1772-1785 ई. तक ...| वारेन हेस्टिंग्स का सम्पूर्ण इतिहास...| By 1772-1785 AD ... | Complete History of Warren Hastings ... |


*कार्टियर के बाद 1772 ई. में वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया | वारेन हेस्टिंग्स के सामने कई समस्याएँ थीं जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना और बंगाल में फैली अव्यवस्था को सही रास्ता दिखाना |

वारेन हेस्टिंग्स  के सुधार

*वारेन हेस्टिंग्स ने सबसे पहला महत्वपूर्ण कार्य, “द्वैध शासन” को समाप्त किया और नाईव दीवान मुहम्मद रज़ा खान और शिताब राय को उनके पदों से हटा दिया तथा उन पर भ्रष्टाचार करने का मुक़द्दमा भी चलाया | दीवानी का कार्य अब ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया गया |
*प्रत्येक जिले में मालगुजारी (कर) वसूल करने के लिये अंग्रेज कलेक्टर नियुक्त किए। 
*नवाब को शासन-भार से मुक्त कर दिया और उसकी पेंशन भी 32 लाख से घटाकर 16 लाख कर दी ।
*मुर्शिदाबाद से राजकोष हटाकर कलकत्ता में स्थापित  कर दिया।
*बंगाल के अल्पवयस्क नवाब नज़्म-उद-दौला की संरक्षिका मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम को नियुक्त कर दिया और नन्दकुमार के पुत्र गुरुदास को उसका प्रबन्धक बना दिया।
*चुंगी में कमी- वारेन हेस्टिंग्स नमक, पान, तम्बाकू और सुपारी के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं पर सभी भारतीयों और अंग्रेज व्यापारियों के लिए 2.5% चुंगी निश्चित कर दी।
*चौकियों का अन्त- जमींदारों ने अनेक स्थानों पर चौकियों की स्थापना कर रखी थी जो व्यापारिक माल के आने-जाने में अनेक रुकावटें डालती थीं। हेस्टिंग्ज ने उन्हें तोड़कर केवल पाँच स्थानों-कलकत्ता, हुगली, मुर्शिदाबाद, ढाका तथा पटना में चुंगी घर खोल दिये जिससे व्यापार के क्षेत्र में रुकावटें दूर हो गईं।
*वारेन हेस्टिंग्स ने व्यापारियों को आर्थिक सुविधाएँ देने के लिए कलकत्ता में एक बैंक की स्थापना की।
*दस्तक प्रथा का अन्त- वारेन हेस्टिंग्स ने दस्तक प्रथा का अन्त कर दिया। इससे चुंगी की आय सीधे कम्पनी को प्राप्त होने लगी।  इस प्रथा की समाप्ति पर सर्व-साधारण को भी व्यापार करने का अधिकार मिल गया।
* वारेन हेस्टिंग्स ने नमक और अफीम के व्यापार पर सरकारी नियन्त्रण लगा दिया और इनका व्यापार ठेके पर उठाया गया।
*कम्पनी के कर्मचारी अपना व्यक्तिगत व्यापार भी करते थे। वारेन हेस्टिंग्स ने उस पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया।
*दादनी का अन्त- वारेन हेस्टिंग्स ने दादनी प्रथा का अन्त कर दिया। इसके अनुसार पहले कम्पनी के कर्मचारी भारतीय कारीगरों को दादनी देकर उनका माल सस्ते दामों में बलपूर्वक खरीद लेते थे। इसका प्रभाव भारतीय उद्योग-धन्धों पर बहुत बुरा पड़ रहा था और वे पतनावस्था की ओर जा रहे थे।
*वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में एक सरकारी टकसाल की स्थापना की जिसमें एक निश्चित मूल्य और आकार की मुद्राएँ ढालने की व्यवस्था की गई।
*एक कमेटी द्वारा पिछले वर्षों में प्राप्त लगान क आधार पर खेतों के लगान को निश्चित करवाकर पंचवर्षीय ठेकेदारी की प्रथा प्रचलित की। लेकिन इस पंचवर्षीय व्यवस्था के बड़े भयानक दुष्परिणाम निकले। जमींदारों ने इस निश्चित काल में अत्यधिक धन किसानों से वसूल किया और उनका खूब शोषण किया।
*1773 ई. में कलेक्टर का पद समाप्त करके लगान वसूली के लिए एक राजस्व समिति की स्थापना की जिसमें कम्पनी के 3 सदस्य और कौंसिल के 2 सदस्य थे। राजस्व समिति की सहायता के लिये रायरायन के पद पर एक भारतीय अधिकारी नियुक्त किया गया। तीनों प्रान्तों को राजस्व की दृष्टि से छ: भागों में विभक्त कर दिया गया और प्रत्येक के लिये एक प्रांतीय समिति बनाई गई और जिलों का कार्य भारतीय दीवान को सौंप दिया गया । किन्तु यह व्यवस्था ठीक सिद्ध नहीं हुई और 1781 ई. में इस व्यवस्था में पुनः परिवर्तन किया गया जिसके अनुसार कलकत्ता को राजधानी बना दिया गया और एक नयी राजस्व समिति बनाई गई। प्रान्तीय समितियाँ समाप्त कर दी गई और जिले में एक अंग्रेज कलेक्टर की नियुक्ति की गई जो जिले में राजस्व विभाग के अध्यक्ष के रूप में काम करता था। उसकी सहायता के लिये एक भारतीय दीवान होता था। कई जिलों के लिये के एक कमिश्नर की नियुक्ति की गई।
*मुगल सम्राट शाहआलम अंग्रेजों के संरक्षण को छोड़कर मराठों के संरक्षण में चला गया था। इस कारण वारेन हेस्टिंग्स ने कम्पनी की ओर से मिलने वाली उसकी 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन बन्द कर दी।
*प्रत्येक जिले में एक दीवानी अदालत और एक फौजदारी अदालत की स्थापना की। दीवानी अदालत का अध्यक्ष कलेक्टर और फौजदारी अदालत का अध्यक्ष काजी या पण्डित होता था। स्थानीय अदालतों के ऊपर कलकत्ता में एक सदर दीवानी अदालत की स्थापना की गई । इन अदालतों में स्थानीय अदालतों की अपीलें सुनी जाती थीं ।
*उसने हिन्दू और मुसलमानों के कानून का संकलन करवाया जिससे पक्षपात रहित निर्णय हो सके।
*अपराधियों को पकड़ने के लिये वारेन हेस्टिंग्स ने प्रत्येक जिले में फौजदारों की नियुक्ति की।
*वारेन हेस्टिंग्स ने दीवानी और फौजदारी अदालतों के कार्य क्षेत्र अलग-अलग कर दिये। दीवानी अदालत के अन्तर्गत सम्पत्ति, उत्तराधिकार, विवाह, जाति, ऋण एवं ब्याज आदि थे और फौजदारी अदालत के कार्य-क्षेत्र में हत्या, डकैती, जालसाजी, झगड़े आदि सम्मिलित थे।
*वारेन ने हेस्टिंग्स पुलिस विभाग का संगठन किया और प्रत्येक जिले की पुलिस के लिए एक स्वतंत्र पदाधिकारी की नियुक्ति की।

रेग्यूलेटिंग ऐक्ट (1773)

*बंगाल प्रान्त के गवर्नर को सम्पूर्ण भारत के अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया और उसका कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया। मद्रास तथा बम्बई के गवर्नर उसके अधीन कर दिये गये।
*वारेन हेस्टिंग्स को भारत के अंग्रेजी क्षेत्रों का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया था |
*गवर्नर जनरल के शासन-कार्य में सहायता देने के लिए चार सदस्यों की एक कौंसिल बनाई गई। सदस्यों की अवधि 4 वर्ष रखी गई।
*कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश नियुक्त किये गये।
*कम्पनी का कोई भी कर्मचारी बिना लाइसेन्स प्राप्त किए हुए निजी व्यापार नहीं कर सकता था और न किसी से भेंट तथा उपहार ग्रहण कर सकता था।
*गवर्नर जनरल और उसकी कौंसिल को सुप्रीम कोर्ट के अधीन कर दिया गया। गवर्नर जनरल और उसकी कौंसिल द्वारा पारित किये समस्त कानून उस समय तक वैध नहीं माने जा सकते थे जब तक उनको सुप्रीम कोर्ट में रजिस्टर्ड न करा लिया जाये।

वारेन हेस्टिंग्ज की वैदेशिक नीति

*मुगल सम्राट शाहआलम मराठा सरदार महादेव जी सिन्धिया की शरण में चला गया था। अतः हेस्टिंग्ज ने उसकी 26 लाख रुपया वार्षिक पेंशन बन्द कर दी और उससे कड़ा और इलाहाबाद के जिले छीन लिये।
*1773 ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से बनारस की सन्धि की। इस सन्धि के अनुसार उसने कड़ा और इलाहाबाद के जिले उसको 50 लाख रुपये में बेच दिये। नवाब ने अपने खर्च पर ही सुरक्षा के लिए कम्पनी की एक पृथक् सेना रखना स्वीकार कर लिया और युद्ध के समय दोनों ने एक दूसरे की सहायता का वचन दिया।
*नन्दकमार एक उच्च वंश का प्रतिभाशाली बंगाली ब्राह्मण था। 11 मार्च, 1775 ई. को उसने वारेन हेस्टिंग्स पर यह अभियोग लगाया कि उसने मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम से साढे तीन लाख रुपया लेकर उसको नवाब की संरक्षिका बनाया है। जब कौसिल ने वारेन हेस्टिंग्स से इस विषय पर पूछताछ की तो उसने नन्दकुमार के सामने सफाई देने से इन्कार कर दिया और नन्दकुमार के विरुद्ध षड्यंत्र रचने का अभियोग चला दिया। इसी बीच कलकत्ता के सेठ मोहन प्रसाद ने नन्दकुमार के विरुद्ध जालसाजी का मुकदमा चलाया ।
6 मई 1775 को नन्दकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया और उसको सुप्रीम कोर्ट के सर्वोच्च न्यायाधीश सर इलीजा इम्पे द्वारा प्राणदण्ड दे दिया।  5 अगस्त 1775 ई. को वह फाँसी पर लटका दिया गया।
*वारेन हेस्टिंग्स ने गीता के अंग्रेजी अनुवादकर विलियम विलकिन्स’ को अपना प्रश्रय प्रदान किया था |
*1775 ई. में फैजाबाद की सन्धि के अनुसार- बनारस के राजा चेतसिंह ने कम्पनी को 22.50 लाख रुपया देना स्वीकार कर लिया था किन्तु 1778 में मराठों के साथ युद्ध छिड़ते ही वारेन हेस्टिंग्स ने राजा चेतसिंह से असाधारण युद्ध सहायता के रूप में 5 लाख रुपये मांगे जिसे राजा ने दे दिया। पुनः दूसरे वर्ष उसने फिर इतना ही धन माँगा। राजा ने उसे भी दे दिया। 1780 में हेस्टिग्ज ने राजा से 2,000 घुड़सवारों की मांग की। इस माँग की पर्ति में कुछ विलम्ब हुआ । वारेन हेस्टिंग्स ने उस पर 50 लाख रुपया जुर्माना कर दिया जिसे अदा करने से चेतसिंह ने इन्कार कर दिया इस पर हेस्टिंग्ज ने 500 सैनिकों की एक छोटी-सी टुकड़ी लेकर बनारस पर आक्रमण कर दिया और चेतसिंह को गिरफ्तार कर लिया। चेतसिंह को पदच्युत करके उसके स्थान पर उसके एक भतीजे को बनारस का राज्य सौंप दिया गया और उसने साढ़े 22 लाख के स्थान पर 40 लाख रुपये वार्षिक कम्पनी को देना स्वीकार किया।
*वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल 1780 ई. में भारत का पहला समाचार-पत्र द बंगाल गजट’ का प्रकाशन जेम्स ए. हिक्की द्वारा किया गया था |  
*1781 ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में एक मदरसा की स्थापना करवाई थी |
*वारेन हेस्टिंग्स के ही शासनकाल, 1782 ई. में जोनाथन डंकन ने बनारस में एक संस्कृत विधालय की स्थापना की थी |
*1784 ई. में विलियम जोन्स ने द एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल’ स्थापना की थी |

पिट्स का इण्डिया ऐक्ट (1784)

*रेग्युलेटिंग ऐक्ट के दोषों को दूर करने के लिए 1784 में 'पिट्स का इण्डिया ऐक्ट' पारित किया गया।
*भारतीय मामलों के लिए 6 कमिश्नरों का एक बोर्ड स्थापित किया गया जिसका नाम बोर्ड आफ कन्ट्रोल रखा गया।
*भारत में गवर्नर जनरल की कौंसिल के सदस्यों की संख्या 4 की जगह 3 कर दी गई। इनमें एक स्थान सेनाध्यक्ष को दिया गया।
*मद्रास और बंबई सरकारों को पूरी तरह से बंगाल सरकार के अधीन कर दिया गया।
*वारेन हेस्टिंग्स 1 फरवरी 1785 को पिट्स का इण्डिया ऐक्ट के विरोध में त्याग-पत्र देकर इंग्लैण्ड चला गया। वहाँ पहुँचने पर उसके विरुद्ध पार्लियामेंट में मुकदमा चलाया गया जो 1795 तक चलता रहा। अन्त में वह निर्दोष घोषित किया गया। कम्पनी ने उसे 4,000 पौण्ड वार्षिक पेंशन प्रदान की। 1818 में उसकी मृत्यु हो गई।
*लार्ड मैकाले ने प्रशंसा करते हुए लिखा है, "वारेन हेस्टिंग्ज ने दोहरी सरकार को तोड़ दिया। उसने सभी कार्यों को अंग्रेजी हाथों में सौप दिया तथा अराजकता के बावजूद उसने शांति स्थापित की।"
*लार्ड कर्जन के अनुसार, "मुझे संदेह है कि सार्वजनिक मामलों के सम्पूर्ण इतिहास में किसी व्यक्ति पर इतनी निर्दयता से दोषारोपण किया गया हो, अथवा इतनी दृढ़ता से उस पर अभियोग चलाया गया हो। उसने प्रत्येक परिस्थितियों में धैर्य, सहनशीलता तथा आत्म संयम प्रकट किया, जिसकी ऐसे चरित्र से आशा की जाती है।"    

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