के भानगढ़ नामक स्थान पर अली मर्दन के द्वारा बख्तियार खिलज़ी की हत्या कर दी गई थी |

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

*नालंदा शब्द, प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ कमल का फूल होता है |

*नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के राजा कुमारगुप्त ने करवाई थी |

*नालंदा विश्वविद्यालय भारत का प्रसिद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय था |

*नालंदा विश्वविद्यालय में गणित, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, दर्शनशास्त्र, साहित्य आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी |

*आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय से ही शिक्षा प्राप्त की थी |

*नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था जहाँ पर देश/विदेश से छात्र पढ़ने आते थे जिसमें चीनी यात्री व्हेनसांग और इत्सिंग का नाम सबसे प्रसिद्ध माना जाता है |

*नालंदा विश्वविद्यालय का उल्लेख व्हेनसांग और इत्सिंग ने अपने लेखों में किया था और उन्हीं लेखों के आधार पर अलेक्जेंडर कनिंघम ने नालंदा विश्वविद्यालय को खोज की थी |

*नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज विहार के राजवीर के पास स्थित हैं जिन्हें आज भी देखा जा सकता है |

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